डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
पश्चिम बंगाल में गत 2मई को विधानसभा के चुनावों के परिणाम आते ही जिस तरह तृणमूल काँग्रेस(टीएमसी) के कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी प्रबल प्रतिद्वन्द्वी भारतीय जनता पार्टी(भाजपा)ेके कार्यालयों, प्रत्याशियों, उसके कार्यकर्ताओं तथा समर्थको पर हिंसक हमलों के साथ उनके घरों पर तोडफोड़, पत्थरबाजी,आगजानी, स्त्रियों के साथ बलात्कार, मन्दिर तोड़े जाने, लूटपाट, असुरक्षा की भावना के कारण लोगों का मुस्लिम बहुल या टीएमसी समर्थकों के इलाकों से अपना घर छोड़कर पड़ोसी राज्यों में बड़ी संख्या में पलायन, उनकी पड़ताल के लिए 6मई को वहाँ गए केन्द्रीय विदेश राज्यमंत्री वी.मुरलीधरन के काफिले पर हिंसक हमला और इस और दूसरे हमलों के समय पुलिस के मूक दर्शक बने रहने की जैसी घटनाएँ हुई हैं, वे आम भारतीय को विचलित, व्यथित तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था को कलंकित करने वाली हैं। क्या लोकतंात्रिक व्यवस्था में अपनी पसन्द के अनुसार किसी राजनीतिक पार्टी को वोट देना अपराध है? अगर है, तो फिर बंगाल के लिए ममता बनर्जी के मनमाफिक ‘लोकतंत्र’ की नई परिभाषा गढ़नी होगी। दरअसल, ममता बनर्जी अपने कार्यकर्ताओं को हिंसा की छूट देकर राज्य के उन लोगों को सबक सिखाना चाहती है, जिन्होंने उनकी विरोधी पार्टी को वोट देने का दुस्साहस दिखाया और भविष्य में फिर ऐसी गलती न करें। उनके लिए लोकतंत्र के माने हर हाल में उनकी टीएमसी को सत्ता में बैठाए रखना है, चाहे वे अल्पसंख्यक तुष्टीकरण करें या कटमनी, तोलाबाजी,कोयला घोटाला, बहुसंख्यक हिन्दुओं के साथ हर तरह भेदभाव कुछ भी करें। उन्हें बस खामोशी के साथ मूकदर्शक बने रहना है। ऐसा नहीं करने पर आगे वही होगा, जो इन दिनों उनके साथ हो रहा है। फिर ऐसा खूनखराबा सिर्फ चुनावी नतीजे आने के बाद ही नहीं हुआ है। ऐसा ही चुनाव के दौरान और उससे पहले सालों से चलता आ रहा है। इसमें बड़ी संख्या में भाजपा कार्यकर्ताओं समेत दूसरे दलों के कार्यकर्ता भी घायल और मर चुके हैं, पर मुख्यमंत्री रहते ममता बनर्जी ने कभी ऐसी घटनाओं की कठोर शब्दों में निन्दा के साथ-साथ हिंसा करने वालों के खिलाफ नमूने की कार्रवाई नहीं की है, जिससे वैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। वैसे पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा के समय समय रहते केन्द्र सरकार की भूमिका भी एक तरह से मूकदर्शक रही है, जिससे ममता बनर्जी ही नहीं,उनके टीएमएसी के दंगाइयों के हौसले बढ़े हुए हैं।
इन हिंसक घटनाओं में बड़ी संख्या से भाजपा और दूसरे राजनीतिक दलों की कार्यकर्ताओं मारे गए हैं। कई दिनों तक जो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत उनकी पार्टी के प्रवक्ता राष्ट्रीय टी.वी. चैनलों, यू ट्यूब,सोशल मीडिया पर प्रसारित इन भयावह हिंसक घटनाओं के वीडियों को फर्जी और भाजपा की करतूत या फिर भाजपा के कार्यकर्ताओं की आपसी लड़ाई बताते रहे है। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के इस झूठ में देश के कुछ जनसंचार माध्यम समाचार पत्र तथा टी.वी.चैनल भी बेशर्मी से सम्मिलित हो गए। आखिर तक वे बंगाल की हकीकत दिखा रहे चैनलों को भाजपाई टी.वी. कह अपने दर्शकों को गुमराह करने में लगे रहे। अन्त में सच अब सामने आ गया है।
