डाॅ.बचन सिंह सिकरवार

आखिर इस बार ‘गणतंत्र दिवस’ पर जिस अनहोनी की लगातार जतायी जा रही थी, वैसी ही नहीं, उससे बढ़कर हुई। इन कथित किसानों की इस बेजां हरकत ने देश को शर्मसार किया है। इससे एक अरब पैतीस करोड़ भारतीयों की भावनाओं को भी गहरा आघात लगा है, जो हर साल की तरह पूरे जोशो-खरोश से ‘गणतंत्र’ के महापर्व को महोत्सव तरह मनाती आयी है। इससे पूरी दुनिया में देश के मान-सम्मान और ख्याति पर ही नहीं, उस लोकतंत्र पर भी बट्टा लगा है, जिस पर अब तक हम भारत के लोग गर्व से सीना तानकर इठलाते- इतराते आए हैं। निश्चय ही अब ऐसा कर इन कथित किसान आन्दोलनकारियों ने दुश्मन मुल्कों के मंसूबों को भी पूरा किया है, जिसे वे अब तक अपने भेजे दहशतगर्दों से भी कराने में नाकाम रहे थे। इस 26 जनवरी पर दिल्ली कथित किसान आन्दोलनकारियों ने उपद्रव, सड़कों, पुलिस और निजी वाहनों को तहस-नहस कर, लाल किला में तोडफोड़, पुलिस कर्मियों पर जानलेवा हमले कर और लाल किले की प्राचीर पर लगे ध्वजदण्ड पर खालिस्तान और अपने धार्मिक ध्वज फहराते हुए जैसे नारे लगाए उससे एक तरह से देश की लोकशाही के साथ उसकी एकता, अखण्डता को चुनौती देते हुए उसका उपहास बनाया है। उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का लाल किले की प्राचीर समेत पूरे प्रदर्शन के दौरान उसका बराबर अपमान किया है, उनका यह अपराध किसी भी दशा में अक्षम्य है, क्यों कि यह उनका ‘देश’ के साथ ‘द्रोह’ है। इन कथित किसानों आन्दोलनकारियों के खिलाफ अब पूरे देश के लोगों में भारी गुस्सा, असन्तोष, आक्रोश है। यह देखते हुए अब जहाँ कुछ नेता इस उत्पात में अपने भूमिका होने से मना करते हुए आन्दोलन से किनारा कर चुके हैं, तो कुछ बेशर्मी से खुद का बचाव करते हुए इसके लिए सरकार को भी कसूरवार ठहराने में लगे हैं। इधर काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी दिल्ली में उत्पात की निन्दा करने के बजाय यह कह रहे हैं कि किसानों ने इन कृषि बिलों का ठीक से समझा नहीं है,नही ंतो और ज्यादा विरोध करते। उधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल केन्द्र सरकार को किसानों को फर्जी मामलों में फँसाने का आरोप लगाया है। ऐसा कहने वाले ये सत्तालोभी, झूठे और मक्कार नेता क्या समझते हैं? वे जो कुछ कहेंगे, देश के लोग उसे सच मान लेंगे।

वैसे इससे भी बढ़कर दुःख और क्षोभ अपने देश के राजनीतिक दलों के नेताओं के रवैये को देख कर होता है। इनमें से एक ने भी कायदे से इन उपद्रवी कथित किसान प्रदर्शनकारियों के गणतंत्र दिवस पर खूनी हुडदंग मचाने, लाल किले में तोड़फोड़, तिरंगे का अपमान और उसके प्राचीर पर ध्वज खालिस्तान का झण्डा लहराने वालों की निन्दा/भत्र्सना तक करना जरूरी नहीं समझा है। क्या उनके अनुसार प्रदर्शनकारियों का यह कदाचारण लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन के अनुरूप है? धिक्कार ऐसी सियासत और उनकी सत्ता पाने की हवस की ललासा को, जिनके लिए राष्ट्र के मान-सम्मान से बढ़कर सियासत और सत्ता है। कल इनकी सरकार के रहते ऐसा कुछ होता है, तो ये किस मुँह से इन लोकतंत्र और देश के दुश्मनों को गलत ठहरा पाएँगे? क्या उनकी इस खामोशी और तरफदारी से ऐसे अराजक, लोकतंत्र और देश विरोधी तŸवों के हौसले नहीं बढ़ेंगे? क्या इन कुर्सी लोभी सियासतदारों को अपने सियासी फायदे के लिए मुल्क को ऐसे तबाह और उसे तोड़ने की चाहत रखने वालों की हौसलाअफजाई की सियासत के खौफनाक नतीजों का कुछ अन्दाजा है? क्या काँग्रेस को भिण्डरावाले का बढ़ावा देने,फिर उसके दमन के लिए ‘आॅपरेशन ब्ल्यू स्टार’ सरीखे कठोर कदम उठाने । उसके बाद के नतीजे में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्द्रा गाँधी की उनके अंगरक्षकों द्वारा हत्या और दिल्ली समेत देश के अलग-अलग हिस्सों में सिख विरोधी दंगे की याद नहीं है?यह जानते-बूझते हुए भी वह एक बार फिर ठण्डी पड़ी उसी आग को हवा देने में लगी है।
