डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों राजस्थान के कोटा जिले की सपोटरा तहसील के बूकना गाँव में राधाकृष्ण मन्दिर की भूमि पर कब्जे को लेकर पुजारी बाबूलाल वैष्णव को मीणा जाति के दबंगों ने ज्वलनशील पदार्थ डालकर जिन्दा जलाने और फिर पुलिस द्वारा उसकी मौत को आत्महत्या दर्शाने और दिल्ली में एक अट्ठारह वर्षीय अनुसूचित जाति के किशोर राहुल राजपूत की उसकी मुस्लिम किशोरी मित्र के भाइयों द्वारा पीट-पीट कर हत्या किये जाने तथा उत्तर प्रदेश के गोडा के इटियाथोक के तिर्रेमनोरमा स्थित रामजनकी मन्दिर के पुजारी सम्राट दास को 120बीघा जमीन के विवाद में गोली मारने की वारदातें दिल दहलाने वाली हैं, लेकिन इन तीनों ही मामलों में उक्त राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक दलों तथा उनकी राज्य सरकारों और पुलिस-प्रशासन का रवैया जिस तरह अत्यन्त असंवेदनशील और उदासीनतापूर्ण रहा है, उसे सर्वथा अनुचित और क्षोभजनक ही माना तथा कहा जाएगा। इन घटनाओं ने एक बार फिर इन राजनीतिक दलों की जाति और मजहब को देखकर हमदर्दी जताने और न्याय दिलाने की सियासत को बेनकाब किया है। ऐसे मामलों में भले ही ये एक-दूसरे की सरकारों पर दोषारोपण करते आये हांे, पर असल में इनके सभी की कथनी और करनी में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है। जहाँ कथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल काँग्रेस,सपा, बसपा, वामपंथी पार्टियाँ आदि पीड़ित

के दलित और मुस्लिम और आरोपी के हिन्दू सवर्ण होने पर संवेदना और न्याय दिलाने को पूरे दमखम से अभियान चलाती हैं और धरती और आसमान तक उठा लेती हैं, वहीं वे आरोपी के दलित और मुसलमान होने पर पूरी तरह खामोश बनी रहती हैं, भले ही कितना ही जुल्म-सितम ढहाया गया हो। हालाँकि ऐसे मामलों में भले ही भाजपा जाति तथा मजहब नहीं देख देखने और सबका साथ ,सबका विकास, सबका विश्वास का नारा भी लगाती है, पर संवेदनशीलता और प्रशासनिक कुशलता के मामले में उसके नेता तथा उनकी सरकारों का रवैया और कार्यकलाप दूसरी पार्टियों से किसी माने में बहुत अधिक अलग दिखायी नहीं देते। वैसे अपने देश के सभी राजनीतिक दल जहाँ अपने प्रतिद्वन्द्वी/विरोधी सियासी पार्टी की सरकार की मामूली-सी कमियों को लेकर हमलावर हो जाते हैं, वहीं अपनी पार्टी शासित राज्य में बड़े से बड़े जुल्म और अत्याचार पर चुप्पी साध लेते हैं। यही कारण है कि अनुसूचित जाति की युवती की कथित बलात्कार और हत्या के खिलाफ विरोध जताने को काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी ने बड़ी संख्या में अपने कार्यकर्ताओं के हाथों में पार्टी झण्डे और नारे लगाने के साथ दो बार हाथरस को कूच किया और दंगा-फसाद कराने की कोशिश की। बाद में ये दोनों पीड़ित के बूलगढ़ी गाँव स्थित घर गए और उसे न्याय दिलाने का भरोसा भी दिलाया। इन्होंने उस पीड़ित युवती के शव रात में जलाने पर भी भारी आपत्ति जतायी, जबकि पुलिस-प्रशासन ने इसका कारण सुबह दंगा भड़कने की आशंका होना

