राजनीति

औरंगाबाद का नाम बदलने पर ऐतराज क्यों?

साभार सोशल मीडिया

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार

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महाराष्ट्र में ‘औरंगाबाद’ शहर का नाम बदलकर ‘सम्भाजीनगर’किये जाने को लेकर जिस तरह काँग्रेस द्वारा विरोध किया जा रहा है, उसे देखकर यही लगता है कि सत्ता की खातिर उसे न हिन्दुओं की भावनाओं का ख्याल है और न राष्ट्रीय स्वाभिमान का। इस मामले में काँग्रेस का कहना है कि ऐसा करने से समाज में दरार पैदा होने की आशंका है। वैसे सच्चाई यह है कि देश की स्वतंत्र होने के बाद से ही काँग्रेस धार्मिक और सामाजिक सौहार्द बनाये रखने की आड़़ में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति करती आयी है। परिणामतः स्वतंत्र भारत में भी हिन्दू दोयाम दर्जे का नागरिक बना हुआ। अपने पूर्वजों पर जुल्म ढहाने वालों के नाम पर बसे नगरों, कस्बों, गाँवों के नाम उसे क्यों बर्दाश्त करने चाहिए? क्या इसीलिए हिन्दुओं ने आजादी की जंग लड़ी थी कि वे गुलामी के इन कलंकों को कभी न हटा सकें। जहाँ तक मुगल बादशाह औरंगजेब का सम्बन्ध है,तो वह निहायत कट्टरपन्थी मुसलमान था। उसने अपनी हिन्दू प्रजा पर जजिया और तीर्थकर लगाए। उसने हजारों की संख्या में हिन्दुओं के मन्दिर तुड़वाए और हिन्दुओं को तलवार के जोर पर इस्लाम कुबूल करने पर मजबूर किया। वह हिन्दुओं पर जुल्म ढहाने वाले के तौर पर जाना जाता है, पर उसके हिमायती औरंगजेब को अपना ‘मुजाहिद’ (धार्मिक योद्धा, मजहब की हिफाजत के लिए जंग करने वाला) मानते हैं।दरअसल, औरंगजेब अपने देश के इस्लामिक कट्टरपन्थियों का आदर्श है,जो खुद उसके रास्ते पर चलना चाहते हैं। अब महाराष्ट्र सरकार के मंत्रिमण्डल ने औरंगाबद हवाई अड्डे का नाम छत्रपति सम्भाजी महाराज करने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा है।

