डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ.फारूक अब्दुल्ला द्वारा दिया यह बयान कि चीन के साथ भारत का गतिरोध हमारे लिए अच्छा है, क्यों कि इससे अनुच्छेद 370 को वापस लाया जा सकता है, निश्चित रूप से निन्दनीय और शर्मनाक ही नहीं,बल्कि पूरी तरह देश विरोधी भी है। उन्होंने यह बयान अनायास और किसी तरह की उत्तेजना के वशीभूत होकर नहीं दिया है, वरन् ठण्डे दिमाग से और सोची-समझी साजिश के तहत दिया है। डॉ. अब्दुल्ला को यह भलीभाँति पता है कि वर्तमान में पूर्वी लद्दाख में चीन ने अपने 60 हजार सैनिक तैनात किये हुए हैं, जो किसी भी समय भारतीय सीमा में घुसकर भूमि पर कब्जा करने के लिए घात लगाये गत 5 मई से बैठे हुए हैं। इस बीच 15-16 जून की रात्रि को चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच गलवान घाटी में भीषण हिंसक झड़प भी हो चुकी है,उसमें और उसके बाद की मुठभेड़ों में भारतीय सेना चीनियों को कड़ा सबक सिखा चुकी है।इस समय भारतीय सेना पैंगोंग इलाके के रणनीतिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कई पहाड़ियों पर कब्जा कर उससे भीषण ठण्ड में मुकाबले की तैयारी कर चुकी है। यह सब देखकर अब चीन बेहद घबराया हुआ है और सम्मानपूर्वक अपनी सेना की वापसी का बहाना तलाश रहा है। हालाँकि इस बीच चीन पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के खिलाफ जंग छेड़ने की गीदड़ भभकी भी दे रहा है। फिर भी अपने एजेण्डे के तहत डॉ.फारूक अब्दुल्ला चीन की मदद से अनुच्छेद 370 की बहाली का इरादा जता रहे हैं।

दरअसल,उनकी मंशा उन कश्मीरियों को भारत के खिलाफ उकसाने/भड़काने की है, जो अब अनुच्छेद 370 और 35ए की समाप्ति के बाद राष्ट्र की मुख्यधारा में जुड़ चुके हैं। इनमें से बड़ी संख्या मंे लोग डॉ.अब्दुल्ला, महबूबा मुपती,उमर अब्दुल्ला समेत दूसरे अलगाववादी नेताओं की असलियत भी अच्छी तरह से जान चुके हैं, जो अपने सियासती फायदों के लिए उन्हें अपने मुल्क के खिलाफ खड़ा कर सत्ता सुख भोगते आए हैं। इसके साथ डॉ.अब्दुल्ला यह कह कर कि जम्मू-कश्मीर के लोग अनुच्छेद 370 और 35 ए के बदलने से खुश नहीं है , वह भारत की छवि विश्व के देशों में धूमिल करना चाहते हैं। इतना ही नहीं, डॉ.फारूक अब्दुल्ला ने चीन की तरफदारी करते हुए यह जताने की भी कोशिश की है कि केन्द्र सरकार ने इस सूबे के दर्जे में जो बदलाव किया है, उसके कारण ही आज एलएसी पर तनाव बना हुआ है। इस तरह उन्होंने लद्दाख पर सीमा वर्तमान संकट के लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहराने की नापाक कोशिश की। वैसे अब हालात ऐसे बदले हैं कि डॉ.फारूक अब्दुल्ला समेत देश के लिए आस्तीन के साँप बने दूसरे कश्मीरी और इस्लामिक कट्टरपंथी जो अब तक पाकिस्तान को अपना रहनुमा मानते हुए उससे मदद माँगते आ रहे थे, वे उससे मायूस होकर अब चीन से इमदाद के लिए टेर लगा रहे हैं। फिर भी उनकी इन ओछी हरकतों से काँग्रेस समेत वे दूसरे विपक्षी दल भले खुश होते रहे हैं, जिन्होंने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विरोध और राष्ट्र विरोध-द्रोह के अन्तर को भूला-सा दिया है।

वैसे ऐसे राष्ट्र विरोधी बयान डॉ.फारूक अब्दुल्ला और दूसरे कश्मीरी नेता पहले भी समय-समय पर बेखौफ होकर देते आए हैं, ऐसा इसलिए कि इनमें से किसी के भी खिलाफ आज तक कभी नमूने की सजा नहीं दी गई। इसके लिए अब तक देश में केन्द्र में सत्तारूढ़ विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारें जिम्मेदार हैं, जो अल्पसंख्यक वोट बैंक और दुनिया भर के मुस्लिम मुल्कों से अपने रिश्ते खराब होने के डर से सख्त कार्रवाई करने से बचती आयी हैं। यही कारण है कि डॉ.