देश-दुनिया

नेपाल में फिर राजशाही बहाली की माँग

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों पड़ोसी देश नेपाल में लोगों द्वारा अपने हाथों में आधुनिक नेपाल के निर्माता तथा पूर्व नरेश पृथ्वी नारायण शाह की तस्वीर लेकर प्रजातंत्र का मुखर विरोध करते हुए राजतंत्र बहाली और ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करने को लेकर जिस तरह बड़े पैमाने पर सड़क पर उतर कर माँग की गई, उससे भारत समेत दुनियाभर के देशों के लोगों को आश्चर्य होना स्वाभाविक है, क्योंकि अब तक हर जगह लोग निरंकुश राजशाही से मुक्ति पाने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना के लिए संघर्ष करते आए हैं। लेकिन नेपाल में राजतंत्र की समाप्ति के बाद पिछले 12वर्षों में प्रजातंत्र के नाम पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने सत्ता हासिल करने और उस पर रहकर जिस तरह उसका दुरुपयोग किया है, उससे लोगों का इस व्यवस्था से ही मोहभंग हो गया है। इस दौरान यहाँ चाहे जिस राजनीतिक पार्टी या नेता की सरकार रही हो ,वह न तो देश के आन्तरिक और बाह्य मुद्दों के उचित तरीके से सम्हाल पायी और न ही उनका समाधान ही कर सकी। यहाँ तक कि ये सरकारें आम लोगों की रोजमर्रा की समस्याओं को हल करने में वांछित पहल करती भी दिखायी नहीं दी हैं। इस बीच नेपाल तस्करी , अवैध कार्यकलापों का अड्डा, कट्टरपंथी मुस्लिम आतंकवादियों का पनाहगाह, ईसाई मिशनरियों का धर्मान्तरण कराने और चीनियों के षड्यंत्र केन्द्र बन गया है, जो देरसबेर उसे अपने चुंगल फँसाने लगा है।ऐसी स्थिति को देखते हुए नेपाल के लोगों को अपनी धर्म की अस्तित्व को खतर नजर आ रहा है। अगर समय रहते इस हालत का बदला नहीं गया, तो एक दिन नेपाल में हिन्दू अल्पसंख्यक बन कर रह जाएँगे। मौजूदा नेपाल सरकार धर्म के विरुद्ध काम कर रही है। इसलिए धर्म की रक्षा के लिए जरूरी है कि राजशाही वापस आए। तभी सनातन धर्म की रक्षा हो पाएगी। फिर नेपाल की जनता धार्मिक प्रवृत्ति के हैं, फिर भी साम्यवादी नास्तिक सरकार उनकी धार्मिक भावनाओं की निरन्तर अनदेखी तथा उपेक्षा करती आ रही है, जो उस पर अब भारी पड़ने वाली है । लोगों का अब यह भी मानना है कि राजशाही पहले देश की सोचती थी, लेकिन अब नेता पहले अपने लिए सोचते है, यही कारण है कि देश पीछे जा रहा है।
वैसे भी नेपाल की जनता राजशाही और अब लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी देख चुकी है, उसे इन दोनों व्यवस्थाओं के बीच का अन्तर /फर्क अच्छी तरह समझ में आ गया है। इसलिए नेपाली जनता की राजशाही बहाली तथा हिन्दू राष्ट्र घोषित किये जाने की माँग को किसी आकस्मिक घटना का नतीजा नहीं है, बल्कि उसका देखा तथा भोगा यथार्थ है। इन नेताओं के कारण देश में अराजकता जैसे हालात बने हुए हैं, इसके लिए ये लोग कहीं न कहीं माओवादियों को जिम्मेदार समझते और मानते हंै।
वर्तमान में यहाँ चीन समर्थक प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली की साम्यवादी पार्टी की सरकार है, जिन्हें हमेशा पार्टी में गुटबाजी के चलते हर समय अपनी सत्ता चले जाने का डर सताता रहता है, ऐसे में उनके पास जनता की समस्याओं पर ध्यान देने का समय ही कहाँ हैं? ऐसे में इस देश की जनता महँगाई ,बेरोजगारी से परेशान हैं और वह आधारभूत सुविधाएँ पाने के लिए आन्दोलनरत बनी हुई है। इतना ही नहीं, यहाँ के लोग प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली के जरूरत से ज्यादा चीनी प्रेम से भी खफा है, जो न केवल नेपाल की जमीन हड़़पने में लगा है, वहीं इस मुल्क को अपने कर्ज के फँसाने की साजिश कर रहा है। चीन के दाबव में ही वर्तमान नेपाल सरकार ने भारत से सदियों पुराने सम्बन्ध बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उसने जानबूझकर तीन भारतीय क्षेत्रों लिपुलेख, कालापानी, लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा दर्शात हुए नया नक्शा जारी किया, किन्तु नेपाल की जनता सदैव भारत के साथ अपना अटूट रिश्ता बनाये रखने की प्रतिबद्धता व्यक्त करती आयी है। इस कारण भारत नेपाल के साथ न केवल सदियों पुराने धार्मिक,सांस्कृति,सामाजिक,राजनीतिक,आर्थिक सम्बन्ध है, वरन् उनका रोटी -बेटी का भी नाता है।
