डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में भारत सरकार ने नवगठित केन्द्र प्रशासित जम्मू-कश्मीर और लद्दाख राज्यों के नए राजनीतिक नक्शे जारी कर उनमें गुलाम कश्मीर के विभिन्न इलाकों को इनमें सम्मिलित कर पाकिस्तान और चीन को सही समय पर सही जवाब दिया है, जो गत 5अगस्त को जम्मू-कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 तथा 35ए हटाने और इस राज्य के पुनर्गठन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् समेत दुनियाभर के अलग-अलग मंचों से गैरकानूनी ठहराते हुए पुरजोर विरोध कर रहे थे, जबकि भारत इसे अपना अन्तरिक मामला बताते हुए उनके इस अनुचित विरोध की मुखालफत करता आया है। फिर भी इन दोनों मुल्कों के रुख और रवैये पर कोई फर्क नहीं पड़ा। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के इन नए नक्शों से पाकिस्तान को सबसे बड़ा हिमायती और हमदर्द चीन को गहरा आघात लगा है, क्यों कि लद्दाख में गिलगित, गिलगित बजारत, चिलाहास और जनजाति क्षेत्र(ट्राइबल टेरीटरी) जिलों को इसके दो जिलों कारगिल तथा लेह में सम्मिलित किया गया है। यही नहीं, अक्साई चिन को भी दर्शाया गया है जिस पर चीन से सन् 1962 के युद्ध में कब्जा कर लिया था। इस 38हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन अवैध कब्जा किये बैठा है। इतना ही नहीं, वह पेनांग झील के इलाके में भी बार-बार अपनी पीपुल्स आर्मी के सैनिकों से घुसपैठ कराके इस क्षेत्र पर भी अपना दावा जताता आया है। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में गुलाम कश्मीर के दो जिलों मुजफ्फराबाद और मीरपुर का हिस्सा बनाया गया है। इस कारण अब इन दो जिलों के जुड़ने से जम्मू-कश्मीर के फिर से 22 जिले हो गए हैं। वैसे भी इस राज्य विधानसभा में 24 स्थान पहले से गुलाम कश्मीर के रखे गए हैं। यद्यपि भारत पहले भी गुलाम कश्मीर को अपना हिस्सा दर्शाता था, तथापि अब उसने जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन के साथ गुलाम कश्मीर का बँटवारा कर दिया है। पाकिस्तान ने गुलाम कश्मीर में एक बड़ा हिस्सा बहुत पहले चीन को तोहफे में दिया हुआ है जिस पर उसने सड़क बना रखी है। इस तरह यहाँ भी चीन भारतीय भू-भाग को गैरकानूनी तरीके से कब्जा किये हुए है। अब चीन भारत के विरोध के बावजूद गुलाम कश्मीर से ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ (सी.पी.आई.सी.) बना रहा है। अब जैसी आशंका थी वैसा ही हुआ। भारत के जनरल सर्वेयर ऑफ इण्डिया द्वारा जारी इन नक्शों को देखकर चीन एक बार फिर से बेहद बौखला गया। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और उसके हिस्से को केन्द्र सरकार के अधीन लेने का फैसला पूरी तरह गैरकानूनी है। भारत ने इस फैसले से चीन के एक हिस्से को अपने में मिलाने का काम किया है। इससे चीन की सम्प्रभुता को चुनौती दी गई है,चीन उसकी भर्त्सना करता है। भारत ने जिस तरह यह कदम उठाया है उसक चीन कड़ा विरोध करता है। भारत इस सच्चाई को नहीं बदला जा सकता है। चीन भारत से आग्रह करता है कि वह इस फैसले को तुरन्त बदले और इस इलाके में शान्ति स्थापित करने के लिए पूर्व में की गई सन्धियों का पालन करे,ताकि सीमा विवाद का शान्तिपूर्ण तरीक से समाधान हो सके। बिना देर लगाए भारत ने चीन को जवाब देते हुए कहा कि चीन इस बारे में भारत की स्थायी नीति से भली भाँति परिचित है। जम्मू-कश्मीर