देश-दुनिया

बांग्लादेश में फिर भारत का विरोध

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार

हाल में पड़ोसी बांग्लादेश की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ और बंगबन्धु शेख मुजीबुर्रहमान की जन्मशती पर आयोजित समारोह में हिस्सा लेने पहुँचे भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 27 मार्च को स्वदेश वापसी के एक दिन बाद यहाँ इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दू मन्दिरों समेत पूर्वी बांग्लादेश में एक टेªन पर जिस प्रकार हमले किये गए, उससे स्पष्ट है कि इस हमसाया मुल्क में भारत और हिन्दुओं के दुश्मनों की कमी नहीं है। यहाँ हिंसा की अलग-अलग घटनाओं में दस कट्टरपंथी मारे गए हंै और करीब दो दर्जन लोग घायल भी हुए हैं। बांग्लादेश की इन वारदातों को देख कर भारत के लोगों को हैरानी-परेशानी जरूर हुई होगी, क्योंकि ज्यादातर लोगों को बांग्लादेश की जमीनी हालात का पता जो नहीं है। इस मुल्क के संस्थापक और राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान खुद मजहब के आधार पर भारत का विभाजन तथा पाकिस्तान के गठन की माँग करने वाली ‘मुस्लिम लीग’ के नेता रहे थे। बाद में पाकिस्तान ने हममजहबी बंगाली मुसलमानों के साथ जिस तरह से भेदभाव और उनका उत्पीड़न किया, उसने उनका नजरिया ही बदल दिया। इस्लामिक कट्टरपंथी विचारधारा की खामियाँ उनकी समझ में अच्छी तरह आ गयीं। बाद में उनसे नाखुश कुछ फौजियों ने 15 अगस्त, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान की परिवार समेत हत्या कर दी । अब शेख मुजीबुर्रहमान की राह पर उनकी बेटी तथा प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद भी चलने की कोशिश कर रही हैं, जो इस्लामिक कट्टरपंथियों की आँखों में बराबर खटक रही हैं। इन कट्टपंथियों को अपने मुल्क में सेक्युलरिज्म कतई मंजूर नहीं है। अब यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ढाका हवाई अड्डे पर पहुँचने पर यह कहना आवश्यक समझा कि हमें याद रखना चाहिए कि वाणिज्य और व्यापार के क्षेत्र में हमारे पास समान अवसर हैं, लेकिन हमारे सामने भारत और बांग्लादेश को आतंकवाद जैसे खतरों और ऐसे अमानवीय कृत्यों के पीछे की मानसिकता तथा ताकतें अब भी सक्रिय हैं। उनसे सर्तक और एकजुट रहना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी बांग्लादेश के युद्ध स्मारक और दूसरे महत्त्वपूर्ण स्थलों के साथ 51 शक्तिपीठों में से एक जशोरेश्वरी काली मन्दिर और मतुआ समाज के आध्यात्मिक गुरु हरिश्चन्द ठाकुर के जन्मस्थान गोपालगंज स्थित ओराकाण्डी मन्दिर में प्रार्थना करने को भी गए। ऐसा करके उन्होंने बांग्लादेश के हिन्दुओं और उनके धार्मिक स्थलों के प्रति अपना हार्दिक जुड़ाव प्रदर्शित किया है। ढाका में उन्होंने शेख मुजीबुर्रहमान को मरणोपरान्त ‘गाँधी शान्ति पुरस्कार,’2020 उनकी बेटी शेख हसीन,शेख रिहाना को प्रदान किया। इसके अलावा ढाका और न्यूजलपाईगुड़ी के मध्य एक नई यात्री रेल का भी उद्घाटन भी किया। भारत और बांग्लादेश ने द्विपक्षीय सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों में पाँच सहमति पत्रों यथा-आपदा प्रबन्धन, खेल एवं युवा मामलों, व्यापार और तकनीक जैसे क्षेत्रों (एमओयू)पर हस्ताक्षर किये गए। इसके सिवाय स्वास्थ्य, व्यापार,सम्पर्क, ऊर्जा, विकास के क्षेत्र में सहयोग और कई अन्य क्षेत्रों में हुई प्रगति पर विचार-विमर्श किया गया। उनकी तीस्ता नदी के जल बँटवारे के बारे में वार्ता भी हुई। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश को 109 एम्बुलेंस तथा 12 लाख कोरोना वैक्सीन भी भेंट कीं। भारत का बांग्लादेश के साथ सैन्य सहयोग भी निरन्तर बढ़ रहा है। अफसोस की बात यह है कि फिर भी इस मुल्क के कुछ अहसानफरामोश इस्लामिक कट्टरपन्थी भारत और हिन्दुओं की मुखालफत से बाज नहीं आ रहे हैं। ताजुब्ब की बात यह है कि जिस पाकिस्तान के सेना ने उनके मुल्क के लाखों लोगों का कत्ल-ए-आम करने के साथ ढाई से तीन लाख महिलाओं से बलात्कार किया है, उनके प्रति इन्हें गिल-शिकवा तो दूर, उल्टी मुहब्बत है। इसकी वजह यह है कि वह हममजहबी मुल्क जो है। इनका उसूल है कि अपने ने मारा तो कोई बात नहीं, गैर ने मारा तो खैर नहीं।
