डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों भारत के विदेश सचिव हर्षवर्द्धन श्रृंगला द्वारा खुलकर अपनी मालदीव की द्विदिवसीय यात्रा का उद्देश्य इस मुल्क को आर्थिक रूप से सुदृढ़, उदार, सक्षम, आत्मनिर्भर से बनाने की, जो बात कही है, उसके बड़े निहितार्थ हैं। पिछले कुछ वर्षों में चीन भारत के पड़ोसी देशों को सहायता के बहाने कर्ज के जिस तरह जाल में फँसा कर अपने आर्थिक तथा सैन्य मंसूबे पूरा करता आया है, उसका विपरीत प्रभाव न केवल भारत के उस देश विशेष से परस्पर सम्बन्धों पर भी पड़ रहा है। इतना ही नहीं, भारत का उसके साथ होने वाले व्यापार भी प्रभाव पड़ रहा है। उससे भारत की सुरक्षा को भी आसन्न संकट पैदा हो गया है। इस यात्रा के दौरान भारत और मालदीव के बीच चार समझौतांे हस्ताक्षर हुए हैं। इनमें से एक में भारत ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के लिए दस करोड़ डॉलर का अनुदान देगा। इसमें बनने वाला कॉरिडोर राजधानी क्षेत्र के लिए लाइफलाइन जैसा होगा। दौरे में हर्षवर्द्धन श्रृंगला का राष्ट्रपति इब्राहिम मुहम्मद सोलिह और संसद पीपुल्स मजलिस के स्पीकार मुहम्मद नशीद से भेंट की।

अपने पड़ोसियों से अच्छे रखने के उद्देश्य से भारत उनकी समस्याओं तथा आवश्यकताओं को भी ध्यान रखता आया है। इसके लिए वह उनकी आर्थिक सहायता के साथ-साथ तकनीकी तथा दूसरी तरह की मदद करता आया है।भारत ने कोरोना काल में भी मालदीव की औषधि तथा चिकित्सा उपकरण भेजे थे। इससे पहले मालदीव पेयजल संकट उत्पन्न होने पर जल के टैंकर भेजे थे। इस्लामिक मुल्क होने की वजह से मालदीव भारत के लिए बहुत संवेदनशील देश है,क्योंकि इसके इस्लामिक कट्टरपन्थियों का अड्डा बनने का बराबर अन्देशा बना रहता है।इसके पूर्व में इसके एक राष्ट्रपति चीन के अन्ध समर्थक रह चुके हैं। मालदीव में कई बार सैनिक उथल-पुथल हो चुकी है।
चीन श्रीलंका का कर्ज के जाल में फँसा चुका है,जिसकी वजह से हिन्द महासागर में सामरिक रूप से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ‘हवनटोटा बन्दरगाह’ को उसे 99 साल पट्टे पर चीन को देने को मजबूर होना पड़ा है। इससे चीन हिन्द महासागर में भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है। श्रीलंका की वर्तमान सरकार भी उसके प्रभाव में है। ऐसा ही करके ही चीन ने नेपाल को अपने चुंगल में ले लिया है, जिसके साथ भारत के सदियों पुराने राजनीतिक ही नहीं, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक गहन सम्बन्ध रहे हैं। अब वह चीन के प्रभाव में आकर न केवल उससे व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ा रहा है, वरन् चीन ने नेपाल की कई महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए कर्ज के रूप में करोड़ों डॉलर की रकम दी हुई है। उसके अहसान के बदले में नेपाल भी उसकी अत्यन्त महत्त्वांकाक्षी ‘ वन बेल्ट वन रोड(ओबीओआर) परियोजना में साझीदार बन गया है, जो भारत की सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक है। यही परियोजना ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ ( सीपैक ) से गुजरती है, जो पाकिस्ताने कब्जे वाले गुलाम कश्मीर तथा गिलगिट-बाल्टिस्तान से गुजरती है। ये क्षेत्र भारत के जम्मू-कश्मीर के अभिन्न अंग हैं।