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गिलगिट-बाल्टिस्तान को लेकर चीन के इरादे

साभार सोशल मीडिया

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

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गत दिनों पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र के मुख्यमंत्री हाफिज हफीजुर रहमान द्वारा प्रधानमंत्री इमरान खान और उनके मंत्री अशान्ति फैलाने और चुनावों में गड़बढ़ कराने के आरोपों तथा उन पर मुख्य अदालत के अपनी मुहर लगाये जाना। इसमें अदालत ने उनके के चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप को सही मानते हुए पाक सरकार के मंत्री और उनके अधिकारियों को तीन दिन के अन्दर गिलगिट-बाल्टिस्तान छोड़ने का आदेश दिया है। यह कोई मामूली सियासी मसला नहीं है, बल्कि इनमें बहुत बड़े माने भी छुपे हुए हैं और भू-राजनीतिक कारण भी हैं। दरअसल, इसी 2 नवम्बर को प्रधानमंत्री इमरान खान ने गिलगिट-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान के नए पाँचवें अस्थायी प्रान्त का दर्जा देने और दुनिया को धोखा देने के लिए 15नवम्बर को विधानसभा के चुनाव कराने का ऐलान भी किया है, यहाँ के लोग उसके सख्त खिलाफ हैं और वे किसी भी तरह पाकिस्तान के चंगुल से निकलने को आन्दोलनरत हैं। ये लोग पाकिस्तान द्वारा अपने साथ किये जा रहे हर तरह के भेदभावों और जुल्मों से आजिज आ चुके हैं। इस इलाके में पाकिस्तान दूसरे प्रान्तों के मुसलमानों को बसा कर जनसंख्यांकिक बदलने में लगा है। गिलगिट-बाल्टिस्तान विकास के मामले में हर नजरिये से बहुत पिछड़ा हुआ है। फिर जब से चीन द्वारा ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’(सीपैक)का निर्माण किया जा रहा है, उससे उन्हें पाकिस्तान के साथ चीन की गुलामी का खतरा भी नजर आ रहा है। अभी से चीन इस इलाके के प्राकृतिक संसाधनों को बेरहमी से दोहन कर रहा है। इनमें प्रमुख नदियों पर विद्युत परियोजना से बनाया जाना चाहिए, जिससे सिंचाई तथा पेय जल संकट उत्पन्न हो गया है। इस कारण गिलगिट-बाल्टिस्तान के लोग चीन के लगातार बढ़ते दखल को लेकर बहुत परेशान हैं। इस इलाके में मानवाधिकारों का भी निरन्तर उल्लंघन होता आया है। यहाँ के लोगों का भविष्य में पाकिस्तान से आजादी का ख्बाव टूटता दिखायी दे रहा है। पाकिस्तान ने भारत के बँटवारे के समय गिलगिट-बाल्टिस्तान इन पर अवैध कब्जा किया हुआ है।
गिलगिट-बाल्टिस्तान की जनता के इस रुख को देखते हुए पाकिस्तान चाहते हुए अब तक ऐसा नहीं कर पाया। फिर पाकिस्तान भी इस इलाके को अपनी वैधानिक स्थिति से भली भाँति परिचित है। अभी तक पाकिस्तान के संविधान में ‘पाकिस्तान कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर’ (पीओजेके) और ‘नॉर्दन फ्रण्टियर एरिया’ (फाटा) के नाम से जाने -जाने वाले गिलगिट-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है। भारत के साथ विवादित क्षेत्र होने के कारण पाकिस्तान का इन इलाकों पर सैन्य नियंत्रण है और इसका प्रशासन ‘मिनिस्टरी ऑफ कश्मीर अफेयर्स एण्ड गिलगिट-बाल्टिस्तान’ नामक एक विशेष मंत्रालय करता आया है, जिस पर सेना-पाकिस्तान की कुख्यात गुप्तचर एजेन्सी ‘इण्टर सर्विस इण्टेलिजेन्स’( आइ.एस.आइ.) के अधिकारियों का कब्जा है।

