डाॅ.बचन सिंह सिकरवार

इन दिनों जम्मू-कश्मीर में ‘रोशनी एक्ट’ के तहत नदियों, नालों,वन समेत दूसरी सरकारी जमीनों पर हुए कब्जों को लेकर सी.बी.आई.अपनी जाँच में जिन पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत कई मंत्रियों, नेताओं, नौकरशाहों, राजस्व अधिकारियों, व्यावसायियों के नामों का खुलासा हुआ है, उसे लेकर आरोप-प्रत्यारोपों को दौर शुरू हो गया है। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ.फारुक अब्दुल्ला,पी.डी.पी.के पूर्व वित्तमंत्री हसीब द्राबू प्रमुख हैं। अब जहाँ भाजपा इन्हें ‘जमीनी नहीं,जमीन कब्जाने वाले नेता होने का आरोप लगा रही है,वहीं ‘गुपकार’ से जुड़े नेतागण भाजपा पर सूबे की जमीन लोगों से छीनकर बाहर के लोगों को देने का। वैसे इस खुलासे को लेकर सबसे ज्यादा बेचैनी ‘पीपुल्स एलायन्स फाॅर गुपकार डिकलेरेशन’से जुडे नेताओं में है, जो 5 अगस्त, 2019 को केन्द्र सरकार द्वारा भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित अनुच्छेद 370 एवं 35ए के हटाये जाने के बाद स फिर से बहाली के लिए एकजुट और संघर्षरत है। इनमें से ज्यादातर नेता भाजपा पर सूबे में होने जा रहे जिला विकास परिषद् (डी.डी.सी.) के चुनाव में उन्हें बदनाम करने की साजिश साबित करने में जुटे हैं। लेकिन ‘रोशनी एक्ट’की हकीकत चैंकाने वाली है। इसकी सच्चाई लाने के लिए जम्मू के अंकुर शर्मा एडवोकेट तथा जम्मू-कश्मीर के न्यायाधीश साधुवाद के पात्र हैं। इस जमीनी जिहाद के तरफदार अपने पूरे देश में फैले हुए है, जिसका सुबूत रोशनी एक्ट के तहत जमीनी जेहाद की हकीकत प्रसारित करने पर एक टी.वी.चैनल के सम्पादक के खिलाफ गैर जमानती धाराओं में केरल में एक मुस्लिम ने मुकदमा दायर कराया जाना है।

वस्तुतः जम्मू-कश्मीर में पिछली राज्य सरकारों ने हिन्दू बहुल जम्मू शहर और जम्मू-सम्भाग में मुसलमानों की आबादी बढ़ाने के लिए ‘जमीन जिहाद’ (लैण्ड जिहाद) की साजिश को अंजाम दिया था। इसके लिए कश्मीर घाटी से बड़ी संख्या में मुसलमानों को कई तरह के लालच देकर वनों, नदियों, नहरों, खाली सरकारी जमीनों पर गैरकानूनी तरीके से कब्जा कराया गया। बाद में इस अवैध कब्जे को वैध बनाने के लिए नेशनल कान्फ्रेंस के मुख्यमंत्री डाॅ.फारुक अब्दुल्ला की अगुवाई वाली सरकार ने नवम्बर, 2001 में ‘जम्मू एण्ड कश्मीर स्टेट लैण्ड (वेस्टिंग आॅफ ओनिरशिप टू द आॅक्यूपेण्ट्स ) एक्ट-2001 पारित कराया गया है, तब यह घोषणा की गई कि इससे अर्जित धन को सूबे में जल-विद्युत परियोजनाओं पर खर्च किया जाएगा, जिससे यह राज्य बिजली के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा। इस वजह से यह कानून ‘रोशनी एक्ट’ के नाम से मशहूर हुआ, जिसे मार्च, 2002 में लागू कर दिया गया। रोशनी एक्ट के तहत तत्कालीन सरकार का लक्ष्य 20 लाख कनाल सरकारी जमीन से अवैध कब्जेदारों के हाथों में सौंपना था, जिसकी एवज में सरकार बाजार भाव से पैसे लेकर 25,000 करोड़ रुपए की कमाई करती, लेकिन अब तक महज 76करोड़ हजार रुपए ही सरकारी खाते में आए हैं। वैसे इस तरह जमीनों पर कब्जा करा कर हममजहबी को देने का यह सिलसिला डाॅ.फारुक अब्दुल्ला के मरहूम वालिद शेख अब्दुल्ला ने इस सूब की सत्ता हासिल करने के बाद हिन्दुओं की जमीनें उन्हें बगैर कोई मुआवजे दिये छीन कर अपने हममजहबियों में बाँट कर की थी। इसे उनके बेटे डाॅ.फारुक अब्दुल्ला ने बस आगे बढ़ाया भर है, ताकि यहाँ दारुल इस्लाम का ख्वाब हकीकत में तब्दील हो सके।