क्षोभ की बात यह है कि बंगाल की इस सियासती खूनखराबे पर देश का धर्मनिरपेक्षता, सहिष्णुता,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकारों के स्वम्भू झण्डाबरदार साहित्यकार, बुद्धिजीवी, फिल्मी-गैर फिल्मी कलाकार,स्वरा भास्कर,तापसी पन्नू सरीखी अभिनेत्रियाँ, पत्रकार, अवार्ड वापसी गिरोह खामोश बना रहा, इस सभी को अब बंगाल में हिंसा के शिकार लोगों, बलात्कार पीड़ितों,आगजनी में बेघर हुए पीड़ित लोगों की चीत्कार सुनायी नहीं दे रही हैं? इनके लिए उनके साथ जो कुछ घटा सही है, क्यों कि उन्होंने भाजपा को वोट देकर अपराध किया है। वे बहुत बड़े कसूरवार हैं, उनकी इतनी सजा भी कम है। इन्होंने बंगाल में भाजपा को इस हद तक आने को मौका ही क्यों दिया। वैसे भी इस तबके को यह भ्रम है कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ममता बनर्जी ही सत्ता से बेदखल कर सकती हैं, जिसके कारण वे सत्ता की मलाई खाने से वंचित बने हुए हैं। इस दौरान जनसंचार माध्यमों पर इन शर्मनाक घटनाओं के प्रसारण और उन पर ममता बनर्जी की खामोशी को देखते हुए केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा राज्यपाल से विस्तृत रिपोर्ट माँगने, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा संज्ञान लेने के साथ ही शपथ समारोह में राज्यपाल जगदीप धनखड़ के चेतावनी दिये जाने के बाद राज्य सरकार ने अराजक तत्त्वों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है। इस बीच पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा को दो दिन के लिए पीड़ित कार्यकर्ताओं को ढांढस दिलाने पश्चिम बंगाल भेजा। फिर राज्य की जमीन पड़ताल करने को केन्द्रीय गृहमंत्रालय का चार सदस्यीय प्रतिनिधि दल कोलकाता पहुँच चुका है। इधर बंगाल की सियासी खूनखराबे के वीडियो और चैनलों पर समाचार देखकर देशभर में पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की माँग उठने लगी। इससे ममता बनर्जी को अपनी सत्ता खतरे में नजर आने लगी।
इसके बाद अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार, 6 मई को स्वीकार किया है कि राज्य में हुई हिंसा 16 लोगों की मौत हुई हैं, उनमें आधे भाजपा और आधे उनकी पार्टी टीएमसी और एक संयुक्त मोर्चा का समर्थक हैं। इनके स्वजनों को दो-दो लाख रुपए दिये जाएँगे। इसके बाद वह कहने से बाज नहीं आयीं कि फेक वीडियो प्रसारित किये जा रहे हैं।
यहाँ प्रश्न यह है कि अगर बंगाल में सबकुछ ठीकठाक है,तो इतने लोगों की कैसे मौतें हो गई? फिर अब पश्चिम मेदिनीपुर जिले की खड़गपुर ग्रामीण विधानसभा के पंचखुड़ी में केन्द्रीय विदेशराज्य मंत्री के काफिले की घटना भी झूठ है?इसमें उनकी कार के शीशे तोड़ दिये गए और उनका कार चालक घायल हुआ है। इसमें पत्थर,लाठी-डण्डे पड़े हुए थे। पश्चिम मेदिनीपुर के पुलिस अधीक्षक ने भी 8हमलावरों को गिरपतार और तीन पुलिस अधिकारियों को निलम्बित किया जाना स्वीकार किया है। वैसे सच्चाई यह है कि इन सभी हिंसक घटनाओं के लिए ममता बनर्जी ही जिम्मेदार हैं,जिन्होंने चुनावी सभाओं में खुलेआम कहा था कि केन्द्रीय बल कब तक यहाँ रहेंगे?