डॉ.बचन सिंह सिकरवार

अन्ततः अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए सख्त आर्थिक प्रतिबन्धों से अपनी अर्थव्यवस्था तबाह होने के डर से ही सही तुर्की के राष्ट्रपति और इस्लामिक दुनिया के नए खैरख्वाह बनने की चाहत पले रेसेप तैय्यप एर्दोगन ने पूर्वोत्तर सीरिया में अपने सैन्य अभियान रोकने पर सहमत हो गए, जिसे उन्होंने गत 9 अक्टूबर को कुर्दाें के खिलाफ तब शुरू किये था, जब अमेरिका ने सीरिया से अपने 1000 सैनिकों के वापसी की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि वह नहीं चाहते कि तुर्की और कुर्दों की लड़ाई में अमेरिकी सैनिक फँसे। उनके इस फैसले के बाद तुर्की ने उत्तरी सीरिया में सैन्य अभियान छेड़ दिया, जहाँ कुर्द कई सालों से बसे हुरूर कस दी, पर हकीकत यह है कि अमेरिका ने जानबूझकर तुर्की को कुर्दों के सीरियाई ठिकाने हमले करने का इतना वक्त दे दिया, वह सैन्य कार्रवाई कर कुर्दों को अपनी सरहद से लगी सीरियाई इलाके से उन्हें आसानी से खदेड़ सके। ऐसा ही हुआ, अमेरिका और तुर्की की इस साजिश में कुर्द अपना मान-सम्मान, पाँच सौ लोगों की जानें तथा अपना ठिकाना भी गंवा बैठे हैं। इधर सीरिया के मददगार रूस का काम भी आसान हो गया,अब उसे सीरिया की ओर से लड़ने की जरूरत ही नहीं रहीं,क्योंकि अब उसे सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद की सत्ता को चुनौती दे रहे आइ.एस.के दहशतगर्दों का अमेरिका ने कुर्दों लड़ाकों की सहायता खात्मा कर दिया। तुर्की ने अमेरिका के इशारे पाकर सीरिया में सैन्य कार्रवाई कर अपने दुश्मन कुर्दों को उसके पड़ोस से खदेड़ दिया, जिन्हें सीरिया भी अपना शत्रु मानता है। अब रूसी सेना सीरिया की उत्तरी-पूर्वी सीमा पर गश्त कर हिफाजत कर रही है। यहीं सालों से बसे कुर्दों की जगह तुर्की में शरणार्थी बनकर रहे सीरिया के लोगों को बसाया जा रहा है, जो आइ.एस.के दहशतगर्दों की दहशतगर्दी से डर कर अपना वतन छोड़कर तुर्की में शरण लेने के मजबूर हुए थे। इस तरह तुर्की को सीरिया के शरणार्थियों को अपने मुल्क से वापस कर अपनी शरणार्थी समस्या छुटकारा पाने मंें लगा है। अब 26 अक्टूबर को अमेरिका ने सैन्य कार्रवाई कर सीरिया के इंदलिब में छिपे दुनिया के सबसे खूंखार इस्लामिक दहशतगर्द संगठन ‘इस्लामिक स्टेट’(आइ.एस.)के सरगना अबू बकर अल बगदादी का सफाया कर दिया है। निश्चय ही जहाँ उन इस्लामिक कट्टरपन्थी दहशतगर्दों के हिमायती पाकिस्तान सरीखे मुल्कों को गहरा सदमा लगा होगा, वहीं उसकी दहशतगर्दी से परेशान और तबाह किये शिया बहुल मुल्क ईरान, इराक, यमन आदि ने चैन की साँस ली होगी।

वैसे राष्ट्रपति ट्रम्प के सीरिया से अपने सैनिक वापसी निर्णय को लेकर उनकी अपनी पार्टी रिपब्लिकन तथा विपक्षी डेमोक्रेटिक के सांसदों समेत दुनियाभर में उन पर कुर्दों के साथ विश्वासघात किये जाने को लेकर तीखी आलोचना की गई ,क्योंकि कुर्द लड़ाके सीरिया में ही नहीं, इराक में भी इस्लामिक आतंकवादी संगठन ‘इस्लामिक स्टेट’(आइ.