राजनीति

कब होगी वतन फरोशों के खिलाफ कार्रवाई?

साभार सोशल मीडिया

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

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कश्मीर घाटी के कथित राजनेताओं द्वारा अपनी रिहाई के तुरन्त बाद लगातार देश के खिलाफ जहर उगलते हुए मजहबी अलगाववाद को फिर से हवा देने की जैसी कोशिश कर रहे है, उससे उन्होंने गत 5 अगस्त, 2019 से पहले केन्द्र सरकार के उनके गिरपतार किये जाने के फैसले को सही साबित कर दिया है। अब ‘पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी’ (पी.डी.पी.)की अध्यक्ष एवं जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुपती कह रही हैं कि जब तक हमें अपना झण्डा नहीं मिलेगा, हम कोई दूसरा झण्डा(तिरंगा) नहीं उठाएँगा, ऐसा कहकर उन्होंने दुश्मन मुल्क पाकिस्तान और चन्द इस्लामिक कट्टरपन्थियों के दिलों में भले ही संविधान के अस्थायी अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली की उम्मीद भले ही पैदा करने के साथ थोड़ा सुकून दिया हो, जिन्हें देश की गत 5 अगस्त, 2019 में संसद दो तिहाई बहुमत से खत्म कर चुकी है, जो एक तरह से इतिहास बन गए हैं। इनके खत्म होने से ये लोग अब बेहद हताश-निराश हैं और तब से ही मातम मना रहे हैं। इसकी वजह भी वाजिब है, क्योंकि इनके खत्म होने से उनकी सियासत खत्म होने के साथ इस सूबे को ‘दारूल इस्लाम’ में तब्दील करने का ख्वाब टूटता नजर आ रहा है। फिर भी इनमें से कश्मीर घाटी के कथित वतनफरोश रहनुमा अब भी उन अनुच्छेदों की बहाली के ख्वाब देख रहे हों, जो इस्लामिक कट्टरता को बढ़ावा देने, मजहबी अलगाव, आतंकवाद, अपने ही वतन के खिलाफ नफरत, बगावत, गैर मुसलमानों, शिया और दूसरी इस्लामिक फिरकों के साथ मजहबी अलगाव, उन पर जुल्म, गैर इन्साफी करने, मजहबी भेदभाव दहशतगर्दी फैलाने के औजार बन हुए थे। अब डॉ.फारूक अब्दुल्ला की अध्यक्षता में अनुच्छेद 370 और 35 ए की बहाली के लिए कश्मीर घाटी में सक्रिय छह सियासी पार्टियों (एन.एसी, पी.डी.पी.,पी.सी.,ए.एन.सी.,सी.पी.एम.,जे.के.पी.एम.) के गठबन्धन ‘पीपुल्स एलायन्स ऑफ गुपकार डिक्लेरेशन’(गुपकार) पूर्व में बने दहशतगर्दीपरस्त ‘हुर्रियत कान्फ्रेंस’को नया संस्करण है,जिसका हश्र का अन्त भी उसी जैसा होगा। इसकी वजह यह है कि इन सियासी पार्टियों के नेता इन सूबों की जमीनी हकीकत को मंजूर करने के बजाय जानबूझकर नकार रहे है, जो पहले से एकदम अल्हदा है। गत वर्ष अनुच्छेद 370 और 35 ए के हटाये जाने के बाद अब नव गठित केन्द्र शासित जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोग कश्मीर घाटी के चन्द इस्लामिक कट्टरपन्थी सियासी नेताओं, अलगावादियों, दहशतगर्दों, मुल्ला, मौलवियों के सिवाय सभी पहले से बेहतर हालत में महसूस कर रहे हैं। लद्दाख और जम्मू की जनता कश्मीरी घाटी के इन भ्रष्ट और खुदगर्ज नेताओं की सरकारों में अपने साथ होेने वाली गैर इन्साफी और भेदभाव से खुद को आजाद महसूस कर रही है, वहीं कश्मीर घाटी के लोग भी इनकी असलियत जान गए हैं कि ये उन्हें और उनके बच्चों में इस्लामिक कट्टरता फैलाकर उन्हें वतन के खिलाफ भड़कते आकर उनका खून बहाते आए हैं,जबकि ये खुद ऐशो-आराम की जिन्दगी बसर करते हुए अपने बच्चों को देश-विदेश के महँगे शिक्षण संस्थानों में पढ़ाते आए हैं। यही कारण है कि अब जम्मू-कश्मीर घाटी में लोग महबूबा मुपती के झण्डे को लेकर बयान जगह-जगह खुलकर मुखालफत कर रहे हैं। जावीद अहमद कुरैशी जैसे लोग इन्हें पाकिस्तान में धकेलने की बात कर रहे हैं। महबूबा मुपती भले ही अनुच्छेद 370 को डाका डाल कर ले जाने की बात कह रही है,लेकिन इस सूबे की जनता जान गई है कि उनके हकों पर अब तक कौन डाका डालता आया है।
