डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला की अगुवाई में केन्द्रित राजनीतिक दलों ने मिलकर अनुच्छेद 370 की बहाली को लेकर जिस ‘पीपुल्स एलायन्स फॉर गुपकार डिक्लेरेशन’ का गठन किया, उससे स्पष्ट है कि ये लोग अब भी इस सूबे की जमीनी हकीकत को मंजूर करने को तैयार नहीं हैं और इसे ये लोग फिर से मजहबी कट्टरता और अलगाववाद की आग में झोंकना चाहते हैं, जिसमें कई दशक से यह जलता आ रहा था। इस घोषणा से पहले से डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने चीन के मदद से अनुच्छेद 370 की बहाली की उम्मीद जतायी थी, जो इस समय अपने 60 हजार सैनिक वर्तमान में पूर्वी लद्दाख में तैनात किये हुए है और भारत को जंग की धमकी दे रहा है और लद्दाख और अरुणाचल को भारत का हिस्सा नहीं मानता। इतना ही नहीं,चीन सन् 1962के युद्ध में लद्दाख के बहुत बड़े आक्सईचिन इलाके को हथिया चुका है, अब उसकी गिद्ध दृष्टि बाकी लद्दाख और गुलाम कश्मीर पर लगी हैं। इससे जाहिर है कि डॉ.फारूक अब्दुल्ल्ला को अपने सत्ता के लिए दुश्मन मुल्क से हाथ मिलाने से कतई गुरेज नहीं है। अगर यह देशद्रोह नहीं है, तो क्या है? कश्मीर घाटी के सियासी रहनुमाओं का लबादा ओढ़े कश्मीर घाटी के ये लोग हकीकत में इस्लामिक कट्टरपन्थी हैं, फिर भी उस चीन से हाथ मिलाने और उसमें कश्मीर के विलय को भारत से बेहतर बता रहे हैं, जहाँ शिनजियांग (ईस्ट तुर्की) के उइगरों मुसलमानों की हजारों मस्जिदें जमींदोज कर दी गई हैं और उन पर नमाज पढ़ने,रोजा, दाढ़ी, अरबी नाम रखने पर पाबन्दी है। कोई दस से बारह लाख उइगर मुसलमानों को यातना शिविरों में रखा गया है। इसी तरह चीन द्वारा इनर मंगोलिया के मुसलमानों को उनकी भाषा के स्थान पर चीनी भाषा पढ़ने को मजबूर किया जा रहा है।फिर इनमें किसी भी कश्मीरी नेता ने आज तक पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले गुलाम कश्मीर, हुंजा,स्कर्दू,गिलगित बाल्टिस्तान और चीन से आक्साईचिन वापस लेने की माँग क्यों नहीं की,क्या पाकिस्तान और चीन के कब्जे वाला इलाके जम्मू-कश्मीर का अभिन्न हिस्से नहीं हैं?इससे इन सभी का दोगला चरित्र से सिद्ध होता है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर के लोगों को यह अन्दाज लगाना मुश्किल नहीं कि उनके ये कश्मीरी रहनुमा न अपने मुल्क के सगे हैं और न ही अपनी कौम के। इनके लिए सत्ता ही सबकुछ है, जिसके ये कुछ भी कुर्बान करने को तैयार हैं। वैसे भी इस मामले में काँग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री पी.चिदम्बरम् का कश्मीर घाटी के सियासी रहनुमाओं के नक्शे कदम पर चलते हुए अनुच्छेद 370 की बहाली की माँग करना और उनकी पार्टी द्वारा उनके बयान का खण्डन न करना अत्यन्त क्षोभजनक और राष्ट्रीय हित के पूरी तरह से विपरीत है। इससे काँग्रेस की राष्ट्र घाती और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीति का प्रबल प्रमाण भी है।

