देश-दुनिया

भारी पड़ेगी पाक पर करीमा बलूच की मौत

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों कनाडा के टोरण्टो शहर में पाकिस्तान के बलूचिस्तान में सरकार तथा सेना के जुल्मों के खिलाफ दुनिया के विभिन्न देशों समेत अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठाने वाली चर्चित जुझारू नेता करीमा बलूच का अपहरण करने के तीन दिन बाद उनकी नृशंस हत्या किये जाने के पीछे भले ही किसका हाथ अभी पता नही चला है, लेकिन बलूच पूरे यकीन के साथ अपनी इस रहनुमा के कत्ल के लिए पाकिस्तान की कुख्यात गुप्तचर एजेन्सी ‘आइएसआइ’ को जिम्मेदार बता रहे हैं। वह जहाँ बलूचों की आजादी के उम्मीद का मशाल थीं, तो वहीं एक अर्से से पाकिस्तान की आँखों की किरकिरी बनी हुई थीं। इससे दुनियाभर में पाकिस्तान की बदनामी हो रही थी। इसलिए वह करीमा बलूच समेत ऐसे दूसरे बलूच नेताओं की जुबान को खामोश करने के लिए उनकी जान लेने की कोशिशों में लगा है। इस हकीकत से ये नेता भी अनजान नहीं थे। करीमा बलूच की मौत के बाद ‘बलूच पीपुल्स काँग्रेस‘ की अध्यक्ष नायला कादरी बलूच ने भी यही आरोप लगाया है कि यह सुनियोजित हत्या है। इसके लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी जिम्मेदार है।
करीमा बलूच को सन् 2016 में विश्व की सर्वाधिक शक्तिशाली 100 महिलाओं में शामिल किया गया था, जो कोई मामूली बात नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में एक जोरदार भाषण में बलूचियों पर पाक सेना द्वारा किये जा रहे जुल्मों का खुलासा किया था। वह भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भाई मानती थीं। सन् 2016 में रक्षाबन्धन पर उन्होंने मोदी से बलूचों की सहायता करने की मार्मिक अपील की थी। तब उन्होंने कहा था कि बलूचिस्तान में हजारों भाई लापता हैं। लापता भाइयों की सभी बहनें एक भाई होने के नाते आप से उम्मीद रखती हैं। बाद में इसके प्रत्युत्तर में मोदी ने भी 15 अगस्त के अपने सम्बोधन में बलूचों पर हो रहे अत्याचारों का उल्लेख किया था। करीमा बलूच की मौत के बाद न केवल पूरे बलूचिस्तान में विरोध प्रदर्शनों की बाढ-सी़ आ गई, बल्कि दुनिया में जहाँ कहीं भी बलूच रहते हैं, वहीं वे विरोध

