राजनीति

कहाँ तक झूठ बोलेंगी महबूबा ?

साभार सोशल मीडिया

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

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गत दिनों जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री तथा ‘पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी’(पी.डी.पी.)की अध्यक्ष महबूबा मुपती द्वारा केन्द्र सरकार कई झूठे आरोप लगाते हुए राज्य के युवाओं को जिस तरह अपने ही देश के खिलाफ हथियार उठाकर हिंसा के लिए उकसाने और भड़काने की कोशिश की, उसकी सिर्फ भर्त्सना कर तथा निन्दनीय कह कर अनदेखी नहीं की जा सकती। उन्होंने युवाओं को बन्दूक उठाने को उकसाकर ‘राष्ट्रद्रोह’ का अपराध किया है। वैसे महबूबा मुपती की यह हरकत उनकी हताशा-निराशा को दर्शाती है,जो अनुच्छेद 370खत्म होने बदले सियासी हालात में हमेशा के लिए उनके सत्ता से महरूम होने अन्देशे और जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी और दहशगर्दी की घटती वारदातों तथा ज्यादातर लोगों के देश की मुख्यधारा से जुड़ने पैदा हुई।अब उन जैसे घाटी के सियातदारों का कश्मीरियत के बहाने इस सूबे को ‘दारुल इस्लाम’ या ‘निजाम-ए-मुस्तफा’ कायम करने का ख्बाव टूट गया है, जो अब तक ये इस सूबे को अधिकाधिक स्वायत्ता और कश्मीरियत महफूज रखनेे की माँग के बहाने इस्लामिक कट्टरपन्थी अलगाववादियों और दहशतगर्दांे के मदद से पूरा करने में लगे थे। मौजूदा हालात में उन से सियासतदार अब उन अलगावादियों,पत्थरबाजों और दहशतगर्दो की मदद करने के लायक नहीं रहे हैं। महबूबा मुपती ंने केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वह कश्मीरियों से भूमि का अधिकार छीन रही है,वह सरासर गलत हैं। वस्तुतः वह जिस जमीन को छीने जाने का आरोप लगा रही हैं, उस पर हुए अवैध कब्जों को जिस ‘रोशनी एक्ट के तहत जायज बनाया गया था।उसे गत माह जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने एक अधिवक्ता की याचिका पर उस ‘रोशनी एक्ट’को अवैध घोषित कर दिया है जिसके तहत 43,500एकड़ जमीन में से 43,250 एकड़ जमीन मुपत बाँट दी गई थी।अब उसे अवैध ठहराते उन अवैध को हटाने का आदेश दिया है। दरअसल, फर्जी कश्मीरियत का चोला ओढ़े घाटी के इन इस्लामिक कट्टरपन्थियों