बताया। इस मामले में काँग्रेस की अति सक्रियता की असल वजह आरोपियों का सवर्ण तथा ठाकुर होना रहा। इसीलिए भीम सेना,कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन ‘पी.एफ.आई. आम आदमी पार्टी, सपा, राष्ट्रीय लोकदल, वामपंथी पार्टियों के साथ-साथ तमाम गैर सरकारी संगठनों( एन.जी.ओ.) ने भी बढ़चढ़ का अपना विरोध जताया और इनके समर्थकों ने सोशल मीडिया के माध्यम से सामाजिक विद्वेष भड़काने की पुरजोश कोशिश की, जबकि उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा की सरकार हाथरस प्रकरण में चारों आरोपित को तत्काल गिरपतार जेल भेजे जाने के साथ पीड़ित युवती के परिवार को 25लाख रुपए की आर्थिक सहायता,मकान तथा परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का आश्वासन दे चुकी है। इसके अलावा पहले एस.आई.टी. और अब सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में सी.बी.आई.जाँच के आदेश कर चुकी है,जिसकी माँग पीड़ित पक्ष के लोग भी कर रहे थे।इस मामले में राजनीतिक पार्टियों से होड़ ले टी.वी.चैनलों ने भी जरूरत से ज्यादा सक्रियता दिखायी थी।अब सवाल यह है कि आखिर सियासी पार्टियाँ इससे ज्यादा क्या चाहती थीं?यह भी तब जब उस पीड़ित के साथ बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है और आरोपी स्वयं को निर्दोष बता रहे हैं।इसी दौरान उ.प्र्र.के बलरामपुर में बी.ए.की एक दलित छात्रा के साथ मुस्लिम युवकों ने बलात्कार किया जिसके शरीर पर दस चोटों के निशान मिलने के साथ जाँच में बलात्कार की पुष्टि भी है।इसकी उसकी उपचार को ले जाने के समय मौत हो गई,लेकिन काँग्रेस,सपा,बसपा ,आम आदमी पार्टी समेत सभी ने चुपी साध ली। यहाँ तक कि कुछ टी.वी.चैनलों के सिवाय किसी ने उसकी सुध नहीं ली।हालाँकि राज्य सरकार ने इस मामले में भी पीड़ित परिवार को वही सहायता दी है,जो हाथरसकाण्ड में दी गई। पुलिस ने
इसके विपरीत अब राजस्थान के कोटा में बूकना गाँव के पुजारी बाबूलाल वैष्णव की अनुसूचित जाति मीणा के दबंग कैलाश मीणा ने अपने साथी शंकर,नमो, किशन, रामलखन के सहयोग से पेट्रोल छिड़क कर जला दिया, जिनकी तीन दिन बाद उपचार के दौरान मौत हो गई,लेकिन पुलिस इसे आत्महत्या का मामला बनाकर हत्यारों को बचने की कोशिश में लगी रही। पुजारी ने पुलिस से अपनी जान को खतरा बताया था,पर उसने कुछ नहीं किया। इस मामले में पटवारी भी दोषी है,जिसने जमीन के वांछित कागजात नहीं दिये। पुजारी की मौत होने से पहले और बाद में मुख्यमंत्री अशोक गहलौत से लेकर विधायक भंवर लाल शर्मा के अलावा काँग्रेस के सभी छोटे-बड़े नेता खामोश रहे, क्योंकि ब्राह्मण अनुसूचित जाति मीणा और मुसलमानों की तरह संगठित नहीं हैं, जो उसे एकमुश्त वोट देते हों। सम्भवतः इसीलिए काँग्रेस को मीणाओं को नाराज न करने में ही अपना सियासी फायदा नजर आ रहा हो। फिर जो राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी हाथरस की जिस पीड़ित युवती के शव को उसके परिवार की इच्छा के बिना पुलिस द्वारा