साभार सोशल मीडिया

जताने निकल पड़े। टोरण्टो में 22 दिसम्बर को करीमा बलूच के एक झील के किनारे पानी में मृत मिलने के बाद अभी तक हत्या का कोई सुराग न मिलने पर 25 दिसम्बर को बलूचों ने पुलिस मुख्यालय पर विरोध प्रदर्शन किया।
बलूचिस्तान पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है जिसका क्षेत्रफल पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रफल का 44 प्रतिशत है। इसका मतलब यह है कि यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रान्त है। यह प्रान्त प्राकृतिक गैस तथा कई तरह के बहुमूल्य खनिजों से समृद्ध है। इसकी सीमा ईरान के सिस्तान तथा बलूचिस्तान प्रान्त तथा अफगानिस्तान से भी जुड़ती हैं। बलूचिस्तान प्रान्त की राजधानी क्वेटा है। यहाँ पाकिस्तान की महज 5फीसद आबादी ही रहती है। यहाँ के लोगों की प्रमुख भाषा ‘बलूच’या ‘बलूची’ है।
बलूचिस्तान अपने पाकिस्तान में जबरन विलय के बाद से अपनी उपेक्षा और भेदभाव का शिकार बना हुआ है।पाकिस्तान की सरकार यहाँ के लोगों के साथ शुरुआत दोयाम दर्जे के नागरिकों जैसा सलूक करती है पाकिस्तान यहाँ की प्राकृतिक गैस का दोहन कर पूरे मुल्क को उसकी आपूर्ति करता है,पर यही गैस बलूचों को नहीं मिलती। वह प्राकृतिक गैस तथा खनिजों का उत्खनन करता है, लेकिन उससे होने वाली आय में से उसे कुछ नहीं देता। यही कारण है कि बलूचिस्तान पाकिस्तान का सभी मामलों में सबसे पिछड़ा सूबा है। यहाँ के लोग बेहद गरीबी में जिन्दगी बसर करने को मजबूर हैं। पाकिस्तान सरकार की इसी अनीति के विरुद्ध बलूच दशकों से संघर्षरत हैं। परिणामतः पाकिस्तानी सेना उन पर हर तरह के जुल्म ढहाती रहती है। हजारों युवकों तथा नेताओं का अपहरण किया गया है, जिनका कोई अता-पता नहीं है। ऐसे मामलों की तादाद हजारों में है।बड़ी संख्या में युवा सालों से जेलों में बन्द हैं। सन् 2006 में बलूचों के लोकप्रिय नेता नवाब खान बुगती की सेना ने हत्या कर दी। बलूचों की आवाज को फौज बेरहमी से कुचलती आयी है। हाल में कुछ माह में ही सैकड़ों बलूच युवक गायब हैं, जिनके लिए अदालतों में मुकदमे दायर किये गए है, पर वह भी उन्हें इन्साफ दिलाने में नाकाम है। बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना के दमन से मुक्त करने को बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी बन गई है, जो पाकिस्तानी सेना के ठिकानों पर मौका पाकर हमला करती रहती है। पाकिस्तानी पुलिस और फौज जुल्म तथा सितम की वजह से बड़ी संख्या में बलूच देश छोड़कर भारत समेत दुनिया के अलग-अलग देशों में शरण लेकर रह रहे हैं। इनमें से कुछ बलूचिस्तान में पाकिस्तानी के बलूचों किये जा रहे जुल्मों को दुनिया के सामने ला रहे हैं, करीमा बलूच उनमें से एक थीं। बलूचिस्तान में ही ग्वादर बन्दरगाह है, चीन शिनझियांग से यहाँ तक ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’(सी.पी.इ.सी)बना रहा है, इससे बलूच बेहद नाराज हैं, क्योंकि इसकी वजह से यह इलाका चीनियों के कब्जे में आ जाएगा। इस स्थिति से अब चीन भी इनके आन्दोलन को अपने लिए खतरा महसूस कर रहा है।
बलूची लोगों का मानना है कि उनका मूल निवास सीरिया के इलाके में था। उनका मूल सेमेटिक (अफ्रो-एशियटिक)है।आज का दक्षिणी बलूचिस्तान ईरान के कामरान प्रान्त का हिस्सा था, जबकि उत्तर-पूर्वी भाग सिस्तान का अंग। सन् 652 में मुस्लिम खलीफा उमर ने कामरान पर हमले का हुकूम दिया और यह इस्लामी खिलाफत का हिस्सा बन गया। पर उमर ने अपना साम्राज्य कामरान तक ही सीमित रखा। अली के खिलाफत में पूरा बलूचिस्तान, सिन्धु नदी के पश्चिमी छोर तक, खिलाफत के तहत आ गया। इस समय एक और विद्रोह भी हुआ था। सन् 663 में हुए विद्रोह में कलात राशिदुन खिलाफत के हाथ से निकल गया। बाद में उम्मयदों ने इस पर कब्जा कर लिया। इसके बाद यह मुगल हस्तक्षेप क विषय रहा,पर अन्त में ब्रिटिश शासन में शामिल हो गया। सन् 1944 में बलूचिस्तान को स्वतंत्र करने का विचार अँग्रेजों के मन में आया। सन् 1947 में बलूच एक स्वतंत्र राज्य था, जैसे देश के दूसरे अनेक राज्य। बलूचिस्तान में कुछ लोग आजाद रहना चाहते थे, तो कुछ भारत में। उसने भारत में विलय की पेशकश भी की थी। कहा जाता है कि आॅल इण्डिया रेडियो में प्रसारित एक समाचार के कारण पैदा हुई इस गलतफहमी में अगर उसने पाकिस्तान में विलय नहीं किया, तो ब्रिटेन के अधीन रहना पड़ेगा। हकीकत यह है कि सन् 1947 में पाकिस्तान ने हमला कर बलूचिस्तान का जबरन अपने में विलय कर लिया। लेकिन पाकिस्तान सरकार की अपने प्रति उपेक्षा तथा भेदभावपूर्ण नीति के कारण बलूच जब उसके खिलाफ आवाज उठाने लगा,तो पाकिस्तान की सरकार ने उनका दमन करना शुरू कर दिया। नतीजा सन् 1970 में के दशक में एक बलूच राष्ट्रवाद का उदय हुआ, जिसमें बलूचिस्तान को पाकिस्तान से स्वतंत्र करने की माँग उठी, इस मुक्ति अभियान को पाकिस्तान ने क्रूरता से कुचल दिया। बलूचिस्तान पाक का सबसे बड़ा राज्य है, पर वहाँ की जनसंख्या महज 5 प्रतिशत है। बलूच धर्मनिरपेक्ष हैं। सन् 1992 में अयोध्या में विवादास्पद ढाँचे के ध्वंस्त होने के पश्चात् एक भी मन्दिर को क्षति नहीं पहुँची थी। वह अपने यहाँ 15 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं।
अब देखना यह है कि कनाडा की पुलिस करीमा बलूच की हत्यारों को पता लगाने में कितना वक्त लगाती है? लेकिन यह तय है कि पाकिस्तान ने जिस मकसद से करीमा बलूच को मरवाया है, वह कभी पूरा नहीं होगा। उनकी मौत से बलूचों में भारी नाराजगी है। इससे पाकिस्तान के खिलाफ जो नफरत की आग लगी, वह हर जगह फैल गई है। वह पाकिस्तान को भी जला कर रहेगी। उसके बाद बलूचिस्तान पाकिस्तान की गुलामी से आजाद होकर रहेंगा।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

Live News

Advertisments

Advertisements

Advertisments

Our Visitors

0105378
This Month : 699
This Year : 42671

Follow Me