डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों पड़ोसी देश म्यांमार में हुए चुनाव मेें लोगों ने सू की के ‘नेशनल लीग ऑफ डेमोक्रेसी’(एनएलडी)को भारी बहुमत से विजयी बना कर एक बार फिर उनके नेतृत्व में अपना विश्वास जताया है, ऐसा करके उन्होंने न केवल पुनः लोकतांत्रिक व्यवस्था में भरोसा जताया है,बल्कि उसकी आधारशिला को भी सुदृढ़ किया है। वस्तुतः यहाँ के लोग लोकशाही और तानाशाही का अन्तर अच्छी तरह से जानते हैं,जो दशकों तक सैन्य तानाशाह की अधीनता में रहकर गुलामों सरीखी जिन्दगी बसर करने कर चुके हैं। सैन्य सत्ता के जुल्म और अन्याय को अभी भुला नहीं पाए हैं। अपने पड़ोसी देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था का मजबूत होना भारत के भी हित में है। म्यांमार में चीन प्रभाव बढ़ने से रोकने के लिए न चाहते हुए भी भारत ने मजबूरी में सैन्य सरकार से सम्बन्ध बनाए रखे थे। उस दौरान म्यांमार में भारत के उग्रवादी शरण लेते रहे हैं, लेकिन पिछले वर्षों में वहाँ सरकार के सहयोग से मणिपुर सीमा पर भारतीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई उग्रवादी शिविरों को नष्ट करने में सफलता मिली थी। इस देश में चीन भी अपने प्रभाव में लेने की कोशिश में है। इस बीच भारत म्यांमार के बन्दरगाह के उपयोग हेतु विकास कार्य तेजी बढ़ा रहा है, ताकि पूर्वोत्तर राज्यों के लिए आयात-निर्यात सुगमता से हो सके।
म्यांमार में इस बार संसद की 1117 में सीटों के लिए चुनाव हुआ था, इनमें से 315 सीट निचले सदन ‘हाउस ऑफ रिपेजेण्टेटिव’ और 161 सीट उच्च सदन ‘हाउस ऑफ नेशनलटीज’ में हैं। 612 सीट क्षेत्रीय और प्रादेशिक स्तर की संसद की है। एन.एल.डी. पूरी तरह से बहुमत में आ गई है, जिनमें से एन. एल.डी. में 920 स्थानों पर सफलता पायी है, वहीं विपक्षी पार्टी ‘यूनियन सॉलिडेरिटी एण्ड डेवलमेण्ट पार्टी’ (यू.एस.डी.पी.) ने 1089 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 71 सीटों पर जीत हासिल की हैं। अब एन.एल.डी. पूरी तरह बहुमत आ गई है। आंग सान सू की इस पार्टी को सन् 2015 में भी भारी सफलता प्राप्त हुई थी। इसका क्षेत्रफल-6,76,553वर्ग किलोमीटर और राजधानी-सरकार नेपिडा जिस पाइनमाना भी कहते हैं यंगून(रंगून) से हटाई जा रही है। म्यानमार की जनसंख्या- 5,04,96,000से अधिक है। इसकी देश की भाषा-बर्मी, अँग्रेजी और कबीलाई है। यहाँ के अधिसंख्यक लोग बौद्ध धर्म और अल्पसंख्यक मुसलमान हैं। यहाँ की मुद्रा ‘क्यात’ है। मुख्य नगर-माण्डले,मालमीन बैसी आदि हैं।
सन् 1885 से अपै्रल,सन् 1937 तक ब्रिटिश भारत का एक प्रान्त था। इसके बाद यह ब्रिटिश कॉमनवेल्थ का एक पृथक राज्य बन गया। 4जनवरी,सन् 1948 को इसे ब्रिटेन की पराधीनता से स्वतंत्रता मिल गई। इसका नाम ‘यूनियन ऑफ बर्मा’ रखा गया। सन् 1961में बौद्ध धर्म का राजधर्म घोषित किया गया। मई, सन् 1989 में इसका नाम‘ यूनियन ऑफ म्यांमार’ रखा गया। सन् 1962 में जनरल ने विन की क्रान्तिकारी परिषद् सत्ता में आयी। फिर मार्च, सन् 1962 में सैनिक सरकार का गठन हुआ। सन् 1971 में बर्मा ने समाजवाद का कार्यक्रम स्वीकार किया। बर्मी में संघ में शान,करेन, काचीन, कयाह और चिन हिल्स जिला एवं अराकान हिल्स जिला हैं। बाद में इन दोनों को मिला कर चिन डिवीजन बना गया। जनरल ने विन सन् 1962 से लेकर सन् 1988 तक सत्तासीन रहे। पहले वे सैनिक शासक थे। फिर स्व नियुक्त राष्ट्रपति फिर राजनीति तानाशाह बन गए। जून, 1990 में सेना ने पहली बार स्वतंत्र चुनाव होने दिये ,जिसमें ‘नेशनल लीग फार डेमोक्रेसी’ ने भारी बहुमत प्राप्त किया, लेकिन सेना सत्ता देने में हिचकिचाती रही,‘नोबल शान्ति पुरस्कार’ विजेता और पार्टी अध्यक्ष आंग सान सू की को नजरबन्द कर दिया गया। सत्ता में सैनिक जुण्टा ने कई बार नये संविधान का वादा किया। लेकिन कुछ हुआ नहीं। सू की के समर्थकों पर राजनीतिक प्रतिबन्ध लगे हुए हैं। यहाँ की मुख्य खनिज पेट्रोलियम,सीसा, टिन, जस्ता, टंगस्टन,तांबा, एण्टीमनी,चाँदी और रत्न हैं। यहाँ के माणिक्य, नीलम और पहिताश्म विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं । यहाँ से सागौन (टिक) की लकड़ी का निर्यात बड़ी मात्रा में होता है।
अब देखना यह है कि म्यांमार में आंग सान सू की अपने देश की लोग की आशा-अपेक्षाओं को पूरा करने में कहाँ तक सफल हो पाती हैं?
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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