एस.) के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका के मुख्य सहयोगी रहे हैं, जो अमेरिका के समर्थन से सीरिया में लोकतंत्र की माँग को लेकर राष्ट्रपति बशर अल असद की सरकार के खिलाफ पिछले 8 वर्ष से सशस्त्र विद्रोह छेड़ हुए हैं। कुर्दों ने अमेरिका का खाड़ी की जग में साथ दिया था। अब कथित यु़द्ध विराम होने तक तुर्की सैन्य कार्रवाई के जरिए अपनी सरहद से लगी सीरिया के इलाकों से कुर्दों की आबादी को हटाने में कामयाब हो गया। तुर्की की चिन्ता है कि उसके बगल में अगर कुर्द राष्ट्र ‘कुर्दिस्तान’ बना तो उसके लिए अपने यहाँ रह रही कुर्द आबादी को सम्हालना मुश्किल हो सकता है। यह भी सम्भव है कि इनके इस क्षेत्र में रहने से तुर्की को अपने यहाँ के कुर्दों के उनके साथ मिलकर भविष्य में स्वतंत्र कुर्द मुल्क बनाये जाने हमेशा डर सताता रहता है। इसलिए तुर्की जानबूझकर कुर्द लड़ाकों को दहशतगर्द/आतंकवादी कहकर उन्हें बदनाम करने की कोशिश करता आया है,जो हकीकत में अपनी कौम के रखवाले हैं,जिसके लोग इराक, ईरान, कुवैत, सीरिया, तुर्की में रहते हैं और दहशतगर्द संगठन आइ.एस. उनका जानी दुश्मन है। वह भी खास तौर पर कुर्द युवतियों का। जिन्हें अपने को मुजाहिद/ जेहादी बताने वाले हममजहबियों का खून बहाने के साथ उनकी बहन, बेटियों, पत्नियों को अपनी हवस का शिकार बनाते आए हैं, जिनसे आजिज-परेशान होकर अब कुर्द युवतियाँ हथियार उठाने को मजबूर हुई हैं। इनके डर से आइ.एस.के दहशतगर्द दुम दबाकर भागते नजर आते हैं, क्यों कि उनके धार्मिक ग्रन्थ के मुताबिक उनकी गोलियों से मरने पर उन्हें ‘जन्नत’ में उनकी खितमत में 72हूरें नहीं, शर्तियाँ ‘जहन्नुम‘ मिलेगा।

अब जहाँ तुर्की अपनी इस सैन्य कार्रवाई में 342 कुर्द लड़ाकों के मारे जाने का दावा कर रहा है, वहीं सीरिया के हालात पर नजर रखने वाले संगठनों के मुताबिक 32कुर्द की जानें गई हैं। इस बीच संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार उसे नागरिक ठिकानों पर तुर्की के हवाई हमलों से एक लाख लोगों के बेघर होने की जानकारी है। सीरिया में तुर्की के कुर्दों पर सैन्य कार्रवाई से जहाँ अमेरिका की मौकापरस्ती एक बार फिर उजागर हुई है कि वह हद दर्जे का बेशर्म मतलबपरस्त, दगाबाज और गैर भरोसेमन्द है, जिसे अपना मतलब निकाल जाने पर किसी को दुश्मन के हवाले करने में भी गुरेज नहीं है, वहीं जो तुर्की पाकिस्तान के सुर-सुर मिलाते हुए जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित संविधान के अनुच्छेद 370 तथा 35ए हटाये जाने तथा वहाँ टेलीफोन, मोबाइल, इण्टरनेट बन्द रखने को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत पर कश्मीरियों के उत्पीड़न तथा मानवाधिकारों के हनन का इल्जाम लगा रहा था, खुद उसने ही अपने मुल्क की हिफाजत के लिए हममजहबी कुर्दों का खून बहाने में पूरी दरिन्दगी दिखायी है। उसने दुनिया भर के देशों के विरोध की चिन्ता किये बगैर पड़ोसी सीरिया में उसकी स्वतंत्रता और सम्प्रभुता की अनदेखी करते हुए उसकी सीमा में घुसकर कुर्द आबादी पर जमकर बम बरसाए। वह भी कुर्दों पर, जिनमें से ज्यादातर सुन्नी मुसलमान हैं। इधर भारत ने तुर्की से अपने बदला चुकाते हुए कुर्दों पर तुर्की के हमले पर सख्त प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि भारत तुर्की की तरफ से सीरिया के एक हिस्से में की जा रही बेवजह की सैन्य कार्रवाई से