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फ्रान्स में मजहबी कट्टरवाद पर नकेल

साभार गूगल

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार

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हाल में फ्रान्स सरकार द्वारा अपने यहाँ इस्लामिक कट्टरपन्थियों पर अंकुश लगाने के लिए जो विधेयक लाया गया है, वह उसका अत्यन्त साहसिक,आवश्यक और सामयिक कदम है। इससे उन मुल्कों को भी ऐसा ही कानून बनाने की प्रेरणा मिलेगी, जो फ्रान्स की तरह ही इस्लामिक कट्टरपन्थियों की बेजां हरकतों से परेशान हैं और उन पर अंकुश लगाना चाहते हैं। इस्लामिक कट्टरपन्थियों की असहिष्णुता और हिंसा से फ्रान्स कितना त्रस्त था, इसे फ्रान्स के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने भी नहीं छुपाया। उनका स्पष्ट कहना है कि उनके मुल्क में कुछ समुदायों के बढ़ते कट्टरपन्थ को रोकने के यह कानून जरूरी है। लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता जैसे फ्रान्सीसी मूल्यों की रक्षा किया जाना आवश्यक है, जो इस कानून के बनने और लागू होने पर ही अब सम्भव है। इस विधेयक कानून बन जाने के बाद पुलिस को मस्जिद-मदरसों की तलाशी लेने और उन्हें बन्द करने का अधिकार होगा। इस विधेयक को नेशनल असेम्बली में प्रस्तुत किया गया। जहाँ इसके पक्ष में 347 सांसदों ने अपना मत दिया था,वहीं इसके विरोध में 151सांसदों ने। अभी यह विधेयक अभी उच्च सदन में पारित होना है, लेकिन उसमें राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों की ‘ला रिपब्लिकक इन मार्चे’ पार्टी का बहुमत में नहीं है,पर देश में कट्टरवाद के विरुद्ध माहौल को देखते हुए दूसरी सियासी पार्टियों द्वारा इस विधेयक को समर्थन दिये जाने की पूरी सम्भावना है। इस विधेयक को लाने से पहले राष्ट्रपति की पार्टी द्वारा देश भर में इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ जुलूस निकाले गए। फिर फ्रान्स के 8 मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों से एक चार्टर पर हस्ताक्षर करने को कहा गया,पर उसमें आतंकवाद की बुराई और धार्मिक कट्टरवाद को खत्म करने जैसे उपबन्ध होने के कारण इनमें कुछ ने हस्ताक्षर करने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया। उसके बाद फ्रान्सीसी सरकार को उक्त विधेयक लाना पड़ा। वर्तमान में फ्रान्स की सरकार अपने यहाँ सभी कट्टरपन्थियों की पहचान कर उन्हें गिरफ्तार करने का अभियान चला रही है। इस बीच फ्रान्स की मस्जिदा को विदेशी सहायता लेने पर रोक लगा दी गई है। फ्रान्स की गुप्तचर एजेन्सियाँ आतंकवादियों को गिरफ्तार करने में लगी हैं।