वैसे नेपाल में इस नए आन्दोलन की शुरुआत गत 30 अक्टूबर को बुटवल में हिन्दू संगठनों की मोटर साइकिल रैली से हुई थी, जो अब पूरे देश में फैल चुका है। इसके सीमावर्ती जिले रूपनदेही, नवल परासी, झापा, कपिलवस्तु ,दांगसहित पहाड़ी क्षेत्र भी सरकार को कड़ा विरोध झेलना पड़ा है। इसी 5नवम्बर को काठमाण्डू, विराटनगर ,धनगढ़ी, पोखरा तथा जनकपुर में राजशाही के समर्थन में बड़ी रैली हो चुकी है। पूर्व उप प्रधानमंत्री कमल थापा के नेतृत्व वाली ‘राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी’के समर्थन ने आन्दोलन को और मजबूत कर दिया है।
नेपाल हिमालय पर्वत के दक्षिण ढलान पर भारत और चीन के मध्य में स्थित है। ‘नेपाल’ शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। कुछ के अनुसार नेपाल शब्द ‘ने’ ऋषि तथा ‘पाल’ गुफा से मिलकर बना है, तो कुछ के मतानुसार तिब्बती भाषा में ‘ने’ का अर्थ मध्य तथा ‘पा’ के माने देश होता है। इस तरह तिब्बती इसे ‘नेपा’ बोलते थे। ‘नेपाल’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कौटिल्य ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में किया था। नेपाल के उत्तर में तिब्बत है और पूर्व में भारत का सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल ,दक्षिण -पश्चिम बिहार एवं उत्तर प्रदेश प्रदेश हैं। नेपाल का क्षेत्रफल- 1,47,181वर्ग किलोमीटर है। इसकी राजधानी काठमाण्डू है। नेपाल की जनसंख्या- 2,85,84,975 से अधिक है, जो हिन्दू,बौद्ध, इस्लाम क अनुयायी है। यहाँ के लोग नेपाली, मैथिली, भोजपुरी भाषाएँ बोलते हैं। इस देश की मुद्रा-नेपाली रुपया है। यह देश सन् 1768 में स्वतंत्र हुआ था। यह विश्व का एकमात्र ‘हिन्दू राष्ट्र’ रह चुका है। यहाँ का पशुपतिनाथ का मन्दिर बहुत अधिक प्रसिद्ध है। इस देश के गोरखा बड़े लड़ाके होते हैं,जो अपनी वीरता का डंका दुनियाभर बजा चुके हैं। वर्तमान नेपाल भूभाग अट्ठारहवीं सदी में गोरखा के शाह वंशीय राजा पृथ्वीनारायण शाह द्वारा संगठित नेपाल राज्य एक अंश है। अँग्रेजों के साथ हुई संधियों में नेपाल को सन् 1814में एक तिहाई नेपाली क्षेत्र ब्रिटिश इण्डिया को देने पड़े थे।
यहाँ पर सन् 1846 से 1951 तक राणा परिवार का शासन रहा। यही परिवार प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता था। सन् 1950की क्रान्ति के बाद संविधान बनाया गया। नवम्बर, 1951 में राणा प्रधानमंत्री ने त्यागपत्र दिया। फरवरी, सन् 1959 में महाराजा महेन्द्र विक्रम शाह ने लोकतांत्रिक व्यवस्था का समाप्त कर दिया और निर्दलीय पंचायत व्यवस्था लागू की। उन्होंने नेपाल में एक नया संविधान घोषित किया। राजा को इसका संवैधानिक प्रमुख बनाया गया। फिर 10 अप्रैल,सन् 1961 में 15 ताल्लुकेदारों ने अपना इलाका देश में मिलाया। इसके बाद 16 अपै्रल,सन् 1990 में लगातार लोकतांत्रिक आन्दोलनों के कारण महाराजा शाह ने सरकार को बर्खास्त कर दिया और निर्वाचित पंचायत प्रणाली को भंग कर दिया।
सन् 1990 में कृष्ण प्रसाद भट्राई प्रधानमंत्री बने। 9 नवम्बर,सन् 1990 में को महाराजा ने नये संविधान की घोषणा कर दी। नये संविधान में महाराजा के अधिकारों में सीमित कर दिया। इस संविधान के अनुसार नेपाल बहुदलीय प्रणाली वाला राजतंत्र बन गया। संसद के दो सदन बने और 205 सदस्यों की प्रतिनिधि सभा बनी, जिसमें 10सदस्यों का नामांकन महाराज द्वारा होता है। अन्तरिम सरकार ने संसद के लिए चुनाव कराए। नेपाली काँग्रेस ने राष्ट्र के दूसरे प्रजातांत्रिक चुनाव में बहुमत प्राप्त किया और गिरिजा प्रसाद कोइराला प्रधानमंत्री बने।
