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तब बन्द होगा चीन का मुँह

साभार सोशल मीडिया

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

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गत दिनों भारत का जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और अरुणाचल उसके सदैव से अभिन्न हिस्से थे, हैं और रहेंगे बताते हुए चीन को उसके आन्तरिक मामलों में बोलने का कोई अधिकार नहीं होने और हस्तक्षेप करने से दूर रहने की, एक बार फिर कठोर शब्दों में जो चेतावनी दी, वह सर्वथा उचित और अत्यन्त समीचीन भी है, लेकिन चीनी सेना की गत मई में लद्दाख और सिक्किम में घुसपैठ की कोशिशें और वर्तमान में पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग इलाके में 60 हजार से अधिक सैनिकों की तैनाती और बार-बार हमले को धमकाने को देखते हुए उसे खुलकर जैसे को तैसा जवाब देने के साथ उसके जुल्मी घिनौने, अतिक्रमणकारी, विस्तारवादी चेहरे को बेनकाब करना बहुत जरूरी हो गया, यह काम भारत को बहुत पहले देना शुरू कर देना चाहिए था। चीन जिस तरह जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल के निवासियों को नत्थी वीजा देता था, उसी समय भारत को तिब्बत, शिनजियांग, इनर मंगोलिया के लोगों को ऐसा ही वीजा देना था, जो उसने नहीं किया। इसके विपरीत भारत पिछले तीन दशक से उसके साथ फर्जी समझौते के झांसे में व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ाने में लगा रहा है, जिसका चीन ने जमकर फायदा उठाया और भारत साल दर साल अरबों के व्यापार घाटे बाद भी खामोश बना रहा। यह भी तब जब चीन अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान के दहशतगर्दों पर पाबन्दी के मुद्दों पर खुलकर उसकी हिमायत करता था, तब भारत को ताइवान, तिब्बत, शिनजियांग के मामलों को उन्हीं मंचों पर उठाने मे संकोच नहीं दिखाना चाहिए था। अब भी भारत लद्दाख पर चीनी सेना के अतिक्रमण को लेकर विश्व मंचों पर खुलकर उसका नाम लेने से बच रहा है। इसके कारण चीन न भारत का जंग की धमकी देने से बाज आ रहा है और न ही पाकिस्तान की तरफदारी करने से ही।

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वैसे अब भारत के विदेश मंत्रालय के प्रत्युत्तर में चीन को स्पष्ट संकेत दिया गया है कि भारत उसकी हर चुनौती के मुकाबले को तैयार है। इसका कारण यह है कि हाल में चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग द्वारा ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ (पी.एल.ए.) की नेवी मरीन कॉर्प्स के मुख्यालय पर अपने सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार रहने का संदेश कर भारत के खिलाफ जंग छेड़ने की अपरोक्ष रूप से जो धमकी दी है, उसकी भारत कतई परवाह नहीं करता। वह अपनी स्वतंत्रता, सम्प्रभुता, एकता, अखण्डता को अक्षुण्ण रखने को कटिबद्ध है। इसके साथ ही भारत ने चीन समेत दुनियाभर के मुल्कों को यह आगाह करना भी जरूरी समझा कि वह आशा करता है कि विभिन्न देश भारत के अन्दरूनी मामलों में टिप्पणी नहीं करेंगे, जैसे कि वे भी उम्मीद करते हैं कि उनके मामलों कोई दखल न दे। वस्तुतः यह कह भारत ने चीन को फिर से चेताया है कि अगर उसने अपने इस रवैये में बदलाव नहीं किया, तो भविष्य में वह भी ‘एक चीन नीति’ (वन चाइना पॉलिसी) से हट सकता है। उस स्थिति में चीन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, क्यांेकि भारत भी तिब्बत, ताइवान, शिनजियांग (ईस्ट तुर्की), इनर मंगोलिया, हांगकांग आदि को उसका हिस्से के रूप में मान्यता देने से इन्कार कर सकता है। वर्तमान इन इलाकों में चीन को लेकर भारी असन्तोष व्याप्त है और यहाँ के लोग उसके विरुद्ध आन्दोलित भी बने हुए हैं। ये भी हर हाल में चीन से मुक्ति चाहते हैं। इसीलिए अमेरिका चीन को बड़ा झटका देते हुए ताइवान के बाद तिब्बत को लेकर स्वतंत्र नीति अपनाते हुए उसके कब्जे के बाद अमेरिका ने पहली बार तिब्बत की निर्वासित सरकार को न केवल मान्यता प्रदान की है,