रात में जलाये जाने का विरोध कर रहे थे, वे कोटा में पुजारी की पेट्रोल से जलाये जाने पर न केवल चुप रहे ,बल्कि पुजारी के परिवार की सहमति के बगैर उनका शव पुलिस के जलाये जाने पर कुछ नहीं बोले हैं, क्यों कि यहाँ उनकी खुद की पार्टी सरकार है। यहाँ इन भाई-बहन ने इस ब्राह्मण परिवार को आकर सांत्वना देना तो दूर ट्वीट का दुखद जताने की आवश्यकता भी अनुभव नहीं की। इतना ही नहीं, राजस्थान में इतने बड़े अत्याचार और अन्याय के बावजूद देश की दूसरी कथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक पार्टियाँ शान्त बनी हुई है,जैसे यहाँ कुछ हुआ ही न हो। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो(एन.सी.बी.)के अनुसार वर्तमान में देश में सबसे अधिक दुष्कर्म की घटनाएँ राजस्थान में हो रही हैं। हाल के दिनों में भी कई वीभत्य घटनाएँ भी घटी हैं। उन मामलों में राजस्थान सरकार का अत्यन्त असंवेदनशील रवैया सामने आया है।फिर भी भाजपा के सिवाय किसी दूसरे राजनीतिक दल ने उसकी आलोचना नहीं की है।
इसी तरह गत 7अक्टूबर को दिल्ली के आदर्शनगर में अनुसूचित जाति के युवक राहुल राजपूत को उसकी मुस्लिम युवती मित्र के भाइयों ने घर से बुलवा कर पीट-पीट कर मार डाला। हालाँकि उस मुस्लिम किशोरी ने अपने भाइयों से उसे बचाने के लिए पुलिस से सहायता माँगी थी,किन्तु वह उदासीन बनी रही।इस कारण वे दरिन्दें उसकी जान लेने में कामयाब हो गए।इस मामले में भाजपा और हिन्दू संगठनों के अलावा सभी राजनीतिक पार्टियाँ खामोश हैं,क्योंकि आरोपी मुसलमान हैं। इन्हें कथित धर्मनिरपेक्ष सियासी पार्टियाँ किसी हालत में नाराज नहीं करना चाहतीं। इस मामले में कुछ आरोपितों को गिरपतार किया जा चुका है। इनमें कुछ बालिग और कुछ नाबालिग हैं। इस मामले में दिल्ली की ‘आम आदमी पार्टी की सरकार ने पीड़ित परिवार को दस लाख रुपए की आर्थिक सहायता देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली है। इस मामले में वामपंथी पार्टियों और मुसलमानों को ‘मोबलिंचिंग’ या असहिष्णुता दिखायी नहीं दे रही है,जो पहले भी कुछ हिन्दुओं की ऐसे ही जान ले चुके हैं। आप के राज्यसभा के सदस्य संजय सिंह इस मामले में चुप है, जो बड़ी बेशर्मी से उ.प्र.सरकार को दलित विरोधी होने का आरोप लगाते रहते हैं, किन्तु दिल्ली इस दलित किशोर की हत्या पर खामोश हैं। इसी मामले में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया यह कह कर अपना बचाव रहे हैं कि इस मामले को मजहबी रंग नहीं दिया जाना चाहिए। तीसरा मामला उ.प्र.के गोड़ा जिले का जहाँ मन्दिर के पुजारी सम्राट दास को जमीन के विवाद में पूर्व ग्राम प्रधान और हिस्ट्रीशीटर अमर सिंह ने अपने चार सााथियों के साथ सोते समय बन्दूक से गोली मार दी,जिनका उपचार चल रहा है। इस मामले में पुलिस को पुजारी की जान को खतरे का पता था,क्यों कि पहले भी उन्हें धमकी दी गई थी तथा बमबाजी हुई थी। फिर भी उनकी सुरक्षा कम कर दी गई।