अपराध

आपदा में मौका तलाशते बेशर्म सत्तालोभी और धनपशु

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
वर्तमान में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने पूरे देश में लोगों के लिए भीषण संकट पैदा किया हुआ है, इसमें हर रोज हजारों की संख्या में लोगांे की असमय मौत हो रही हैं, लेकिन केन्द्र और राज्य सरकारें संकट से निपटने में एक तरह से असहाय दिखायी दे रही हैं। इस महामारी में लोग स्वयं और स्वजनों के प्राणों की रक्षा के लिए अस्पतालों में बिस्तर, आई.सी.यू.,वेण्टिलेटर, एम्बुलेंस, रेमडेसिविर, पैरासीटामोल जैसी जीवन रक्षक दवाओं और कई-कई घण्टे ही नहीं, दिन भर पंक्ति लगाकर खड़े होने पर भी आॅक्सीजन से भरे सिलिण्डर नहीं मिल रहे हैं। फिर भी आकुल-व्याकुल लोग स्वजनों की जान बचाने को हर सम्भव कोशिश में लगे हुए हैं, लेकिन ये सब चीजें मुँहमाँगी कीमत चुकाने को तैयार होने पर भी उपलब्ध नहीं हैं। इस बीच चिकित्सकीय उपकरण विक्रेताओं ने थर्मामीटर, आॅक्सीमीटर, शुगर तथा ब्लडप्रेशर मापने की मशीन समेत सभी उपकरण की अनुपलब्धता दर्शाते हुए उन्होंने कई गुना कीमतें बढ़ा दी हैं। यहाँ तक कि उन्हें अपने मृतक स्वजनों के शव को ले जाने और उनका श्मशान में अन्तिम संस्कार या कब्रिस्तान में दफन को न सिर्फ घण्टों इन्तजार करना पड़ रहा है, बल्कि कुछ जगहों पर तो जगह ही कम पड़ गई है। कुछ श्मशानों दहन करने के लिए लकड़ियों या फिर विद्युत शवदाहों और कब्रिस्तानों में दफनाने की भी मजदूरी बढ़ा दी हंै।ऐसे बुरे वक्त में भी एक -दूसरे की सहयोग-सहायता और सहारा बनने के बजाय जहाँ राजनेता आरोप-प्रत्यारोपों के जरिए अपनी राजनीतिक लाभ उठाने में जुटे हैं,तो दूसरी ओर अस्पताल संचालक,चिकित्सक, औषधीय,चिकित्सकीय उपकरण विक्रेता, आॅक्सीजन वितरक,एम्बुलेंस चालक तक रोगियों के परिजनों को हर तरह से बेशर्मी से लूटने में लगे हैं।ये लोग समाज और देश के दुश्मन हैं। इन्हें ‘इन्सान’ नहीं,‘हैवान’ कहा जाना चाहिए।
निश्चय ही ऐसे हालात के लिए केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकारें भी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने समय रहते कोरोना महामारी की दूसरी लहर के गम्भीर खतरे का आकलन करने में गलती की है, जबकि उन्हें दुनिया के दूसरे देशों विशेष रूप से ब्रिटेन और अमेरिका से सबक लेना चाहिए था, जहाँ क्रमशः पहले नवम्बर, 2020 फिर दूसरी जनवरी, 2021, जुलाई-अगस्त, 2020 फिर दूसरी दिसम्बर, 2020 में आयी थी। हमारी सरकारों को यह अच्छी तरह से पता है कि जब अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रान्स, इटली, जर्मनी, स्पेन आदि विकसित देश कम आबादी और अत्याधुनिक चिकित्सा ढाँचे के बाद भी कोरोना से अपने लोगों की जानें बचाने में नाकाम रहे थे, तो उनके आगे यहाँ की न सिर्फ चिकित्सा सुविधाएँ नगण्य हंै, बल्कि हमारी जनसंख्या उन देशों से कई गुना अधिक है। इसके बाद भी वह कोरोना की सम्भावित दूसरी लहर से बचाव हेतु चिकित्सालयों, औषधियों, आॅक्सीजन, चिकित्सकीय उपकरण और दूसरी सुविधाओं, चिकित्सकों और उनके