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हुक्ूमरानों ने अपने जमीनी जिहाद के तहत जम्मू के हिन्दू बहुल क्षेत्र को मुसलमान बहुल इलाके में तब्दील करने की साजिश के तहत घाटी के मुसलमानों को बुलाकर जम्मू शहर और उसके आसपास के इलाके के वनों, नदियों,नहरों और दूसरी सरकारी जमीनों पर गैर कानूनी कब्जे कराके बसाया।फिर ‘रोशनी एक्ट’के तहत उनके अवैध कब्जों को जायज ठहराया गया था।यह ‘रोशनी एक्ट’ सन् 2001 काँग्रेस तथा पी.डी.डी.सरकार की साझा सरकार के तत्कालीन मुख्य मंत्री गुलाम नवी आजाद ने पारित कराया था और इसे 2002में लागू कराया।बाद में उनके वारिस डॉ.फारुक अब्दुल्ला,उमर अब्दुल्ला इसमें संशोधन कर लागू करते आ रहे। इन सभी ने साजिश के तहत जम्मू और इसके आसपास वन,नदियों,नहर तथा सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करा कर उस पर घाटी के मुसलमानों को मुपत जमीन तथा सरकारी सुविधाएँ देकर बसाना था,ताकि जम्मू के हिन्दू बहुल क्षेत्र को मुस्लिम बहुल इलाके में तब्दील किया जा सके। जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने उस ‘रोशनी’ एक्ट’को अवैध घोषित कर दिया है जिसके तहत 43,500एकड़ जमीन में से 43,250 एकड़ जमीन मुपत बाँट दी गई।इस लूट में राजनेता और उनके रिश्तेदार,पार्टी कार्यकर्ता,आइ.ए.एस.,आइ.पी.एस.राज्य सरकार के अधिकारी,राजस्व विभाग के अधिकारी/कर्मचारी,मुल्ला,मौलवी दूसरे आम लोग शामिल हैं आज इन जमीनों पर घाटी के मुसलमानों ने मस्जिद,दरगाह,कॉलोनियाँ,कॉलेज,अस्पताल बना लिए हैं ।इसी जमीनी जिहाद के तहत जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने भी हिन्दू जमींदारों की जमीनें बगैर किसी मुआवजे के मुसलमान किसानों को बाँट दी थी।
वैसे भी इस राज्य में 90 प्रतिशत कृषि भूमि है, जिसका एक इंच भी जम्मू-कश्मीर से बाहर किसी व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता है। छह फीसदी सरकारी जमीन है,जो किसी को नहीं मिल सकती है। सिर्फ चार-पाँच प्रतिशत जमीन ऐसी है,जो उद्योग -धन्धों के विकास के लिए दी जा सकती है। इसकी मुखालफत करने वाले बताएँ कि आम लोगों के लिए रोजगार और इलाज के लिए उद्योग तथा अस्पताल कहाँ लगेंगे? महबूबा आरोप लगा रही हैं कि अगर कोई बोले तो गिरपतारी का डर है। नौजवान अपने दिल को बात नहीं कह पा रहा है। भाजपा लोगों की आवाज दबा रही है आवाज दबाओगे, तो युवा बन्दूक उठाएगा। वैसे वह बताएँगी कि सरकार किसी की आवाज दबा रही है। अगर दबा रही होती, तो क्या वह और डॉ.फारुक अब्दुला, उनके बेटे उमर अब्दुला आज भी खुली हवा में साँस ले रहे होते, जो देश विरोधी बयान देने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। यहाँ तक डॉ.फारुक अब्दुला न के केवल अनुच्छेद 370 तथा 35ए की बहाली के लिए चीन की मदद माँग रहे है, बल्कि कश्मीरियों को चीन शासन में रहने बेहतर बता रहे हैं। महबूबा भी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को तब तक न उठाने की धमकी दे रही हैं, जब तक उन्हें जम्मू-कश्मीर का झण्डा नहीं मिला जाता है, जो अनुच्छेद 370 तथा 35ए की समाप्ति के साथ हटा दिया गया है। अब हकीकत यह है कि महबूबा मुपती सरीखे सियासतदार तिरंगा उठायें या न उठायें, इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। कश्मीर के लोग इसे खुद-व-खुद अपनी मर्जी से खुशी-खुशी उठा रहे हैं, जो अब उन्हें उठाने में अड़गंे डालती आ रहे थे। बड़ी संख्या में युवाओं सुरक्षा बलों तथा सेना मंे भर्ती हो रहे हैं। इनका यह इल्जाम कि सूबे में