दरअसल, भाजपा विरोधी सियासी पार्टियाँ शुरू से ही केन्द्र सरकार द्वारा किसानों की आमदानी में बढ़ाने के उद्देश्य से पारित तीनों कृषि अधिनियमों के खिलाफ किसानों को भरमाने, भड़काने और उनकी हर तरह से मदद देती आयी हंै, जबकि काँग्रेस के स्वयं के चुनावी घोषणपत्र में ऐसे कानून बनाने का वादा किया गया था। ये ही सियासी पार्टियाँ केन्द्र सरकार द्वारा इन कृषि कानूनों में त्रुटियों-कमियों के निवारण के लिए कोई एक दर्जन बार आहूत की वार्ताओं को विफल कराती आयी हंै। ये इन कानूनों को किसान विरोधी काले कानून बताते हुए इन्हें वापस लेने पर अड़ी रही हैं। सम्भवतः इन्हीं के इशारे पर कुछ किसानों ने सर्वोच्च न्यायालय में इन कृषि अधिनियमों के खिलाफ याचिकाएँ भी दायर की र्गइं। इनकी सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए अपनी न्यायिक सीमा को लांघते हुए इन कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगाते हुए एक चार सदस्यीय कमेटी गठित कर दी, जो इनका पक्ष सुनकर सर्वोच्च न्यायालय को रिपोर्ट दे। लेकिन किसानों ने उनके सदस्यों को सरकार समर्थक होने का आरोप लगाते हुए उनके सामने अपना पक्ष रखने से साफ मना कर दिया। केन्द्र सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) तथा मण्डी व्यवस्था बनाये रखने के लिखित आश्वासन के साथ-साथ इन कानून को डेढ़ साल तक स्थगित करने के प्रस्ताव भी इन किसान नेताओं ने स्वीकार करने से इन्कार कर दिया, ताकि किसी भी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार को किसान विरोधी ठहराया जा सके। इस कथित किसान आन्दोलन में काँग्रेस, आम आदमी पार्टी ,वामपंथी पार्टियों समेत कुछ सियासी दलों का प्रत्यक्ष और शेष का अप्रत्यक्ष हाथ रहा है। इतना ही नहीं, इसमें खालिस्तान समर्थक ‘सिख फाॅर जास्टिस’ और कुछ सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान और चीन की भी मदद भी रही है। इसका सुबूत पिछले दो महीनों में पंजाब में जियो मोबाइल के टाॅवरों को भारी क्षति पहँुचाना है। इसके बाद भी पंजाब पुलिस द्धारा इन टाॅवरों को बर्बाद करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। अब जहाँ तक इन कथित किसानों के दिल्ली में हिंसा फैलाने में कामयाब होने का प्रश्न है, उसमें केन्द्र सरकार की भी चूक रही है। इस कारण ये देश विरोधी शक्तियाँ देश की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक व्यवस्था की आन-बान-शान के प्रतीक लाल किले की प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के अपमान के साथ वहाँ खालिस्तान का झण्डा फहराने के अपने मंसूबे में कामयाब हो गईं, जबकि कनाडा के प्रधानमंत्री समेत दुनिया के कई देशों में खालिस्तान समर्थक इस किसान आन्दोलन का समर्थन करते हुए चन्दा जुटा रहे थे। इस आन्दोलन के बीच खालिस्तान के पोस्टर, भिण्डरावाले के चित्र, टुकडे-टुकड़े गंैग, शहरी नक्सलियों के फोटो लेकर उनकी रिहाई की माँग की गई।गत 13 से 18 जनवरी तक पाकिस्तान द्वारा गणतंत्र दिवस पर किसानों की टैªक्टर रैली में बाधा डालने के इरादे 308 ट्विटर अकाउण्ट बनाए। फिर ये कथित किसान गणतंत्र दिवस पर ही परेड क्यांे निकालने की हठ कर रहे हैं और क्यों अपने टैªक्टरों में विशेष तरह के बदलाव करा रहे हैं? आखिर ये क्या करने जा रहे हैं,यह समझना कतई मुश्किल नहीं था। फिर इस किसान आन्दोलन को भड़काने में मदद करने वाले पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्द सिंह स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलकर उन्हें यह आगाह कर गए थे,कि इस आन्दोलन में अराजक तŸव घुस आए हैं,खास एहतियात बरतें। इसके बाद भी दिल्ली पुलिस ने किसान नेताओं की न केवल टैªक्टर परेड निकालने की माँग मंजूर कर ली, बल्कि उनके असल इरादों को भी भांपने में नाकाम रहे। यह तब जब कई टी.वी.चैनल भी स्पष्ट शब्दों में इनके द्वारा हुड़दंग मचाने की आशंका जता रहे थे। केन्द्र सरकार को दिल्ली के लाल किले समेत उन स्थलों की सुरक्षा के पूरी व्यवस्था रखनी थी, जहाँ खासकर खालिस्तानी नेता ने पिछले साल उस शख्स को करोड़ डाॅलर का ईनाम देने का ऐलान किया था ,जो वहाँ खालिस्तान का झण्डा फहराएगा। अब जो होना था,सो हो चुका। लेकिन केन्द्र सरकार को इन उपद्रवियों और देशद्रोहियों को ढूँढ़कर-ढूँढ़कर जेल की सलाखों के पीछे भेजकर नमूने की सजा दिलाये ,ताकि भविष्य में देश के सम्मान कोई ऐसी जुर्रत करने का ख्याल तक अपने दिल में न लाए।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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