देश-दुनिया

अफगानिस्तान को लेकर क्यों चिन्तित है भारत

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार


गत दिनों जब से अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा विगत चार दशक से रक्त रंजित गृहयुद्ध से जूझ रहे अफगानिस्तान से आगामी 11 सितम्बर तक अपने सभी सैनिकों की वापसी की घोषणा की है, तब से उसके पड़ोसी देशों विशेष रूप से भारत की रणनीतिक चिन्ताएँ बहुत अधिक बढ़ा दी हंै। अमेरिका ने इतना बड़ा फैसला लेते हुए अफगानिस्तान और उसके पड़ोसी देशों की सुरक्षा के लिए उत्पन्न विकट खतरे पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी, जबकि अफगानिस्तान की इस बदहाली और इस्लामिक कट्टरपन्थी संगठन ‘तालिबान’ को पैदा करने और उसे मजबूत करने के लिए वही जिम्मेदार है। अब उसी के राष्ट्रपति जो बाइडन अपने देश के सम्बोधित करते हुए कह रहे हैं कि हजारों सैनिकों को केवल एक देश की सुरक्षा केन्द्रित करना और अरबों डालर खर्च करना सही निर्णय नहीं है। वर्तमान में अफगानिस्तान ढाई हजार से तीन हजार अमेरिकी सैनिक हैं। ऐसा ही था तो उनके पूर्ववर्तियों को इस मुल्क दखल देने की जरूरत क्या थी? उन्हीं के फैसलों से कारण बने और पनपे इस्लामिक कट्टरपन्थी दहशतगर्दों के तमाम गिरोह आज दुनियाभर में कब और कहाँ खूनखराबा और तबाही मचा दें, अन्दाज लगाना मुश्किल है।
अमेरिका अच्छी तरह जानता है कि उसके सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में शून्य उत्पन्न होगा और उसे भरने को कौन-कौन-सी विध्वंसकारी शक्तियाँ सक्रिय हैं। अफगानिस्तान के कई इलाकों से पाकिस्तान समर्थित तालिबान ताकतें आगे बढ़ रही हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण अमेरिका की सशस्त्र सेवा समिति के चैयरमैन सीनेटर जैक रीड का यह गम्भीर आरोप है जिसमें उन्होंने तालिबान की सफलता का सबसे बड़ा कारण अमेरिका का पाकिस्तान में उनके अभ्यारणांे का समाप्त नहीं कर पाना बताया है। उनके अध्ययन के अनुसार तालिबान लगातार पाक खुफिया विभाग आइ.एस.आइ.के सम्पर्क मंे रहते हुए अपनी ताकत बढ़ाता है। तालिबान के सुरक्षित अभ्यारण्य की तरफ ध्यान न देकर देकर अमेरिका ने बहुत बड़ी गलती की है। तालिबान पाकिस्तान के ऐसे सभी साधनों का इस्तेमाल करता रहा, जो उसके लिए मददगार साबित हुए। तालिबान ने पाकिस्तान की हवाई सेवा अन्य आधारभूत सेवाओं का इस्तेमाल किसा। उसको मनी लाॅण्ड्रिग में भी सहायता मिलती रही।
फिर भी वह हर हाल में अपनी जान छुड़ाना चाहता है,इससे स्पष्ट है कि खुदगुर्जी अमेरिका के खून में हैं। अपने फायदे के लिए वह सालों-साल पााकिस्तान का इस्तेमाल करता आया है। उसने ही अफगानिस्तान में सोवियत संघ के सेना को हराने और उसे अफगानिस्तान से खदेड़ने के लिए इस्लामिक कट्टरपन्थी गिरोह खड़े किये।जब वे उससे टकराने लगे,तो उनके खात्मे को अमेरिकी सैनिक भेज दिये।
अब अमेरिका ने यह स्पष्ट करना जरूरी नहीं समझा कि वह इस मुल्क में क्या करना चाहता है? इस नई परिस्थिति में जहाँ तक भारत की चिन्ता का प्रश्न है,वह अकारण नहीं है। उसने इस मुल्क में विभिन्न परियोजनाओं में अभी तक तीन अरब डालर का निवेश किया हुआ है।