नौजवानों के लिए रोजगार नहीं है। यह सच है, पर क्या इसके लिए सिर्फ केन्द्र सरकार दोषी है? क्या बेरोजगारी की यह समस्या 5 अगस्त,2019 को अनुच्छेद 370और 35ए खत्म किये जाने की वजह से बढ़ी है? अगर नहीं, तो क्या इसके लिए कश्मीर घाटी के नेता जिम्मेदार नहीं हैं? जो आजादी के बाद से इस सूबे पर शासन करते आए हैं। महबूबा मुपती खुद मुख्यमंत्री रही हैं, क्या वह बताएगी कि सत्ता में रहते हुए उन्होंने कितने युवाओं को नौकरियाँ और रोजगार उपलब्ध कराया था? फिर बेरोजगारी की समस्या सिर्फ जम्मू-कश्मीर तक सीमित नहीं है, बल्कि देश और विश्वव्यापी है, तो क्या सभी युवा बन्दूक उठा लें? महबूबा ने युवाओं की दहशतगर्द बनने की वजह बेरोजगारी बताकर असलियत पर पर्दा डालने की कोशिश की है। हकीकत यह है कि बेरोजगारी युवाओं को दहशतगर्द बनने का रास्ता अपनाने की एक वजह हो सकती है,पर सिर्फ इसी कारण वे दहशतगर्द बनते हैं,यह पूरी तरह झूठ है। सही बात यह है कि इसकी असल वजह इस्लामिक कट्टरवादियों का जम्मू-कश्मीर समेत पूरी दुनिया को ‘दारुल इस्लाम’या ‘निजाम-ए-दहशत’ कायम करने का ख्बाव दिखना है और उसे हकीकत में तब्दील करने में जुटे रहना है। इसके लिए मौलाना‘-मौलवी युवाओं को विदेशों से मिले धन को देकर उन्हें इस्लामिक दहशतगर्द बनाते आए हैं। वे युवाओं से दहशतगर्दों को मुजाहिद बताते हैं। उनकी दहशतगर्दी को मजहबी सबाब काम बताते हैं।इसमें कुर्बान होने पर ‘जन्नत’नसीब होती है,जहाँ हर तरह की सुख-सुविधाओं के साथ उनकी खिदमत 72हुर्रे हमशों तैयार रहती हैं। इस लालच के साथ ये मौलाना युवाओं को इस्लाम के नाम पर वतनफरोशी को उकसाते हैं। जहाँ जम्मू-कश्मीर की वर्तमान सरकार का सवाल है तो वह युवाओं को नौकरियाँ और रोजगार उपलब्ध कराने की लगातार कोशिशें कर रही है। इसके लिए सुरक्षा बलो, शिक्षा क्षेत्रों में भर्तियाँ की जा चुकी हैं,उन्हें कौशल विकास का प्रशिक्षण देकर स्वयं रोजगार करने या किसी निजी क्षेत्र के कल-कारखाने में रोजगार करने योग्य बना रही है। ऐसी स्थिति महबूबा मुपती का कहना सही नहीं है कि युवा सोचता है कि उसके पास दो विकल्प हैं। जेल जाएँ या बन्दूक उठाएँ। इस कारण वह सोचता है कि बन्दूक ही उठा लेता हूँ और मर जाऊँगा। इसी कारण रोजना 10-15 लड़के आतंकवादी बन रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के सियासी नेतागण एक तरफ तो रात-दिन इस सूबे की चिन्ता में दुःख जातते हुए माथा-छाती पीटते मातम मानते रहते हैं,उन्हें को अनुच्छेद 370और 35ए खत्म होने के बाद इसे दो केन्द्र शासित जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख राज्यों में बाँटे जाने का बेहद गम है,लेकिन उन्हें पाकिस्तान के गैरकानूनी कब्जे वाले पी.ओ.के.तथा गिलगिट-बाल्टिस्तान के साथ-साथ चीन द्वारा हथिये अक्साईचिन,शक्सघाटी की कतई परवाह नहीं है।उनके इस रवैये से इन सभी दोगलापन दिखायी देता है।इन्हे कभी युवाओं के पाकिस्तान तथा दुर्दान्त इस्लामिक दहशतगर्दों संगठन ‘आइ.एस.के झण्डों लहराने के साथ ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद’ हिन्दुस्तान मुर्दाबाद’नारे लगाते हुए सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने पर ऐतराज नहीं जताया। यहाँ तक कि महबूबा मुपती ने कभी पत्थरबाजों बेचारे बेगुनाह कहने मंे शर्म महसूस नहीं की। अब वही महबूबा भाजपा और केन्द्र सरकार पर नाइन्साफी के झूठे आरोप लगा रही हैं।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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