डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
अन्ततः पड़ोसी देश म्यांमार में एक बार फिर सेना ने लोकतांत्रिक सरकार को सत्ता से बेदखल करते हुए उस पर कब्जा कर लिया, जिसकी आशंका गत 8 नवम्बर माह मेें यहाँ हुए संसदीय चुनाव के बाद से ही जतायी जा रही थी। सैन्य जनरल मिन आंग लाइंग ने सत्ता पर काबिज होते ही देश में एक साल के लिए आपात काल लागू कर दिया और आंग सान सू ,राष्ट्रपति यू विन मिण्ट समेत सभी प्रमुख नेताओं को गिरपतार कर लिया गया है। कोई एक दशक बाद हुए इस सैन्य सत्ता पलट के विरोध में राजधानी नेपिडा( पाइनामाना) , यंगून और दूसरे शहरों में बड़े पैमाने पर लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। अब प्रदर्शनकारियों और पुलिस में जगह-जगह झड़पें हो रही हंै। म्यांमार के इस तख्ता पलट पर अमेरिका ने गहरी नाराजगी जताते हुए उसे कड़े प्रतिबन्ध लगाये जाने की चेतावनी भी दी है। म्यांमार की घटना पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जोनसन तथा जापान ने भी अपना विरोध जताया है। पड़ोसी थाईलैण्ड में तो लोग सड़कों पर आकर अपना विरोध व्यक्त कर रहे हैं। कमोबेश, नेपाल में ऐसा ही माहौल बना हुआ है। अब जहाँ भारत ने म्यांमार की लोकतांत्रिक सरकार के तख्ता पलट पर गहरी चिन्ता जतायी है, वहीं चीन ने सीधे कुछ न कहते हुए सभी पक्षों को आपस में मिलकर मामला सुलझाने को कहा है। इस मामले पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद्(यूएनएससी)ने भी बैठक आहूत की घोषणा की है। म्यांमार में हुए इस सैन्य सत्ता पलट के पीछे चीन का हाथ बताया जा रहा है, जिसके राजनयिक वांग यी 14जनवरी को ही म्यांमार गए थे और सेना के जनरल मिन आंग लाइंग से मुलाकात भी की थी। पिछले साल जनवरी माह में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग म्यांमार आए थे, तब उन्होंने आंग सान सूकी के साथ कई आर्थिक परियोजनाओं पर हस्ताक्षर किये थे, किन्तु कुछ पर उन्होंने अपनी असहमति व्यक्त कर दी थी। उस दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भेंट की थी। इस वजह से जनरल मिन आंग लाइंग को पहले से ही चीन समर्थक समझा जाता था। इस पर मानवाधिकार संगठन राखाइन प्रान्त में रोहिंग्या मुसलमानों के कत्ल-ए-आम के अभियान चलाने का आरोप लगते आए हंै।उन पर अन्तराष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा भी चल रहा है। वस्तुतः चीन के मंसूबे पूरे होने देने में यहाँ की लोकतांत्रिक सरकार बाधक बनी हुई थी। चीन ने म्यांमार को अपनी ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना शामिल कर लिया था। चीन म्यांमार में गैस पाइप लाइन, खनन, आधारभूत संरचनाओं में काफी निवेश कर चुका है। वह यहाँ सड़क, रेल, बन्दरगाह आदि में भी निर्माण कराना चाहता था। ऐसा करके वह म्यांमार को भी दूसरे देशों की तरह अपने कर्ज के जाल में फँसाना चाहता है, पर म्यांमार की लोकतांत्रिक सरकार चीन के इस असल इरादे भांप गई। उसने चीन से कर्ज लेकर इनका निर्माण कराने से इन्कार कर दिया। यहाँ तक कि बाद में म्यांमार सरकार ने भारत से मिलकर बन्दरगाह तैयार करने की योजना भी बना ली।इस बन्दरगाह से मणिपुर तक सड़क बनायी जाने थी,ताकि पूर्वोत्तर राज्यों को सीधा आयात-निर्यात किया जाना सम्भव हो सका। यह देखकर चीन का बौखलाना स्वाभाविक है।
वैसे भी इस चुनाव के बाद से ही सेना चुनाव में धांधली के आरोप लगाती आ रही है, जिसमें जहाँ आंग सन सू की की ‘नेशनल लीग फाॅर डेमोक्रेसी’ को 476 में से 396 सीटों पर जीत मिली थी, वहीं सैन्य समर्थित ‘यूनियन साॅलिडेरिटी एण्ड डेवलपमेण्ट पार्टी’ सिर्फ 33 सीटें जीत कामयाबी हासिल हुई थी। तभी से सेना ने राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग और सर्वोच्च न्यायालय में अपनी आपत्ति दर्ज करायी गयी थी। लेकिन राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग ने सेना द्वारा चुनावों में धोखाधड़ी होने के आरोपों से इन्कार किया है। हालाँकि म्यांमार की सेना चेतावनी दिये जाने पर पश्चिम यूरोप के देशों की सरकारों ने उसके तख्ता पलट की आशंका पर चिन्ता व्यक्त की थी। उस समय संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एण्टोनिया गुतेरस ने भी कहा था कि म्यांमार में चल रहे घटनाक्रम से वह बहुत चिन्तित हैं। फिर इस देश के लिए सेना द्वारा सत्ता हथियाना और उस पर काबिज रहना कोई नई बात नहीं है, क्योंकि आजादी के बाद से इस देश पर पाँच दशक से सेना ही सत्ता में रही है।