अब्दुल्ला और इसी मानसिकता के दूसरे कश्मीरी नेता के हौसले बड़े हुए हैं और वे अपने मुल्क खिलाफ बोलने से बाज नहीं आते। इसके लिए अपने देश में तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल भी पूरी तरह जिम्मेदार हैं, जो आमतौर पर छोटी-छोटी बातों पर बयानबाजी करते रहते हैं, लेकिन इस्लामिक कट्टरपंथियों और कुछ जाति विशेष के नेताओं के मुल्क खिलाफ दिये बयानों पर हमेशा खामोश बने रहते हैं या फिर बेशर्मी से उनकी तरफदारी करने लगते हैं। इसी का सुबूत अब डॉ.फारूक अब्दुल्ला के उक्त बयान पर चुप्पी साध लेना है। वैसे डॉ.फारूक अब्दुल्ला जिस चीन से भारत पर दाबव डलवा कर अनुच्छेद 370की बहाली चाहते हैं, वही चीन सन् 1949 से जम्मू-कश्मीर के लद्दाख और गुलाम कश्मीर की हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पर अवैध कब्जा किये हुए हैं। उसके बड़े हिस्से पर सड़क और तरह-तरह की परियोजनाओं पर काम कर रहा है। सन् 1962 के भारत -चीन युद्ध में ही उसने 38,000 वर्ग किलोमीटर हड़प चुका है। उसके बाद भी निरन्तर उसकी सीमा पर अतिक्रमण करता आया है। वर्तमान में भी उससे टकराव/गतिरोध का कारण उसकी जमीन हड़पने पर रोक लगाना है। लेकिन डॉ.अब्दुल्ला समेत दूसरे कश्मीरी नेताओं ने चीन से आजतक कभी उससे जमीन को लौटाने की चर्चा और माँग तक नहीं की है। इन इस्लामी कट्टरपंथी फर्जी कश्मीरी नेताओं का अनुच्छेद 370 और 35ए के हटाये जाने से बहुत तकलीफ हो रही है, पर उन्हें चीन की ही तरह जम्मू-कश्मीर के बहुत बड़े भू-भाग पर अवैध कर जमाये पाकिस्तान से कोई गिला-शिकवा नहीं है, क्यों कि उन्हें तो बचे-खुचे जम्मू-कश्मीर पर खुद सत्ता भोगने के साथ इसे ‘दारूल इस्लाम’ तब्दील करना है।
इसी 24 सितम्बर को डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने बयान दिया था कि अगर आप जम्मू -कश्मीर में जाकर लोगों से पूछेंगे कि क्या वह भारतीय हैं, तो वे लोग कहंेगे कि नही ंहम भारतीय नहीं हैं। यहाँ तक कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर के चीन में मिल जाने को बेहतर बताया था। वैसे ऐसा कहकर उन्होंने खुद को ही झूठा साबित किया है। अगर वह अपने को भारतीय नहीं मानते हैं, तो वे कई बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री, केन्द्र में मंत्री और वर्तमान में सांसद कैसे बने हुए हैं। क्या गैर भारतीय इन पदों को ग्रहण कर सकता है? वैसे भी डॉ.फारूक अब्दुल्ला का किरदार वक्त और मौके के मुताबिक बदलता रहता है। जब वह दिल्ली में होते हैं,तो राष्ट्रभक्त भारतीय होते हैं। फिर जम्मू-कश्मीर में सत्ता में रहते हुए सिर्फ कश्मीरी रहनुमा बनकर कश्मीरियत, इन्सानियत, जम्हूरियत की राग आलापने लगते हैं। फिर सत्ता से बेदखल होते ही अलगाववादी और कट्टर इस्लामिक रहनुमा बन जाते हैं। वस्तुतःडॉ.फारूक अब्दुल्ला और उनके पिता शेख अब्दुल्ला तथा पुत्र उमर अब्दुल्ला मुखौटे बदलने में माहिर हैं। आजादी से पहले शेख अब्दुल्ला ने मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का गठन किया।फिर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू को भरमाने को उसे ‘नेशनल कॉन्फ्रंेस में बदल लिया और खुद की छवि समाजवादी नेता की बना ली,ताकि इस सूबे की सत्ता हासिल की जा सके। फिर 1965 में अल्जीरिया जाकर चीन के प्रधानमंत्री चाउ इन लाई से भेंट की,जिसने 1962 में भारत पर हमला कर प्रधानमंत्री पं.नेहरू को धोखा दिया था। डॉ.फारूक अब्दुल्ला खुद ‘जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रण्ट’के संस्थापकों में से एक है,जो अलगाववादियों का गिरोह और देश विरोधी संगठन है।