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16अक्टूबर,2020 को फ्रान्स में एक 18वर्षीय मुस्लिम छात्र ने ‘अल्लाहु अकबर’ का नारे लगाते हुए शिक्षक का सिर कलम कर दिया ,जब वह कक्षा में अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के बारे में समझने के लिए ‘शार्ली आब्दो’पत्रिका में प्रकाशित पैगम्बर मुहम्मद साहब के व्यंग्य चित्र का हवाला दे रहे थे। उसके बाद जब पुलिस ने इस्लामिक कट्टरपन्थियों की धर -पकड़ का अभियान चलाया, तब इन्होंने बड़े पैमाने पर जुलूस निकाल कर जगह-जगह तोड़फोड़ करते हुए हिंसा की। फ्रान्स में पिछले साल में छोटे-बड़े 10से अधिक आतंकवादी हमले हो चुके हैं। उस समय फ्रान्स के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने बस इतना कहा था कि वे किसी मजहब के पैगम्बर का ऐसा चित्र बनाये जाने के पक्ष में नहीं हूँ,लेकिन वे अभिव्यक्ति स्वतंत्रता पर रोक नहीं लगा सकते। उनके इस बयान से कुपित होकर कट्टरपन्थी मुसलमानों ने भारत के मुम्बई तथा दूसरे शहरों समेत दुनिया के कई मुल्कों में मुसलमानों ने राष्ट्रªपति मैक्रों के चित्र पर कालिख पोतने से लेकर उस जूते-चप्पल बरसाये ,उस पर वाहन गुजार कर विरोध प्रदर्शन किये थे। इस कानून को लेकर अब फ्रान्स के मुसलमान बेहद परेशान हैं। उनका कहना है कि इससे न सिर्फ उनकी मजहबी आजादी सीमित हो जाएगी, बल्कि इसके जरिए उन्हें निशाना भी बनाया जाएगा। इसमें कुछ गलत भी नहीं है, क्यों कि इस कानून में मस्जिद और मदरसों की सरकार की निगरानी का प्रावधान है,जहाँ कट्टरपन्थ का सबक सिखाने- पढ़ाने के साथ-साथ गैर मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के लिए भड़़काया जाता है। हकीकत में फ्रान्स में ये मस्जिद-मदरसे इस्लामिक कट्टरपन्थियों के गैर मुसलमानों के खिलाफ नफरत और खून-खराबा के लिए भड़कने के अड्डे बने हुए थे। इसके सिवाय इस कानून में मुसलमानों के कई विवाह (निकाह) तथा जबरन निकाह करने पर भी नकेल कसी जा सकेगी। इधर राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों के आलोचकों का कहना है कि आगामी वर्षों में राष्ट्रपति चुनावों के मद्दे नजर यह कानून बनाया गया है। अगर ऐसा है,तो इसमें अनुचित क्या है?क्या कोई राजनेता अपने देश और लोगों की सुरक्षा की चिन्ता न करें?वह उन्हें दूसरे मुल्कों से आकर बसे लोग के हाथों मरने छोड़ दे। वह अपने देश की सभ्यता, संस्कृति, धर्म, जीवन मूल्यों आदि की रक्षा न करे?
निश्चय ही इस कानून के लागू होने के बाद जहाँ फ्रान्स अपनी पंथनिरपेक्षता ,उदारवादी विचारों, संस्कृति को अक्षुण्ण रखने में सफल होगा, जिनके लिए वह जाना जाता है, वहीं इस सख्त कानून को देखते हुए अब इस्लामिक कट्टरपन्थी अपनी मनोवृत्ति और चाल-चलन में बदलाव लाने को मजबूर होंगे। इस कानून के बन जाने के बाद अब उनकी समझ में आ गया होगा कि यदि फ्रान्स में इन्होंने अपने कट्टर इस्लामिक तौर-तरीके नहीं बदले, तो उस दशा में इस देश में उनका रहना सम्भव नहीं होगा। फ्रान्स से निकाले जाने के बाद उन्हें किसी दूसरे यूरोपीय देश में भी शरण नहीं मिलेगी, क्योंकि यूरोपीय देशों समेत दुनियाभर के जिन देशों ने दुर्दान्त दहशतगर्द इस्लामिक स्टेट(आइ.