सहायकों की उपलब्धता की व्यवस्था करने में विफल रही है। यहाँ तक कि कोरोना की पहली लहर के समय जो क्वारंटाइन केन्द्र और कोविड अस्पताल बनाये गए थे, उन्हें भी खत्म कर दिया गया। केन्द्र सरकार ने दिसम्बर माह में भावी कोरोना संकट को दृष्टिगत रखते हुए आॅक्सीजन तैयार करने के केन्द्र बनाने समेत दूसरी तैयारियों करने को भी कहा था, किन्तु अधिकतर राज्यों ने ऐसी कोई तैयारी नहीं की। अब इस महामारी के प्रकोप के दौर में देश में चिकित्सकीय संसाधनों और विदेशों से प्राप्त सहायता को समुचित उपयोग की समन्वित योजना बनाने में नाकाम दिखाई दे रही हैं। यद्यपि देश में अस्पतालों की कमी, आई.सी.यू. वेण्टिलेटर, आॅक्सीजन टैंकर, आॅक्सीजन कन्सटेªटर, आॅक्सीजन के सिलिण्डर, रेमडेसिविर दवाओं, कोविड वैक्सीनों के अभाव को देखते हुए डी.आर.डी.ओ.और कुछ सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा अस्पताल तैयार किये जाने के साथ-साथ आॅक्सीजन के वायुसेना के मालवाहक विमानों और रेल गाड़ियों को आॅक्सीजन एक्सपे्रस चलाने, आॅक्सीजन के औद्योगिक उपयोग रोक कर चिकित्सा के इस्तेमाल के लिए आवण्टित किया गया है, तथापि उक्त अव्यवस्थाओं में कोई विशेष कमी दिखायी नहीं दे रही है। वैसे कोरोना संकट की इस भयावहता के लिए आमजन भी कम उत्तरदायी नहीं हैं, जिन्होंने कोरोना से बचाव के लिए आवश्यक सर्तकता-सावधानियों के साथ मास्क लगाना, दो गज की शारीरिक दूरी, भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचाने आदि बन्द कर दिया था, जैसा अब कोरोना देश और दुनिया से भाग गया है। उनकी शारीरिक प्रतिरोध क्षमता के आगे कोरोना विषाणु को उन्हें संक्रमित करने की औकात नहीं है।
ऐसे में सभी लोगों को इस महामारी से देश के लोगों के जिन्दगी बचाने के लिए मिलजुल कर समस्त उपलब्ध साधनों के समुचित उपयोग हेतु प्रभावी रणनीति बनानी चाहिए, लेकिन क्षोभ की बात यह है कि ऐसा न करके एक ओर जहाँ विपक्षी राजनीतिक दल और उनके नेता इस आपादा में अपनी राजनीति को चमकाने का मौका तलाश रहे हैं,वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नाकाम साबित करना चाहते है, तो वहीं कुछ अस्पताल संचालक, चिकित्सक, दवा और आॅक्सीजन के उत्पादक, वितरक, विक्रेता ही नहीं, एम्बुलेस वाले भी कई-कई गुना किराया वसूल रहे हैं। कमोबेश यही हालत श्मशान और कब्रिस्तानों की है। अपने स्वजनों की जिन्दगी बचाने की गुहार लगाते हुए लोगों को देखकर भी इन सभी दिल नहीं पसीजता। तभी तो ये धनपशु अस्पताल संचालक मरीज को एक दिन वेण्टिलेटर पर इलाज के तीस से पचास हजार रुपए वसूल रहे हैं, ऐसा ही कुछ चिकित्सक भी कर रहे हैं। जहाँ आॅक्सीजन सिलिण्डरों को दस-बीस गुणा कीमत बेचा जा रहा है तो वहीं रेमडेसिविर इंजेक्शन तीस-चालीस हजार रुपयों में। कई शहरों में ये इंजेक्शन भी नकली निकले हैं। इस महामारी से बचाव के लिए प्रभावी तरीका निकालने के स्थान पर इन राजनीतिक नेताओं से भी आगे बढ़कर कुछ जनसंचार माध्यमों विशेष रूप से कुछ टी.वी.