यहाँ भी पुलिस की आरोपितों से मिले होने का भी आरोप है। अब पुजारी पर हमले के बाद भी पुलिस-प्रशासन ने उनके उपचार की अपेक्षित व्यवस्था नहीं की। यहाँ तक कि भाजपा समेत किसी भी पार्टी के नेता या जनप्रतिनिधि न संवेदना व्यक्त करने आया और न ही उनकी मदद करने को। फिर जिस राज्य का मुख्यमंत्री योगी/संत/महन्थ हो,उसमें एक महन्त के एक साथ ऐसी घटना अत्यन्त दुखद है। दूसरी ओर जो राजनीतिक दल राजस्थान के पुजारी को जीवित जलाये जाने पर खामोश बने हुुए हैं,वे गोडा की घटना को लेकर उ.प्र.की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के खिलाफ हमलावर बने हुए हैं। धिक्कार ऐसी फर्जी हमदर्दी की सियासत को। देश के ज्यादातर दल स्वयं पंथ निरपेक्ष,वामपंथी,समाजवादी समेत न जाने क्या-क्या बताते-जताते हैं,लेकिन इनके फर्जी मुखौटे के पीछे ये निहायत मजहबी,जातिवादी,क्षेत्रवादी और सबसे बढ़कर सत्ता लोभी और स्वार्थी हैं,जिनका समाज और देश से कोई सरोकार नहीं है। ये बस समाज को विभिन्न मुद्दों पर बाँट कर अपनी सियासत करते हैं।यहाँ तक कि इन्हें सत्ता के लिए देश के हितों के खिलाफ काम करने में संकोच नहीं होता। यही कारण है कि इन नेताओं को अलगाववादियों और दहशत गर्दों की हिमायत लेने से भी गुरेज नहीं है, जो हर वक्त देश की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता को खण्डित करने में जुटे हैं।
देश में असंवेदनशील और जाति-मजहब देखकर हमदर्दी की सियासत करने वाले नेताओं और सियासी पार्टियों के कारण पुलिस-प्रशासन भी उन्हीं जैसा बना हुआ है। तभी तो वह पीड़ितों का मददगार बनने के बजाय यह ज्यादातर मामलों में जुल्मियों के साथ खड़ा नजर आता है। बरेली के बहेड़ी थाने में अपने साथ हुए दुष्कर्म की रिपोर्ट लिखाने आयी नाबालिग को थाने में दारोगा और महिला सिपाही ने जमकर पीटा गया। यहाँ तक कि उसके साथ गए वकील द्वारा इस मारपीट का वीडियो बनाये जाने पर दारोगा ने मोबाइल छीनकर उसकी भी पिटायी की। बरेली में ही एक साध्वी की अगस्त माह में उसके साथ हुए दुष्कर्म की रिपोर्ट नहीं लिखी गई, तब उसे रिपोर्ट लिखाने को अदालत की शरण लेने का मजबूर होना पड़ा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भ्रष्टाचार से लेकर महिला उत्पीड़न के मामलों में तमाम विशेष निर्देशों की बावजूद पुलिस-प्रशासन के रवैये में कोई खास बदलाव नहीं आया हैजबकि उनकी कोशिश पुरानी व्यवस्था को बदलने की है। लेकिन अब तक विभिन्न सियासी पार्टियों के शासन में वे आम जन के साथ जैसा व्यवहार करते आए है, उसे बदलने के लिए अभी बहुत कुछ किये जाने जरूरत है। फिलहाल, देश में राजनेताओं, सियासी पार्टियों और पुलिस-प्रशासन के आम लोगों के प्रति रवैये से लेकर व्यवस्था को बदलने के लिए स्वयं जनता को आगे विशेष कदम उठाने होंगे ,ताकि ये ढोंगी नेताओं,फर्जी हमदर्दी की सियासत करने वालों को खुद को बदलने के लिए मजबूर होना पड़े।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर, आगरा- 282003 मो.नम्बर-9411684054
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