डाॅ.बचन सिंह सिकरवार

अन्ततः सऊदी अरब कतर के अमीर के लिए अपनी सीमाएँ खोले जाने को लेकर जाने का खुशी-खुशी रजामन्द हो गया। सऊदी अरब की राजधानी रियाद में आयोजित खाड़ी के नेताओं के वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने आए अमीर का क्राउन प्रिन्स ने गले लगाकर स्वागत किया। यह सब देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि अरब के देशों के राजनीति अब बदल रही है। कल तक जो जानी दुश्मन थे, अब दोस्त बन रह रहे हैं,उनके बीच खड़ी बन्दिशों की दीवारें लगातर ढह रही हैं। गत वर्ष 11सितम्बर को बहरीन ने इजरायल से राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किये। इससे पहले 13 अगस्त को संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई), 1994 में जाॅर्डन और 1979 में मिस्र ने इजरायल से शान्ति समझौता किये थे,जो कभी इनका कट्टर दुश्मन हुआ करता था। अब सऊदी अरब और उसके दोस्त मुल्क बहरीन,यू.ए.ई.मिस्र कतर के खिलाफ लगाईं बन्दिशें हटाईं हैं। लेकिन सच्चाई यह भी है कि ये सब खुद ब खुद नहीं हुआ है, बल्कि इस कामयाबी के पीछे अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन के अधिकारियों की कोशिशंे हंै। गत सप्ताह ट्रम्प के दामाद और उनके सलाहकार जरेड कुश्नर सऊदी अरब तथा कतर में थे, ताकि गतिरोध को खत्म किया जा सके। वाइट हाउस चाहता है कि ट्रम्प के सत्ता छोड़ने से पहले पश्चिम एशिया में उन्हें अन्तिम राजनयिक सफलता मिल जाए। कहा जा रहा है कि प्राथमिक समझौते के तहत सऊदी अरब कतर के विमानों को अपने हवाई क्षेत्र से जाने की इजाजत दे। इसके बदले में कतर सऊदी अरब के खिलाफ अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में दायर मुकदमे वापस लेगा।
इधर गत 5जनवरी को रियाद आने पहले दोनों देशों ने सभी तरह की सीमाएँ खोलने की ऐलान करके रिश्तों का सामान्य बनाने की दिशा में पहला बड़ा कदम उठाया था। जून, 2017 को चार पड़ोसी मुल्कों सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.),बहरीन और मिस्र ने कतर से राजनयिक, कारोबारी एवं यात्रा सम्बन्धों पर बन्दिशें/रोक लगा दी थी। यही नहीं, सऊदी अरब ने कतर के खिलाफ नाकेबन्दी शुरू कर दी। इन देशों ने कतर पर दहशतगर्दी की हिमायत और इमदाद देने का आरोप लगाया था, लेकिन कतर ने इस इल्जाम को खारिज कर दिया। वैसे हकीकत यह है कि कतर तुर्की, पाकिस्तान, मलेशिया, ईरान आदि के साथ खड़ा हैं, जो आजकल दुनिया में इस्लामिक कट्टरपन्थ का परचम(झण्डा) उठाए घूम रहे हैं। इनमें तुर्की सऊदी अरब की जगह खुद को इस्लामिक मुल्कों का खलीफा होने का ओहदा हासिल करना चाहता है,जो इस वक्त सऊदी अरब के पास है। सऊदी अरब इन मुल्कों इस हरकत के सख्त खिलाफ है। इधर नाकेबन्दी के बाद से कतर की मुश्किलें बढ़नी तय थीं, क्योंकि बहिष्कार से पहले कतर के कुल आयात का 60 फीसदी हिस्सा इन चार मुल्कों के जरिए होता था, जो अभी इसके खिलाफ खड़े हैं। वह पहले पड़ोसी मुल्क के दुबई तथा दूसरे बन्दरगाहों पर आता था। फिर उसे छोटे-छोटे वाहनों के जरिए कतर लाया जाता था। कतर का ज्यादातर आयात सऊदी अरब आदि के रास्ते से होता था। कतर में आयात होने वाली वस्तुओं में सबसे ज्यादा खाद्य सामग्री हुआ करती थी। इसलिए उसे तुर्की और ईरान के जरिए अपनी वैकल्पिक आपूर्ति सुरक्षित करने के लिए तेजी से काम करना पड़ा है। कतर को पेट भरने के लिए घरेलू उत्पादन में भी तेजी से बढ़ोत्तरी करनी पड़ी।