एस.) समेत दूसरे इस्लामिक कट्टरपन्थी संगठनों द्वारा सीरिया, लीबिया, इराक आदि मुस्लिम मुल्कों में खून-खराबे से फैलायी दहशत से परेशान होकर अपना मुल्क छोड़कर आए मुसलमानों पर रहम/दया दिखाते हुए उन्हें खुले दिल से पनाह ही नहीं दी, बराबर के अधिकार भी दिये हैं। फिर भी वे उनके लिए ही अब सिर्फ सरदर्द ही पैदा नहीं कर रहे है,बल्कि उनकी सुरक्षा के लिए खतरा बन गए हैं। ये लोग उस मुल्क के हिसाब से खुद को ढालने के बजाय उस पर ही अपनी कथित तहजीब और मजहबी कट्टरपन्थी मानसिकता लागू करना चाहते हैं। इनकी यह मानसिकता उस मुल्क मूल निवासियों और उनके बीच टकराव तथा हिंसा की वजह बनती है। पिछले एक दशक से फ्रान्स लगातार अपने यहाँ विभिन्न इस्लामिक मुल्कों से आए शरणार्थियों को पनाह देता आया है,जो अपने यहाँ खून-खराबे से जान बचाकर आए थे। लेकिन मजहबी कट्टरता से पीड़ित होने के बाद भी इन लोगों ने उससे कोई सबक नहीं लिया। जैसे ही इन मुल्कों में मुसलमानों की आबादी बढ़ी,वैसे ही इन्होंने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। कुछ साल पहले फ्रान्स में इस्लामिक कट्टरपन्थियों ने ‘शार्ली आब्दो’ के कार्यालय पर हमला किया था, जिसमें उन्होंने डेढ़ दर्जन प्रेस कर्मियों की नृशंस हत्या कर दी थी। फ्रान्स पश्चिमी यूरो का सबसे बड़ा देश है और तीन बड़े देश स्पेन,जर्मनी तथा इटली के मध्य स्थित है। इसका क्षेत्रफल- 5,43,965 वर्ग किलोमीटर तथा राजधानी-पेरिस है। इसका जनसंख्या- 6,58,21,885से अधिक है। यहाँ के लोग फ्रेंच बोलते हैं और ईसाई मजहब मानते हैं। इसकी मुद्रा- यूरो है। यह देश ई.पू. 486 में स्वतंत्र हुआ था। नेपोलियन की जन्मभूमि कोर्शिका द्वीप फ्रान्स का एक भाग है।पुराने समय में फ्रान्स में राजतंत्र था। फ्रान्स की क्रान्ति सन् 1789से 1793 के पश्चात् यहाँ गणतंत्र स्थापित किया।यह क्रान्ति स्वतंत्रता,समानता,विश्वबन्धुत्व पर आधारित थी।इन सिद्धान्तों से पे्ररित होकर अमेरिका सहित यूरोपीय देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना हुई थी। उसके बाद फ्रान्स मे गणतंत्रात्मक और शाही शासन व्यवस्था एक-दूसरे के बाद चलती रहीं। सन् 1958 में चाल्र्स दिगाल के नेतृत्व में यहाँ पाँचवें गणतंत्र की स्थापना हुई। 6सितम्बर,सन् 1995 को फ्रान्स ने परमाणु बम के परीक्षण किये। दुनिया भर में इसके विरोध के कारण जनवरी,1996 में फ्रान्स ने परीक्षण बन्द करने की घोषणा की। 1997 में विधायिका के चुनावों में साम्यवादी गठबन्धन को सफलता मिली। कृषि उत्पादन के सम्बन्ध में फ्रान्स आत्मनिर्भर है और बड़ी मात्रा में कृषि उत्पादों का निर्यात करता है। निर्मित वस्तुओं में सबसे महत्त्वपूर्ण हैं-रसायन, सिल्क,सूती वस्त्र, मोटर गाड़ियाँ, विमान, पोत,अति सूक्ष्म नाप-तौल की मशीनें, इलेक्ट्रानिक उपकरण, इत्र और शराब। पिछले 20वर्ष के दौरान शहरी विकास और तकनीकी प्रगति के फलस्वरूप के निवासियों का दैनिक जीवन बहुत बदल गया हैै।
अब फ्रान्स में उक्त अधिनियम को लेकर इस्लामिक कट्टरपन्थी कितना ही हायतौबा मचाते हुए मुखालफत करते रहें,लेकिन उससे यहाँ की अपने कदम पीछे खींचने वाली नहीं है। उसने खूब सोच-समझ कर यह कानून बनाया है,ताकि रहमत की भीख माँगते हुए अपने मुल्क में दाखिल हुए इन कट्टरपन्थियों से उसे महफूज रखा जा सके,जो मूल निवासियों के लिए खतरा बन चुके हैं।
अब देखना यह है कि फ्रान्स सरकार के उक्त अधिनियम बन जाने के बाद यूरोपीय और विश्व के दूसरे देश मजहबी कट्टरवाद पर अंकुश लगाने के लिए ऐसा ही कानून कब बनाते हैं?

 

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