डाॅ.बचन सिंह सिकरवार

हाल में जम्मू-कश्मीर में ‘जिला विकास परिषद्’(डी.डी.सी.) हुए चुनावों और उसके परिणामों ने कथित ‘पीपुल्स एलायन्स आॅफ गुपकार डिक्लरेशन’(पी.ए.जी.डी.) के नेता पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ.फारुक अब्दुल्ला, महबूबा मुपती समेत दूसरे घाटी के नेताओं को यह स्पष्ट सन्देश दिया है कि इस सूबे के लोग अब स्वयं निर्णय लेने में सक्षम हैं। इसके लिए उन्हें किसी दूसरे की सलाह की जरूरत नहीं है। वे अपने यहाँ अमन-चैन और विकास चाहते हैं। उन्हें गत 5 अगस्त को संविधान से अनुच्छेद 370 और 35ए के हटाये जाने से भी कोई खास शिकायत नहीं है। फिर खून-खराबे से उन्हें अब तक हासिल ही क्या हुआ है? जो वे पहले की तरह गुपकार गैंग की कहे पर गौर फरमाते। ऐसे में इस सूबे के ज्यादातर लोगों को लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही अपनी भलाई नजर आयी। बाद में चुनाव में हिस्सेदारी कर अपना भरोसा इस व्यवस्था में जता भी दिया। यही कारण है कि चुनाव प्रचार के दौरान कहीं कोई अप्रिय और हिंसा की घटना नहीं घटी और उन्होंने इन मतदान में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। इस चुनाव में सबसे अधिक खुशी उन पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों, गोरखा, वाल्मीकि समुदाय के लोगों को हुई, जो पिछले 70 से अब तक मताधिकार से वंचित बने हुए थे। जम्मू-कश्मीर के लोगों की इस चुनाव में बड़ी हिस्सेदारी से जम्हूरियत, कश्मीरियत, इन्सानियत के फर्जी नारे लगाने और सेक्यूलरिज्म का दिखावटी लबादा ओढ़े नेशनल काॅन्फ्रेंस के अध्यक्ष डाॅ. फारुक अब्दुल्ला, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुपती और उन्हीं जैसे घाटी के तमाम

इस्लामिक कट्टरपन्थियों समेत पाकिस्तान को गहरा सदमा लगा होगा, जो यहाँ के बाशिन्दों को देश की मुख्यधारा से अलग करने की पुरजोर कोशिशें करते आए हैं, ताकि उन्हें अपने इशारों नचाते हुए खुद सत्ता हासिल कर सकें। फिर सत्ता मंे रहते हुए वे देर-सबेर जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा या दारुल इस्लाम में तब्दील करा दें। महबूबा मुपती तो अक्सर यह धमकी दिया करती थीं कि इस सूबे में एक भी तिरंगा उठाने वाले नहीं मिलेगा। जो कोई अनुच्छेद 370 तथा 35ए को छूएँगा,उसके हाथ ही नहीं, वह पूरे का पूरा जल जाएगा। ऐसी ही धमकियाँ डाॅ.फारुक अब्दुल्ला भी सत्ता से बाहर होते ही देते रहे हैं। इन चुनावों से कुछ समय पहले ही डाॅ.फारुक अब्दुल्ला ने चीन की मदद से अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए हटाने की बात कही थी। उन्होंने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग चीन शासित होने में ज्यादा बेहतर महसूस करेंगे। दरअसल, नेशनल काॅन्फ्रेंस, पी.डी.