डॉ. आर.पी.मौर्य

हमारे देश में प्रति 10लाख बच्चों में 200अन्धे हैं।विश्व स्वास्थ्य संघटन के अनुसार वे बच्चे जो दिन की रोशनी में उचित पावर के चश्मे पहनने के बाद भी 3 मीटर से अंगुली गिनने में असमर्थ हों, उन्हें दृष्टिहीन घोषित करना चाहिए।
डॉक्टर राही के अनुसार सभी अन्धे बच्चों में 26 प्रतिशत पुतली खराब होने से (कार्नियल दृष्टिहीनता), 25 प्रतिशत आँखों में जन्मजात दोष से तथा 15 प्रतिशत बच्चे मोतियाबिन्द के कारण अन्धे हैं। शेष अन्य कारणों में हैं आँख के पर्दे और वंशानुगत बीमारियाँ।
देश के कुल 1 करोड़ 20 लाख अन्धे व्यक्तियों में लगभग 30 लाख लोग पुतली सफेद की वजह से अन्धे हैं जिसमें 46 प्रतिशत दृष्टिहीन 6 वर्ष से कम के बच्चे हैं। कार्नियल दृष्टिहीनता के प्रमुख कारणों से है, कुपोषण। जैसे विटामिन ‘ए’ तथा प्रोटीन की कमी, चोट लगना तथा आँखों में घाव (अल्सर)होना तथा रोहे(टूकोमा)आदि का संक्रमण( इन्फेक्शन) ।
विटामिन ‘ए‘ हमारे आँखों की रोशनी ,पर्दे एवं पुतली को स्वस्थ बनाये रखने के लिए अत्यन्त स्वाभाविक बनाये रखने के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है। इसकी कमी से लगभग 50 लाख से अधिक बच्चे प्रतिवर्ष प्रभावित होते हैं,ं जिसमें से 2.5 प्रतिशत लाख अन्धे हो जाते हैं। इसकी कमी होने से शुरू में रात में कम दिखायी पड़ने लगता है जिसे ‘रतौंधी’ कहते हैं। इससे आँख की सफेदी झिल्ली सूखने एवं चमकहीन होने लगती है। झिल्ली में झुर्रियाँ पड़ जाती हैं और तिकोने आकार स्पंज जैसा धब्बा बन जाता है जिसे विराट स्पाट कहते हैं। बाद में पुतली (कर्निया)भी सूखकर गल जाती है जिसे ‘किरेटोमलेशिया’ कहते हैं। इसका समय से इलाज न करने पर बच्चा अन्धा हो जाता है। शरीर में विटामिन ‘ए’ की कमी पेट में कीड़े या लम्बे समय तक पेचिस या दस्त पड़ने या भोजन में इसकी कमी से होता है।
विटामिन ‘ए’ के प्रमुख स्रोत है-हरी पत्तेदार सब्जियाँ जैसे-पालक, चौलाई, सहजन, बन्दगोभी, गाजर, पीले फल जैसे आम जैसे आम, पपीता आदि में भी विटामिन ‘ए’ प्रचुर मात्रा में होता है।
इसकी रोकथाम के लिए एक से 6वर्ष तक के बच्चों को दो लाख अन्तर्राष्ट्रीय यूनिट ‘ए’ हर 6 मास पर देते रहना चाहिए। कुछ बच्चों में इसकी कमी के साथ-साथ प्रोटीन की भी कमी रहती है। अतः उसकी भी पूर्ति होनी चाहिए। बच्चों की कीड़े की दवा समय-समय पर देते रहना चाहिए। दस्त होने पर उसका समय से इलाज कराना चाहिए।
एक बार पुतली में सफेदी हो जाए तो नेत्र प्रत्यारोपण ही उसका इलाज है। बच्चों में दृष्टिहीनता दूसरा प्रमुख कारण है मोतियाबिन्द जिसका इलाज सम्भव है। बच्चों में मुख्य रूप से दो तरह के मोतियाबिन्द हो तो हैं। एक जन्मजात मोतियाबिन्द और दूसरा चोट लगने से (ट्रोमेटिक मोतियाबिन्द) जन्मजात मोतियाबिन्द जन्म के समय या उसके कुछ साल बाद होता है। इसके प्रमुख कारण हैं, गर्भावस्था में माँ के शरीर में रुबेला नामक विषाणु का इन्फेक्शन, कुपोषणता तथा हारमोन की गड़बड़ आदि।
जन्मजात मोतियाबिन्द दोनों आँखों में होता है, जबकि ट्रोमेटिक (चोट)से होने वाला मोतियाबिन्द अक्सर एक ही आँख में होता है। बच्चों में मोतियाबिन्द का पता चलने पर तुरन्त इलाज कराना चाहिए अन्यथा आँख में भेंगापन आ सकता है।
बच्चों में दृष्टिहीनता के अन्य कारण हैं आनुवंशिक दोष जैसे आँखों का जन्मजात न होना, जिसे ‘एन आपथैलमस’ कहते हैं या आँखों का छोटा होना(माइक्रो आपथैलमस) तथा आँख के पर्दे में होने वाली बीमारियाँ जैसे रेटिनोपैथी कहते हैं। मगर दुःख इस बात का है कि उपर्युक्त जन्मजात बीमारियों का कोई इलाज नहीं है।
Add Comment