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वैसे भी जिस समुदाय ने मजहब के आधार पर मुल्क का बँटवारा कराया, वही अल्पसंख्यक बनकर देश में विशेषाधिकार प्राप्त समुदाय बन बैठा है। अब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली ‘महाराष्ट्र विकास अगाड़ी गठबन्धन’ सरकार में सम्मिलित शिवसेना अपने संस्थापक बाला साहब ठाकरे की घोषणा के अनुसार अब जब औरंगाबाद शहर का नाम सम्भाजीनगर करने जा रही है, तो सरकार में शामिल काँग्रेस को यह बर्दाश्त नहीं है। इसकी वजह नाम बदले जाने से उसे मुसलमान मतदाताओं के नाराज होने का डर सता रहा है। ‘महाराष्ट्र नव निर्माण सेना‘(मनसे) ने औरंगाबाद का नाम बदलने के लिए चल रहे अभियानों का समर्थन किया है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में भी इसे लेकर अपना रुख साफ कर दिया है। ‘सामना’ के सम्पादकीय में लिखा है -बाला साहेब ठाकरे ने औरंगाबाद का नाम ‘सम्भाजीनगर कर दिया था और लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया था। लेकिन औरंगाबाद अक्सर राजनीति की वजह से सुर्खियों में बना रहा है। यदि हम शहरी चुनाव क्षेत्र को देखते रहें, यह स्पष्ट हो जाएगा, क्यों राजनीति पार्टियाँ इसे इतनी अहमियत दे रही है और क्यों बार-बार इस शहर के नाम को मुद्दा सामने आ जाता है। दरअसल, औरंगाबाद में सबसे अधिक हिन्दुओं की आबादी है,पर मुसलमान आबादी भी कम नहीं है। शायद यही वजह है कि राजनीतिक मकसद से इसका नाम बदलने का मुद्दा जोर-शोर से उछाला जाता रहा है।
वैसे इतिहास गवाह है कि ‘औरंगाबाद’ शहर का नाम जिस मुगल बादशाह औरंगजेब के नाम पर है, उसने इसकी नींव नहीं रखी थी। इसे बसाने का श्रेय मलिक अम्बर को है,जो अहमद नगर के निजाम का प्रधानमंत्री था। उसने चिकलठाणा की लड़ाई में मुगलों को हराया था। मलिक अम्बर को यह जगह बहुत पसन्द थी। उसने यहाँ खडकी गाँव बसाया। मलिक अम्बर ने यहाँ पर सड़कें , पुल और जलपूर्ति के लिए नहरें बनवायीं। उसने नौखण्डा जैसे महल भी बनवाए। यहाँ तक कि उसने पुर्तगालियों के लिए एक गिरजाघर भी बनवाया।मलिक अम्बर जंजीरा में उसके प्रशासनिक काम के दौरान पुर्तगालियों के सम्पर्क में आए। मुगल बादशाह जहाँगीर ने खडकी पर सन् 1616 में हमला किया और शहर को तहस-नहस कर दिया। इसे फिर से बसने में कई दशक लगे। मलिक अम्बर ने इसे फिर से खड़ा करने की कोशिश की थी। लेकिन सन् 1626 में उसकी मौत हो गई। कुछ सालों बाद मलिक अम्बर के पुत्र फतेहबाद खान कुछ वक्त के लिए खिडकी आया। उसने इस शहर का नया नाम रखा-फतेहनगर। जब मुगल बादशाह शाहजहाँ ने सन् 1636 में औरंगजेब को दक्खन का सूबेदार बना दिया। उस समय इस शहर को दोबारा नाम दिया गया-‘खुजिस्ता बुनियाद। शुरू में कुछ समय तक औरंगजेब दौलताबाद में रहा, लेकिन बाद वह खुजिस्ता बुनियाद चला आया। उसे यह जगह पसन्द आ गई। इसलिए वहाँ रहने के लिए बड़ी तादाद में काॅलोनियाँ बसाई गईं। शहर में बावनपुर बसाये गए। इसकी किलेबन्दी करायी गई। बाद में इसे दक्खन की राजधानी बनने का रूतबा हासिल हुआ। मलिक अम्बर की तरह औरंगजेब ने भी 11 नहरें बनवायीं। कई यात्रियों ने इस शहर को सुन्दरतम बताया है। उन्होंने कहा,‘‘औरंगाबाद का वर्णन एक ऐसे शहर के तौर पर किया गया है,जहाँ हवा में खुशबू से भरी है,जहाँ का पानी अमृत जैसा है। औरंगजेब सन् 1681 में यहाँ आया और फिर उसने कभी भी दक्खन को नहीं छोड़ा। बादशाह औरंगजेब ने यहाँ खुलताबाद में अपने लिए एक सादा मकबरा बनाने और उसके ऊपर तुलसी का पौधा लगाने के लिए कहा था। सन् 1657 के बाद ‘खुजिस्ता बुनियाद’ का नाम ‘‘औरंगाबाद’ पड़ गया। औरंगजेब ने इसका नाम बदल कर ‘औरंगाबाद’कर दिया। औरंगजेब ने सम्भाजी नगर को सोनरी महल में चार महीने तक कैद में रखा था।