सिर-दाढ़ी के खिचड़ी बार,
स्कूटर पर सदा सवार,
धुँआधार बेधड़क विचार,
आत्मीयता अतुल्यागार ।
असहमत और भिन्न विचार वाक् भिड़न्त को सदैव तत्पर -तैयार ,
फिर भी उसके साथ मैत्री सरोवर में रास रचाने को कछोटा काँछे तैयार।
दो टूक सीधे-सपाट वक्तव्य,निपट मन्तव्य।
सोच समझ जुझारू ,
अदायें -अंगड़ाइयाँ मारू,
गुपतगू और मौन संलाप दुधारू।
आन-बान-शान पर मरने-मारने पर उतारू।
विकट विनम्र , चालीसों पर चकाचक और चैंधियाती उम्र।
हर तिजारत में नजाकत और नफासत।
अद्भुत अकड़ भी, आदमियत अलबेली पकड़ भी,
सम्पर्कियों पर जादूमयी पकड़ भी,

मानव सेवा सुश्रुषा की स्परणीय स्पृहरणीयं
अनगढ़ कामना कमनीय और सुदृढ़ भी।
सेवाशील, अध्ययन-मननशील ,
बुद्धिजीवियों -खोजिये से सम्पर्क साधने में प्रयत्नशील ,
अपना प्रगति पंथ गढ़ने मढ़ने में अनवरत उद्यमशील ।
बहुआयामी जडखोदा जानकारियों के एलबम।
अगम पर चलाने -चलने की दमखम।
काग चेष्टा, बकोध्यान, अर्जुन की तरह
पक्षी की और मीनाक्ष पर एकटक अविचल ध्यान।
कभी ‘रद पट फरकत नयन रिसौहें ’
जैसा भयदा आतंक अलंकृत मुखड़ा,
कभी सघन श्याम घन घटाओं से चमकता
अद्वितीय नमनीय चाँद का टुकड़ा ।
खिड़कीयाओं के वातायान ,
प्रमदाओं से पला मन,
साडकीयायों के रसायन,
आदतन अदाभरी मर्म भेदी मुस्कान पर गृगनयनियाँ मेहरबान।
श्रमसेवी कृतित्व, भरत जैसा मनभावन व्यक्तित्व,
हँसकर मिलने वाले,
मिलने पर भारी भीड़ में लपकर बाहुपाश में कसलेने वाले,
‘मिलना है तो जीवन भरको मिल,
पलभर की बात नहीं मानूँगा।
नटखट नयनों से गुनगुनाने वाले।
लगलगी ‘ये तीनो पतरे भले -तीर-वीर तलवार को दुहराती-बलखाती पिण्डी,
राजमार्ग बन जाय गाँव की हर पगडण्डी ,
अलख जगावात लेकर डण्डी।
काँग्रेसी कामरेड ,सर्वोदयी सेवक,
हिन्दुत्व ‘हिंसा से दूर ‘=हिन्दू के समर्थक लोकदली ,
जय बजरंगबली, जिधर जाएँ,
मच जाय खलबली ।
नेता कम, अभिनेता ज्यादा,
पर अभिनय का नहीं इरादा,
जीवन यापन सीधा-सादा,
जाग-जगायें दिली इरादा।’
शंकर भी, भयंकर भी सिंह भी ,निहंग भी,
बहु आयामी व्यक्तित्व के सदा बहार रंग-ढंग भी।’
सहज स्वाभिमानी, ज्ञानी गुरुओं और प्रतिभा -पुत्र गुणज्ञों को
निराभिमानी बन लपक लेते अगवानी।
‘‘चाकर चतुर के हैं, सेवक गुनीजन के,
‘हरीचन्द’ नकद दमाद अभिमानी के ’’ की चलते-फिरते जीवन्त निशानी।
देहली में जाय, गाँव -देहली भुलाय,
होना चरणागत नहीं भूल दिल्ली दीवानी के।
दस्युओं की दस्युवृत्ति लूट लेने वाले
सर्वोदयी समाजवादी महावीर भाई के अभिन्न ,
परन्तु विभेदक सर्वोदयी और उनकी वृत्ति पर खिन्न शुद्ध आध्यात्मिक समाजवादी।
मूलतः रघुवंशी, बजाते कृष्ण क्रीड़ा क्षेत्र-बृजमण्डल में गोप-गोपियों के साथ
सबको रिझाने वाली सार्वभौमिक बंशी।
‘तेजसां न वय समीक्ष्यते’का स्मरण कराते,
‘तेजवन्त लघु गनिय न रानी,
का पाठ पढ़ाते गौरी शंकर काँटा लगे न कंकर ,
बढ़ते रहो बने अभ्यंकर ,
गौरी के शंकर, शंकर के सिंह ,
गौरी शंकर सिंह! ! सिकरवार! ।
बड़ी देर भई , पर नमन करो स्वीकार!
गौरी शंकर शिखर के , समीपस्त ध्यानस्त।
पार्वती कामनाएँ, पूरी करो मनस्थ।
आपका अपना औघढ़……..
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