राजनीति

कब लगेगी मतान्तरण पर रोक ?

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार


गत दिनों उच्चतम न्यायालय में अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे द्वारा एक याचिका दाखिल कर केन्द्र और राज्यों को छल-कपट, लालच, जादू-टोना, अन्धविश्वास और वित्तीय लाभ के नाम पर धर्मान्तरण/ मतान्तरण रोकने हेतु कानून बनाने के निर्देश दिये जाने के लिए जो माँग की गई है, वह सर्वथा उचित, अत्यन्त ज्वलन्त, सामयिक और बहुप्रतीक्षित है। उनका यह सत्साहसपूर्ण कदम प्रशंसनीय और स्वागतयोग्य है। उनकी यह माँग असंवैधानिक भी ंनहीं है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 25 प्रावधानों के अनुरूप है,जो क्रमशः समानता, अभिव्यक्ति और धार्मिक स्वतंत्रता से सम्बन्धित हैं। लोगों को भ्रमित कर या प्रलोभन देकर या फिर जबरन मतान्तरण किया जाना भारतीय संविधान के मूल ढाँचे के अभिन्न अंग पंथ निरपेक्षता के सिद्धान्त के विरुद्ध है,फिर भी कुछ लोग बेखौफ होकर देशभर में धर्मान्तरण करा रहे हंै।आश्चर्य की बात यह है कि देश में अशान्ति तथा खण्डित करने के षड्यंत्र के तहत बड़े पैमाने पर चल रहे इस गोरख धन्धे से केन्द्र और राज्य सरकारें भी अनजान नहीं है। लेकिन सत्ता के लोभ में वे मूकदर्शक और आँखों पर पट्टी बाँधे रही हैं। उन्हें भय था कि ऐसा करने से अल्पसंख्यक वर्ग मुसलमान और ईसाई उनसे नाराज हो जाएँगे। इस कारण उनकी पार्टी को इनका एक मुश्त वोट नहीं मिलेगा और सत्ता उनसे छिन जाएगी। फिर उसके बिना वे सार्वजनिक धन तथा प्राकृतिक संसाधनों की लूट कैसे कर पाएँगे? यहाँ तक कि इनके द्वारा कराये जा रहे मतान्तरण पर रोक लगाने से दुनिया मुस्लिम और ईसाई मुल्कों के साथ राजनयिक सम्बन्धों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। उस दशा में जहाँ एक ओर तेल उत्पादक मुस्लिम देशों से तेल की आपूर्ति पर असर पड़ने के साथ विश्व मंचों पर उनका एकजुट होकर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े होने का खतरा था, तो दूसरी ओर ईसाई देशों द्वारा विभिन्न प्रकार के आर्थिक, तकनीकी सहायता के बन्द होने का। क्षोभ की बात यह है कि केन्द्र तथा राज्य सरकारें जादू-टोना, अन्ध विश्वास तथा छल-कपट से मतान्तरण रोक लगाने में नाकाम रही हैं ,जबकि अनुच्छेद -51ए के तहत इस पर रोक लगाना उनका दायित्व है।
.अपने देश में सदियों से दूसरे देशों आए हमलावरों ने हिन्दुओं का पहले तलवार और फिर बन्दूक के जोर पर बडे़ स्तर पर अपने धर्म का परित्याग कर इस्लाम और ईसाई मजहब अपनाने को मजबूर किया, क्योंकि इनका मकसद पूरी दुनिया में अपने-अपने मजहब का सबसे अधिक विस्तार करना रहा है। ऐसा बगैर मतान्तरण के सम्भव नहीं है। इनका एकमात्र लक्ष्य अपने मत के अलावा दूसरे सभी मतों को विनाश करना है। यह करने के लिए ये संगठन अपने मजहब को सबसे बेहतर बताने और साबित करने के साथ-साथ दूसरे धर्म/मजहब,पंथ को तुच्छ और उनमें तमाम कमियाँ-खामियाँ बताते आए हैं।इतना ही नहीं, इसके साथ धन, नौकरी, शादी आदि का लालच और गम्भीर रोगों से छुटकारा दिलाने का झूठा भरोसा भी देते हैं। ये संगठन केवल इस धार्मिक विश्वास से ही युक्त नहीं है कि दुनिया का कल्याण/भला उसी स्थिति में हो सकता है, जब वह उपासना पद्धति विशेष की शरण में आएँगे, बल्कि इस मानसिकता से भी ग्रस्त हंै कि अन्य मजहब/मत-पंथ वालों को तथाकथित सही रास्ते पर लाना उनकी ही जिम्मेदारी है। कुछ ऐसी सनक से ग्रस्त कुछ साल पहले एक अमेरिकी ईसाई मिशनरी अण्डमान निकोबार के आदिवासियों को ईसाई बनाने पहुँच गया था, जिन्होंने स्वयं को आधुनिक सभ्यता से पूरी तरह अलग रखा हुआ है। तब उसकी इस बेजां हरकत की खबर ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी खींचा था,पर चैंकाने वाली बात यह है कि इस सिरफिरे ईसाई मिशनरी जैसे कथित धर्म प्रचारकों पर पाबन्दी लगाने को कानून क्यों नहीं बनाए गए हैं?यह विचारणीय प्रश्न है। जहाँ तक अपने देश का प्रश्न है तो इसके स्वतंत्र होने पर यह उम्मीद की जा रही थी कि अब कोई किसी को अपना धर्म छोड़ने को विवश नहीं कर पाएगा, लेकिन ऐसा विभिन्न कारणों से नहीं हो पाया।
