डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों पंजाब के मलोट में अबोहर से भारतीय जनता पार्टी के विधायक अरुण नारंग की कथित किसानों द्वारा केन्द्रीय कृषि कानून के विरोध के बहाने पुलिस सुरक्षा चक्र को तोड़ते हुए जिस तरह उन पर कालिख फेंकने के साथ निर्ममता से मारपीट करते हुए ं कपड़े फाड़ कर निर्वस्त्र कर उन्हें अपमानित करना और भाजपा कार्यालय में जमकर तोड़फोड़ की गई, उससे एक बार फिर उनका असली चेहरा और उनका काँग्रेस के साथ गठजोड़ सामने आ गया है। इस अमानुषिक हिंसक घटना की जितनी निन्दा की जाए, वह कम ही होगी। काँग्रेस, वामपन्थी तथा दूसरी भाजपा विरोधी राजनीतिक पार्टियों द्वारा गत 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस पर इनके दिल्ली के सड़कों और लाल किले पर किये गए उपद्रव, पुलिस पर हमले तथा हिंसा का यह कह कर बचाव किया गया था कि ये सब तो पूरी तरह निर्दोष हैं। वहाँ जो कुछ हुआ, वह तो भाजपा की केन्द्र सरकार के षड्यंत्र का परिणाम है, जो किसानों को बदनाम कर उनके आन्दोलन को विफल करना चाहती है। लेकिन जब सरकार ने 26 जनवरी के उपद्रवियों की गिरपतारियाँ शुरू कीं, तो पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने उनके कानूनी बचाव के लिए 70से अधिक वकील खड़े कर दिये। इसके अलावा उनकी सरकार इस आन्दोलन में मृतक किसानों के आश्रितों को 5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता के साथ-साथ उनके परिवार के एक सदस्य को सरकार नौकरी देते आए हैं। फिर भी वह बेशर्मी से इस आन्दोलन को विशुद्ध किसानों को आन्दोलन बताते हुए देश के लोगों को गुमराह करने की कोशिश करते आए हैं।
वैसे भी जो किसान नेता भाजपा और केन्द्र सरकार पर संविधान में प्रदत्त अपने विरोध के अधिकार की बात करते है, उन्होंने अबोहर में भाजपा में कार्यालय में विधायक अरुण नारंग के साथ तब मारपीट की, जब वह पंजाब की काँग्रेस की सरकार के चार साल की नाकामियों पर मुक्तसर के जिला के प्रधान राजेश गोरा पठेला के साथ पत्रकार वार्ता करने पहुँचे थे। इसके माने क्या यह हैं कि सिर्फ उन्हें ही बोलने की आजादी है,दूसरों को नहीं? ऐसे ही ये कथित किसान नेता पहले बहुत दिनों तक रेल की पटरियों , फिर अब महीनों से दिल्ली की सीमा पर कई प्रमुख मार्गों को घेरे बैठे है, जिससे हर दिन हजारों लोगों को आने-जाने में बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। यहाँ तक इससे बड़ी संख्या में किसानों को शहरों में विक्रय हेतु कृषि उत्पाद फल,सब्जी और दूध भेज न पाने के कारण भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ रही है, किन्तु इनमें से किसी ने भी उनकी तकलीफों पर विचार करना आवश्यक नहीं समझा। यहाँ तक उच्चतम न्यायालय भी अपने निर्णय में सार्वजनिक मार्गों पर अधिक दिनों तक धरने-प्रदर्शन को अनुचित और अवैध ठहरा चुका है, लेकिन इन्हें उसकी कोई परवाह नहीं।
अब मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने भाजपा विधायक अरुण नारंग के साथ हुई हिंसक घटना की निन्दा करते हुए पुलिस महानिदेशक(डीजीपी) दिनकर गुप्ता से हमलावरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश जरूर दिये हैं,लेकिन उन्होंने उन पुलिस कर्मियों के विरुद्ध अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है, जो घटना के समय मूक दर्शक बने रहे । वह चाहते थे, तो उन कथित किसानों के खिलाफ बल प्रयोग कर सकते विधायक नारंग को बचा सकते थे। वैसे यह सच्चाई से किसी से छुपी नहीं है, इस केन्द्रीय कृषि कानून के विरोध के पीछे काँग्रेस और वामपन्थी पार्टियों के साथ-साथ खालिस्तान समर्थक तत्त्व हैं। पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर की नेतृत्व वाली काँग्रेस सरकार शुरू से ही इस फर्जी किसान आन्दोलन के पीछे पूरी ताकत से खड़ी है, जिसका मकसद अपने यहाँ के धनी किसानों, आढ़तियों के हितों के रक्षा के बहाने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केन्द्र की सरकार को हैरान-परेशान और उसे कृषक विरोधी सिद्ध करना है।इसका फायदा काँग्रेस और वामपंथियों से कहीं ज्यादा खालिस्तानी उठा रहे हैं। इससे पंजाब में उनके फिर से संगठित और प्रभावी होने का खतरा पैदा हो गया है, फिर भी काँग्रेस उस खतरे से अपनी आँखें मूँदे हुए हैं, जिसकी कीमत उसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्द्रा गाँधी और पंजाब के मुख्यमंत्री बेअन्त सिंह जान देकर चुकानी पड़ी थी। इन किसान संगठन नेताओं का काँग्रेस ,वामपंथी दलों का साथ होने का एक बड़ा प्रमाण चुनाव होने वाले राज्यों में भाजपा को हराने के लिए रैली करने जाना है।यह अलग बात है कि वहाँ इन्हें किसी ने भाव नहीं दिया,तब इन्होंने उल्टे पाँव लौटना बेहतर समझा।
अब पंजाब में कथित किसानों की इस हिंसक घटना पर कथित पंथ निरपेक्ष राजनीतिक पार्टियों और देश में असहिष्णुता बढ़ने का राग अलापने वाले साहित्यकारों, कलाकारों, फिल्मी अभिनेता, अभिनेत्रियों की चुप्पी ने एक बार फिर साबित कर दिया है, उन्हें असहिष्णुता उस समय ही दिखायी देती है, जब पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय, दलित, आदिवासी आदि से सम्बन्धित और हिंसा करने वाला सवर्ण हिन्दू विशेष रूप से क्षत्रिय हो या किसी हिन्दू संगठन से सम्बद्ध हो।
कथित किसान नेता अपनी हिंसक घटनाओं कितनी ही सफाई देते रहे हैं, देश के लोग उनके असली चेहरों और उनके पीछे खड़ी काँग्रेस, वामपंथी तथा भाजपा विरोधी पार्टियों की साजिश को अच्छी तरह जान चुके हैं, जो उनके कन्धे पर बन्दूक चला रही है। इसलिए अब कथित किसानों के आन्दोलन को लेकर लोगों की सहानुभूति न लगातार कम हो रही है, बल्कि इन्हें देश और समाज विरोधी शक्तियों की कठपुतलियाँ मान चुके हैं। अब वह दिन दूर नहीं, जब लोग इनके खिलाफ आन्दोलन करने को उद्यत होंगे।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
Add Comment