डाॅ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रान्त के करक जिले के टेरी गाँव में इस्लामिक कट्टरपन्थियों द्वारा जिस तरह प्राचीन हिन्दू मन्दिर की तोड़फोड़,ढहाने और आग लगाने के साथ-साथ सन्त की समाधि का अपमान किया गया, वह पाकिस्तान समेत दुनियाभर के हिन्दुओं के लिए अत्यन्त दुःखद और आघातकारी है। इसे लेकर उनमें भारी आक्रोश है। इस वारदात को अंजाम देने वाले मजहबी उन्मादियों की जितनी निन्दनीय की जाए, वह कम ही होगी। भारत के विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तानी उच्चायुक्त को बुलाकर कड़ा विरोध तथा गम्भीर चिन्ता जतायी है। इस मामले के दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की है। पाकिस्तान में भी इस वारदात की मानवाधिकार और हिन्दू संगठनों ने कड़ी निन्दा की है। मानवाधिकारों के संसदीय सचिव लाल चन्द माल्ही ने भी मन्दिर पर हमले की सख्त मज़्ाम्मत की है। उन्होंने कहा कि कुछ पार्टियाँ समाज विरोधी गतिविधियों में सक्रिय हैं। अपने देश में जम्मू-कश्मीर में डोगरा फ्रण्ट समेत अनेक हिन्दू संगठनों ने अपना कड़ा विरोध जताया है। लेकिन इस मामले में भी अपने देश के उन कथित सेक्युलर सियासी पार्टियों के नेताओं और मुल्ला-मौलानाओं की बोलती बन्द है, जिन्हंे आए दिन मामूली-सी बातों में भी मुसलमानों पर हिन्दुओं के जुल्म, गैरबराबरी, बेइंसाफी नजर आती है। जहाँ तक पाकिस्तान में मन्दिर तोड़े जाने की बात है ,वहाँ पिछले सत्तर सालों में हजारों की तादाद में मन्दिर या तो पूरी तर जमींदोज कर दिये गए हंै या फिर उनकी मूर्तियाँ तोड़कर या दूसरे तरीके से अपवित्र कर दिये गए हैं। गत वर्ष ही कट्टरपन्थियों ने न सिर्फ मन्दिर के निर्माण को रुकवा दिया, बल्कि उसके निर्माण के लिए लायी गई सामग्री भी लूट ली। पाकिस्तान में ये इस्लामिक कट्टरपन्थी गैर इस्लामिक लोगों पर ही नहीं, इस्लाम मानने वालों पर जुल्म ढहाने में पीछे नहीं हैं। इन्होंने जहाँ अहमदिया, कादियानी, इस्मायली आदि को इस्लाम से खारिज कर दिया है, तो शियाओं के साथ हर तरह का भेदभाव किया जाता है। इन्हें भी पाक में दोयाम दर्जे का मुसलमान समझा जाता है, पर हैरानी की बात यह है कि भारत में शिया मुसलमान भी अक्सर खामोश ही रहते हैं ।
हाँलाकि अब पाकिस्तान में स्थानीय पुलिस ने भी 350से ज्यादा मन्दिर ध्वंस्त करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है, उनमें से 30 को गिरपतार भी किया जा चुका है। स्थानीय प्रशासन ने भी मन्दिर को फिर से बनवाने का भरोसा भी दिलाया है, लेकिन वह अपना वादा पूरा कर पाएगा,उस पर शायद ही किसी को यकीन होगा।

वैसे भी पाकिस्तान अपने जन्म से गैर मुसलमानों के लिए नर्क बना हुआ है, जहाँ कट्टरपन्थी उन पर हर तरह के जुल्म-सितम ढहाते आए हैं। इसमें उन्हें मुल्ला-मौलवियों का प्रत्यक्ष और सरकार और अदालतों का परोक्ष साथ हासिल रहता है। आज नतीजा यह है कि पाकिस्तान के गठन से वक्त गैर मुस्लिमों की 25 फीसदी के करीब आबादी थी,जो अब घट कर 3.6फीसद से भी कम रह गई है, जबकि इसकी कुल आबादी 22करोड़ है। यहाँ तक कि जो मुसलमान भारत को छोड़कर अपने नए हममजहबी मुल्क पाकिस्तान गए थे, उन्हें भी ये लोग हिकारत से ‘मुजाहिर’कहते हैं।
इसी 30दिसम्बर को 350से ज्यादा इस्लामिक कट्टरपन्थियों ने टेरी गाँव में स्थित प्राचीन मन्दिर में पहले जमकर तोड़फोड़ की फिर उसमें आग लगा दी। इस मन्दिर का पुनरुद्धार किया जा रहा था। इन हमलावारों में से ज्यादातर देवबन्दी सुन्नी मुस्लिमों की समर्थक ‘जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम पार्टी’ के समर्थक थे। इनमें ‘जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-फजल’(जेयूआइ-एफ) पार्टी का स्थानीय नेता रहमत इस्लाम खटक भी था। घटना के दिन पहले ‘जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-फजल पार्टी’ की ओर से आयोजित रैली में वक्ताओं ने भड़काऊ बयान देने के बाद नारेबाजी करती भीड़ ने मन्दिर पर हमला कर दिया। हालाँकि हमले के बाद इस पार्टी के नेता आमिर मौलाना अतौर रहमान ने सफाई देते हुए कहा कि इस हमले में उनकी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल, करक जिले में हिन्दुओं ने स्थानीय निकाय मंे एक मन्दिर के विस्तार के लिए इजाजत माँगी थी। इससे कट्टरपन्थी बौखला गए। वैसे भी प्रधानमंत्री इमरान खान के गृह प्रान्त खैबर पख्तूनख्वा जिले करक जिले टेरी गाँव में हिन्दुओं के दो-चार घर ही हैं, जिन्होंने सत्ता में आने से पहले चुनावी रैलियों में अकल्लियत(अल्पसंख्यक) की हिफाजत करने का वादा किया था।