पी.,पीपुल्स काॅन्फ्रेंस, भाकपा, माकपा, काँग्रेस आदि खुद को भले मुख्यधारा की पार्टियाँ बताती हों, किन्तु इनके नेताओं का अलग-अलग सियासी पार्टियों में रहते हुए अब तक एक ही मकसद ‘दारुल इस्लाम’ तथा गैर मुसलमान जैसे हिन्दुओं, बौद्धों को पलायन या फिर इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर करना रहा है। इसका सबसे बड़ा सुबूत ‘रोशनी एक्ट’है जिसके जरिए जम्मू सम्भाग को मुस्लिम बाहुल्य बनाने की साजिश की गई। इसके लिए घाटी के मुसलमानों तथा रोहिंग्या मुसलमानों को इस इलाके की सरकारी, वनों, नदियों, नहरों की जमीन पर बसाया गया। इन्हीं षड्यंत्र के तहत नब्बे के दशक में कोई 5 लाख कश्मीरी पण्डितों का कत्ल-ए-आम कर उन्हें घाटी से अपना घर,जमीन, जायदाद छोड़कर जान बचाकर भागने को विवश किया गया। ऐसी ही साजिश के चलते शेख अब्दुल्ला ने कश्मीरी पण्डितों की जमीन बगैर कोई मुआवजा दिये मुसलमानों में बाँट दी थी। इसी लिए एक दूसरे की धुर विरोधी कश्मीर घाटी की इन सात पार्टियों ने पुरानी दुश्मनी भुलाकर मौकापरस्त, मतलबपरस्त गठबन्धन ‘पीपुल्स एलायन्स फाॅर गुपकार डिक्लरेशन’बनाया, जिसका पीपुल्स यानी जनता से कोई लेना-देना नहीं था। बस उसका मकसद जैसे-तैसे अपनी सियासत को बचाना था। इसमें एक हद ये लोग कामयाब भी हो गए। कम से कम घाटी में तो भाजपा को जम्मू सम्भाग जैसी सफलता नहीं मिलने दी। वैसे यह भी हकीकत है कि गुपकार गैंग की कामयाबी के माने यह हैं कि अभी इस्लामिक कट्टरपंथियों का यह भ्रम पूरी तरह टूटा नहीं कि अनुच्छेद 370 और 35 ए की बहाली अब इतिहास बन गई है, जो किसी भी सूरत में सम्भव नहीं है। फिर मजहबी कट्टरवाद और अलगाववाद की जड़ें कश्मीर घाटी में बहुत गहरी हैं, जिन्हें उखाड़ने में वक्त लगेगा। लेकिन इन्हें उखाड़ने के लिए कोशिशें बराबर जारी रहनी चाहिए। इस सूबे के नेता जम्हूरियत की बात जरूर करते रहते थे, पर हकीकत में वे ऐसा नहीं चाहते थे। यही वजह है कि उन्होंने कभी पंचायतों को ताकत देने की कभी कोशिश नहीं की, जो लोकतंत्र की नींव, स्वशासन और सुशासन का आधार होती है। लेकिन केन्द्र सरकार ने गत अक्टूबर में पंचायत राज से सम्बन्धित 73वें संविधान संशोधन लागू कर दिया, जो राज्य में यह कानून पिछले 28 सालों से लम्बित था।
अब जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद् चुनावों को एक अन्य महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि कुछ समय पहले पंचायत चुनावों के समय घाटी में कई स्थानों पर एक से अधिक प्रत्याशी ही नहीं थे। इस बार ऐसी स्थिति नहीं दिखी। इस बार 280 स्थानों के लिए कुल 2178 प्रत्याशियों ने भाग लिया और कुल 51.42 प्रतिशत मतदान हुआ।
इस चुनाव में भाग लेने के उत्साह को देखते हुए अलगावादियों की चुनाव बहिष्कार करने की हिम्मत पड़ी। यही देखते हुए ‘पीपुल्स एलायन्स आॅफ गुपकार डिक्लरेशन’ के नेताओं को भी इन चुनावों में लड़ने को मजबूर होना पड़ा, जब कि शुरुआत में ये लोग इनके खिलाफ बोलने और बहिष्कार करने की बात कर रहे थे। इन नेताओं को डर था कि अगर वे चुनाव नहीं लड़ते, तो कहीं उनका हश्र भी हुर्रियत जैसा न हो जाए। वैसे गुपकार गठबन्धन ने चुनाव जरूर लड़ा, पर उसने अपने चुनावी में अनुच्छेद 370 और 35 ए की बहाली को लेकर जनमत संग्रह का राग आलापते रहे। इसके विपरीत भाजपा समेत दूसरे निर्दलीय उम्मीदवारों ने विकास के एजेण्डे को लेकर अपना चुनावी प्रचार किया। अब जिला विकास परिषद् के 280 स्थानों पर हुए चुनाव के नतीजें चैंकाने वाले हैं। इन चुनावों में भाजपा को सबसे ज्यादा मत प्राप्त हुए है, जबकि गुपकार गठबन्धन को उससे को आधे। इन चुनावों में जहाँ भाजपा को 75 स्थानों पर जीत हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, वहीं नेशनल काॅन्फ्रेंस, पी.