रोशनी एक्ट के जरिए 1990 तक के अवैध कब्जेदारों के लिए यानी 1990 कट आॅफ इयर रखी गई। इन गैरकानूनी कब्जेदारों से मामूली रकम लेकर उन्हें उसका कानूनी मालिक बना दिया जाएगा। बाद में पी.डी.पी.के मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद के नेतृत्व वाली सरकार ने सन् 2004 और काँगे्रस के मुख्यमंत्री गुलामी नवी आजाद की अगुवाई वाली सरकार ने 2007 में रोशनी एक्ट में संशोधन करके न सिर्फ गैरकाननी कब्जे की तारीख 1990 से बढ़ाकर पहले 2004 तथा फिर 2007 तक बढ़ा दी गई, बल्कि इसे काफी लचर बना दिया ताकि लोग गैर कानूनी तरीक से जंगलात और सरकारी जमीनों को आसानी से हथिया जा सके। ‘रोशनी एक्ट’ के खिलाफ जम्मू के अधिवक्ता अंकुर शर्मा ने सन् 2014 में जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इसी दौरान कुछ अन्य याचिकाएँ भी दाखिल की र्गइं। गत माह इन याचिकाओं पर सुनवायी करते हुए जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गीता मित्तल और राजेश बिन्दल की खण्ड पीठ ने ‘रोशनी एक्ट’ को असंवैधानिक बताते हुए इसे आरम्भ से ‘शून्य’ (वोएड एव इनिशियो) करार दिया। हाई कोर्ट ने प्रथम दृष्टया राज्य सरकार के बड़े अधिकारियों और सतर्कता अधिकारियों को ‘लूट की इस नीति के प्रति आँखें मूँद कर अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर कोताही बरतने के लिए लताड़ लगायी है। अदालत ने सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों को लेकर कहा कि इन लुटेरों की सत्ता में इतनी गहरी पैठ रही है कि ये अपने फायदे के लिए कानूनी भी बनवा सकते थे। अदालत ने आशंका जतायी कि जिस तरह से जमीनी लुटेरे प्रभावी रहे हैं, उससे लगता है कि उन्होंने नीति निर्धारण से लेकर उसके लागू कराने तक में हर स्तर पर भूमिका निभायी है। कोर्ट ने सी.बी.आई.निदेशक को इसकी जाँच के लिए एस.पी.स्तर के पुलिस अधिकारियों से कम टीम न बनाने का कहा तथा गहराई से जाँच के बाद मुकदमा दर्ज करने का निर्देश दिया है। जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने इस गड़बड़ी को ‘बेशर्म’ और ‘राष्ट्रहित’ को नुकसान पहुँचाने वाला बताया। उसने कहा कि इस कथित एक्ट को ‘रोशनी’ नहीं, ‘अन्धेरा’ फैलाने वाला कहा जाना चाहिए। अदालत की ऐसी टिप्पणी उन राजनेताओं के लिए भी सख्त इशारा है, जिनके कार्यकाल में ऐसी आपराधिक गतिविधि नहीं देखी है, जिसमें सरकार ने राष्ट्रीय ओर जनता के हित को ताक पर रखकर कोई कानून बनाया हो और जनता के खजाने ओर पर्यावरण को होने वाली क्षति का कोई आकलन भी नहीं किया हो। इधर अंकुर शर्मा एडवोकेट के बताया कि यह एक्ट साजिशों से भरा है। इस मामलों को कई बार दबाने की कोशिश की गई। इसकी क्लोजर रिपोर्ट जारी की गई। जम्मू सम्भाग के जंगलात और राजस्व भूमि की, जो इबारत लिखी गई, उसका एक ही मकसद था, जम्मू की जनसंाख्यिकी को बदल दियाा जाए। वैसे इस विवादित रोशनी एक्ट को लेकर सन् 2014में सी.ए.जी. ने भी सवाल उठाए थे। फिर नवम्बर, 2018में इस एक्ट जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने निरस्त कर दिया था। अब इस सरकरी जमीन से अवैध कब्जेदारों को बेदखल कर उन पर मुकदमा चलाये जाने की तैयारी हो रही है।
दरअसल, रोशनी एक्ट में संशोधनों का मकसद ज्यादा से ज्यादा अपने लोगों को फायदा पहुँचाना था। इस अधिनियम के माध्यम से ये अवैध कब्जे वैध बनाये गए हैं। इस सूबे की जमीन की लूट में राजनेताओं, उनके परिजनों, रिश्तेदारो ं,आइ.ए.एस.,आइ.पी.एस.,राजस्व अधिकारी, होटल स्वामी, अन्य व्यवसायी आदि सभी भागीदार रहे हैं। इन्होंने बड़े स्कूल, काॅलेज, मस्जिदें, बंगले, मकान, फार्म हाॅउस स्थापित करने के साथ-साथ भूखण्डों की जमकर बिक्री कर जेबें भरी हैं। इस जमीन घोटाले में दो पूर्व मुख्यमंत्री और कुछ और मंत्री,नेता भी शामिल हैं। जम्मू शहर में इतनी जमीन पर कब्जा किया गया, उतनी में उदयपुर, जोधपुर जैसे शहर बसाये जा सकते हैं। जम्मू में सन् 1998 में सरकारी जमीनों पर कब्जा कराने की शुरुआत हुई थी। इन वनों, नहरों, नदियों, खाली सरकारी जमीनों पर मुसलमान निजी बिल्डरों ने बहुमंजिली इमारतें बनायीं, उनमें बने फ्लैटों को सिर्फ मुसलमानों को बेचा गया। जंगलात की जमीन होने के कारण सरकार स्टाम्प ड्यटी के रूप में कोई राजस्व नहीं मिला। यहाँ तक कि जम्मू नगर के मुख्य मन्दिरों के मार्ग के आसपास की जमीनों पर अतिक्रमणकारियों को बसाया गया, ताकि हिन्दू श्रद्धालुओं को परेशान किया जा सके। इस मकसद जम्मू सम्भाग का इस्लामीकरण किया जा सके। इन प्रभावशाली कब्जेदारों ने सिंचाई विभाग, राजस्व विभाग, जी.