चैनलों ने यही सब वीभत्स ढंग से दिखाकर लोगों को भयभीत कर उन्हें जिन्दा मारे डाल रहे हैं। रही बची कमी सोशल मीडिया पूरा कर रहा है, जो झूठे-सच्चे वीडियो बनाकर सरकारों को बदनाम करने में जुटा है। इनके कारण बड़ी संख्या मंे लोग अवसाद की स्थिति में पहुँच गए हैं। इस दौरान जहाँ कुछ राज्यों के उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में लोगों ने याचिकाएँ दायर कर सरकार को सही से काम करने के आदेश पारित करने की माँग की है, वहीं उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय भी इस महामारी से जूझने के लिए सकारात्क सुझाव देने के बजाय हर रोज केन्द्र तथा राज्य सरकारों को आए दिन फटकार पर फटकार लगा रहे हैं।
हालाँकि कुछ समाचार पत्र और टी.वी.चैनल कोरोना मरीजों की समस्याओं को दिखाने के साथ-साथ इस महामारी से बचाव हेतु चिकित्सकों से साक्षात्कार आदि के माध्यम से जागरूक कर रहे हैं। इनमें से कुछ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आवश्यक घरेलू नुस्खे, तो कुछ योग-व्यायाम सिखा रहे हैं।
केन्द्र सरकार ने कोरोना की पहली लहर को लाॅकडाउन का समय से निर्णय लेकर जिस तरह सफलता पूर्वक नियंत्रण किया था, पता नहीं क्यों, उसकी वैसी भूमिका इस बार दिखायी नहीं दे रही। वैसे भी लाॅकडाडन का निर्णय लेने का फैसला लेने का राज्य का स्वतंत्र कर दिया है। अब जहाँ तक विपक्षी राजनीतिक दलों के नेताओं की भूमिका का प्रश्न है तो उनका रवैया शुरू से नकारात्मक,एकतरफा और भेदभावपूर्ण रहा है। उन्हें न तो महाराष्ट्र में कोरोना का प्रकोप और उससे बचाव में शिवसेना, राकांपा, काँग्रेस की साझा ‘महा विकास अघाड़ी’ सरकार की विफलता दिखायी देती है और न पंजाब में कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व वाली काँग्रेस सरकार की। कमोबेश यही हालत झारखण्ड,छत्तीसगढ़,राजस्थान की है, जहाँ की काँग्रेस सरकारें कोरोना से जंग में नाकाम रही हंै। फिर भी विपक्षी नेता हर कमी के लिए केन्द्र सरकार को ही दोषी ठहराने में लगे हैं। काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अचानक बिना विपक्षी दलों से सलाह-मशविरा के किये देश में लाॅकडाउन लागू किये जाने को गैर जरूरी बताकर आलोचना करते रहे। उन जैसी मानसिकता के कुछ कथित अर्थशास्त्री और बुद्धिजीवी केन्द्र सरकार के लाॅकडाउन के कारण बेरोजगारी,विकास दर गिरने और अर्थव्यवस्था रसातल में जाने का रोना रोते रहे। अब वही राहुल गाँधी केन्द्र सरकार के पूरे देश में लाॅकडाउन न कराने पर आएदिन ट्वीट करते रहते हैं और उसके साथ कोरोना से बचाव की तैयारियाँ सही तरह से न करने को कोसते रहते हैं। ऐसे ही समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भारत में निर्मित कोवैक्सीन और कोविशील्ड वैक्सीन को ‘भाजपा वैक्सीन’ बताते हुए अपने समर्थकों को उन्हें न लगवाने की सलाह दे रहे थे।अब वही अखिलेश यादव हर किसी को निःशुल्क वैक्सीन जल्द से जल्द वैक्सीन लगाए जाने की रट लगा रहे हैं, जबकि उ.प्र.के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी ओर से कोरोना संक्रमितों के उपचार हेतु हर सम्भव उपाय कर रहे हैं। हाँ, यह सच है कि तमाम कोशिशों के बाद उ.