डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में दक्षिण कश्मीर के शोपियां में पंजाब केे दो सेब व्यापारियों तथा एक ईंट भट्टे पर करने वाले श्रमिक ,राजस्थान से सेब भरने आए ट्रक चालक की दहशतगर्दों द्वारा बेहरमी से हत्याएँ किये जाने तथा सोपोर फल मण्डी में रखी सेब की पेटियों में आग लगाने तथा वकुछ ट्रक चालकों के साथ मारपीट कर कश्मीर छोड़ने का फरमान सुनाने पर पड़ोसी पाकिस्तान और उसके सुर में सुर मलाने वाले कश्मीरी, देश की तथाकथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों विशेष रूप से वामपंथी के नेताओं तथा काँग्रेसियों, विभिन्न जनसंचार माध्यमों में बैठे लोगों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकारवादियों की खामोशी ने एक बार फिर उनके असली चेहरों को बेनकाब कर दिया है, जो गत 5 अगस्त अनुच्छेद 370 और 35ए हटाये जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में इस्लामिक कट्टरपन्थियों, पाकिस्तानपरस्त अलगाववादियों, जिहादियों द्वारा खूनखराबा कर दहशतगर्दी मचाने से रोकने के लिए सरकार द्वारा कथित सियासी नेताओं, पाकिस्तान परस्त अलगाववादियों को नजरबन्द और गिरफ्तार किये जाने, टेलीफोन, मोबाइल, इण्टरनेट सेवाएँ किये जाने समेत कई दूसरी पाबन्दियों को लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकारों के हनन का रोना रोते हुए दुनियाभर में भारत को बदनाम करने में जुटे हैं, जबकि उस दौरान शासन-प्रशासन तथा सुरक्षा बलों की इस सर्तकता और सावधानी के कारण कहीं भी न किसी की जान नहीं गई और खाने-पीने की वस्तुओं से लेकर इलाज और दवाओं की ही कमी रही। यहाँ के बाजार और दुकानें बन्द रखने को भी दहशतगर्दों ने ही मजबूर किया हुआ है। ये लोग एक ओर तो आर्थिक नुकसान तथा रोजी-रोटी कमाने में बाधा, पढ़ाई-लिखायी न होने के बात करते हैं, दूसरी ओर ये दहशतगर्द दुकानें खोलने या व्यापार करने पर उन्हें धमका कर बन्द कराते है,ताकि सरकार और सुरक्षा बलों को बदनाम कर आम लोगों को उनके खिलाफ किया जा सके। इनमें से कुछ अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाए जाने और दूसरी पाबन्दियों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिकाएँ दायर करते हैं, लेकिन सरकार जब उन पाबन्दियों को हटाती है,तो दहशतगर्द उनका बेजां फायदा उठाकर बेकसूरों की जान लेते हैं, तब ये ही लोग उनकी मजम्मत और मुखालफत करने के बजाय खामोश रहने में अपनी खैरियत समझते हैं। क्या जम्मू-कश्मीर के हालात ऐसे ही बदल जाएँगे? क्या इसकी सारी जिम्मेदारी सरकार की है? क्या कश्मीर के लोगों को संगठित होकर इन पाकपरस्त अलगाववादियों, अराजक तत्त्वों के विरोध के लिए आगे नहीं आना चाहिए, जिन्होंने इस सूबे को अपनी हर तरह की बेजा हरकतों से तबाह किया हुआ है। इन्होंने युवाओं को मजहब पर कथित खतरे के बहाने उन्हें अपने ही मुल्क के खिलाफ खड़ा कर जेहादी बना दिया है। इनकी वजह से बहुत से युवा जम्मू-कश्मीर ही नहीं देश-विदेश में उच्च शिक्षा की पढ़ाई छोड़कर बन्दूक लेकर जेहादी बन गए हैं। ये अपने ज्ञान, शिक्षा, शक्ति-सामर्थ्य के उपयोग से अपना, अपने परिवार, इस सूबे और देश का विकास