नाकेबन्दी के समय कतर के लोगों को दो कठिनाइयों से जूझना पड़ा। पहली बात यह है कि उन्हें दुनिया को यह समझाना था कि वह ओसामा बिन लादेन जैसे दुर्दांत दहशतगर्दों की किसी तरह की इमदाद(मदद) नहीं देता है और दूसरा की उसकी अर्थव्यवस्था मजबूत है। उनका मुल्क निवेश के लिए अच्छी जगह है। उन्हें यह भी साबित करना था कि कतर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफ.डी.आई.)के लिए आसान और बेहतर हालात पैदा कर रहा है। इन सभी चार देशों ने कतर से 13 माँगें की थीं, जिनमें ईरान के साथ आर्थिक सहयोग खत्म करने और अल-जजीरा चैनल को बन्द करने की माँग भी शामिल है। कतर ने इन सभी माँगों को पूरा करने से मना कर दिया।
वैसे कतर अभी यह बताने की कोशिश कर रहा है कि उसकी अर्थव्यस्था निवेश के लिए खुली है, तो फिर देश आर्थिक बहिष्कार का समाना करने के लिए कितना सक्षम है। यहाँ तक कि देश को बाहर से गायों को मँगाना पड़ा, ताकि दूध की आपूर्ति हो सके। कतर सरकार ने इस असाधारण संकट से निपटने के लिए उम्मीद से बहुत बेहतर काम किया है। नाकाबन्दी से लोगों के जीवन को प्रभावित नहीं होने दिया है। नाकाबन्दी ने हमारी भावना को प्रभावित किया है, लेकिन हमारे व्यापार करने की क्षमता को नहीं। यह दुनिया का सबसे ज्यादा लिक्विफाइड नेचुरल गैसा निर्यात करता है। सन् 2017 में इसने 81मिलियन टन गैस का निर्यात किया था, पर सरकार ने गैस निर्यात पर कम्पनियों को ज्यादा तरजीह देने को कहा था। कतर का कहना है कि यह तरजीह नाकाबन्दी से किसी तरह से जुड़ी नहीं है। कतर में हाइड्रो कार्बन का विशाल भण्डार है, जो नाकाबन्दी की हालत में भी इसके आार्थिक रूप से मजबूती प्रदान करता रहा। सन् 2017में देश की आर्थिक विकास 1.6प्रतिशत बढ़ा है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक कतर की अर्थव्यवस्था सन् 2018में यह 2.4फीसदी और 2019में 3.1फीसदी तक बढ़ी।
हकीकत यह है कतर के लिए नाकेबन्दी का मुकाबला करन आसान नहीं था,पर वक्त ने उसका साथ दिया। महज तीन महीने बाद सितम्बर, सन् 2017में इसका 740अरब (बिलियन) डाॅलर से बना ‘हमद बन्दरगाह की शुरू हो गया। यहाँ पर बड़ी तादाद में जहाज भी आने लगे। नाकेबन्दी की भीषण समस्या से निपटने के लिए कतर ने पहले खाड़ी इलाके के बाहरी देशों से आर्थिक सम्बन्ध बढ़ाने के प्रयास शुरू कर दिये। विशेष रूप से अमेरिका के साथ अपने रिश्ते सुधारे और बढ़ाये। इनका वेबसाइट के माध्यम से प्रचार किया। कतर एयरवेज की अमेरिकी विमान कम्पनी बोइंग और दूसरे क्षेत्रों में किये गए निवेश पर प्रकाश डाला गया। कतर के अधिकारी जर्मनी से भी आर्थिक सम्बन्ध मजबूत बनाने में जुट गए। कतर इन्वेस्टमेण्ट फण्ड के अल रयान के वरिष्ठ निदेशक अकबर खान कहते हैं,‘‘राजनयिक और आर्थिक सम्बन्धों की शुरुआत एक नया कतर बनाने की योजना का हिस्सा है,जिसका मकसद खाड़ी के बाहर दुनिया से बेहतर सम्बन्ध स्थापित करना है। हमारा मकसद यह बताना था कि हमारा व्यापार नाकाबन्दी के बावजूद जैसा था, वैसा ही है।’’ व्यापार दोनों तरफ होता है। सिर्फ यह दर्शाने के लिए है कि कतर आर्थिक रूप से मजबूत है, बल्कि यहाँ विदेशी कम्पनियों के निवेश के बेहतर और बढ़ते अवसर मौजूद हैं। विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए कतर की सरकार ने कई आार्थिक सुधारों की घोषणा की है। इसमें मजदूरी कानून, निजीकरण ,विशेष आर्थिक क्षेत्र और विदेशी स्वामित्व की सीमा में बदलाव किये गए हैं।
