सोलोमन आइलैण्ड्स
काम नहीं आयी चीन की चतुराई
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में दक्षिण प्रशान्त क्षेत्र के द्वीप राष्ट्र सोलोमन आइलैण्ड्स ने अपनी प्रान्तीय सरकार द्वारा चीन की सरकारी कम्पनी को एक द्वीप को पट्टे को गैरकानूनी घोषित करते हुए करार को रद्द कर चीन को बड़ा झटका दिया है, जिस पर चीनी कम्पनी अपना तेल शोधक कारखाना लगाने जा रही थी। चीन की दुनिया के दूसरे मुल्कों को आर्थिक विकास हेतु ऋण समेत कई तरह के प्रलोभन देकर अपने आर्थिक जाल फँसाकर उस मुल्क के साथ गुलामों सरीखी मनमानी करने की उसकी कुनीति अब किसी से छिपी नहीं है।यह सब देखते हुए ही इस करार पर अमेरिका और आस्टेªलिया ने अपनी गहरी चिन्ता जतायी थी।इन दोनों देशों को शंका थी कि चीन की सरकारी कम्पनी कारखाने की आड़ में उसके सामरिक क्षेत्र में अपने सैन्य अड्डे स्थापित लगाने की चाल चल रही है। इससे सोलोमन आइलैण््स की सुरक्षा और अखण्डता खतरे में पड़ सकती है। चीन श्रीलंका, मालद्वीप समेत कई दूसरे मुल्कों के साथ ऐसा छल करता आया। अरब सागर में अपनी पहुँच बनाने के इरादे से चीन पहले ही पाकिस्तान से गुलाम कश्मीर बहुत बड़ा इलाका हथिया कर न केवल ‘चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर’(सीपीइसी)बनाने के साथ उसके ग्वादर बन्दरगाह पर भी प्रभुत्व जमा चुका है। उसके इरादे सागर,महासागरों में सैन्य अड्डे स्थापित कर सामुद्रिक मार्गों पर अपना प्रभुत्व जमाते हुए निगरानी करना है,उसकी इन हरकतों से स्वतंत्र आवागमन प्रभावित होता है,पर चीन को अपने स्वार्थ के आगे दूसरे देशों को होने वाली परेशानी से क्या मतलब?वह तो हर हाल में अपने मंसूबे पूरा करने में लगा रहता है। दक्षित चीन सागर में चीन दादागीरी कर रहा है। हाल ही में भारत आए अमेरिकी प्रशान्त बेड़े के कमाण्डर एडमिरल जॉन एक्किलिनो ने कहा कि विवादित जल क्षेत्र में चीन की सैन्य तैनाती से कई देशों को खतरा है। उनमें से कई अमेरिका के सहयोगी हैं। दक्षिण चीन सागर में चीन और कई दूसरे देशों के मध्य स्प्रैटली द्वीप समूह पर नियंत्रण को लेकर विवाद है। ताइवान, वियतनाम, फिलीपीन,मलेशिया, ब्रुनेई ने द्वीप समूहों पर अपना दावा प्रस्तुत किया है। इन पर चीन धौंस जमाते हुए अपना दावा जता रहा है। वह द्वीप समूहों या चट्टानों को मानव निर्मित द्वीप समूह में बदलते और सैन्यीकरण होते देख रहे हैं। इस स्वतंत्र सामुद्रिक आवागमन में बाधा आ रही है। इसके साथ ही ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना के माध्यम से दुनियाभर के तमाम देशों को फँसा कर उन्हें घेर रहा है। यह परियोजना भारत के गुलाम कश्मीर से गुजर रही है,जिसका भारत विरोध कर रहा है। वह इस परियोजना से सहमत भी नहीं है।

इसी कारण इसके गम्भीर परिणाम देखते हुए सोलोमन आइलैण्ड्स ने भी इस करार को खत्म करने में खैरियत समझी। दरअसल, सोलोमन के मध्य प्रान्त की सरकार और चीन की सरकारी कम्पनी सैम ग्रुप के बीच तुलागी द्वीप को करार हुआ था। सोलोमन केे प्रधानमंत्री मनास्सेह सोगावरे ने कहा कि मध्य प्रान्त और चाइना सैम ग्रुप के बीच हुआ करार गैरकानूनी है। इसे तुरन्त प्रभाव से रद्द कर दिया,क्योंकि प्रान्तीय सरकार को तुलागी द्वीप के सम्बन्ध में समझौता करने का अधिकार नहीं है। चाइना सैम को सोलोमन में विदेशी निवेशक का दर्जा नहीं है। अटार्नी जनरल जॉन मुरिया की मंजूरी के बिना इस तरह का करार नहीं हो सकता। चीन और सोलोमन में सितम्बर,2019 में ही औपचारिक रूप से कूटनीतिक सम्बन्ध कायम हुए थे। यह सम्बन्ध बनने के एक दिन बाद यानी 22सितम्बर को चीन ने सोलोमन की प्रान्तीय सरकार के साथ करार किया था। आइए इस द्वीप राष्ट्र और उसकी सामरिक स्थिति के बारे में भी जान लें। सोलोमन आइलैण्ड्स पापुआ गिनी के पूर्व में दक्षिण-पश्चिमी प्रशान्त महासागर में स्थित हैं। इसका क्षेत्रफल- 29,758वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या-5,30,669है,जो अँग्रेजी, पिडगिन अँग्रेजी बोलते हैं और ईसाई धर्म के अनुुयायी हैं। इस देश की राजधानी -होनिआरा तथा मुद्रा-सोलोमन आइलैण्ड डॉलर है। प्रारम्भ में यह एक ब्रिटिश सरक्षित प्रदेश था, जिसे 7जुलाई,1976 में स्वतंत्रता मिली।यहाँ की मुख्य रूप से आबादी मेलानेशियन है। नारियल मुख्य नकद फसल तथा चावल प्रधान खाद्य फसल है। मछली यहाँ के भोजन का मुख्य तत्त्व और निर्यात की मद है। आशा करनी चाहिए विश्व के अन्य राष्ट्र भी सोलोमन आइलैण्ड्स के इस निर्णय से सबक लेते हुए चीन या अमेरिका और किसी दूसरे शक्तिशाली देश की चाल या जाल में अपने को फँसने को लेकर सर्तक-सावधान रहेंगे।
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