चिन्तित है। वह संयम बरते तथा सीरिया की भौगोलिक सम्प्रभुता और अखण्डता का आदर करे। वैसे तुर्की को इस मामले में केवल पाकिस्तान का पूरा साथ मिला। जिसने तुर्की की इस सैन्य कार्रवाई की तारीफ करते हुए कहा कि पाकिस्तान की तरह ही तुर्की भी दहशतगर्दी का शिकार मुल्क है,जो अपने इलाके में अमन-चैन बहाली की कोशिश कर रहा है। तुर्की के हमले के बाद ट्रम्प भले ही दुविधा में रहे हों, पर अमेरिकी संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष ने साथ मिलकर तुर्की के खिलाफ जिस तरह आर्थिक प्रतिबन्ध तैयार किया, वह स्वागतयोग्य कदम ही माना जाएगा। साथ ही यूरोपीय संघ, सऊदी अरब, मिस्र ने उसकी खुलकर मुखालफत की। ब्रिटेन ,फ्रान्स, जर्मनी पाँच देशों ने 10अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् सीरिया के हालात पर चर्चा हुई,तब तुर्की ने सफाई देते हुए अपनी कार्रवाई को संतुलित और जिम्मेदारीपूर्ण बताया। उसी समय 22मुल्कों की ‘अरब लीग’ ने 12अक्टूबर को बैठक बुलायी। तब रूस ने कहा था कि वह तुर्की और सीरिया की सरकारों के बीच बातचीत कराने की कोशिश कर रहा है,ताकि टकराव खत्म हो सके।‘वाशिंगटन पोस्ट’ अखबार के अनुसार पूर्वोत्तर सीरिया में रूसी सेना ने गश्त शुरू कर दिया। यह कदम तुर्की के राष्ट्रपति तैयब एर्दोगन और रूसी समकक्ष ब्लादिमीर पुतिन के बीच हुए एक समझौते के तहत उठाया गया है।
वैसे अगर तुर्की सीरिया पर हमले जारी रखता तो उस हालत में इस जंग की चपेट में कई दूसरे मुल्क भी आ सकते थे,क्यों कि सीरिया में रूस हर हाल में बशर अल असद की सत्ता बनाए रखना चाहता,तो दूसरी तरफ अमेरिका भी इस इलाके में अपना प्रभाव बनाये रखने को मजबूरी में सही जंग में उतरता।उसका साथ इजरायल भी देता,तो तुर्की की मदद में पाकिस्तान भी आता।
दरअसल, तुर्की कुर्दों को सबक सिखाने के लिए बहुत समय से मौके फिराक में था, जो अब सीरिया मे आइ.एस.की चुनौती खत्म होने के बाद मिल गया, क्योंकि पिछले कई महीनों से आइ.एस.की कोई दहशतगर्दी की कोई वारदात नहीं हुई। इस कारण तुर्की को अपनी सरहद के पास बसे कुर्दों को हटाने को अवसर मिल गया। उसने उन पर हमले की धमकी दी। उसके बाद अचानक अमेरिकी सैनिक सीरिया के सीमा से हट गए। अपने फैसले को सही ठहराते हुए ट्रम्प ने कहा कि सीरिया में अमेरिका की सेना आइ.एस.से लड़ने गई,उनकी चुनौती खत्म हो गई है। ऐसे में सीरिया में कुर्दों पर तुर्की के हमले के अलावा कोई लड़ाई नहीं हो रही है। तुर्की और कुर्दों के मध्य का संघर्ष 200 साल पुराना है, जो रह-रह कर भड़कता रहता है। ऐसे में हम वहाँ अपनी सेना को फिर से भेजें और वहाँ सभी को हराएँ, यह कोई समझदारी की बात नहीं है। अमेरिकी लोग भी यह नहीं चाहेंगे,पर तुर्की के हमले को देखते हुए हम निश्चित रूप से कड़ा उठाएँगे। पता नहीं क्यों?अमेरिका अपने बुरे वक्त के सहयोगियों को छोड़कर अपरोक्ष रूप से तुर्की की मदद में आ गया,क्या वह ऐसा कर सीरिया के असद को अपने खेमे लाना चाहता है या फिर रूस का खुश करने की फिरका में हैं। अमेरिका की मंशा कुछ भी है,उसे कुर्दों को धोखा देने का खामियाजा देर-सबेर उठाना पड़ सकता है। वैसे भी दुनिया में भरोसेमन्द दोस्त मिलते ही कहाँ हैं?