वह और डॉ.फारूक अब्दुल्ला दुश्मन पाकिस्तान और चीन की मदद से भी तब्दील नहीं करा सकते। वैसे भी महबूबा मुपती ऐसा कोई पहली बार नहीं कह रही हैं। इससे बहुत पहले से कहती रही हैं। लेकिन वह यह भूल रही हैं कि तिरंगा न उठाने की उनकी इस धमकी अब फिजूल है। अब कश्मीर में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो खुशी- खुशी तिरंगा उठाने को तैयार हैं। महबूबा मुपती की यह धमकी भी अब बेमानी है कि जब तक हमारा हक हमें नहीं लौटाया जाएगा, हम चुनाव भी नहीं लड़ेंगे। इसकी वजह यह है कि अनुच्छेद 370 की वापसी अब असम्भव है। इसे इन अलगाववादियों के हिमायती मुल्क पाकिस्तान और चीन भी बहाल नहीं करा सकते। अब रही बात चुनाव न लड़ने की, तो उसका जवाब यह है कि वे चुनाव लड़े ऐसा भला अब कौन चाहता है? जम्मू-कश्मीर के लोग उनके पिता मुती मुहम्मद सईद और उनकी सरकारों का शासन देख और भुगत चुके हैं। अब उन्हें फिर से सत्ता में देखना पसन्द नहीं करते। महबूबा मुपती भले 5 अगस्त, 2005 के बाद जम्मू-कश्मीर पर भारत का अधिकार नाजायज मानती रहें,पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों हमेशा से इस भूभाग को भारत को अभिन्न हिस्सा और स्वयं भारतीय मानते आए हैं। अब ये लोग पहले से अधिक सहज अनुभव करते हैं। अगर कोई अब असहज महसूस करत रहा है तो वतनफरोश महबूबा मुपती और डॉ.फारूका अब्दुल्ला जैसे चन्द आस्तीन के साँप है,जो अब तक इस सूबे को अपने बाप की जागीर समझ कर राज करते आए और इस पर ‘निजाम-ए-मुस्तफा’यानी ‘दारूल इस्लाम’ में तब्दील करने में लगे थे । उनका यह भी कहना है कि वह अनुच्छेद 370 को नहीं भूल सकती।ऐसा कहकर महबूबा मुपती ही हकीकत ही बयां कर रही है,क्योंकि अनुच्छेद 370के बगैर उनका और डॉ.फारूक अब्दुल्ला सरीखे नेताओं का अब इस सूबे में सत्ता आना नामुमकिन है, क्यों कि विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन के बाद उनके इस्लामिक कट्टरपन्थी उम्मीदवारों का आसानी से चुनाव जिताना आसान नहीं होगा। इस हालत में वह और डॉ.फारूक अब्दुल्ला का इस सूबे की बागडोर आना मुश्किल है। इसी बहाने महबूबा मुपती का अब यह कबूलनामा भी दुनिया के सामने आ ही गया कि कश्मीर मसले के लिए यहाँ हजारों कश्मीरी नौजवानों ने अपनी जान दी है। दरअसल, इस मसले की आड़ में वे ही कश्मीरी युवाओं के अपने देश के खिलाफ हिंसा और अलगाववाद के लिए भड़काती आयी हैं।
इसी तरह रिहा होने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष एवं जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.फारूक अब्दुल्ला ने कहा था कि चीन के साथ भारत का गतिरोध हमारे लिए अच्छा है, क्यों कि इससे अनुच्छेद 370 को वापस लाया जा सकता है। घाटी के कश्मीरी चीन शासित होना बेहतर समझेंगे। ऐसा कह कर डॉ.