अब चर्चा करते है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद ने प्रधानमंत्री मोदी को अपनी देश की स्वतंत्रता के समारोह में आमंत्रित करने के कारण पर। वस्तुतः इन्हें बुलाने के पीछे उनका उद्देश्य भारत के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना था, जिसके सहयोग और सैन्य सहायता से पाकिस्तान के साथ 13 दिन युद्ध के बाद 16 दिसम्बर, सन् 1971 में विश्व मानचित्र पर बांग्लादेश का उदय होना हुआ था। बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में कोई 3900 भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था। तब पाकिस्तान की सेना के 93,565सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। मुक्ति संग्राम से पहले पाकिस्तानी सेना के दमन के कारण तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान(वर्तमान में बांग्लादेश) से कोई एक करोड़ बंगाली मुसलमान और हिन्दू भारत में शरण लेने को विवश हुए थे। तब कई महीनों तक उनका रहने-खाने का भारत ने खर्चा उठाया था। भारत की सैन्य सहायता के बगैर यह सब असम्भव था। उस समय भी बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथियों का एक समूह पाकिस्तानी सैनिकों का मददगार बनकर अपने देशवासियों पर ही हर तरह के जुल्म ढहाने, उनके कत्ल करने और महिलाओं के साथ बलात्कार कर रहा था। हालाँकि प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद इनमें से कुछ को अदालत के जरिए उन्हें ‘युद्ध अपराधी’ ठहराते हुए फाँसी पर लटकवा चुकी हैं,पर उन जैसी जिहादी सोच का अभी पूरी तरह खात्मा नहीं हुआ है, ऐसे लोग भारत और हिन्दुओं को इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं। यही वजह है कि कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यात्रा का विरोध कर रहे थे। विरोध प्रदर्शनों पर पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई में 10 कट्टर पंथियों की मौत हो चुकी है। इसके विरोध में रविवार, 28 मार्च को ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ नामक संगठन से जुड़े कट्टरपंथियों ने पूर्वी जिले ब्राह्मणबरिया में एक टेªन पर हमला कर दिया। इसमें दस लोग घायल हुए हैं। एक पुलिस अधिकारी ने कहा,‘‘ हमलावरों ने ना केवल टेªन पर हमला किया,बल्कि उसके इंजन रूम समेत सभी कोच को क्षतिग्रस्त कर दिया।’ ब्राह्मणबरिया में ही रहने वाले एक पत्रकार जावेद रहीम ने कहा कि जिला जल रहा है, विभिन्न सरकारी कार्यालयों को आग के हवाले करने के साथ ही उपद्रवियों ने प्रेस क्लब तक को भी बख्शा है। इस पहले 26 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बांग्लादेश यात्रा के विरोध में चट्टोग्राम जिले के दक्षिणपूर्व जिले में एक प्रमुख मदरसे के छात्र और एक इस्लामिक समूह के सदस्यों की शुक्रवार, 26 मार्च को पुलिस से झड़प हो गई। इनमें चार की उपचार के दौरान मौत हो गई। ढाका राजधानी में भी लोगों के विरोध प्रदर्शन किये, पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग किया,जिसमें कई लोग घायल हो गए। अब पुलिस जाँच से पता चला है कि इन विरोध प्रदर्शनों में जमाते-इस्लामी का हाथ है,जो शेख हसीना वाजेद को सत्ता से बेदखल करना चाहता है।उसने ही इन प्रदर्शनों के लिए धन उपलब्ध कराया था। अब थोड़ा इस मुल्क के बारे में भी जान लें।
बांग्लादेश तीन ओर से भारत से घिरा हुआ है, इसके दक्षिण-पूर्व में म्यांमार है। इसकी भूमि सीमाएँ भारत तथा म्यांमार से मिलती हैं। इसका क्षेत्रफल 1,48,393 वर्ग किलोमीटर है। बांग्लादेश की राजधानी ढाका तथा मुद्रा- टका है। इस देश की जनसंख्या- 15,03,19,000 से अधिक है। यहाँ के लोग बंगला, चकमा, माध भाषाएँ बोलते हैं। ये इस्लाम, हिन्दू, बौद्ध, ईसाई धर्म के अनुयायी हैं। यह देश स्वाधीन होने के बाद से आन्तरिक अशान्ति से ग्रस्त रहा है। जनवरी, 2007 में देश में आपात काल लगाया गया और चुनावी हिंसा रुक गयी। राष्ट्रपति फखरुद्दीन अहमद ने 22 जनवरी,2007 के चुनावों को स्थगित कर दिया। फखरुद्दीन अहमद ने अन्तरिम प्रशासन का दायित्व लिया। 6 इस्लामिक उग्रवादियों को बमबारी के आरोप में फाँसी पर लटका दिया गया। अप्रैल,2007 में शेख हसीना वाजेद पर हत्या का आरोप लगा। बेगम खालिदा जिया को नजरबन्द कर दिया गया। भ्रष्टाचार के आरोप में कई राजनीतिज्ञों की गिरपतारी हुई। हिंसा के बीच आम चुनाव हुए और शेख हसीना की पार्टी की जीत हुई। तब एक बार फिर शेख हसीना प्रधानमंत्री बनीं। इस मुल्क की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। धान सबसे मुख्य खाद्यान्न फसल है। यह विश्व में जूट का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जिसमें 80 प्रतिशत जूट पैदा होता है। प्रमुख औद्योगिक उत्पादन- वस्त्र, चीनी, जूट, चाय, काली मिर्च, उर्वरक, प्राकृतिक गैस, इस्पात, बिजली, सिलेसिलाए कपड़े, तम्बाकू,रबर, रसायन, मशीनें आदि हैं।
अब देखना यह है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद इन इस्लामिक कट्टरपंथियों से निपटने और अल्पसंख्यक हिन्दू, बौद्ध, ईसाइयों को सुरक्षा प्रदान करने में कहाँ तक सफल हो पाती है?उन्हें यह भी याद रखना होगा कि इस्लामिक कट्टरपंथियों का दमन किये बगैर उनके मुल्क का विकास सम्भव नहीं है।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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