करने के बजाय सभी को तबाह करने पर तुले हैं। क्या इन्हें समझाने को किसी और दुनिया के लोग आएँगे? जो पाकिस्तान एक तरफ भारत सरकार पर जम्मू-कश्मीर के लोगों को बन्धक बनाने तथा उन पर जुल्म ढहाने का आरोप लगाता फिर रहा है, वही दूसरी तरफ इसकी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर हर रोज गोलीबारी कराते हुए दहशतगर्दों को घुसपैठ कराने में जुटा हुआ है। यहाँ तक वह रिहायशी क्षेत्रों पर गोली बरसाने में गुरेज नही करता, िजनमें कोई न कोई घायल,मरने और सम्पत्ति नष्ट होने की खबरें आती रहती हैं। इनमें मरने वाले भी मुसलमान भी होते हैं। फिर आज तक किसी कश्मीर नेता ने आज तक कभी पाकिस्तान का विरोध नहीं किया है, ऐसा क्यों हैं? स्पष्ट है कि इन्हें भारतीय सुरक्षा बलों से तो परेशानी है,पर पाकिस्तान सेना की गोलीबार, उसके भेजे दहशतगर्दों को लेकर किसी तरह का ऐतराज नहीं है,चूँकि ये उन्हें ‘मुजाहिद‘(धर्मरक्षक)समझते/मानते हैं। इस सच्चाई जानते हुए भी अपने देश के तथाकथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दल यथा- वामपन्थी, काँग्रेसी, सपाई, बसपाई, राजद, एन.सी.पी.,जदयू इनकी फर्जी कश्मीरियत,इन्सानियत,जम्हूरियत दुहाई को तस्दीक करते आए हैं,ताकि मुसलमानों के एकमुश्त वोट हासिल कर सत्ता भोग सकें। ये लोग एक लम्बे अर्से से पंथनिरपेक्षता , मानवाधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में देश की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता के साथ खिलवाड़ करने के साथ-साथ इस्लामिक कट्टरपन्थियों, जिहादियों, पाकिस्तानपरस्तों को खुले आम समर्थन करते आए हैं। इसका सबसे ज्यादा फायदा शेख अब्दुल्ला और उनके परिवार ने उठाया। पहले खुद मुख्यमंत्री बने। फिर उनके बेटा डॉ.फारूक अब्दुल्ला और नाती उमर अब्दुला मुख्यमंत्री तथा केन्द्र में मंत्री बन सत्तासुख भोगते आए हैं। ये दोगल चरित्र के लोग कश्मीर घाटी में साम्प्रदायिक,जम्मू में पंथनिरपेक्ष,दिल्ली में देशभक्त और विदेश में देशद्रोही की भूमिका निभाते रहे हैं। इसी तरह मुफ्ती मोहम्मद सईद खानदान खुलेआम अलगाववादियों का हमदर्द रहते बराबर उनकी और पाकिस्तान की तरफदारी करता आया है। इसी तरह कमोबेश रूप में काँग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद तथा दूसरों की रही है।फिर देश के फर्जी पंथनिरपेक्ष नेता,लेखक,पत्रकार उनके असली चेहरों को लगातार छुपाने और उन्हें बचाने में लगे रहे हैं,जबकि इन्हें यह भी पता था कि कश्मीर में मस्जिदों से इस्लामी कट्टरता फैलाने तथा दहशतगर्दी के लिए इस्लामिक मुल्कों से धन आता है। उसकी बदौलत स्थानीय पत्थरबाज,अलगाववादी, दहशतगर्द पलते,फलते-फूलते हैं।
यह सच है कि टेलीफोन, मोबाइल, इण्टरनेट सेवाएँ बन्द रहने के चलते लोगों को अपने सगे सम्बन्धियों से संवाद करने में असुविधा अवश्य हुई। यह प्रतिबन्ध भी शान्ति और सुरक्षा बनाये के लिए बहुत जरूरी था, क्यों कि इन्हीं के जरिए अलगावादी, आतंकवादी आपस में सम्पर्क साधने के साथ-साथ अपने समर्थकों को पत्थरबाजी और हिंसा करने को एकजुट करते आए हैं। यहाँ तक कि ये लोग इण्टरनेट पर सुरक्षाबलों के तथाकथित अत्याचारों, मुल्ला-मौलवियों