अब्दुल्ला ने यह जता दिया कि अपनी सत्ता के लिए उन्हें देश के दुश्मन मुल्कों पाकिस्तान और चीन से हाथ मिलाने से भी कतई गुरेज नहीं है। प्रत्यक्ष और अपरोक्ष वे और उन जैसी मानसिकता वाले दूसरे इस्लामिक कट्टरपन्थी भी पाकिस्तान की तरफदारी तो अर्से से करते आए हैं। डॉ.फारूक अब्दुल्ला तो यहाँ तक कह चुके हैं कि गुलाम कश्मीर क्या तुम्हारे बाप है,जो उसे ले लोगे? उसे लेने की ताकत भारतीय सेना में भी नहीं है। अब वह अनुच्छेद 370की बहाली के लिए चीन से हाथ मिलाने की उतावली दिखा रहे हैं। उनके ये विचार निश्चित रूप से निन्दनीय और शर्मनाक ही नहीं,बल्कि पूरी तरह देश विरोधी भी हैं, जो उन्होंने अनायास और किसी तरह की उत्तेजना के वशीभूत होकर नहीं दिया है।
महबूबा मुपती की यह धमकी भी अब बेमानी है कि जब तक हमारा हक हमें नहीं लौटाया जाएगा,हम चुनाव भी नहीं लड़ेंगे। इसकी वजह यह है कि अनुच्छेद 370 की वापसी अब असम्भव है।इसे इन अलगाववादियों के हिमायती मुल्क पाकिस्तान और चीन भी बहाल नहीं करा सकते। अब रही बात चुनाव न लड़ने ।तो उसका जवाब यह है कि वे चुनाव लड़े ऐसा भला अब कौन चाहता है? जम्मू-कश्मीर के लोग उनके पिता मुपती मुहम्मद सईद और उनकी सरकारों का शासन देख और भुगत चुके हैं। अब उन्हें फिर से सत्ता में देखना पसन्द नहीं करते। महबूबा मुपती भले 5अगस्त, 2005 के बाद जम्मू-कश्मीर पर भारत का अधिकार नाजायज मानती रहें,पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों हमेशा से इस भूभाग को भारत को अभिन्न हिस्सा और स्वयं भारतीय मानते आए हैं।अब ये लोग पहले से अधिक सहज अनुभव करते हैं। अगर कोई अब असहज महसूस करत रहा है तो वतनफरोश महबूबा मुपती और डॉ.फारूका अब्दुल्ला जैसे चन्द आस्तीन के साँप है,जो अब तक इस सूबे को अपने बाप की जागीर समझ कर राज करते आए और इस पर ‘निजाम-ए-मुस्तफा’यानी ‘दारूल इस्लाम’ में तब्दील करने में लगे थे । उनका यह भी कहना है कि वह अनुच्छेद 370 को नहीं भूल सकती। ऐसा कहकर महबूबा मुपती ही हकीकत ही बयां कर रही है,क्योंकि अनुच्छेद 370के बगैर उनका और डॉ.फारूक अब्दुल्ला सरीखे नेताओं का अब इस सूबे में सत्ता आना नामुमकिन है,क्योंकि विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन के बाद उनके इस्लामिक कट्टरपन्थी उम्मीदवारों का आसानी से चुनाव जिताना आसान नहीं होगा।इस हालत में वह और डॉ.फारूक अब्दुल्ला का इस सूबे की बागडोर आना मुश्किल है। इसी बहाने महबूबा मुपती का अब यह कबूलनामा भी दुनिया के सामने आ ही गया कि कश्मीर मसले के लिए यहाँ हजारों कश्मीरी नौजवानों ने अपनी जान दी है। दरअसल, इस मसले की आड़ में वे ही कश्मीरी युवाओं के अपने देश के खिलाफ हिंसा और अलगाववाद के लिए भड़काती आयी हैं। फिर जब इन पत्थरबाजों को सुरक्षा बलों गिरपतार द्वारा किया जाता था,तब वह और उनके पिता सत्ता में रहते हुए उन्हें बेचारा, बेकसूर बताते हुए बेशर्मी से मुकदमे वापस लेती रहीं। उनका कहना है कि उन जैसे नेताओं को कुर्बानी की बारी है, तो इसके उन्हें किसने रोका है? लेकिन डॉ.फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुपती,उमर अब्दुल्ला समेत दूसरे नेताओं को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि खुद उनके सूबे के लोग ही उनकी वतनफरोशी का जवाब दे देंगे।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर
पी.डी.पी.-9411684054

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