देश-दुनिया

श्रीलंका में भी दहशतगर्दी पर पाबन्दी

डाॅ.बचन ंिसंह सिकरवार

हाल में श्रीलंका में सरकार बुर्का पहनने समेत एक हजार से अधिक मदरसों पर प्रतिबन्ध लगाने की जो घोषणा की है, उससे वहाँ के मुसलमानों के साथ-साथ भारत और दुनियाभर के मुसमलानों को आपत्ति अवश्य हो सकती है, लेकिन यह भी सच है कि कोई भी देश अपने किसी समुदाय की खुशी के लिए देश और दूसरे लोगों की सुरक्षा को खतरे में डालने को जोखिम नहीं उठा सकता। श्रीलंका सरकार का यह कदम किसी विशेष समुदाय को अपमानित और प्रताड़ित करने के उद्देश्य से नहीं, बल्कि अपने यहाँ पनप रहे इस्लामिक कट्टरवाद पर अंकुश लगाने के लिए उठाया है। इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए श्रीलंकाई मुसलमानों समेत विश्वभर के मुसलमानों को भी सरकार के इस प्रतिबन्ध से सहमत होना चाहिए, क्यों कि मजहबी हिंसा किसी समुदाय के हित में नहीं है। इसमें किसी भी देश का कितना अहित होता, यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है। फिर बुर्का पहनने और मदरसों पर पाबन्दी लगाने वाला श्रीलंका दुनिया का कोई पहला मुल्क नहीं है। दुनिया का ‘धरती का स्वर्ग’ कहे जाने वाले देश स्विट्जरलैण्ड ने श्रीलंका से एक हपते पहले ही सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का और नकाब पहने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। फ्रांस और बेल्जियम में भी इस तरह के पहनावे पर रोक लगायी जा चुकी है। इनके सिवाय आस्ट्रिया, नीदरलैण्ड, डेनमार्क जैसे यूरोपीय देश भी बुर्का पर प्रतिबन्ध लगा चुके हैं, क्यों कि इसे पहन कर हमला करने की नीयत से आए तथा हमला कर भागने करने वाले की पहचान करना सम्भव नहीं है। फिर सेक्युलर ,उदारवादी विचारों वाले देशों में अपनी अलग मजहबी पहचान रखने का कोई कारण नहीं है। इनमें से अधिकतर यूरोपीय देशों ने अपने हममजहबी मुसलमानें के दहशतगर्द संगठनों के सताये मुसलमानों को अपने यहाँ दया/रहम दिखाते हुए शरण दी हुई है, फिर इनमें से किसी को मजहबी कट्टरता में खोट नजर नहीं आया। अगर आया होता, तो शायद वे अपनी पृथक मजहबी पहचान को लेकर ऐसी जिद नहीं कर रहे होते, जैसी वे कर रहे हैं। इसीलिए यूरोपीय देशों को अपनी सेक्युलर और उदार नीति का दुरुपयोग होते उसमें बदलाव करने की आवश्यकता अनुभव हुई। अब वे वक्त नजाकत पहचानते हुए अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए बुर्का और मदरसों पर प्रतिबन्ध लगा रहे हैं। अब श्रीलंका के इस साहसिक कदम की इस्लामिक आतंकवाद से ग्रस्त देशों को प्रशंसा की जानी चाहिए।
वैसे भी बुर्का और मदरसों पर प्रतिबन्ध लगाने जाने का औचित्य सिद्ध करते हुए श्रीलंका जनसुरक्षा मामलों के मंत्री सरथ वीराशेकर के गत 13मार्च के इस कथन में कुछ अनुचित दिखायी नहीं देता कि यह कदम सरकार ने सुरक्षा के आधार पर उठाया है। उनके देश में प्रारम्भिक दिनों में मुस्लिम महिलाएँ और लड़कियाँ बुर्का नहीं पहनती थीं। यह धार्मिक अतिवाद का प्रतीक है,जो हाल में चलन में आया। हम यकीनन इस पर रोक लगाने जा रहे हैं। उनकी सरकार एक हजार से अधिक मदरसों पर रोक लगाएगी। इन जगहों पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उल्लंघन किया जा रहा है। इसी 12मार्च को श्रीलंका मत्रिमण्डल की बैठक पर बुर्का पहनने तथा मदरसे बन्द करने का निर्णय पर स्वीकृति दी गई। इस मामले पर बांग्लादेश की निर्वासित साहित्यकार तस्लीमा नसरीन का कहना है कि श्रीलंका ने बुर्के पर प्रतिबन्ध लगाने और एक हजार से अधिक मदरसों को बन्द करने का अच्छा फैसला लिया है। बुर्काें से न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि महिला उत्पीड़न का प्रतीक भी है। मदरसों को भी आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
अब जहाँ तक श्रीलंका में इस्लामिक आतंकवाद के खतरे का प्रश्न है तो अप्रैल, 2019 में बौद्ध बहुल श्रीलंका में ईसाइयों के पवित्र त्योहार ईस्टर पर तीन गिरजाघरों तथा इतने ही पाँच सितारा होटलों पर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के जरिए कोई एक दशक से शान्त बने हुए इस द्वीप राष्ट्र को ही नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया समेत पूरी दुनिया को दहला दिया था,जिनमें ढाई सौ से अधिक लोगों के मारे जाने के साथ-साथ कोई 500से ज्यादा घायल हुए थे। इसके कुछ आतंकवादी तमिलनाडु और केरल में पकड़े जा चुके थे,उनसे मिली जानकारियों के आधार पर भारत ने श्रीलंका सरकार को आतंकवादी हमलों को लेकर सर्तक-सावधान रहने को कहा था,पर श्रीलंका सरकार ने उस पर अपेक्षित सर्तकता और उस पर कार्रवाई नहीं की गई। श्रीलंका के एक के बाद एक हुए आठ धमाकों की वजह भी राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेन और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के आपसी मतभेद/मनमुटाव रहे थे।