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मजहबी जंग मैदान बना मध्य एशिया

साभार सोशल मीडिया

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

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अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच नागोर्नो काराखाब को लेकर छिड़ी जंग अब महज जमीनी न होकर मजहबी हो गई है, उसकी वजह से दुनिया दो गुटों में बँटता नजर आ रहा है, यहाँ तक कि तीसरे विश्व युद्ध में तब्दील होने के आसार दिखायी दे रहे हैं। इन देशों के कुछ दिनों के युद्ध में एक से एक नए घातक हथियारों का इस्तेमाल किया जा रहा है, इनमें से बहुत सारे अस्त्र-शस्त्र तुर्की ने दिये हैं। इस युद्ध में अब तक इसमें हजारों की संख्या में सैनिकों-आम नागरिकों के मारे गए हैं और घायल भी हुए हैं। अभी तक दुनिया की महाशक्ति कहे जाने वाले मुल्क रूस और अमेरिका की कोशिशें रही हैं कि इस जंग की आग को आगे न फैलने दे दिया जाए ,पर तुर्की ने न केवल अजरबैजान को आर्मेनिया से लड़ने को उकसाया है ,बल्कि उसे हथियारों के साथ सीरिया में संघर्षरत कोई चार हजार अपने सैनिक भेज कर आग में घी डालने का काम कर किया है। यह सब तुर्की खुद को इस्लामी दुनिया का खलीफा बनने के लिए कर रहा है। इसमें चीन में उसके साथ खड़ा है। तुर्की के नक्शे कदम पर चलते हुए पाकिस्तान भी अजरबैजान को मदद को आगे आ गया है। उसने भी अपने दहशतगर्द लड़ने को अजरबैजान रवाना किये हैं और पाकिस्तान प्रधानमंत्री इमरान खान ने स्वयं अजरबैजान के मुखिया से वार्ता कर इस जंग में साथ देने का भरोसा दिया है। हालाँकि अब रूस ने पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि वह इस जंग से दूर रहे। इस दौरान तुर्की के आर्मेनिया के सुखोई-25 को एफ-16 से मार गिराये जाने से रूस उससे बेहद नाराज है। यह देखते हुए तुर्की यह सफाई दे रहा है कि उसने सुखोई-25 नहीं गिराया है। जंग की वजह से दुनिया के बँटवारे की वजह आर्मेनिया का आर्थोडेक्स ईसाई बहुल देश होना हैं, वहीं

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अजरबैजन का मुस्लिम बहुल मुल्क। इसी कारण अजरबैजान के साथ तुर्की, पाकिस्तान है, जबकि आर्मेनिया के साथ रूस है,जिसके साथ उसकी सुरक्षा सन्धि भी है। वैसे अजरबैजान तथा आर्मेनिया दोनों ही सोवियत संघ के प्रान्त रह चुके हैं,जो उसके विघटन के बाद स्वतंत्र मुल्क बने हैं। अब जिस नागोर्ना काराखाब को लेकर जंग हो रही है, वह भी आर्मेनियन ईसाई आबादी बहुल अजरबैजान में स्थित स्वायत्तशासी क्षेत्र है। इसके लिए अजरबैजान और आर्मेनियन के बीच 1994में युद्ध हो चुका है, तब से यह उसके आधिपत्य में है। उसमें 30 हजार लोग मारे गए तथा 10लाख लोग विस्थापति हुए थे। इसे लेकर 2016से लेकर इनमें लड़ाई हो चुकी है। वैसे नागोर्नो काराखाब स्वयं को स्वतंत्र देश मानता है।फ्रान्स,भारत समेत विश्व के अनेक देशों ने इस युद्ध का समाप्त करने की अपील की है, जिसे वह खारिज कर चुका है।
अब हम संघर्षरत अजरबैजान और आर्मेनिया के बारे में जान लेते हैं,ताकि वर्तमान युद्ध को सही परिप्रेक्ष्य में समझ सकें।
अजरबैजान ईरान और तुर्की की सीमाओं के साथ पूर्व सोवियत संघ गणराज्य का प्रान्त है। वर्तमान में यह देश उत्तर-पूर्व में कैस्पियन सागर तथा पश्चिम में रूस, जार्जिया और दक्षिण में ईरान से घिरा हुआ है। इसका क्षेत्रफल- 86,600 वर्ग किलोमीटर तथा राजधानी बाकू है। इसकी आबादी 8, 997,400से अधिक है,जो इस्लाम मानती है और अजेरी, तुर्की और रूसी बोलती है। अजरबैजान की मुद्रा- मनट है। यह 30अगस्त,1991 को सोवियत संघ से अलग होकर स्वतंत्र हुआ। जनवरी, 1990 में बाकू आर्मीनियन सीमा पर नगोर्नाे-काराबाख में विदेशी हस्तक्षेप के कारण हिंसात्मक अव्यवस्था रहीं। अजरबैजान में मुस्लिम 97 फीसदी बहुल है,जबकि आर्मीनियन ईसाई 94 प्रतिशत हैं। अजरबैजान के अन्तर्गत आर्मेनियन बहुल क्षेत्र नगोर्नाे काराबाख का है। आर्मीनिया के अन्दर गणराज्य नखीचेवान अजरबैजान का अंग है। 1994 से नागोर्नो काराबाख पर आर्मेनिया के आधिपत्य है। 2016में इसे लेकर विवाद हुआ। वैसे जिस विधान और तरह से सोवियत संघ से अजरबैजान और आर्मेनिया अलग हुए थे,उसी तरह नागोर्नो काराखाब हुआ।
अजरबैजान में कृषि उत्पादन के रूप में अनाज ,कपास,अंगूर, फल,सब्जी ,तम्बाकू, रेशम,चारा आदि हैं। यहाँ प्राकृतिक स्रोत में लौह, अल्यूमीनियम,तांबा, जस्ता, दुर्लभ मेटल, चूना पत्थर इत्यादि हैं। इस देश में उद्योगों में तेल, तांबा, रसायन, भवन सामग्री, खाद्य, लकड़ी, कपड़ा और मछली आदि है।। इसी तरह आर्मेनिया भी सोवियत संघ को प्रान्त रहा है।