उसे आशंका है कि तालिबान उन्हें क्षति पहुँचा सकता है। फिर अफगानिस्तान की अस्थिरता कश्मीर में पाकिस्तान के इरादों को कामयाब करने की मददगार होगी। यह सब देखते हुए भारत कूटनीतिक स्तर पर लगातार अमेरिका, रूस और दूसरे देशों के साथ सम्पर्क में है, फिर भी किसी मुल्क ने यह ठोस आश्वासन नहीं दिया है कि अफगानिस्तान शान्ति प्रक्रिया में क्या भूमिका रहेगी? यही आश्वासन पाने के लिए अब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल तथा अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मोहिब से वार्ता हुई है। तालिबान की बढ़ती ताकत पर भारत की चिन्ताओं को अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार के साथ ईरान और चीन से भी साझा किया है। इस बीच भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने संकेतों में वैश्विक समुदाय को अफगानिस्तान के बदलते हालात में कुछ पड़ोसी मुल्कों (पाकिस्तान)की सन्देहास्पद भूमिका को लेकर सतर्क भी किया है। उन्होंने यह भी दोहराया कि अफगानिस्तान के अन्दर ही नहीं, बाहर भी शान्ति स्थापित करने की जरूरत है। भारत चाहता है कि अफगान जनता ने चार दशक तक हिंसा का दौर देखा है और उन्हें स्थायी शान्ति मिलनी चाहिए। सन् 2019 की अपेक्षा सन् 2020 में नागरिकों की मौत के बारे में ही 45 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने रक्षामंत्री आस्टिन को भारत और अफगानिस्तान भेजा, पर पााकिस्तान भेजना जरूरी नहीं समझा? इसके माने यह हैं कि अमेरिका अब अफगानिस्तान में पाकिस्तान को कोई भूमिका नहीं देना चाहता। अमेरिका कतर की राजधानी दोहा में तालिबान से समझौता वार्ता करता रहा।लेकिन तालिबानों ने अफगानिस्तानी सैनिकों पर हमला कर उनकी जानें लेने का सिलसिला कभी बन्द नहीं किया। सच यह है कि तालिबान के कहे पर किसी को भरोसा नहीं है।कमोबेश यही स्थिति उसके मददगार पाकिस्तान की।
अफगानिस्तान में शान्ति की फिर से स्थापना को लेकर कई देश प्रयासरत अवश्य हैं, किन्तु इनमें से सभी पक्षों के शान्ति बहाली के मार्ग एक जैसे नहीं हैं। यहाँ तक कि उनके मध्य गहरे मतभेद भी हैं। शान्ति बहाली के लिए पहले कदम आम सहमति नहीं है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश में परिवर्तन तो चाहते है, लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से। अपने मुल्क में वह आम चुनाव कराने को तो तैयार है, लेकिन इससे पहले तालिबान और दूसरे गुटों को लेकर साझा सरकार गठित करने पर राजी नहीं है। निःसन्देह गत दिनों ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में अफगानिस्तान तथा उससे सम्बन्धित चिन्ताओं-आशंकाओं को लेकर गहन-विचार विमर्श हुआ और उन्हें रेखांकित करने का प्रयास भी किया गया। लेकिन इस सम्मेलन में सम्मिलित पक्षों में से ज्यादातर का मानना था कि यदि अफगानिस्तान में भारत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहता है, तो उसे सबसे बड़ी जिम्मेदारी भी सम्हालनी चाहिए। दूसरे शब्दों में भारत को अफगानिस्तान में सेना की तैनात भी करनी होगी। अफगानिस्तान के इतिहास को देखते हुए वह यह जोखिम उठाने को तैयार नहीं है। अफगानिस्तान में अपना शासन स्थापित करने में अँग्रेज भी विफल रहे थे। बाद में उन्होंने शान्तिपूर्ण घुसपैठ(पीसफुल पेनीटेªशन)की कूटनीति के जरिए कुछ समय के लिए काम जरूर रहे थे, पर उनकी हुकूमत ज्यादा दिन नहीं टिकी। सन् 1973 में राजतंत्र की समाप्ति हुई। सन् 1978में सोवियत संघ की सहायता से नूरमुहम्मद तराकी ने सैन्य विद्रोह कर ‘माक्र्सवादी पीपुल्स रिपब्लिक’ की स्थापना की। सन् 1986में लेपिटनेण्ट जनरल नजीबुल्ला राष्ट्रपति बने। अफगानिस्तान में सोवियत सेनाओं को मुजाहिदों ने निरन्तर विरोध किया।