यहाँ तक कि नेपाल ने भारत के कालापानी,लिपुलेखा,लिपियाधुरा को अपना क्षेत्र बताते हुए नया नक्शा भी जारी कर दिया।इससे स्पष्ट चीन नेपाल को भारत के खिलाफ खड़ा करने में कामयाब हो चुका है,लेकिन दोस्ती की आड़ में चीन नेपाल की जमीन हड़पने से बाज नहीं आय।वह उसकी 150हेक्टयर जमीन पर अवैध कब्जा कर चुका है।इसके बाद नेपाल में चीन का विरोध शुरू हो गया है। चीन पाकिस्तान को कर्ज देकर पूरी तरह अपनी गिरपत मंे ले चुका है। इस कारण वह चीन के इशारों पर चलने को मजबूर बना हुआ है। चीन ने भूटान को भी अपने खेमे लाने का प्रयास कर चुका है, लेकिन यहाँ वह अपनी कोशिश में नाकाम रहा। इसके बाद चीन ने पहले भूटान पर डोकलाम पर कब्जा करने की कोशिश,पर भारतीय सेना से उसे विफल कर दिया। कोई 71दिन तक चले गतिरोध के बाद चीन सैनिकों से यहाँ से हटने को मजबूर होना पड़ा। फिर उसके अभ्यारणय पर दावा करने लगा। इसी तरह चीन बांग्लादेश में पैर पसार रहा है,जिसका जन्म सन् 1971में पाकिस्तान के अत्याचार के खिलाफ बगावत और भारत की सैन्य एवं हर तरह की सहायता से हुआ।आज उसके भारत से कहीं बेहतर सम्बन्ध चीन से रिश्ते हैं।यह भी इस्लामिक कट्टरपन्थियों की गिरपत में हैं।इस कारण अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर जुल्म और नाइन्साफी होती रहती है। चीन ने मालदीव को भी आर्थिक विकास के नाम पर ऋण के जाल में फँसा रखा है।यहाँ भी चीन ने इसकी कुछ परियोजनाओं के लिए कर्ज दिया हुआ। इसके बदल में वह मालदीव में अपना नौसैनिक अड्डा बनाना चाहता है। इसीलिए भारत मालदीव को आर्थिक उसके कर्ज के जाल से बचाना चाहता है,ताकि भविष्य में उसे फिर से चीन की किसी चाल में फँसने से बचाया जा सके। इसी उद्देश्य से भारत पहले भी मालदीव की कई तरह से सहायता करता आया है। भारत ने उसकी रक्षा के लिए अपने सैनिक भेज चुका है। श्रीलंका के ‘पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम’ के उग्रवादियों ने मालदीव मे तख्ता पलट की कोशिश की थी। तब 3नवम्बर,सन् 1988को भारत ने अपने सैनिक मालदीव भेजे। उस सैन्य ‘ऑपरेशन कैक्टस’ के जरिए मालदीव को मुक्त कराया था।
मालदीव हिन्द महासागर में भारत के दक्षिण-पश्चिम और श्रीलंका के पश्चिम में एक द्वीप समूह है। इस द्वीप समूह में 12 प्रतिशत प्रवाल द्वीप और 2000 छोटे-छोटे द्वीप समूह हैं। यह उत्तर से दक्षिण तक लगभग 300 मील लम्बा है।इसका क्षेत्रफल- 298 वर्ग किलोमीटर तथा राजधानी माले है। इसकी जनसंख्या- 3,17,280 से अधिक है। मालदीव 26 जुलाई,सन् 1965को स्वतंत्र हुआ। देश की शासकीय भाषा दिवेही है। यहाँ के लोग इस्लाम के अनुयायी हैं। मालदीव की मुद्रा रूफिया है। अधिकांश निवासी भारतीय मूल के नाविक हैं। नारियल,फल और ज्वार-बाजरा मुख्य फसलें हैं। मुख्य उद्यमी मछली पकड़ना है और मुख्य उद्योग मछलियांे का संसाधन है।
वैसे अब भारत पड़ोसी देश पाकिस्तान को छोड़कर ज्यादातर देश चीन के असली चेहरे पहचानते हुए उसकी आर्थिक सहायता के पीछे की उसकी साजिश के बारे में जान चुके हैं। अब देखना यह है कि भारत अपने विदेश सचिव हर्षवर्द्धन श्रंृगला के माध्यम से मालदीव में शुरू किये इस अभियान में कहाँ तक सफल होता है? आब
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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