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भारत ने तत्काल पाकिस्तान के इस कदम पर सख्त नाराजगी जताते हुए कहा है कि वह अपने किसी भी क्षेत्र की स्थिति बदलने की पाकिस्तान की कोशिश को खारिज करता है। केन्द्र शासित जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के सभी क्षेत्र भारत के अभिन्न अंग हैं और रहेंगे। गैर कानूनी तरीके से कब्जाए गए इन इलाकों पर पाकिस्तान सरकार का कोई अधिकार नहीं है। भारत ने पाकिस्तान को यह सलाह भी दी है कि इन इलाकों की स्थिति बदलने से बेहतर है कि वह तत्काल अपने गैर कानूनी कब्जे वाले इलाकों से बाहर निकल जाए। लेकिन इसके बाद भी हमेशा की तरह पाकिस्तान खामोश बना हुआ है। वैसे भारत भी यह जानता है कि बगैर सैन्य कार्रवाई ‘पीओके’ और गिलगिट-बाल्टिस्तान’ को वापस ले पाना सम्भव नहीं है। वैसे भारत पाकिस्तान के पीओके और गिलगिट-बाल्टिस्तान को मिलाने के ऐसी कोशिशों का पहले भी विरोध करता रहा है।
अब प्रश्न यह है कि जब प्रधानमंत्री इमरान खान की खुद की कुर्सी खतरे हैं,उनके खिलाफ सभी विपक्षी सियासी पार्टियाँ एकजुट होकर आन्दोलन चला रही हैं। तब उन्होंने गिलगिट-बाल्टिस्तान को लेकर यह जोखिम भरा फैसला क्यों लिया ? तो इसका सवाल यह है कि इमरान खान ने यह कदम खुद की मर्जी से नहीं, चीन के दाबव में उठाया है। जो भारत द्वारा गत 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाने और इसे दो केन्द्र शासित जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख बनाये जाने को लेकर बहुत परेशान है, जिसे हड़पने के लिए पाकिस्तान के साथ वह खुद गिद्ध दृष्टि लगाए हुए है। वैसे भी ये दोनों मुल्क जम्मू-कश्मीर के बहुत बड़े इलाकों पर गैर कानूनी कब्जा जमाये हुए हैं। अब चीन अरब सागर में पाकिस्तान के ग्वादर बन्दरगाह से लेकर पूरे बलूचिस्तान तथा गिलगिट-बाल्टिस्तान होते हुए शिनजियांग(ईस्ट तुर्कीस्तान) तक इलाके पर कब्जा जमाना चाहता है, ताकि यहाँ होकर बगैर बाधा के सड़क बना सके। चीन ने बलूचिस्तान में ग्वादर बन्दरगाह में अपना नौसैनिक अड्डा बना भी रहा है। चीन के लिए ‘सीपैक परियोजना’ आर्थिक एवं सामरिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। चीन की यह परियोजना प्रारम्भ में 25 अरब डॉलर की थी, जो अब बढ़कर 60 अरब डॉलर तक पहुँच गई है। इसी परियोजना की खातिर चीन ने पूर्वी लद्दाख की गलवन घाटी पर हमला कर कब्जा करने की प्रयास किया, जो चीन की काराकोरम राजमार्ग की सुरक्षा के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह मार्ग सन् 1962 के युद्ध में भारत के हड़पे क्षेत्र अक्साईचिन तथा पाकिस्तान से भेंट में मिले शक्सगाम से होते हुए गिलगिट-बाल्टिस्तान के रास्ते ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’(सीपैक) को जोड़ता है।
