डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों फ्रान्स के फ्रान्स के राष्ट्रपति इमैनुलअल मै द्वारा इस्लाम मजहब के पैगम्बर के व्यंग्य चित्र प्रकाशित किये जाने पर इस्लामिक कट्टरवादियों की कई आतंकवादी हिंसक घटनाओं को अंजाम दिये जाने बाद उनके विरुद्ध जो सख्त रूख अपनाते हुए कठोर कदम उठाये हैं, उसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। ऐसे में किसी भी देश को अपने देश की आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा के लिए हर सम्भव उपाय तथा कार्रवाई किया जाना जरूरी है। राष्ट्रपति मैक्रांे का यह कहना भी सही है कि वे अपनी संस्कृति, मूल्यों और स्वतंत्रता पर हमला किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं करेंगे। वे पैगम्बर मुहम्मद साहब के चित्र बनाये जाने से असहमत होते हुए भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में व्यंग्य चित्र बनाने पर प्रतिबन्ध नहीं लगा सकते है। वह अपने मुल्क में इस्लामिक अलगाव को किसी भी हालत में मंजूर नहीं करेंगे। आज दुनियाभर में इस्लाम खतरों से जूझ रहा है, जिसकी मजहबी और सियासी वजह हैं। दुनिया के जिस मुल्क में भी मुुुसलमान रहते हैं, वहाँ वे खुद की मजहबी आजादी तो चाहते हैं, पर दूसरों को वैसी स्वतंत्रता देना उन्हें पसन्द नहीं है, जो उन्हें वहाँ के संविधान और परम्पराओं से हासिल है। इस तरह वे उस मुल्क में खुद के मजहब की हिफाजत की आड़ में अपना सियासी एजेण्डा लागू करना चाहते हैं। इसके विपरीत मुस्लिम बहुल मुल्कों में गैर मुसलमानों के साथ दूसरे-तीसरे दर्जे का बर्ताव करते हुए उन्हें किसी भी तरह की मजहबी आजादी देना गंवारा नहीं है। पाकिस्तान, मलेशिया, बांग्लादेश इसके नमूने भर हैं। उनकी इस मानसिकता का सबसे बड़ा शिकार भारत भी है। हाल में तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयप एर्दोगन द्वारा हागिया सोफिया

संग्रहालय को फिर से मस्जिद में तब्दील कर दिया, जो मूलतः अत्यन्त प्राचीन महत्त्वपूर्ण गिरजाघर(चर्च)है। इसे एक मुसलमान हमलावर ने मस्जिद में बदल दिया था। अब किसी भी इस्लामिक रहनुमा और मुल्क ने एर्दोगन के इस कदम की मुखालफत नहीं की। क्या इससे ईसाइयों की धार्मिक भावनाएँ आहत नहीं हुई होंगी? क्या तब किसी ईसाई ने किसी का सिर कलम किया? अपने मजहबी एजेण्डे के तहत ही इस्लामिक कट्टरपन्थी अब तक जम्मू-कश्मीर की स्वायत्ता की माँग और अलगाववादी, दहशतगर्दी हरकतों की खुलेआम या फिर खामोश रहकर तरफदारी करते रहे हैं। जब उससे सम्बन्धित अनुच्छेद 370और 35ए खत्म कर दिये, तब उसकी खुन्नस निकालने के लिए ये लोग ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’की मुखालफत में देश को जलाने पर उतर आए। इनमें से कुछ अब भी बाकायदा टी.वी.चैनलों बैठकर भारत में ‘निजाम-ए-मुस्तफा’कायम करने के बयान देते है,तो कुछ अयोध्या में फिर से बाबरी मस्जिद खड़ी करने के। फिर भी कोई किसी का गला नहीं रेतता। ये इस्लामिक कट्टरपन्थी खुद के सियासी और दूसरे फायदों के लिए अक्सर संवैधानिक अधिकारों की दुहाई देते रहते हैं, लेकिन जब उसकी वजह से कुछ बन्दिश लगती हैं, तो मजहब और शरीयत का राग अलापने से भी नहीं चूकते। अब दहशतगर्द संगठन ‘अल-कायदा’ ने फ्रान्स के राष्ट्रपति मैक्रों की जान लेने की धमकी दी है तथा पैगम्बर की तौहीन करने वालों को मुसलमानों को मारने का हक है।