इससे पहले कतर के विदेशमंत्री शेख मुहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल थानी ने कहा था कि ‘कुछ हरकत’ हुई है और हम उम्मीद करते हैं कि संकट का खत्म होगा। उन्होंने कहा ,‘‘हम देखते और वास्तव में मानते हैं कि इलाके की सूरत, स्थिरता और हमारे लोगों के हित के लिए खाड़ी के मुल्कों की एकजुटता बहुत जरूरी है। इसके लिए बिना वजह के इस संकट को खत्म करना होगा।’’ कतर अरब प्रायद्वीप के उत्तर-पूर्वी तट पर स्थित एक छोटा प्रायद्वीप है।यह 160किलो मीटर लम्बी जीभ के आकार की भूमि है जिसकी नोंक फारस (अरब) की खाड़ी को छूती है।इसके दक्षिण में सऊदी अरब है। यह लगभग तीन ओर से फारस की खाड़ी को छूती है। कतर’नाम आज के ‘जुबारा’ नामक शहर के प्राचीन नाम ‘कतरा‘से उत्पन्न हुआ है,जो प्राचीन काल में क्षेत्र का महŸवपूर्ण बन्दरगाह और शहर था।‘कतरा’शब्द पोटोल्मी द्वारा बनाए गए अरब प्रायद्वीप के मानचित्र पर पहली बार दिखायी दिया। इसका क्षेत्रफल 11,437वर्गकिलोमीटर तथा राजधानी-दोहा है। इस मुल्क की आबादी 16,96,563से अधिक है,जो इस्लाम को मानती है। यहाँ के लोग अरबी, अँग्रेजी बोलते हैं। इस मुल्क की मुद्रा -रियाल है। एक तेल समृद्ध राष्ट्र है। सन् 1783 में कुवैत के अल खलीफा वंश ने यहाँ शासन करना शुरू किया। उसके बाद यह तुर्की के अधीन रहा। प्रथम विश्व युद्ध के बाद यह ब्रिटेन के संरक्षण में रहा। सन् 1971 में स्वतंत्रता मिलने के बाद सन् 1972 में खलीफा बिन हमद का शासन प्रारम्भ हुआ। 3सितम्बर, 1971 में ब्रिटेन ने जब फारस की खाड़ी से अपना आधिपत्य समाप्त कर दिया,तो कतर स्वतंत्र हुआ। कतर मंे पूर्ण राजतंत्र है। यहाँ की ज्यादातर आबादी दोहा में और इसके आसपास ही रहती है। अब पाकिस्तान, ईरान और ओमानके प्रवासियों की संख्या मूल कतरवासियों से ज्यादा है। तेल उद्योग से राष्ट्रीय अयाय का 90प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा आता है,लेकिन इसमें आबादी का केवल 5प्रतिशत भाग ही काम करता है। अब कतर सड़क मार्ग से शेष अरब क्षेत्र से तथा वायुमार्ग द्वारा विश्व से जुड़ा है। मई,1998 में अमीर ने घोषणा की कि कतर अगली शताब्दी के प्रारम्भ में लोकतंत्र को अपनायेगा और कुवैती लोकतंत्र की तरह हो जाएगा। 1999में महिला दिवस के अवसर पर खाड़ी देशों में पहली बार यहाँ महिलाओं ने स्थानीय परिषद के चुनाव के चुनावों में मतदान में हिस्सा लिया। कतर की एक महिला म्युनिसिपल कौंसिल की निर्वाचित सदस्य बनी,यह खाड़ी क्षे़़़त्र में पहली बार हुआ। उमर ने अपने छोटे बेटे को युवराज घोषित किया। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने घोषणापत्र में अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के साथ-साथ पश्चिम एशिया में शान्ति स्थापित करना शामिल था।इसलिए वह तालिबान जैसे घोषित दहशतगर्द संगठन से समझौता करने को मजबूर हुए। अब कतर और उसके पड़ोसी मुल्कों के बीच सुलह कराने के पीछे सबसे बड़ी वजह कतर को ईरान और तुर्की को अलग-थलग करना भी है,जो अमेरिका को चुनौती दे रहे हंै।देखना यह है कि अमेरिका की इस कूटनीति कामयाबी कब तक कायम रहती है?
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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