अब इस सच्चाई को कोई झुठला नहीं सकता कि अपने देश में विदेशी धन और कुछ सियासी ताकतों के बल पर कुछ समूह और संगठन निर्धन, अशिक्षित, आदिवासियों का धर्मान्तरण कराने का काम बेखौफ होकर लगातार करते आए हैं। इससे अधिक शर्म की बात क्या हो सकती हैं? लेकिन सत्ता और वोट बैंक के लोभियों ने इसकी कभी परवाह नहीं की। धर्मान्तरण में लगे ईसाई मिशनरियों ने पूर्वाेत्तर राज्यों नगालैण्ड, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, अरुणाचल, असम में जनजातियों के लोगों को ईसाई बना कर उन्हें उनकी संस्कृति, आस्था, रीति-रिवाजों, विश्वासों से दूर कर दिया है। दूसरे शब्दों में उन्हें उनकी जड़ों से काट दिया है। इसके पीछे उनका मकसद इस इलाके के लोगों को भारत की मुख्य धारा से अलग करना रहा हैं। इसके बाद ये संगठन ओडिसा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड आदिवासी/जनजाति बहुल राज्यों में सक्रिय हैं। इतना ही नहीं,वर्तमान में तो ये पंजाब और दक्षिण भारत के राज्यों में पूरे जोर-शोर से मतान्तरण में जुटे हुए हैं। पंजाब बड़ी संख्या में दलितों को ईसाई बनाय दिया गया है। कश्मीर के कारगिल में बौद्ध, केरल में हिन्दू, ईसाई, शेष भारत में हिन्दू युवतियों को छल-फरेब से अपने झूठे प्रेम जाल फँसा कर एक मजहब के युवा ‘लव जिहाद’के तहत मतान्तरण का खेल लम्बे समय से खेलते आए हैं, जिन्हें उनके मजहबी/सियासी नेताओं तथा संगठनों का साथ मिला हुआ है।इस तरह से मतान्तरण के बढ़ते खतरे को देखते हुए अब उ.प्र.,मध्य प्रदेश,कर्नाटक,उत्तराखण्ड समेत कुछ राज्य सरकारों इस तरह के मतान्तरण पर रोक लगाने को कानून बनाया है।
इसमें कतई शक -सन्देह की गुंजाइश नहीं कि धर्मान्तरण/ मतान्तरण में जुटे संगठनों से सबसे अधिक त्रस्त/पीड़ित/परेशान हिन्दू समुदाय है,जिसका धर्मान्तरण में विश्वास नहीं है। वह विश्व के सभी धर्मों, पंथों, मजहबों, विश्वासों का सम्मान करता है। वह ऐसी किसी भी धारणा से ग्रस्त नहीं है कि उसका धर्म और उपासना पद्धति दूसरे मजहब तथा उनकी उपासना पद्धतियों से श्रेष्ठ है। दूसरा यह कि अन्य मजहब, पंथ के अनुयायी सही रास्ते पर नहीं है,इसलिए हरहाल में उन्हें अपने मत और पूजा पद्धति में लाना चाहिए। लोगों की गरीबी या दूसरी किसी मजबूरी का लाभ उठाकर या फिर प्रलोभन देकर उनका धर्म बदलवाने वालों ने देश के कई भागों में जनसंख्यिक को बदल दिया है। इससे अनेक समस्याएँ उत्पन्न हों रही हैं। क्या आपने विचार किया कि आखिर निर्धन, अशिक्षित, आदिवासी, जनजाति के लोग ही क्यों मतान्तरण कर रहे हैं?कभी आपने सोचा है कि मजहब बदलवाने वाले इस कोशिश में क्यों रहते हैं कि धर्मान्तरित लोग अपनी उपासना पद्धति का परित्याग करने के साथ ही संस्कृति से भी दूर हो जाएँ। इसलिए समस्याएँ अधिक गम्भीर हो रूप ले रही हैं। गत कुछ वर्षों से दलितों और आदिवासियों को गैर हिन्दू बताने को जो अभियान छिड़ा है, उसके पीछे मतान्तरण में लिप्त संगठनों की सोची-समझी साजिश ही नजर आती है। उच्चतम न्यायालय के साथ-साथ केन्द्र और राज्य सरकारों को भी छल-कपट से होने वाले मतान्तरण पर रोक लगाने के लिए सक्रिय होना चाहिए, क्योंकि ऐसे मतान्तरण देश के मूल चरित्र को बदलने को इरादे/मंशा कराये जा रहे हैं।ऐसे लोग धर्मान्तरण के माध्यम से देशान्तरण कराने में जुटे हैं,ऐसा कहें, तो अनुचित न होगा। इस याचिका में समाज की कुरीतियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई कर पाने में विफल रहने का आरोप लगाते हुए याचिका में कहा गया है कि केन्द्र कानून बना सकता है, जिसमें तीन साल की न्यूनतम कैद की सजा हो, जिसे 10 साल की सजा तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अब आशा की जानी चाहिए कि धर्मान्तरण के जरिए लोगों को अपने देश से अलग करने की साजिश के खतरे को देखते हुए केन्द्र और राज्य सरकारें ऐसा कानून बनाने की दिशा में अग्रसर होंगी?ऐसा किये बगैर देश की स्वतंत्रता,एकता,अखण्डता को अधिक समय तक अक्षुण्ण रख पाना सम्भव नहीं होगा।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

Live News

Advertisments

Advertisements

Advertisments

Our Visitors

0145461
This Month : 4250
This Year : 82754

Follow Me