पर भारत का फैसला पूरी तरह आन्तरिक है। इन मुद्दों पर वह चीन या किसी भी दूसरे देश की तरफ टिप्पणी की उम्मीद नहीं करता। भारत भी दूसरे देशों के आन्तरिक मामलों पर कोई टिप्पणी नहीं करता। वैसे चीन भी जम्मू-कश्मीर के एक बड़े इलाके 58,000 वर्ग किलोमीटर पर कब्जा किये हुए है जिसे सन् 1963 में चीन पाकिस्तान समझौते तहत पाकिस्तान से उसे सौंपा था। निश्चित ही चीन भारत के इस जवाब से न केवल हतप्रभ रह गया होगा ,बल्कि उसके कई भ्रम भी अब टूट रहे हैं। अब तक चीन का सोचता था कि भले ही भारत पाकिस्तान के खिलाफ कुछ भी कह/बोल और कर सकता है,पर उसके विरुद्ध बोलने की कोशिश नहीं करेगा। लेकिन भारत ने चीन को आईना दिखा दिया है कि अब भारत उसकी सैन्य शक्ति से डरता नहीं है। वह उससे अपने अक्साई चिन में अवैध रूप से कब्जा किये भू-भाग को एक दिन वापस लेकर रहेगा।भारत ने 19आसियान देशों और चीन, जापान, भारत,दक्षिण कोरिया, आस्टेªलिया, न्यूजीलैण्ड के बीच ‘रीजनल कम्प्रहेंसिव इकानॉमिक पार्टनरशिप’(आर.सी.ई.पी.)को अपने किसानों, दुग्ध उत्पादकों आदि के विपरीत तथा चीन को विशेष लाभ के स्थिति में देखते इस समझौते से मनाकर दिया है कि वह राष्ट्रहित में निर्णय ले सकता है। देरसबेर भारत चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे का कम करने को कठोर कदम उठा सकता,क्यों कि 2017 में चीन के साथ व्यापार घाटा 53अरब डॉलर तक पहुँच गया है। वैसे भी भारत-चीन के मध्य सीमा विवाद बहुत पुराना है। उसके और चीन के बीच 3488किलोमीटर लम्बी सीमा रेखा है। ब्रिटिश भारत और तिब्बत ने सन्1914 में शिमला समझौते के तहत अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में ‘मैकमोहन रेखा‘ निर्धारित की। चीन इस रेखा को अवैध मानता है,किन्तु वास्तविक नियंत्रण रेखा की स्थिति भी कमोबेश यही है। इसी कारण चीन लद्दाख तथा अरुणाचल के लोगों को नत्थी वीजा जारी करता आया है,क्यों चीन इन दोनों राज्यों पर अपना दावा करता आया है। कायदे से भारत को भी तिब्बत, शिन्जियांग, हांगकांग के बाशिन्दों को भी ऐसे ही नत्थी वीजा देने चाहिए,ताकि चीन को उसकी भाषा में जवाब दिया जाए। भूटान के डोकलाम पर चीन से भारत का विवाद हो चुका है,जहाँ वह इस सामरिक दृष्टि इलाके पर सड़क बनाकर भारत की सुरक्षा में खतरा उत्पन्न करने करना चाहता है। चीन के ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा बाँध बना लेने से इस नदी में 200अरब क्यूबिक मीटर पानी का बहाव कम हो जाएगा। इस मसले को लेकर भी भारत और चीन के बीच तनातनी है।हकीकत है कि वह अपनी सैन्य और आर्थिक शक्ति के बल पर भारत के लिए हर तरह की मुसीबतें पैदा करता आया है। चीन भारत विरोधी नीति और नीयत को देखते हुए उसकी अति महत्त्वाकांक्षी ‘वन बेल्ट वन रोड(ओबोर)परियोजना से बाहर रहकर भारत ने एक तरह से उसे चिढ़ाया है। अब जापान, अमेरिका और आस्टेलिया की ऐसी ही परियोजना में भारत हिस्सा ले रहा है। इसके सिवाय चीन को दक्षिण चीन सागर के हिस्से में वियतनाम के साथ मिलकर भारत के प्राकृतिक गैस की खोज का काम करने पर आपत्ति है। ओ.एन.जी.सी.की विदेशी शाखा ओएनजी.सी.विदेश लिमिटेड और वियतनाम की कम्पनी पेट्रो वियतनाम मिलकर काम कर रहे हैं।