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बल्कि उसके राष्ट्रपति लोबसांग सांग्ये को वाशिंगटन में आमंत्रित किया हैै, जहाँ उनकी तिब्बत मामलों के लिए नव नियुक्त विशेष दूत रॉबर्ट डेस्ट्रो के साथ बैठक होगी। निश्चय ही अमेरिका के इस साहसिक निर्णय से तिब्बत की स्वतंत्रता के आन्दोलन को गति और शक्ति मिलेगी। अमेरिका इससे पहले भी तिब्बत और शिनजियांग में अमेरिका अधिकारियों, पर्यटकों, पत्रकार आदि को रोकने वाले चीनी अधिकारियों को अमेरिका का वीजा दिये जाने पर प्रतिबन्ध लगाये जाने से सम्बन्धित अधिनियम भी पारित कर चुका है। वह समय-समय पर जहाँ तिब्बत में तिब्बतियों, शिनजियांग के उइगरों के मुसलमानों के तरह-तरह के उत्पीड़न तथा धार्मिक रीति-रिवाजों पर आघात किये जाने के मामलों को उजागर करते आया है। विगत में अमेरिका उसके धार्मिक नेता दलाई लामा को भी अपने यहाँ आमंत्रित कर सम्मानित कर चुका है, जिसका तब चीन ने पुरजोर विरोध किया था। इतना ही नहीं,अमेरिका ताइवान की सुरक्षा के मामले में पूरी तरह उसके साथ है,जिसे चीन अपना हिस्सा मानता है। तिब्बत सदियों से स्वतंत्र देश रहा है जिस पर चीन ने अवैध रूप से कब्जा किया हुआ। उसके बाद सन् 1959 से तिब्बत के बौद्ध धर्म के सबसे बड़े मान्य नेता दलाई लामा बड़ी संख्या में अपने अनुयायियों के साथ भारत में शरण लेकर हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रह रहे हैं। यहीं पर तिब्बत की निर्वासित सरकार का संचालन किया जा रहा है। विश्व के विभिन्न देशों में रह रहे तिब्बती अपने देश की आजादी के लिए अभियान चला रहे हैं, क्योंकि चीन ने तिब्बत के यहाँ के मूल निवासी बौद्धों का नरसंहार किया और उनकी स्त्रियों के साथ बलात्कार किये। इनके मठ-मन्दिरों का ध्वंस किया है। इनके इलाके में बड़ी संख्या में चीनियों को बसाया जा रहा है,ताकि तिब्बतियों की आबादी को कम किया जा सके। कमोबेश इससे बदतर हालात शिनजियांग की है, जहाँ उइगर मुसलमानों की 1600 से अधिक मस्जिदों को या तो तोड़फोड़ की गई या फिर पूरी तरह से जमींदोज कर दिया गया है। उन्हें नमाज पढ़ने, रोजा, दाढ़ी, अरबी रखने पर पाबन्दी है। कोई 12 लाख उइगरों को यातना शिविरों में रखा जा रहा है। इसी तरह इनर मंगोलिया में मुसलमानों को उनकी भाषा की जगह चीनी भाषा पढ़ने पर मजबूर किया जा रहा है, जिसकी बड़े पैमाने पर मुखालफत किया जा रहा है। चीन हांगकांग के साथ ‘एक देश दो व्यवस्था’के वादे से मुकर रहा है,जो 2047तक जारी रहना था।इस कारण हांगकांग में कई साल से लोकतंत्र के लिए आन्दोलन चल रहा है,उसे चीन बुरी तरह से कुचल रहा है।
अब भारत पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग झील पर हमलावर चीनी सैनिकों के मुठभेड़ों में दाँत खट्टे करने के साथ-साथ चीनी एप्पों पर प्रतिबन्ध लगाने के साथ-साथ चीन की कम्पनियों और कई वस्तुओं के आयात पर पाबन्दी लगाकर आर्थिक चोट पहुँचा चुका है, पर इससे चीन पर कोई खास असर नहीं हुआ। इसी मकसद से भारत ने हिन्द-प्रशान्त महासागर क्षेत्र में स्वतंत्र नौसैनिक परिवाहन तथा चीन को घेरने के लिए अमेरिका, जापान, आस्टेªेलिया के साथ स्क्वाड बनाया हुआ है, जिससे उसे चुनौती जरूरी मिली है। पर ऐसे में कायदे से तो अब भारत को चीन से सन् 1962 के युद्ध में लद्दाख के उसके द्वारा अवैध रूप से आक्साईचिन के 38 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक इलाके समेत पाकिस्तान द्वारा सन् 1963 में गुलाम कश्मीर के 5 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा दी गई जमीन को खाली करने को कहना चाहिए, जहाँ से चीन ‘चाइना-पाकिस्तान इकॉनामिक कॉरीडोर’ बनाने के साथ कई परियोजना पर काम कर रहा है। भारत को तिब्बत और शिनजियांग की आजादी को समर्थन देने के साथ-साथ हांगकांग के लोगों के लोकतंत्र के लिए आन्दोलन और ताइवान से विशेष सम्बन्ध बनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। ऐसा किये बगैर चीन डैªगन का मुँह बन्द करना सम्भव नहीं,जो हर दम भारत को निगलने की कोशिश में लगा।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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