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सोवियत संघ का पूर्व गणराज्य आर्मेनिया की सीमाएँ जार्जिया, अजरबैजान, तुर्की और ईरान से मिलती हैं। इसका क्षेत्रफल- 29,800वर्ग किलोमीटर है। इसकी जनसंख्या- 3,254, 300से अधिक है, इनमें 94 प्रतिशत इस्लाम तथा बाकी ईसाई मजहब मानती है। ये लोग आर्मीनियन बोलते हैं। इस देश की मुद्रा-ड्राम है। आर्मीनिया को 21 सितम्बर, 1991को सोवियत से स्वतंत्रता मिली। नगोर्ना काराबाख अजरबेजान का स्वशासित क्षेत्र है। आर्मेनिया ने इसके पुर्नएकीकरण माँग की थी। जनवरी, 1990 में यहाँ जातीय वर्गों को रोकने के लिए सोवियत सेनाएँ भेजी गई थीं। दिसम्बर, 1988 में यहाँ आए भूकम्प में 55,000 लोग मरे थे और 5,00,000सम्पत्ति विहीन हो गए थे।
रूस के अन्ध समर्थक आर्मीनिया ने सन् 1997 में एक सन्धि के अन्तर्गत रूस को 25वर्षों तक सैन्य अड्डा संचालित करने की स्वीकृति दी है। यह एक पहाड़ी देश है और यहाँ की जमीन अत्यन्त उपजाऊ है। प्रमुख फसलें अनाज, आलू, जैतून,बादाम, अंगूर ,कपास,दुग्ध उत्पादन होता है। यहाँ के प्राकृतिक स्रोतों में तांबा, जस्ता, एल्यूमिनियम, मोलिब्डेनम, संगमर ग्रेनाइट, सीमेण्ट आदि हैं। इस देश के उद्योगों में रसायन,सीमेण्ट, कपड़ा,खाद्य उद्योग ,गलीचा( कर्पेट) आदि हैं।इस युद्ध के शुरू में मुस्लिम देशों के संगठन’ मुस्लिम सहयोग संगठन’(ओ.आई.सी.)ने मदद की बात की थी,पर बन्द में सम्भवतःसऊदी अरब का रुख देते हुए चुप होकर बैठ गए हैं। इसी तरह अजरबैजान का साथ इजरायल देने जा रहा है,लेकिन फिलहाल वह चुप है।इसी तरह ईरान के आर्मेनिया का साथ देने की बात चर्चा में आयी थी। आबादी के नजरिये से आर्मेनिया अजरबैजान का एक तिहाई है,लेकिन उसकी सेना प्रशिक्षित और सुसंगठित है। इस जंग की शुरुआत में अजरबैजान की पहल की वजह से आर्मेनिया ने अपने सैनिक ज्यादा संख्या गंवाए है,किन्तु अब वह उस पर भारी पड़ रहा है। अब तक दोनों ही मुल्कों के बड़ी संख्या में हैलीकोप्टर, आयुद्ध भण्डार, यूएवी, टैंक आदि नष्ट हो चुके है,हर रोज बेकसूर नागरिक भी मारे जा रहे हैं। अगर जल्द ही इस जंग को रोका नहीं गया,तो यह विश्व युद्ध में परिवर्तित हो सकता है। वैसे अब अगरबैजान जंग का जुनून नहीं छोड़ा,तो इसमें रूस का शामिल होना निश्चित है। उस हालत में अजारबैजान और तुर्की का क्या हश्र होगा,सोचकर कर उसके अंजाम से डर लगता है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर, आगरा- 282003 मो.नम्बर-9411684054

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