इधर अब इन्हें भारत के पीओके तथा गिलगिट-बाल्टिस्तान पर हमला कर वापस लेने का खतरा दिखायी दे रहा है। अगर ऐसा होता है,तो ‘सीपैक परियोजना’ हमेशा के लिए खटाई में पड़ जाएगी। ऐसा होने पर चीन को ग्वादर नौसैनिक अड्डे से भी कोई फायदा नहीं होगा। गिलगिट-बाल्टिस्तान के मामले में पाकिस्तान और चीन की इस नई योजना के कुछ भू-राजनीतिक कारण भी है। अगर वे इसे पाकिस्तान का नया प्रान्त बनाने की योजना में सफल होते हैं तो न केवल पी.ओ. जे.के. और गिलगिट-बाल्टिस्तान को भारत में वापस लाने की सम्भावनाएँ लगभग समाप्त हो जाएँगी, बल्कि भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ अपना परम्परागत भौगोलिक सम्पर्क फिर से स्थापित करने का सपना भी टूट जाएगा।
अब गिलगिट-बाल्टिस्तान के बारे में भी जान लें, जो जम्मू-कश्मीर का अभिन्न हिस्सा है, लेकिन ब्रिटेन तथा अमेरिका की भारत के विरुद्ध दुरभि संन्धि के कारण गिलगिट-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान गैर कानूनी कब्जा जमाने कामयाब हो गया। महाराजा हरिसिंह द्वारा 26 अक्टूबर, सन् 1947 की भारत के साथ जिस जम्मू-कश्मीर की विलय सन्धि पर हस्ताक्षर किये थे। उसमें गिलगिट-बाल्टिस्तान भी ‘जम्मू-कश्मीर’ के अभिन्न हिस्से थे। उस समय ब्रिटेन और अमेरिका ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू के सोवियत संघ समर्थक दृष्टिकोण देखत हुए गिलगिट पर पाकिस्तान को सौंपना अपने हित में समझा, क्योंकि इससे उन्हें इस क्षेत्र सोवियत संघ का प्रभाव बढ़ने की आशंका थी। इसके लिए ब्रिटिश अधिकारी मेजर ब्राउन ने महाराजा हरिसिंह के अधिकारी गर्वनर घंसार सिंह को गिरपतार कर लिया। फिर गिलगिट-बाल्टिस्तान का नियंत्रण कर पाकिस्तानी सेना के हवाले कर दिया, जिससे भारत तथा सोवियत संघ को जोड़ने वाला यह गलियारा उनके लिए हमेशा के लिए बन्द हो जाए। ऐसा हो भी गया है। इस क्षेत्र को गंवाने के बाद भारत का अफगानिस्तान से सीधा सम्पर्क खत्म हो गया। इस मार्ग से ईरान पहुँचने की सम्भावनाएँ भी नहीं रही है। गिलगिट-बाल्टिस्तान का विधिक चरित्र बदलकर इसे पाकिस्तानी प्रान्त बदलने के पीछे उसका इरादा चीन के हित सुरक्षित करना है। पाकिस्तान द्वारा गिलगिट-बाल्टिस्तान को कानूनी रूप से अपना प्रान्त घोषित किये जाने के बाद वह चीन को सीपैक और दूसरी परियोजनाओं के लिए को आसानी से विधिक सन्धि करने सक्षम हो जाएगा। उस दशा में चीन को गिलगिट-बाल्टिस्तान को लेकर भारत की कानूनी बाधाओं तथा हमले की कार्रवाई खतरा नहीं रहेगा। उस दशा में भारत की मुखालफत सिर्फ सैन्य चरित्र वाला रह जाएगा। भारत के सैन्य हमले की स्थिति में चीन को पाकिस्तान की सहायता से भारत के विरुद्ध दोहरे मोर्चे खोलने का बहाना मिल जाएगा।
इस स्थिति को देखते हुए भारत को पाकिस्तान को गिलगिट-बाल्टिस्तान को अपना पाँचवाँ अस्थायी प्रान्त बनने से रोकने के हर सम्भव प्रयास करने चाहिए। ऐसी स्थिति में भारत की सरहद का खतरा बना ही रहेगा।अब देखना यह है कि भारत सामरिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मसले को कैसे निपटाता है?
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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