उनके जाने के बाद खेला होवे। वस्तुतः ये राजनीतिक हिंसा की घटनाएँ इस तथ्य की पुष्टि करती हैं कि ममता बनर्जी वामपंथी पार्टियों की ऐसी ही खूनी सियासती हिंसा का विरोध कर सत्ता के शिखर पर पहुँची है और अब यहाँ आकर उन्हीं वामपन्थियों के नक्शे कदम पर चल रही हैं। ऐसा करते हुए ममता बनर्जी को पता नहीं क्यों? उन वामपन्थियों के हश्र पर ध्यान क्यों नहीं दे रहीं? जो पहले सन् 2019 के लोकसभा चुनाव और अब इन विधानसभा के चुनाव में दरगाह फुरफुरा शरीफ के पीरजादा की कट्टर इस्लामिक विचारधारा वाली पार्टी ‘आईएसएफ’ के साथ-साथ काँग्रेस के साथ संयुक्त मोर्चा बनाने के बाद भी ये सभी खाली रह गई हंै। वैसे तो पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा को इतिहास बहुत पुराना रहा है, इसमें वामपन्थी अपने को बहुत पारंगत समझते थे, लेकिन अब वे भी ममता बनर्जी की पार्टी की हिंसा के आगे बचाव की मुद्रा में है। इस बार यहाँ राजनीतिक हिंसा में इस्लामिक कट्टरपन्थी बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों ने बढचढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं,जो भाजपा द्वारा उन्हें देश से निकाले जाने से उसके घोर विरोधी और ममता बनर्जी के कट्टर समर्थक बने हुए हैं। इन मुसलमान बहुल इलाकों में बसे हिन्दू सबसे ज्यादा हिंसा के शिकार हुए हैं, वहाँ वे भारी दहशत में हैं। उनके पूजा स्थलों को भी तोड़फोड़ दिया गया है। इन इलाकों से बड़ी संख्या में लोग अपनी प्राण रक्षा के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करने को मजबूर हुए हैं,इसकी तुलना कुछ लोग नब्बे के दशक कश्मीर घाटी के कश्मीर पण्डितों के नरसंहार कर रहे हैं। लेकिन इसका उल्लेख करने में जनसंचार माध्यम समेत राजनीतिक पार्टियाँ सियासती वजहों से बच रही हैं। इससे लगता है कि इन्हें लोगों की नहीं, बस अपनी सियासती फायदों की परवाह है। इस मामले में भाजपा को अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों की सुरक्षा के जो कदम उठाने चाहिए थे, वैसा उसने अभी तक करके नहीं दिखाया है।ऐसे में उनके राजनीतिक रूप से निक्रिय होने या फिर टीएमसी से जुड़ने का अन्देशा बना रहेगा। अगर समय रहते केन्द्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार को अपने राजधर्म और संविधान का कठोरता से पालन करते हुए राज्य के सभी वर्ग और धर्म के लोगों की सुरक्षा में किसी तरह की कोताही बरतने पर दण्ड का डर नहीं दिखाया, तो यहाँ की हिंसा रुकने वाली नहीं है। इसका कारण यह है कि एक परिपक्व राजनेता की तरह अब तक ममता बनर्जी ने ऐसा कुछ नहीं किया,जिससे राज्य के लोगों में अपनी सुरक्षा का विश्वास उत्पन्न हो।अगर सचमुच ममता बनर्जी लोगों को सुरक्षा का भरोसा दिलाना चाहती हैं,तो उन्हें इन खूनी वारदातों के वीडियो और दूसरे सुबूतों के जरिए दंगाइयों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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