तुर्की ने शुरू से ही सीरिया के कुर्द बहुल इलाके पर हवाई तथा जमीन हमले किये सैन्य कार्रवाई किये,जिनमें कोई पाँच सौ से कुर्द मारे गए तथा वह जमीन भी खाली करने को मजबूर होना पड़ा जहाँ सालों से रह रहे थे। वैसे कोई हफ्तेभर चली जंग में कुर्दों और तुर्की ने अपने-अपने दावे किये। गत 13अक्टूबर को उत्तरी सीरिया में कुर्दिश प्रशासन ने कहा है कि विस्थापितों के एक शिविर के समीप तुर्की बमबारी से आइ.एस. आतंकवादियों ने करीब 800रिश्तेदार भाग निकलने की बात कहीं,जिसका तुर्की ने तत्काल खण्डन कर दिया।। जर्मनी के चांसलर एंजेला मर्केल ने तुर्की के राष्ट्रपति से उत्तरी सीरिया में सैनिक कार्रवाई रोकने का आग्रह किया था। लड़ाई के दौरान कुर्द लड़ाकों के नेतृत्व वाली ‘सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेस’ (एसडीएफ)के जवाबी हमले में तुर्की के 75 सैनिक मारे गए। कुर्दिश मीडिया के अनुसार इन हमलों में तुर्की के 19सैनिक जख्मी भी हुए हैं। सीरियाई मानवाधिकार निगरानी संगठन ने 19से ज्यादा नागरिकों के मारे जाने का दावा किया है।
उस दौरान कुर्द समर्थित ‘सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेज ‘(एस.डी.एफ.) का कहना था कि वह अपनी सात जेलों में 12,000से अधिक संदिग्ध सदस्यों को हिरासत में रखे हुए है।कई हजार तुर्की से लगी सीमा के करीब छिपे हुए हैं। ऐसे में अगर जंग का खतरा बढ़ा तो तुर्की इन दहशतगर्दों का इस्तेमाल कुर्द लड़ाकों के खिलाफ कर सकता है। उन्हें बेहद अफसोस बात यह है कि अमेरिका के लिए सीरिया में ‘इस्लामिक स्टेट’ से लड़ने के लिए जिस कुर्द संगठन‘ सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेज’ का की सहायता ली, उसने उसी को खत्म कर में तुर्की मदद की। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोगन अपनी सैन्य कार्रवाई के जरिए कुर्द लड़ाकों को निशाना बनाकर एक ‘सेफ-जोन’ तैयार कर ली।
वैसे सच्चाई यह है कि सीरिया में रह रहे कुर्दो पर तुर्की के हमले को लेकर यूरोपीय संघ और अमेरिका ने स्पष्ट रुख नहीं दिखाया। तुर्की के हमले में सीरिया की तरफ अभी तक 50से ज्यादा नागरिक मारे गए, जबकि तुर्की ने कुर्दिश गोलीबार से अपने 18 नागरिकों के मारे जाने की पुष्टि की है। तुर्की की सरकार ने रविवार की दावा किया कि उसकी सेना अब तक 480 कुर्द लड़ाकों ने हथियार डाले हैं।19अक्टूबर तुर्की के राष्ट्रपति ने धमकी दी प्रस्तावित सुरक्षित क्षेत्र खाली न करने पर कुर्द लड़ाकों के सिर कुचल दिये जाने की धमकी देते हुए कहा कि सुरक्षित ़क्षेत्र खाली न होने पर हमारे हमले फिर से शुरू हो जाएँगे और तब तक जारी रहेंगे जब तक आतंकवादियों का पूरी तरह खात्मा नहीं हो जाता।लेकिन उसे ऐसा करने की नौबत ही नहीं आयी।
अब जहाँ तक कुर्दों का दर्द समझने की बात है,तो उनके बारे में भी जान लें। कुर्द समुदाय के लोग मध्य-पूर्व के कई देशों इराक के उत्तर-पश्चिम, ईरान के उत्तर-पश्चिम, सीरिया के उत्तर-पूर्व , तुर्की के दक्षिण-पूर्व में बसे हैंं,इनमें से अधिकांश इस्लाम को मानते हैं,थोड़े से ईसाई और शेष अन्य कबीलाई धर्म के अनुयायी हैं। तुर्की में मुख्यतः दो नस्लीय पहचान हैं-तुर्क और कुर्द। अधिकांश कुर्द सुन्नी मुसलमान हैं। इस मुल्क में कुर्द कुल जनसंख्या के 20प्रतिशत हैं। पहले सांस्कृतिक स्वतंत्रता की माँग कर रहे थे। लेकिन अब गत कई वर्षों से स्वतंत्रता की माँग कर रहे हैं। ये लोग अपने लिए स्वतंत्र ‘कुर्दिस्तान‘ स्थापित करना चाहते हैं। कुर्द माँग करते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के आत्मनिर्णय के अधिकार पर उन्हें भी अलग ‘कुर्दिस्तान‘ के गठन का अधिकार है। अमेरिका ने सन् 2003में इराक पर आक्रमण किया था,उसी समय से उत्तरी इराक में ‘कुर्दिस्तान लगभग स्वतंत्र राष्ट्र की भाँति कार्य कर रहा है।ं इस कुर्द आबादी वाले मुल्क उनसे छुटकारा पाने चाहते है, पर ये कुर्द अब कहाँ बसे,जहाँ वे पूरी तरह महफूज रह सकें,इस सवाल का जवाब कोई भी देना नहीं चाहता।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