अब जहाँ तक जम्मू-कश्मीर और यहाँ के लोगों को चीन में शामिल होने का सवाल है, यह तो किसी भी सूरत में सम्भव नहीं है, लेकिन डॉ.फारूक अब्दुल्ला शौक से चीन जाने को आजाद हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों को भरमाने की कोशिश में लगे डॉ.फारूक अब्दुल्ला को क्या चीन में उइगर मुसलमानों की हकीकत का पता नहीं? चीन के शिनजियांग में 10 लाख से अधिक उइगर मुसलमानों को यातना शिविरों में रखा हुआ है। उनकी हजारों की तादाद में मस्जिद और कब्रिस्तान को तबाह कर दिया गया। उनके नमाज पढ़ने, रोजा रखने ,दाढ़ी बढ़ाने और अपने बच्चों के अरबी नाम रखने पर भी सख्त पाबन्दी है। इससे पहले का 20 अगस्त को डॉ.फारूक अब्दुल्ला ने कहा था कि पिछले साल 5अगस्त, 2019 को जो किया गया, वह स्वीकार्य नहीं है। जब तक अनुच्छेद 370 बहाल नहीं है , तब तक शान्ति नहीं। क्या डॉ.फारूक अब्दुल्ल इस सूबे की हकीकत से वाकिफ नहीं कि ये अनुच्छेद अब तवारीख(इतिहास)बन गए है, जिसे दुनिया की कोई ताकत अब नहीं बदल सकती। फिर 1जुलाई, 2020को डॉ.अब्दुल्ला ने बयान दिया कि अगर अनुच्छेद 370 अस्थायी है, तो जम्मू-कश्मीर में भारत का विलय भी अस्थायी था, किन्तु उन्होंने यह नहीं बताया कि इसे वे कैसे और किसी की मदद से बदलवायेंगे? जब जम्मू-कश्मीर में पी.डी.पी.और भाजपा की साझा सरकार थी, तब भी डॉ.फारूक अब्दुल्ला ने भारत के लिए कहा था कि पी.ओ.के.क्या तुम्हारे बाप का है,जो तुम पी.ओ.के.ले लोगे? पाकिस्तान ने क्या चूड़ियाँ पहन रखी हैं। भारतीय सेना चाहे तो भी उसे नहीं ले सकती। अब डॉ.फारूक अब्दुला इस हकीकत का समझ लें कि भारत बदल रहा है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर(पी.ओ.के.) भारत का है,जो उसका बाप है। पाकिस्तान से उसका दूर का भी रिश्ता नहीं है। देर सवेर वहाँ के बाशिन्दे खुद आकर भारत में मिलेंगे और भारतीय सेना भी उसे लेकर रहेगी। इस सच्चाई को अब पाकिस्तान के हुक्मरान और वहाँ की सेना समझ चुकी है।डॉ.फारूक अब्दुल्ला भले ही अब तक न समझने का भले ही ढोंग करते रहें, वैसे इससे कुछ होना भी नहीं है। वैसे भी जम्मू-कश्मीर में कुछ नेता विधानसभा के जरिए रोशनी अधिनियम बनाकर तो आतंकवादी बन्दूक जरिए, तो अलगाववादी इस्लामिक कट्टरता और नफरत फैलाकर जिहाद करते आए हैं, इनमें अब्दुल्ला, मुपती परिवार विधानसभा के जरिए जिहादी एजेण्डा पूरा करते आए है, रोशनी एक्ट इसकी मिसाल है। इसके माध्यम से जम्मू को मुस्लिम बहुल बनाने की साजिश की थी,जिसे अब अधिवक्ता आलोक शर्मा की याचिका पर जम्मू-कश्मीर उच्चन्यायालय ने रद्द कर दिया है।
भारत सरकार ने गत 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने से पहले डॉ.फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुपती समेत बड़ी सख्या में अलगाववादी और इस्लामिक कट्टरपंथियों को ‘जन सुरक्षा अधिनियम ’(पी.एस.ए.) के तहत गिरपतार किया हुआ था, ताकि ये लोगों को भड़काने/उकसाने से बाज आएँ। अब इन्हें यह सोच कर रिहा कर दिया है कि अब वे सूबे की बदले हालात के मुताबिक खुद को ढाल लेंगे, पर सरकार इनकी फितरत को समझने में केन्द्र सरकार एक बार फिर नाकाम रही। तभी तो रिहा होते ही इन आस्तीनों के साँपों ने फिर से जहर उगलना शुरू कर दिया। इन्हें विषहीन किये बगैर छोड़ा जाने से जम्मू-कश्मीर के हालात फिर से खराब होने की आशंका है। इसलिए समय रहते इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाना जरूरी है, ताकि उन जैसे दूसरे नेता डॉ.फारूक अब्दुल्ला के नक्शे कदम पर चलने से दूर रहें।साथ ही अपने ही मुल्क के खिलाफ मुहिम चलाने वाले डॉ.फारूक अब्दुल्ला की लोकसभा की सदस्यता निरस्त किये जाने पर भी विचार किया जाना चाहिए।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर, आगरा- 282003 मो.नम्बर-9411684054
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