प्र. में न अस्पतालों में मरीजों के बिस्तार मिल पा रहे हैं और न दूसरी आवश्यक सुविधाएँ। पुलिस-प्रशासन की छापेमारी के बाद भी आॅक्सीजन और रेमडेसिविर जैसी दवाओं की किल्लत बनी हुई है। इन्हें मुनाफाखोर और कालाबाजारी अनाप-शनाप कीमत लेकर बेच रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या में पकड़े भी गए है और उनसे आॅक्सीजन के सिलिण्डर और दवाएँ जप्त की गई हैं। दिल्ली की ‘आम आदमी पार्टी’(आप) सरकार के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल कोरोना की लड़ाई अपनी सारी नाकामियों को ठीकरा केन्द्र सरकार पर फोड़ रहे हैं। वैसे एक सवाल देश के लोगों से है, क्या अपने देश के आर्थिक संसाधनों को दृष्टिगत रखते हुए ऐसी विकट महामारी के उपचार के लिए एक अरब पैंतीस लाख लोगों के लिए अस्पतालों में बैड तैयार करना सम्भव है? अमेरिका की कुल आबादी 33करोड़ के लगभग है और अपनी कुल जीडीपी का वह 17प्रतिशत स्वास्थ्य क्षेत्र पर व्यय करता है, फिर भी उसके यहाँ कोरोना से मरने वाला का आँकडा सबसे अधिक है, जबकि भारत अपनी जीडीपी का मात्र 2 प्रतिशत स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च करता है। अब देश के वैज्ञानिक और चिकित्सक कोरोना की तीसरी लहर आने की चेतावनी दे रहे हैं, जो इन दोनों से कहीं अधिक घातक होगी। इसमें वह दो-तीन दिन में रोगी के प्राण जो सकते हंै, जो दूसरी लहर में सप्ताहभर में और पहली में दस दिन लेती थी। अपनी भूल सुधार करते हुए अब केन्द्र सरकार ने देश के सभी जिलों और बड़े अस्पतालों में 500से अधिक आॅक्सीजन सयंत्र स्थापित करने का निर्णय लिया है। देश में आॅक्सीजन लाने-जाने के लिए जरूरी टैंकर खरीदे जा रहे हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र को दुरुस्त करने पर गम्भीरता से कदम उठाये जा रहे हैं। देश में कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन का आवश्यक उत्पादन नहीं है, ऐसे में रूस की स्पूतनिक वैक्सीन और दूसरे देशों से वैक्सीन बनाने के लिए अनुबन्ध किये जा रहे हैं। वैसे यह भी तय है कि भले ही विश्व में कोई भी देश आॅक्सीजन बेड, वेण्टिलेटर, आइ.सी.यू. में कई गुना वृद्धि कर कोरोना पर नियंत्रण नहीं पा सकेगा। यह असम्भव, अस्थायी और महँगा समाधान है। स्थायी हल है घर में रहना, मास्क पहनाना, शारीरिक दूरी का पालन करना है इसमें कुछ खर्च भी नहीं करना । हमें स्मरण रखना चाहिए सड़क दुर्घटना के लिए अस्पताल नहीं बनाए जाते, वरन् गाड़ी ढंग से चलानी होती है। ऐसे हम सभी को यह समझना होगा कि कोरोना के खिलाफ यह जंग सरकार के साथ-साथ हम सभी को उसके साथ जुड़कर लड़नी होगी। जहाँ तक राजनेताओं द्वारा इस महामारी के दौरान माहौल खराब करने का सवाल है, तो उन्हें आगामी चुनावों में जनता सबक सिखाएगी। इसके साथ ही मुनाफाखोर, लुटेरों, कालाबाजारियों के खिलाफ सरकार को ऐसी सख्त से सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी ऐसी हैवानियत करने की जुर्रत न करे।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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