अब फ्रान्स इस्लामिक कट्टर विचारों और बर्ताव को असहिष्णु धार्मिक विचारधारा से स्वयं को बचाना चाहता है, ताकि उसके मुल्क में रहने वाले मुसलमान फ्रान्स के संविधान, कानून, बुनियादी उसूलों के मुताबिक खुद को ढालें और वैसा ही बर्ताव करें, न कि दुनिया के दूसरे कट्टरपन्थियों के मुताबिक। उनके इन ख्यालात में क्या गलत है? फिर भी राष्ट्रपति मैक्रों की कार्रवाई के खिलाफ दुनियाभर के ज्यादातर इस्लामिक मुल्कों ने राष्ट्रपति मैक्रों पर व्यक्तिगत हमलों के साथ फ्रान्स के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने फ्रान्स में निर्मित वस्तुओं के बहिष्कार का ऐलान भी कर दिया। इसके बाद दुनिया ईसाई और मुस्लिम मुल्कों के बीच बँट-सी गई है। तुर्की, पाकिस्तान, मलेशिया, जोर्डन,कतर, सऊदी अरब, बांग्लादेश, इण्डोनेशिया समेत कई मुल्क घोर विरोध पर उतर आए हैं। यहाँ तक कि मलेशिया के पूर्व राष्ट्रपति प्रधानमंत्री महातिर मुहम्मद ने न सिर्फ फ्रान्सीसी शिक्षक सैम्युल पैटी का सिर कलम किये जाने को सही ठहराया, बल्कि पूर्व के नर संहारों के लिए मुस्लिमों के नाराज और लाखों फ्रान्सीसियों की कत्ल करने का हक है। चूँकि आपने एक नाराज आदमी के काम के लिए मुसलमानों के मजहब को गुनाहगार ठहराया। इसलिए मुसलमानों को फ्रान्सीसियों को सजा देने का हक है।’ अगर बयान किसी दहशतगर्द गुट के सरगना ने दिया होता, तो उसमें कुछ भी गलत नजर नहीं आता।लेकिन एक पूर्व राष्ट्रपति और बुजुर्ग सियासी नेता के मुँह से निकले ऐसे बयान का सिर्फ आपत्तिजनक कह खारिज नहीं किया जा सकता। हालाँकि वह अकेेले ऐसे मुस्लिम मुल्क के सियासी नेता नहीं हैं, जिन्होंने हालिया घटनाक्रमों में दौर में फ्रान्स और मैक्रों के खिलाफ जहर उगला हो। जहाँ तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन ने राष्ट्रपति मैक्रों को अपने दिमाग का इलाज कराने को कहा है, वहीं पाकिस्तान इमरान खान ने कुछ ऐसा ही कहा है। दुनियाभर के दूसरे इस्लामिक कट्टरपन्थी मैक्रों के लिए बुरे से बुरे से अपशब्द तथा गालियाँ बकते हुए फ्रान्स को नेस्तानाबूद करने हांक लगा रहे हैं। इनमें से अपवाद स्वरूप भी किसी ने भी फ्रान्स के शिक्षक और दूसरे लोगों को बेरहमी से मारे जाने की मजम्मत नहीं की है। इस पर ये कट्टरपन्थी अपने मजहब को अमन पसन्द बताते हुए उसका बचाव करते आए हैं। दुनिया के लोग भी इस हकीकत को मंजूर करते हैं कि सारे मुसलमान कट्टरपन्थी, दहशतगर्द, खूनी नहीं है। इसी वजह से आतंक का कोई मजहब नहीं होता, ऐसा कहते आ रहे हैं। पर यह भी हकीकत है कि भारत समेत दुनियाभर में दहशतगर्दी में लिप्त एक खास मजहब के ही पाए जाते हैं। इधर फ्रान्स की घटना से नाराज तथा फेसबुक पर इस्लाम के खिलाफ टिप्पणी करने की अफवाह पर बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपन्थियों ने हिन्दुओं के घरों पर तोड़फोड़, आगजनी तथा लूटपाट की है, क्या उन्होंने इस्लाम की तौहीन की थी? फिर किसी भी भारतीय मुसलमान ने उनकी मजम्मत करने की जहमत नहीं उठायी है? फिर वे क्यों उठायें? जब सत्ता के लालची, खुदर्गज उनकी असलियत जानते हुए भी हर मामले में तरफदारी को जो खड़े हैं।
ंभारत स्वयं लम्बे समय से इस्लामिक कट्टरता, अलगाववाद और दहशतगर्दी से जूझ रहा है और इसके खिलाफ मुहिम भी चला रहा है। ऐसे में भारत का फ्रान्स में इस्लामिक दहशतगर्दी की वारदातों की निन्दा के साथ उसे समर्थन दिया जाना सर्वथा उचित और साहसिक कदम है। विश्वभर के जो इस्लामिक देश आज जिस फ्रान्स के विरुद्ध घृणा प्रदर्शित करते हुए जिहाद कर रहे हैं, उसी ने दुनियाभर के सताये हुए मुसलमानों को खुले दिल से अपने यहाँ पनाह, कानूनी हक और जिन्दगी की हर किस्म की सुख-सुविधाएँ मुहैया करायी हुई हैं। इस समय फ्रान्स में कोई 50 लाख मुसलमान हैं, जिन्हें मस्जिद, नमाज, रोजा, जकात,हज आदि सभी की आजादी है। अब यहाँ सवाल यह है कि क्या फ्रान्स में पनाह लेने आए इन मुसलमानों को इस मुल्क के स्वतंत्रता, समानता, बन्धुत्व के साथ अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता ,उदारवाद ,खुलेपन की जानकारी नहीं थी? अगर थी,तो उन्हें अब दिक्कत क्यों है?