डी.पी., पीपुल्स काॅन्फ्रेंस, सी.पी.आई., माकपा, पी.डी.एफ.जम्मू-कश्मीर आदि समेत 7दलों के गुपकार गठबन्धन को 110 जगहों पर कामयाबी मिली है। इन चुनावों में नेकाॅ.को 67, पी.डी.पी. को 27, काँग्रेस को 26 और 49 निर्दलीय जीतने में सफल हुए हैं। बड़ी संख्या में निर्दलियों की जीत से यह भी स्पष्ट है कि लोगों को राजनीतिक दलों से कहीं अधिक अपने परिचित निर्दलीय प्रत्याशी पर विश्वास है। यह देखते हुए राजनीतिक दलों को जनता की अपेक्षा पर खरा उतरने का भरसक प्रयास करना होगा,तभी उनके प्रति जनविश्वास बढ़ेगा।
इन चुनावी नतीजों से स्पष्ट है कि जम्मू सम्भाग के 10 जिलों में से 6 जिलों-जम्मू, कठुआ, रियासी, सांबा, ऊधमपुर, डोडा में भाजपा अपने बल पर परिषद गठित कर लेगी, वहीं शेष 4 जिलों-रामबन, राजौरी, किश्तवाड़, पुंछ में वह निर्दलियों की सहायता से। कश्मीर घाटी में भी भाजपा को तीन स्थानों पर सफलता मिली है और कई स्थानों पर बहुत कम अन्तर से उसके प्रत्याशी पराजित हुए हैं। कुछ स्थानों पर उसके समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी भी सफल हुए हैं। फिर इन चुनाव से से यह संकेत मिल ही रहा है कि भाजपा भी कश्मीर घाटी में अपनी जड़ें जमा रही है। अब इन चुनावों को दृष्टिगत रखते हुए विधानसभा के चुनाव कराये जा सकते हैं। लेकिन विधानसभा के चुनाव से पहले यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जम्मू-कश्मीर में त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली सुदृढ़ बनाया जाना जरूरी है। अब सरकार को ऐसा कुछ करना चाहिए, जिससे जिला विकास परिषद् बेहतर ढंग से कार्य करें। इनके निर्वाचित सदस्यों के जनता कीे सड़क, पेयजल, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं को प्राथमिकता के आधार पर हल करें और विकास की योजनाओं को कार्यान्वित करके दिखायें। वह भी पारदर्शिता के साथ,क्योंकि यहाँ लोग भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं। इसलिए उसने यह सियासत में बदलाव किया है। उनकी कार्यशैली और आचारण से ही जम्मू-कश्मीर के लोगों का लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास बढ़ेगा और सुदृढ़ भी होगा। निश्चय ही उस दशा में राष्ट्र विरोधी तथा अलगाववादी शक्तियाँ खुद व खुद कमजोर हो जाएँगीं। यहाँ के लोग भी देश के दूसरे राज्यों के लोगों की तरह राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल हो जाएँगे, तब गुपकार गैंग और उन जैसे सियासत करने वालों की हमेशा के लिए सियासत खत्म हो जाएगी।
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