सन्1988 में समझौते के अनुसार सन्1989में सोवियत सेनाएँ वापस लौट गईं। इस मुल्क में सोवियत संघ की सेना को मुँह की खानी पड़ी थी। उसे मात दिलाने में तब अमेरिका ने इस्लामिक कट्टरपन्थियों और पाकिस्तान की हर तरह से मदद दी। अमेरिका की सहायता से ही न सिर्फ ‘तालिबान’, ‘अलकायदा’ समेत तमाम दहशतगर्द इस्लामिक संगठन पैदा किये, बल्कि उनकी परवरिश भी हुई। बाद में इन्होंने ही अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सेनाओं को खदेड़ दिया। लेकिन जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया और अमेरिका का हुकूम मानना बन्द कर दिया। अफगानिस्तान की तालिबान की सरकार को दुनिया भर में केवल पाकिस्तान तथा युनाइटेड अरब अमीरात(यू.ए.इ.) को मान्यता दी थी। कालान्तर में 11सितम्बर,सन् 2001को दहशगर्द इस्लामिक संगठन ने विमान हाई जैक कर न्यूयार्क स्थित ‘ वल्र्ड टेªेड सेण्टर’ समेत चार जगहों पर हमले किये। इस हमल से अमेरिका दहल गया।उसका विश्व में सर्वशक्तिमान होने का दम्भ चूर-चूर हो गया।इसमें 3000से अधिक लोग भी मारे गए। तब 2001 मेंअमेरिका और ‘उत्तर अण्टलाण्टिक सन्धि संगठन’ (नाटो) ने तालिबानियों को नेस्तनाबूद करने को अफगानिस्तान में अपनी सेना भेज दी। इसमें एक सीमा तक अमेरिका सफल भी हुआ। लेकिन इसकी भी अमेरिका को भी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। यही सब देखते हुए भारत सरकार अफगानिस्तान में अपनी सेना भेजने से मना करती आयी है। भारत का मानना है कि अफगानिस्तान में शान्ति की फिर से स्थापना के लिए पहले यहाँ हिंसा खत्म होनी चाहिए। भारत इस मुल्क में पाकिस्तान की भूमिका को सीमित करना चाहता है। हकीकत यह है कि अपने इस हमसाया और हममजहबी मुल्क में खूनखराबेेेेेे, बर्बादी और बदहाली के पीछे पाकिस्तान ही है। वस्तुतः अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का प्रशासन भी इस सच्चाई को भली भाँति समझ गया है। अमेरिका यह भी जानता है कि अफगानिस्तान में पाक की गुप्तचर एजेन्सी आइ.एस.आइ.ताालिबान को शक्ति दे रही है। दूसरे शब्दों में तालिबान आइ.एस.आइ.के लिए अफगान सरकार के विरुद्ध भाड़े पर जंग कर रहा है। इस बीच रूस और अमेरिका के बीच कटुता लगातार बढ़ रही है। भविष्य में अपना पिछला बदला लेने के लिए रूस अमेरिका को अफगानिस्तान से निकालने का निर्णय भी ले सकता है। इधर तालिबान ने राष्ट्रपति जो बाइडन को धमकी दी है कि वह अपने सैनिकों को शीघ्र वापस बुलालें, वरना वे उन पर हमले तेज कर देंगा। अब रूस भी भारत के लिए पहले जैसा नहीं रहा है। वह भारत से अमेरिका से दोस्ती बढ़ाने का प्रतिशोध लेना चाहता है। यही कारण है कि रूस भारत के दुश्मन मुल्क चीन के साथ-साथ पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है, जबकि पाकिस्तान के कारण ही अफगानिस्तान में उसे शर्मनाक हार का मुँह देखना पड़ा था, किन्तु अमेरिका की तरह ही वह भी तात्कालिक फायदे देखता है। वैसे भी आज पाकिस्तान के कंगाली के दौर से गुजर रहा है,जो भारत की तरह अरबों रुपए खरीदने की हैसियत में नहीं है। फिर भी रूस अफगानिस्तान में भारत को उपयोगिता को जानबूझ कर नाकार रहा है,जबकि भारत का वहाँ बहुत कुछ दाँव पर लगा हुआ है,निश्चय ही रूस इससे अनभिज्ञ नहीं होगा। ऐसी स्थिति में यही कहा सकता है कि अफगानिस्तान में शान्ति बहाली की राह अभी आसान दिखायी नहीं दे रही है।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

 

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