नेपाल वन सम्पदा और क्वार्ट्ज भण्डार की दृष्टि से समृद्ध है। यहाँ से निर्यात होने वाली मुख्य वस्तुएँ पटसन, चावल,पशु, खालें, गेहूँ तथा जड़ी-बूटियाँ है। 1जून, 2001 की रात महाराजा वीरेन्द्र ,महारानी ऐश्वर्या और राजघराने के छह सदस्यों क हत्या हो गई। ऐसा माना जाता है। कि युवराज दीपेन्द्र ने अपनी पसन्द की शादी के विरोध में तर्क-वितर्क के बाद होशोहवास खो कर अन्धाधुन्ध गोली चला कर सभी को मार डाला। बाद में स्वयं को भी गोली मार ली।महाराज वीरेन्द्र के भाई ज्ञानेन्द्र को नया महाराज बनाया गया। अप्रैल,सन् 2006 में विपक्षी दलों के संगठनों आन्दोलन का विराट रूप खड़ा कर दिया। अन्त में राजा झुकना पड़ा और उन्होंने संसद बहाल कर जी.पी.कोइराला को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। माओवादियों ने तीन महीने का युद्ध विराम घोषित किया। मई में संसद में नरेश की शक्तियाँ कम करने का विधेयक रखा गया। विद्रोही नेता कमल दहल प्रचण्ड और गिरिजा प्रसाद कोइराला की बैठक हुई। जनवरी, 2007 में माओवादी नेता अन्तरिम संविधान के अन्तर्गत संसद में शामिल हुए। अप्रैल में माओवादी नेता सरकार में शामिल हुए,जिसमें एक आन्दोलन राजनीतिक मुख्यधारा में शामिल हो गया। 28मई,2008 को नेपाल में 240साल से चली आ रही राजशाही का अन्त हो गया। संविधान सभा ने नेपाल की संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया। इसी साल महाराज ज्ञानेन्द्र ने चुनाव कराए,जिसमें माओवादियों को बहुमत मिला और कमल दहल प्रचण्ड नेपाल में प्रधानमंत्री बने तथा नेपाली काँग्रेस के नेता रामबरन यादव राष्ट्रपति का कार्यभार सम्हाला। इसके बाद माओवादी आन्दोलन समाप्त हो गया,पर सेनाध्यक्ष के निष्कासन को लेकर राष्ट्रपति से हुए मतभेद और टेलविजन पर सेना में माओवादियों की भर्ती को लेकर वीडियो फुटेज के प्रसारण के पश्चात् सरकार से सहयोगी दलों द्वारा समर्थन वापस लेने पर के बाद प्रचण्ड को त्यागपत्र देना पड़ा। इसके बाद नेपाल का हिन्दू राष्ट्र का दर्जा भी समाप्त कर दिया गया।
अब नेपाल सरकार चीन को झटका देते हुए गत 9दिसम्बर,2020को जिस तरह भारत से काठमाण्डू तक की फास्ट टैªक रेलमार्ग परियोजना को स्वीकृति दे दी है,उससे नेपाल सरकार के रुख में परिवर्तन दिखायी देता है। इस प्रस्ताव को नेपाल ने चीन के तिब्बत से काठमाण्डू को जोड़ने वाले प्रस्ताव की अनदेखी कर मंजूरी दी है। चीन ने नेपाल की र काठमाण्डू तक रेल लाइन बिछाने का प्रस्ताव दिया था। निश्चय ही नेपाल के इस ताजा निर्णय से हिमालयी देश में प्रभाव स्थापित करने की चीन की कोशिशों को आघात लगा होगा। सम्भवतःनेपाल सरकार ने यह कदम अपने देश के लोगों की चीन विरोधी भावनाओं को देखते हुए उठाया है।

अब देखना यह है कि नेपाल की वर्तमान सरकार लोगों की राजशाही की बहाली तथा हिन्दू राष्ट्र घोषित किये जाने की माँग पर क्या कदम उठाते हैं? वैसे यह तय है कि पड़ोसी देश नेपाल यहाँ की राजनीतिक पार्टियाँ जिस तरह सरकारें चलाती आयी हैं,उसे लोग इस रूप कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। इसलिए उन्हें समय रहते अपनी कार्यशैली में बदलाव के लिए गम्भीर प्रयास करने ही होंगे, अन्यथा नेपाल की जनता लम्बे समय प्रतीक्षा करने की स्थिति में नहीं है।यह नेपाल के सभी नेताओं को स्मरण रखना चाहिए।

Live News

Advertisments

Advertisements

Advertisments

Our Visitors

0106386
This Month : 1707
This Year : 43679

Follow Me