अब प्रश्न यह है कि क्या उनकी खुशी के लिए फ्रान्स अपने संविधान और खुद को बदलें?क्या उसने मुसलमानों को पनाह देकर कोई जुर्म किया है?जिसकी सजा वह भुगते? यहाँ 29अक्टूबर को फ्रान्स के नीस के गिरजाघर में इस्लामिक कट्टरपन्थी द्वारा ‘अल्लाहु अकबर’ को नारा लगाते हुए एक महिला का सिर कलम करते हुए दो अन्य लोगों को मौत के घाट उतार दिया। यह 21 वर्षीय हमलावर ट्यूनीशिया का बाशिन्दा है। इसी दिन दक्षिण फ्रान्स के एविग्वन शहर के पास मोंटफेवेट में एक बन्दूकधारी को ढेर कर दिया,जो ‘अल्लाहु अकबर’ का नारा लगाते हुए लोगों को धमका रहा था। इसी दौरान सऊदी अरब के जेद्दा शहर के फ्रान्सीसी वाणिज्य दूतावास के गार्ड पर चाकू से हमला कर दिया। यह इस्लामिक कट्टरपन्थी हमलावर सऊदी अरब का नागरिक है।
फ्रान्स की मजहबी कट्टरता की आग में भारत भी अब झुलस रहा है। पंथनिरपेक्षता और इन्सानियता,सहिष्णुता का राग अलापने वाले साहित्यकारों, कवियों का अवॉर्ड वापसी गिरोह, फिल्मी कलाकारों आमिर खान,शाहरुख,सलमान खान,जावेद अख्तर,शबाना आजमी, अनुराग कश्यप, जावेद जाफरी, स्वरा भास्कर, तापसी पन्नू, फरहान अख्तर आदि फ्रान्स में सिर कलम काटनंे की घटना पर खामोश हैं।
अपने यहाँ मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक काँग्रेसी विधायक आरिफ मसूद की अगुवाई में हजारों मुसलमानों ने फ्रान्स और उसके राष्ट्रपति की मुखालफत में जुलूस निकाला।उसी दिन मुम्बई के भिण्डी बाजार में एक इस्लामिक संगठन ने राष्ट्रपति मैक्रों के चित्र छाप कर सड़कों पर चिपका दिये,जिस पर इस्लामिक कट्टरपन्थियों ने जूते-चप्पलों से रौंदा और हजार वाहन उसे कुचलते हुए गुजरे।क्या ऐसा करके उन्होंने अपने देश का अपमान नहीं किया,जिसने फ्रान्स की कार्रवाई का समर्थन किया है? अपने देश में कुछ जगहों पर ये कट्टरपन्थी राष्ट्रपति मैक्रों का चित्र जलाते, तो कहीं गला काटते दिखे। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में छात्रों ने ‘गुस्ताखे रसूल की एक सजा,सिर तन से जुदा’जैसे नारों के साथ जुलूस निकाला। देश के प्रसिद्ध शायरों शुमार मुनव्वर राणा ने तो अपनी हिमाकत से अपने शायर होने पर ही सवालिया निशान लगा दिया। उन्होंने खुले तौर पर फ्रान्स में हुए कत्लेआम को न सिर्फ जायज ठहराया,बल्कि कत्लेआम का ऐलान -सा दिया। मुनव्वर राणा की इस ओछी हरकत को देखकर यह लगता है कि उन्होंने अब अपनी कलम फेंक कर दहशतगर्दी के हथियार को आजमाने का फैसला कर लिया है।उनकी राह में चलने वालों की अपने मुल्क में कमी नहीं है। काँग्रेसी की कर्नाटक की इकाई ने तो चन्द्रशेखर राव की सरकार से बकायदा फ्रान्स की वस्तुओं के बहिष्कार करने की माँग की है। देश में भाजपा को छोड़कर वाम दल समेत किसी भी सियासी पार्टी ने फ्रान्स में मजहबी हिंसा के खिलाफ आवाज नहीं उठायी है।
वैसे अब समय आ गया है जब फ्रान्स ,यूरोपीय देशों ही नहीं,भारत समेत दुनिया के मुल्कों को इस्लामी कट्टरवाद से बचाव के लिए अपने यहाँ के मुसलमानों को साफ तौर पर यह बताना-जताना होगा कि वे उन्हें मजहबी आजादी तो दे सकते हैं, पर इसके बहाने उन्हें सियासी मंसूबे पूरे करने की आजादी नहीं दे सकते। उन्हें उस देश के संविधान और दूसरे कानून के अनुसार हर तरह की स्वतंत्रता है, पर वे खुद के मजहब की आड़ में दूसरों की स्वतंत्रता में बाधक न बनें। इसमें ही मुसलमानों का हित है। ऐसे किये बगैर मुसलमानों का दुनियाभर के मुल्कों से विवाद खत्म होना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है। इसलिए अमन -चैन की चाहत रखने वाले मुसलमानों को दूसरों के ख्यालात और रवायतों की ख्याल रखने की आदत डाल लेनी चाहिए।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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