Rashtra Vandna Mission is headed by Mr Vidyarnav Sharma, who, besides a disciplined Police Officer, is a devoted patriot and the recipient of prestigious President’s Medal. Still, a servant of humanity, a disciple and younger brother of Guru Ji, he is there to preserve the great heritage of patriotism and sacrifice, cultivate love for nation and gratitude for those, who sacrificed their present for our future (‘Today’ for our ‘Tomorrow’).
Agra, UP A unique temple titled Rashtra Mandir that is dedicated to Indias freedom fighters and social workers has been opened at the Mankameshwar temple complex here on Sunday. The temple was inaugurated by Indian Army chief General VK Singh. The Rashtra Mandir is a temple in the name of people like Mahatma Gandhi, Mother Teresa, Annie Besant and Bhagat Singh. Mahant Har Har Puri, who is the brain behind the shrine said, Nationalism today has to be the foundation of religion. Those who sacrificed their lives preaching sermons and values to ensure freedom with dignity for us have to be revered like gods and it is our duty to inculcate these values in our younger generation. The temple was opened in the presence of Gandhians from America, Britain and Japan. The idea is people who visit the temple should return convinced that violence does not pay, and there are more important things in this world to fight for than petty politics, said Yogesh Puri, a key organiser. The temple is designed simply with portraits of freedom fighters put up in the backdrop of the national flag. The moment you see all the great men together, your head automatically bows down in reverence and awe, commented culture critic Mahesh Dhakar. The inspiring portraits of Chandra Shekar Azad, Bhagat Singh, Ashfaq Ullah Khan, Tilak, Malviya, Mother Teresa, leave a deep imprint on visitors to the temple, which is walking distance from Agra Fort, right in the heart of the city. Just as we revere and worship our ancestors during the pitr paksh, we must also do the same with these great men and women who have done so much for humanity. We look at them with respect as gods; their ideas will fuel our actions, said Vijay Kumar Handa of the Gandhi Hindustani Sahitya Sabha, Delhi. Handa further said, Very soon 100 Japanese kids will take to spinning on the charkha as a daily ritual. We are getting messages from China and other countries. Fed up with violence and senseless brutalities often resulting from mindless pursuit of materialism, more and more young people were seeing reason in what Gandhi said, did or wrote. General V.K. Singh had visited the Mankameshwar temple last year and conducted some special puja. The idea of a Rashtra Mandir had excited him and he promised to open the temple when it was completed.