इस ‘गुपकार घोषणापत्र’ का उद्देश्य राज्य में 5 अगस्त, सन् 2019 से पहली वाली स्थिति का बहाल करना है, जिसे देश की संसद ने ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019’ को बहुमत से पारित कर बदला है। इसके जरिए जम्मू-कश्मीर को दो केन्द्र शासित दो राज्यों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया। उस समय जम्मू और लद्दाख के कारगिल जिले के चन्द मुसलमानों को छोड़ कर अधिकांश लोगों द्वारा हर्ष व्यक्त किया गया, जो देश की आजादी के बाद से कश्मीर घाटी के इस्लामिक कट्टरपन्थी रहनुमाओं की सरकारों के हर तरह के भेदभाव से बेहद परेशान थे और उनके चंगुल से छुटकारा पाने को बेकरार थे। जहाँ अनुच्छेद 370 के जरिए ये लोग इस सूबे की सत्ता इस्लामिक कट्टरपन्थियों के हाथों में रखना चाहते हैं, वहीं अनुच्छेद 35ए के माध्यम से कमजोर, पिछड़ों, दलितों, महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किये हुए थे। अब ये दोनों अनुच्छेद इतिहास बन गए हैं, जिनकी बहाली मुश्किल ही नहीं, असम्भव है। फिर भी ये कश्मीर के रहनुमा मुंगेरी लाल की तरह हसीन सपने देख रहे हैं। अब आप कहेंगे, आखिर ये घाटी के कश्मीरी नेता अनुच्छेद 370 को फिर से बहाल करने को इतने बेचैन क्यों हैं? इसका जवाब यह है कि इन्होंने अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर को भारत से जोड़ने का नहीं, उससे तोड़ने और यहाँ की सत्ता को हमेशा के लिए मुसलमानों के लिए महफूज बनाने जरिया बन लिया था, इतना ही नहीं, इसके लिए हिन्दू बहुल जम्मू में ये साजिशन ‘रोशनी एक्ट’ आदि बनाकर कश्मीर घाटी के मुसलमानों को वनों ,नहरों, नदियों समेत खाली सरकारी जमीन पर बसा कर और लद्दाख को ‘लव जिहाद’ के जरिए बौद्ध युवतियों का धर्मान्तरण कराके सालों से इन्हें मुसलमान बहुल बनाने में जुटे हुए थे। वैसे भी जम्मू-कश्मीर सिर्फ कश्मीर घाटी नहीं, बल्कि इसमें जम्मू और लद्दाख जैसे बड़े इलाके हैं,जहाँ के बाशिन्दे शुरू से ही अनुच्छेद 370 और 35ए का मुखर विरोध करते रहे थे और इनके हटाने से खुश हैं। जहाँ तक कि कश्मीर घाटी के नेताओं का प्रश्न है तो ये खुद को भारतीय नहीं, कश्मीर बताने में फक्र महसूस करते आये हैं और देश के बाकी लोगों के साथ परदेसी सरीखा बर्ताव करते थे। अब अनुच्छेद 370खत्म होने के बाद इसके बौद्ध बहुल एक बड़े इलाके लद्दाख के इससे अलग होने और जम्मू-कश्मीर के केन्द्र शासित सूबा बनने से इन दोनों नये सूबों की सत्ता की बागडोर केन्द्र सरकार के हाथ में चली जाने से अब इस सूबे को ‘दारूल इस्लाम’ में तब्दील करने का उनका एजेण्डा पूरा होना नामुमकिन हो गया है।फिर केन्द्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी’(एन.आइ.ए.) से कश्मीर घाटी के दहशतगर्दो, अलगावादियों और मुल्ला-मौलवियों को पाकिस्तान समेत इस्लामिक मुल्कों से मिलने वाले धन की जाँच कर उसे बन्द कर दिया, जिसके जरिए खुद ऐशो-आराम की जिन्दगी बसर करते हुए कुछ धन देकर युवाओं को जिहादी बनाकर पत्थरबाजी और हिंसा कराते थे। अब बगैर विदेशी मदद के वे भी अपने कारनामों से तौबा कर रहे हैं।
अब नेशनल कॉन्फ्रेंस, पी.डी.पी.,पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेण्ट जिसे ‘पीपुल्स एलायन्स ऑफ गुपकार डिक्लेरेशन’ बता रहे हैं, सही माने में यह ‘पीपुल्स एलायन्स’ जनता का गठजोड़ न होकर ‘इस्लामिक कट्टरपन्थियों’ का एलायन्स है, जो अब तक मिलजुल कर बारी-बारी से सत्ता के जरिए सूबे को लूट कर खा रही थी। इन तथाकथित रहनुमाओं का कश्मीर की आम जनता से दूर-दूर का कभी रिश्ता नहीं है, जो इस सूबे में खून- खराबे और अराजकता से आजिज आ चुकी है और अमन-चैन से अपनी जिन्दगी बसर करना चाहती है।