म्यांनमार पूर्व नाम बर्मा एशियाई देश है, जिसकी सीमा भारत, बांग्लादेश, चीन, थाईलैण्ड से जुड़ी है। इसका क्षेत्रफल-6,76,553वर्ग किलोमीटर और इसकी राजधानी-नेपिडा है। म्यांमार की जनसंख्या-5,04,96,000 है। यहाँ के लोग बर्मी, कबीलाई, अँग्रेजी भाषाएँ बोलते-समझते हैं। इनमें अधिकतर बौद्ध और कुछ इस्लाम को भी मानते हैं। म्यांमार की मुद्रा-क्यात है। इसके प्रसिद्ध शहर मांडले, मालमीन, बैसीन है। यह देश यह छोटे राज्यों का सैकड़ों वर्ष तक संग्राम क्षेत्र रहा है। दूसरे महायुद्ध में इस पर जापानियों ने अधिकार कर लिया। 14 अगस्त, 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण किया। 4 जनवरी, 1948 को यह ब्रिटेन की पराधीनता से मुक्त हुआ। सन् 1885 से सन् 1937 तक यह भारत का एक प्रान्त था और इसे राष्ट्रमण्डल(काॅमनवेल्थ)का एक राज्य बना दिया गया। सन् 1961मे बौद्ध धर्म को राजधर्म घोषित किया गया था। सन् 1962 में जनरल नेविन की क्रान्तिकारी परिषद् सत्ता में आयी। इसका नाम ‘यूनियन आॅफ बर्मा’ रखा गया। सन् 1962 से लेकर 1988 तक जनरल नेविन सत्तासीन रहे। पहले ये सैनिक शासक थे। फिर स्व नियुक्त राष्ट्रपति फिर राजनीतिक तानाशाह बन गये। सन् 1971में बर्मा समाजवाद का कार्यक्रम स्वीकार किया। मई, सन् 1989में इसका नया नाम ‘यूनियन आॅफ म्यांमार’ रखा गया। जून,सन् 1990में सेना ने पहली बार स्वतंत्र चुनाव होने दिये जिसमें ‘नेशनल लीग फाॅर डेमोक्रेसी’ ने भारी बहुमत प्राप्त किया, लेकिन सेना सत्ता देने में हिचकिचाती रही और नोबल शान्ति पुरस्कार विजेता और दलाध्यक्ष आंग सांन सूकी को नजरबन्द कर लिया। सत्ता में सैनिक जुण्टा ने कई बार नये संविधान का वादा किया,लेकिन कुछ हुआ नहीं। सू की के समर्थकों पर राजनीतिक बन्दिशें लगी हुई हैं। बर्मी संघ में शान, करेन, काचीन, कयाह और चिन हिल्स जिला एवं अराकन हिल्स जिला हैं। कालान्तर में इन दोनों को मिला मिलाकर चिन डिवीजन का बनाया। 2008 में सेना से संविधान तैयार किया। इसमें देश की आन्तरिक ,रक्षा का दायित्व सेना पर रहेगा। इसके सिवाय संविधान में संशोधन के लिए सेना की सहमति आवश्यक है। 2012में आंग सान सूकी पार्टी ‘नेशनल लीग फाॅर डेमाक्रेसी’ ने सत्ता सम्हाली थी। यहाँ के मुुुुुुुुख्य खनिज पेट्रोलियम,सीसा, टिन,जस्ता, टंगस्टन, तांबा,एण्टीमनी, चाँदी तथा रत्न ।यहाँ के माणिक्य, नीलम, पहिताश्म विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहाँ से सागौन(टीक) की लकड़ी का निर्यात बड़ी मात्रा में होता है।इसके अलावा चावल, रूई, मक्का, तम्बाकू कृषि उपज का भी निर्यात होता है।यह विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश भी है। अब दुनियाभर के देश म्यांमार में सैन्य तख्ता पलट को लेकर चिन्तित होने की वजह उसमें चीन का हाथ होना है,जो अपने मंसूबे पूरे करने के लिए किसी भी मुल्क में कुछ भी कर गुजरने को हमेशा तैयार रहता है। म्यांमार की घटना से पड़ोसी देश नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैण्ड आदि मुल्कों के लोग बेहद परेशान हैं। म्यांमार के सत्ता पलट से भारत का चिन्तित होना स्वाभाविक है,क्योंकि वह भी जिस देश में आर्थिक साझीदार बनने को प्रयासरत था, वह मुल्क उसके दुश्मन देश चीन की गिरपत आ गया है। फिलहाल, एक तरह से वह चीनी डैªगन का निवाला बन गया है। अब देखना यह है कि म्यांमार इस हालात से कब और कैसे उबर पाता है?
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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