डी.ए.नगर निगम, कृषि विभाग की जमीनों का पता तक नहीं चलने दिया। खड्डा जिनका सरकार के पास रिकाॅर्ड नहीं है,उस पर कब्जा कर लिया गया। जम्मू सम्भाग की जंगलात की जमीन पर चैआदी, सुंजवा,बाहू, कालीधार में कई हजार हेक्टेयर जमीन नेताओं, नौकरशाहों ने अपने नाम करा ली। सरकारी आँकड़ों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में एक लाख हेक्टेयर जमीन पर कब्जा है। इसमें 66प्रतिशत जमीन जम्मू सम्भाग में है। जम्मू मेें हथियाई जमीन 500 हेक्टेयर वन विभाग की है। हाल ही में राजस्व विभाग की पहली सूची में 800 हेक्टेयर जंगलात की जमीन कब्जा पाया गया है। जम्मू के 10 जिलों में म्यांमार के 25,000 रोहिंग्या मुसलमानों को अवैध रूप से बसाया गया, जबकि इस राज्य में अपने देश के व्यक्ति को न जमीन खरीदने की इजाजत है और न ही उसे नागरिकता प्राप्त करने की। फिर भी षड्यंत्र के तहत म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों जम्मू सम्भाग के विभिन्न जिलों में बसाया गया। जम्मू में 16,02,153 कनाल जमीन पर अवैध अतिक्रमण किया गया। जम्मू-कश्मीर में जितनी कुल भूमि पर अतिक्रमण हुआ है, उसमें 36 प्रतिशत जमीन जम्मू की है, वहीं 7.5 फीसदी कश्मीर घाटी की है। 4.44.293 कनाल भूमि में से जम्मू जिले में रोशनी एक्ट के तहत कुल 18 लाभार्थियों में 15मुसलमान और 3हिन्दू, पूंछ जिले में कुल 14लाभार्थियों में सभी मुसलमान, मैत्रा में कुल 17 लाभार्थियों में 16 मुसलमान तथा 1 हिन्दू, रामबाण में कुल 11 लाभार्थियों में 10 मुसलमान और 1 हिन्दू जम्मू सम्भाग का कठुआ जिला हिन्दू बहुल था, उसमें बड़े पैमाने पर मुसलमानों को बसाया गया। कुलगाम के जंगल में 1000 लोगों ने कब्जा कर लिया। जम्मू शहर में तवी नदी के तट पर अवैध कब्जेदार 800 में से 785 मुसलमान और 15हिन्दू हैं। हिन्दुओं की जमीन पर मुसलमानों का कब्जा कराया गया। बाद में उन्हें उनकी जमीन पर बसाया गया। जम्मू में कश्मीर घाटी से लाकर मुसलमानों को लाकर न केवल बसाया गया, वरन् उन्हें विस्थापित कश्मीरी पण्डितों के जैसी सुविधाएँ दी गईं। अब सी.बी.आई.जाँच के बाद अवैध कब्जेदारों के नाम जारी किये गए है। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ.फारुक अब्दुल्ला,उनकी बहन सुरैया मट्टू, पी.डी.पी.के पूर्व वित्तमंत्री हसीब द्राबू, एजाज हुसैन, कई काँग्रेसी,नेकाॅ., पीडी.पी. नेता शामिल हैं। डाॅ.फारुक अब्दुल्ला ने अपने निवास के 1998 में सिर्फ 3 कनाल जमीन खरीदी, पर उन्होंने 10 कनाल जमीन अपने घर बनाया हुआ। इससे स्पष्ट है कि उन्होंने 7 कनाल सरकारी जमीन हथियाई। नेशनल काॅन्फ्रेस के जम्मू और श्रीनगर में बने कार्यालय 3कनाल 16 मरहले सरकारी जमीन पर बने हैं, इसी तरह पी.डी.पीके भी। वैसे यह जमीनी जेहाद सिर्फ जम्मू-कश्मीर मे देश के अलग-अलग राज्यों में संगठित रूप से हो रहा है, जिसमें अवैध करने वालों को सत्ता का संरक्षण हासिल है। अगर समय रहते देश के लोग और सत्ताधीश नहीं चेते, तो हालात बेहद खराब हो सकते हैं। इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को के लिए गम्भीर खतरा पैदा हो सकता है,जिसके नतीजों पर विचार करने से डर लगता है।
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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