चीन इस दक्षिण चीन सागर अपने होने का दावा करता है। यूँ अमेरिका जम्मू-कश्मीर के मसले को लेकर भारत और पाकिस्तान को साधने की कोशिश करता आया है,यही वजह है कि कभी वह जम्मू-कश्मीर को भारत का अन्तरिक मसला कहता है,तो पाकिस्तान को यह कह कर खुश करता आया है कि अगर पाकिस्तान और भारत उससे मध्यस्थता के लिए कहते हैं,तो वह इसके लिए तैयार हैं लेकिन इसी 30 अक्टूबर को अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अरुणाचल के तंवाग में अपना भारत स्थित अमेरिका के राजदूत ने यहाँ आयोजित सांस्कृतिक उत्सव में न केवल प्रमुख अतिथि शामिल हुए ,वरन् अमेरिकी सरकार के ओर से अरुणाचल के विकास में योगदान घोषणा की,जिसे चीन दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बता कर अपना आधिकारिक दावा जताता आया है। यहाँ प्रधानमंत्री समेत किसी भी बड़े नेता के आने पर सदैव विरोध व्यक्त करता रहा है। दो साल पहले तवांग का चीनी भाषा में नाम भी अलग रख चुका है। निश्चय ही अमेरिका के इस रुख से चीन का तकलीफ हुई होगी।
भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के नए नक्शों में गुलाम कश्मीर के हिस्से दर्शाए जाने पर अब पाकिस्तान विदेश मंत्रालय ने भारत पर यह आरोप लगाया है कि कश्मीर की स्थिति में बदलाव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा के प्रस्ताव और भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय समझौतों खासकर शिमला समझौते का पूरी तरह उल्लंघन है,लेकिन पाकिस्तान को सालों पहले गुलाम कश्मीर के कई टुकड़े कर उसके एक हिस्से को चीन को तोहफे मेें दे चुका है,तब उसे किसी समझौते का ख्याल क्यों नहीं आया। उसने भारत पर यह तोहमत लगायी है कि जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन का मकसद जनसांख्यिकी ढाँचे को बदलना है,पर पाकिस्तान तो यह सब गुलाम कश्मीर में पंजाबियों को पहले ही कर चुका हैै। ऐसे में उसका भारत पर शक जाहिर करना स्वाभाविक है।
वैसे भी चीन की तुच्छता जग जाहिर है कि उसकी विस्तारवादी नीतियों से सारी दुनिया के देश परेशान हैं। वह विभिन्न तरीकों से जल और थल पर कब्जे करने में लगा है। अभी बहुत समय नहीं गुजरा है जब चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग तमिलनाडु के मामल्लपुरम आए थे तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ गलबाहियाँ करते हुए दोनों देशों के प्राचीन से अर्वाचीन सम्बन्धों का स्मरण करते हुए उन्हें और विस्तार देने के साथ प्रगाढ़ करने की विश्वास दिलाया गया था। लेकिन उसने जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के राज्यों के पुनर्गठन पर अपनी सख्त प्रतिक्रिया देकर जताता दिया कि उसके स्वार्थों के आगे कथित भारत मैत्री के कोई माने नहीं हैं। वैसे भारत ने भी यह कहकर चीन को यह जताता दिया कि वह उसके आन्तरिक मामलों पर टिप्पणी नहीं करता, इसलिए वह भी उसके मामलों में शान्त रहे। अगर चीन जम्मू-कश्मीर में लोगों के उत्पीड़न और मानवाधिकार का रोना रोएगा,तो भारत ने चीन के शिनजियांग इलाके में उसके द्वारा कोई 10लाख उइगर मुसलमानों को कथित प्रशिक्षण शिविरों में ढहाये जा रहे जुल्मों से लेकर तिब्बत में बौद्धों पर अत्याचार, उनके मठ-मन्दिर उजाड़ने, उनके क्षेत्र में चीनियों को बसाकर जनसांख्यिकीय बदलने और अब हांगकांग प्रत्यापर्ण कानून के विरोध और लोकतंत्र की माँग को किये जा रहे आन्दोलन के दमन पर बोलने लगा,तो चीन की बोलती बन्द हो जाएगी।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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