इसमें वह नाकाम रहे हैं। यही वजह है कि कोई दिन ऐसा नहीं जाता है,जिस दिन गैर मुसलमानों पर जुल्म नहीं होता। इसी दिसम्बर माह में 14साल की किशोरी नेहा को ईसाई से इस्लाम कुबूल करने के लिए मजबूर किया गया। उसके बाद दो बच्चे के बाप 45 वर्षीय एक आदमी से निकाह कर दिया गया। फिलहाल, दुष्कर्म के मामले में उनका कथित शौहर जेल में है, पर देवर द्वारा अदालत मंे हमला किये जाने की कोशिश के चलते वह डरी हुई है। नवम्बर माह में भी ईसाई किशोरी आरजू रजा का अपहरण कर जबरन मजहब बदलवाया गया, जिसमें बाद में अदालत में पेश किया गया।
हाल ही में अमेरिका ने धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के मामले में पाकिस्तान को विशेष चिन्ता वाले मुल्कों की सूची में डाला है। दक्षिण सिन्ध प्रान्त की हिन्दू युवतियों को जबरन इस्लाम कुबूल कराके निकाह कराने की खबर आम हैं, लेकिन हाल ही में मतान्तरण कराकर निकाह कराने के मामले ने तूल पकड़ लिया है। पाकिस्तान में अकल्लियत(अल्पसंख्यक समुदाय) से ताल्लुक रखने वाली एक हजार लड़कियों को हर साल इस्लाम कुबूल कराने के लिए मजबूर किया जाता है। मानवाधिकार कार्यकर्ता के मुताबिक लाॅकडाउन के दौरान इसमें तेजी आयी है,क्योंकि ज्यादातर गरीब परिवार कर्जे के दलदल में फँस गए हैं।
इधर पाकिस्तान की संसदीय समिति भी गत 30 अक्टूबर को अपने यहाँ लम्बे समय से चले रहे जुल्मों और मजहब बदलवाने के मामलों पर मुहर लगा चुकी है।उसने माना है कि सरकार धार्मिक अल्पसंख्यक की हिफाजत करने में नाकाम रही है। सीनेटर अनवारुल हक काकर की अध्यक्षता में गठित समिति ने जबरिया मजहब बदलवाने मामले के सम्बन्ध में सिन्ध प्रान्त के कई इलाकों का दौरा किया। इस इलाके में बड़े पैमाने पर हिन्दू लड़कियों का धर्म परिवर्तन और अत्याचार की घटनाएँ हो रही हैं। सरकार ने जबरियों धर्म परिवर्तन के मामलों में किसी भी तरह की जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं किया। सरकार पूरी तरह इन मामलों को रोकने में विफल रही है।अधिकतर में सीधे तौर पर मजहब बदलने के हैं। कुछ मामलों में दलील दी जाती है कि यह काम इन लड़कियों के जीवन स्तर में बेहतर बनाने के लिए किये हैं। लेकिन ऐसा नहीं माना जा सकता है। ऐसे सभी मामले बदलने के ही हैं। आर्थिक आधार या लालच देकर किया गया कार्य भी जबरिया धर्म परिवर्तन की श्रेणी में आता है। संसदीय समिति ने यह भी कहा कि अत्याचार के साथ ही हिन्दू लड़कियों के यहाँ से ले जाने के लिए कई तरह के लालच दिये जाते हैं। जो लोग ये हरकतें करते हैं। उनको सोचना चाहिए कि क्या वे अपनी लड़कियों के साथ भी ऐसा होना पसन्द करेंगे। इन घटनाओं का शर्मनाक पहलू है कि ऐसे घिनौने कार्य करने वाले इन लड़कियों के परिवार वालों के दर्द और इज्जत-आबरू का भी खयाल नहीं रख रहें। सीमित का मानना है कि पीड़ित परिवारों का भरोसा हासिल करना हम सबके लिए बहुत जरूरी है। समिति ने सुझाव दिया है कि जहाँ पर हिन्दू लड़कियाँ का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है, वहाँ पर जिला प्रशासन कोे नियमों में परिवर्तन करना चाहिए। किसी भी लड़की के विवाह में उसके वली(माता-पिता या संरक्षक)की उपस्थिति और रजामंदी आवश्यक होनी चाहिए। जिला प्रशासन को ऐसी लड़कियों को स्पष्ट रूप से समझना चाहिए कि जबरन और मर्जी से निकाह में क्या फर्क है। नाबालिग लड़कियों के मामलों में जिला प्रशासन का जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है। संसदीय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर मामले संगर, घोटकी, सक्कर, खैरपुर, मीरपुर खास और खैबर पख्तूनख्वा के हैं। पंजाब के कुछ हिस्से में ईसाई युवतियों के मामले सामने आए हैं। इसके बावजूद इस्लामी रहनुमा अपने मजहब को अमन-चैन, इन्साफ और इन्सानियत पसन्द बताते नहीं थकते और पाकिस्तान भारत पर जम्मू-कश्मीर समेत पूरे मुल्क में मुसलमानों के साथ जुल्मों और बेइंसाफी होने का ढिंढोरा पीटता रहता है। अब देखना यह है कि भारत सरकार के विरोध के बाद पाकिस्तान की सरकार अपने हिन्दू, सिख, ईसाई नागरिकों की सुरक्षा करने में कहाँ तक कामयाब होती है?
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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