अब राष्ट्रीय हितांे को नुकसानदेह इस मुद्दे पर यहाँ सियासी पार्टियों की एकजुटता ने एकबार फिर साबित कर दिया कि ये लोग अलग-अलग सियासी पार्टियों में भले ही दिखायी देते हैं,लेकिन इन सभी का मकसद जम्मू-कश्मीर को ‘निजाम-ए-खलीफा’या‘दारूल इस्लाम’ में तब्दील करना और पाकिस्तान के हवाले करना है। आजादी के बाद से ये सभी कश्मीरियत,जम्हूरियत,इन्सानियत का नारा लगाते हुए अपने इस्लामिक एजेण्डे पर काम करते हुए इस सूबे को हिन्दू, बौद्ध,सिख विहीन करने में लगे रहे हैं। इनकी वजह से दहशतगर्द पाकिस्तानी घुसपैठिये और स्थानीय आतंकवादी और अलगाववादी फलते-फूलते रहे। मस्जिदें इनकी पनाहगाह और इस्लामिक कट्टरवाद तथा हिन्दुस्तान के खिलाफ प्रचार के अड्डे का काम कर रही थीं। पुलिस-प्रशासन हिन्दुओं, बौद्धों, सिख,गैर सुन्नी मुसलमानों के साथ भेदभाव ही नहीं,दमनकारी नीति अपनाता आया था।सूबे में खुले आम हर जुम्मे की नमाज के बाद मस्जिदों से निकल कर दुनिया का सबसे दहशतगर्द इस्लामिक संगठन‘आइ.एस.और पाकिस्तान के झण्डे लहराते हुए पाकिस्तान जिन्दाबाद,हिन्दुस्तान मुर्दाबाद ,अल्लाह हो अकबर आदि नारे और सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाये जाते थे,लेकिन इनमें से कभी किसी ने उनकी मजम्मत नहीं की।उल्टे पत्थरबाजों को पैलेट गन की गोलियाँ लगने और गिरपतार युवाओं से हमदर्दी के साथ उन्हें रिहा कर दिया जाता था और सुरक्षा बलों पर मानवाधिकारों के उल्लंघन एवं जुल्म ढहाने की तोहमत लगायी जाती थी। सन् 1990 में इनकी साजिश से दहशतगर्द कश्मीर घाटी से कई लाख कश्मीरी पण्डितों को अपना सबकुछ छोड़कर पलायन को मजबूर हुए,क्योंकि उनकी बेटियों के साथ बलात्कार और उनकी हत्याएँ की जा रही थी। ये कश्मीर पण्डित अब भी खानाबदोश की तरह जम्मू और देश के दूसरे शहरों में रह रहे हैं।
केन्द्र सरकार ने 5अगस्त, 2019 से पहले जिन इस्लामिक कट्टरपन्थी अलगाववादी नेताओं को शान्ति भंग की आशंका में गिरपतार किया था उनमें से बड़ी संख्या में धीरे-धीरे रिहा कर दिये गए। डॉ.फारूक अब्दुल्ला,उनके बेटे उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुपती भी उनमें शामिल हैं,लेकिन रिहा होते ही इन्होंने अपना पुराना राग अलापना शुरू कर दिया है,जबकि सरकार इनसे यह उम्मीद कर रही थी कि ये लोग नये हालात में खुद को ढाल कर राजनीतिक गतिविधियाँ शुरू करेंगे,पर यह उसका उल्टा कर रहे हैं। ऐस में केन्द्र और राज्य सरकार को इनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने और देश के विरुद्ध काम करने तथा अमन-चैन बिगाड़ने जाने पर इनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करने को भी तैयार रहने की जरूरत है, ताकि इस जमीं की जन्नत को फिर से सुलगाने से महफूज रखा जा सके।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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