उनके खिलाफ मुकदमा चला। इसलिए महाराष्ट्र के हिन्दुओं के लिए यह शहर महŸवपूर्ण है।इसलिए वे इसका नाम ‘सम्भाजी नगर’रखना चाहते हैं। मुगल इतिहास में औरंगाबाद को भी लाहौर, दिल्ली और बुरहान के बराबर ही महŸव प्राप्त था। सामान्यतः औरंगाबाद का ज्ञात इतिहास सिर्फ यादव वंश तक ही समिति रहा है, लेकिन यहाँ सातवहन काल के समय के प्रमाण हैं। ‘‘कन्हेरी की गुफाओं में जो अभिलेख हैं,उनमें सातवाहनों ने औरंगाबाद का उल्लेख ‘राजतदाग’ के रूप में किया गया है। वस्तुतः ये एक व्यापारिक मार्ग पर बसा महŸवपूर्ण शहर था, जो उज्जैन-महिष्मति-बुरहानपुर-अंजता, भोकारदन-राजतदाग प्रतिष्ठान-टेर होकर गुजरता था। यादव वंश के शासन के दौरान ‘देवगिरि‘ यानी दौलताबाद एक प्रमुख जगह बन गई थी।
मुहम्मद बिन तुगलक अपनी राजधानी के दिल्ली से दौलताबाद(देवगिरि) को ले जाना चाहता था। इसलिए उसने रास्ते में कई जगहों पर सराय, कुएँ और मस्जिदें बनवायीं।ऐसा ही एक जगह थी औरंगाबाद। तुगलक ने औरंगाबाद में एक जगह एक मस्जिद, कुआँ और सराय बनवायी। आज उस जगह ‘जूना बाजार’ कहा जाता है। उन्होंने बताया कि पहले इसे ‘जौना बाजार’ कहा जाता था, क्योंकि मुहम्मद बिन तुगलक का एक नाम ‘जौना खान’ भी था। यही जौना बाजार अब ‘‘जूना बाजार’’ हो गया है। सन् 1988में औरंगाबाद नगरपालिका के चुनाव में शिवसेना को 27सीटें मिली थीं।इसके बाद बाला साहब ठाकरे ने सांस्कृतिक मण्डल मैदान पर आयोजित विजय रैली को सम्बोधित करते हुए औरंगाबाद का नाम सम्भाजीनगर रखा था। सन् 1996 में शिवसेना-भाजपा मंत्रिमण्डल ने सम्भाजीनगर को मंजूरी दे दी थी। सन् 1996 में तत्कालीन भाजपा-शिवसेना की गठबन्धन की राज्य ने एक अधिसूचना जारी कर कहा था कि औरंगाबाद का नाम बदलकर सम्भाजी करने के बाद में अगर कोई व्यक्ति आपत्ति दर्ज करना चाहता है, तो वह करा सकता है। हमने इस अधिसूचना में नाम बदलने के फैसले को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में अपील दायर की,लेकिन न्यायालय ने यह कहकर याचिका ठुकरा दिया कि मामला अभी अधिसूचना तक सीमित है। अपील प्री-मैच्योर है।
मुश्ताक ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। सर्वोच्च न्यायालय याचिका स्वीकार कर ली और राज्य सरकार को फटकार लगाई। एक न्यायाधीश ने राज्य सरकार को यह कहते हुए झिड़का कि शहरों के नाम बदलने के बजाय उनके विकास पर ध्यान देना चाहिए। लेकिन मामले की सुनवाई से पहले राज्य में काँग्रेस-एन.सी.पी.गठबन्धन की सरकार आ गई। मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने औरंगाबाद का नाम सम्भाजीनगर करने की अधिसूचना रद्द कर दी, इससे सर्वोच्च न्यायालय में दायर हमारी याचिका स्वाभाविक रूप से खारिज हो गई। अब देखना यह है कि शिवसेना अपने संस्थापक बाला साहब ठाकरे की अधूरी इच्छा को पूरा करा पाती है या नहीं?लेकिन एक सवाल इस देश के उन मुसलमानों से है, जो अब भी उन कट्टरपन्थी इस्लामिक हमलावरों और शासकों को अपना रहनुमा समझते और मानते हैं, जिन्होंने हिन्दुओं और तत्कालीन मुसलमान शासकों का खून बहाया था। साथ ही हिन्दुओं को तलवार के जोर पर इस्लाम कुबूल कराया। उनमें इन मुसलमानों के भी पूर्वज रहे होंगे। यह जानते-बूझते हुए भी, पता नहीं क्यों? उन्हें औरंगजेब में अपना आदर्श दिखाई देता, दाराशिकोह में नहीं। अब समय आ गया है, जब देश के हिन्दुओं को इन जुल्मी हत्यारे हमलावरों और बादशाहों के नाम पर रखी जगहों के नाम हटाने को आगे आना होगा, ताकि इन कलंक के टीकों हटाया जा सके। इन्हें दुनिया की कोई भी कौम बर्दाश्त नहीं करती।

सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

 

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