इसके कारण राष्ट्रपति सिरीसेन ने हमले की खुफिया जानकारी से प्रधानमंत्री का अवगत नहीं कराया था। इसके कारण राष्ट्रपति सिरीसेन ने हमले की खुफिया जानकारी से प्रधानमंत्री का अवगत नहीं कराया। कमोबेश यही स्थिति हमारे देश के राजननीतिक दलों की है। इस आतंकवादी हमले के बाद श्रीलंका में इस्लामिक आतंकवादियों की धर पकड़ हुई थी और कई दहशतगर्द पकड़े गए थे। तभी कट्टरपन्थ को बढ़ावा देने के आरोप में ‘जमात-ए-इस्लामिक के पूर्व प्रमुख रशीद हज्जूल अकबर को गिरपतार किया गया था।
श्रीलंका में स्थानीय आतंकवादी संगठन ‘नेशनल तौहीद जमात’(एन.टी.जे.)के आत्मघाती हमलावरों ने अंजाम दिया था,जो दुनिया के सबसे खंूखार इस्लामिक संगठन‘इस्लामिक स्टेट’से सम्बद्ध है, क्योंकि बाद में इसी आतंकवादी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी कबूल की है। इन आतंकवादियों द्वारा गिरजाघरों में ईसाई समुदाय और होटलों मंे ठहरे पश्चिम यूरोपीय नागरिकों को अपना निशाने बनाने की वजह कुछ समय पहले न्यूजीलैण्ड के क्राइस्ट चर्च में जुमे को दो मस्जिदों में एक श्वेत चरमपंथी द्वारा अंधाधुंध गोलियों बरसा कर 49 मुस्लिमों की जान से मार डालने का बदला लेना बताया था। इसके अलावा अमेरिका द्वारा सीरिया में आइ.एस.के सफाये के ऐलान के बाद यह दहशतगर्द संगठन अपनी उपस्थिति को दिखाना चाहता था, इसलिए उसने श्रीलंका को इस बदले के लिए चुना है। वैसे यह इस्लामिक कट्टरपन्थी संगठन पाकिस्तान, मालदीव, बांग्लादेश और भारत में अब भी सक्रिय हैं।
उस समय जहाँ श्रीलंका में हुए इस आतंकवादी हमले को लेकर विश्व के अधिकतर देशों ने जिस तरह निन्दा/भत्र्सना, संवेदना, शोक ,दुःख प्रकट किया गया था, वैसा इस्लामिक मुल्कों और उनके मजहबी रहनुमा ने नहीं। किया था, फिर ये ही लोग दूसरे मुल्कों और वहाँ के बाशिन्दों पर उन पर शक-शुबह और भेदभाव करने का इल्जाम लगाते हैं। क्या किसी एक सिरफिरे के जुल्म के लिए दूसरे मजहब के सैकड़ों बेकसूर लोगों का खून बहाना जायज ठहराया जा सकता है? लेकिन दुनिया में ऐसा ही हो रहा है,लोग अपने सियासी नुकसान और जान जाने के डर से इस हकीकत को बयान करने से डरते हैं। भारत के दक्षिण में हिन्द महासागर में स्थित द्वीप राष्ट्र श्रीलंका से हमारे सदियों पुराने धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक सम्बन्ध हैं। इसे कम गहरा पाक जलडमरूमध्य भारत से अलग प करता है। इसका क्षेत्रफल 65,610वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या-2,04,10,000है। इसमें 70प्रतिशत बौद्ध, 12 प्रतिशत तमिल हिन्दू ,10फीसदी मुसलमान तथा 7.5प्रतिशत ईसाई हैं, जो बौद्ध, हिन्दू, इस्लाम, ईसाई धर्मों के अनुयायी हैं। अतीत में सिंहली बौद्धों तथा तमिल हिन्दुओं और मुसलमानों से टकराव की घटनाएँ तो हुई है,पर ईसाइयों के साथ ऐसा कोई बड़ा विवाद कभी नहीं हुआ है। यहाँ सिंहली, तमिल, अँग्रेजी भाषाएँ बोली जाती हैं। इस देश की राजधानी कोलम्बो तथा मुद्रा रुपया है। जहाँ तक यहाँ सक्रिय इस्लामी जिहादी संगठन ‘नेशनल तौहीद जमात’ के नाम का प्रश्न है तो ‘तौहीद’अरबी भाषा शब्द है जिसका अर्थ है एक ही ईश्वर को मानना, अर्थात् ‘एकेश्वरवाद‘। ‘जमात-शब्द भी अरबी भाषा का है जिसके माने मनुष्यों का समूह, लोगों का गिरोह/जत्था,दर्जा,श्रेणी,कक्षा है। इस तरह एक ही ईश्वर को मानने वालों का समूह है।
अब भारत को श्रीलंका समेत दूसरे यूरोपीय देशों से सबक लेते हुए दहशतगर्दो संगठनों के साथ-साथ इस्लामिक कट्टरपन्थ की फैक्टरी बने मदरसों और मस्जिदों में होने वाली गतिविधियों पर विशेष ध्यान देेने की आवश्यकता है,क्यों कि राष्ट्रीय सुरक्षा और लोगों की हिफाजत से बढ़कर और कुछ नहीं है। फिर भारत मुस्लिम बहुल मुल्क पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव के साथ नेपाल तथा श्रीलंका से भी जुड़ा हुआ है,जहाँ बड़ी संख्या में न केवल इस्लामिक कट्टरपन्थी संगठन हैं,बल्कि उनमें दहशतगर्द भी तैयार किये जाते हैं। सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

 

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