की जहरीली जेहादी तकरीरें आदि के जरिए आम लोगों को भड़काते रहते हैं। इस हकीकत का जानते हुए कश्मीरियों समेत देश के तमाम लोग टेलीफोन, मोबाइल, इण्टरनेट सेवाएँ बन्द होेने को मानवाधिकार हनन का राग अलापते रहे हैं, जैसे इनके बिना जिन्दगी नहीं चल पा रही है। इसे लेकर राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा है कि टेलीफोन, मोबाइल और इण्टरनेट किसी जान से ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। वैसे भी जम्मू के अधिकांश के जिलों तथा कश्मीर घाटी के चार-पाँच जिलों में ही ज्यादा पाबन्दी थी और लद्दाख के तो कुछ ही हिस्से में प्रतिबन्ध लगा था। इस कारण काफी बड़े भाग में टेलीफोन सेवा चालू किये जाने के साथ-साथ पहले परिषदीय स्कूल, फिर जूनियर स्कूल,बाद में कॉलेज, विश्वविद्यालय खोले जाने का निर्णय लिया गया है। सरकारी कार्यालय तो 5 अगस्त के कुछ दिनों के बाद ही खुल गए थे। संचार सेवाओं के दुरुपयोग को लेकर सरकार की आशंकाएँ निराधार नहीं थीं, जम्मू से लेकर कश्मीर घाटी में मोबाइल या इण्टरनेट सेवाएँ चालू होते ही समाजविरोधी तत्त्वों ने इनकी मदद से माहौल खराब करना शुरू कर दिया। उसके बाद सरकार को इन सेवाओं को बन्द करने पर मजबूर होना पड़ा।
इस बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान दुनियाभर में कश्मीर मुसलमानों पर जुल्मों का दुखड़ा रो कर इस्लामिक और गैर मुसलमानों को भारत के खिलाफ इकट्ठा करने में लगे रहे, लेकिन उन्हें केवल अपने सदाबहार दोस्त चीन, तुर्की, मलेशिया का साथ ही मिल पाया,पर अपने देश में काँग्रेसियों, वामपन्थियों, कुछ जनसंचार माध्यमों में बैठे लोगों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारवादियों को साथ अवश्य मिल गया, जिन्होंने पिछले सत्तर सालों में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए के कारण इस सूबे की युवतियों, अनुसूचित/अनुसूचित जनजातियों के लोगों-गुज्जर बकरवाल समेत कई दूसरे समुदायों को सरकारी योजनाओं से वंचित रखने के साथ-साथ हिन्दुओं, बौद्वों के साथ हर तरह भेदभाव होने का कभी विरोध नहीं किया। ये लोग नब्बे के दशक में इस्लामिक कट्टरपन्थियों द्वारा बन्दूक के जोर कई लाख कश्मीरी पण्डितों को घाटी से बेदखल करने,उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार,हत्याएँ, खेत-मकानों पर कब्जा, मन्दिरों को नष्ट-भ्रष्ट करने पर कुछ नहीं बोले। यहाँ तक कि इन्हें अलगाववादियों के पाकिस्तान और दुनिया के खंूखार दहशतगर्द संगठन ‘आइ.एस.’के झण्डों के साथ हिन्दुस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान जिन्दाबाद आदि के नारों लगाते हुए सुरक्षा बलों पर पत्थरों में कुछ गलत नजर नहीं आया,पर इन्हें अपनी आत्म रक्षा के लिए आँसू गैस के गोले दागने, पैलटगन चलाने पर पत्थर फेंकने वालों के मानवाधिकारों का घोर हनन दिखायी दिया।
अब जब सरकार टेलीफोन, मोबाइल सेवाएँ करने के साथ-साथ कई दूसरी तरह की पाबन्दियाँ, पर्यटकों के आने के लिए एडवाइजरी , अलगाववादियों की सशर्त रिहाई समेत कई दूसरे कदम उठा कर माहौल सुधारने में लगी, तब जेहादी दहशतगर्द फिर से उसे बिगाड़ने की हर सम्भव कोशिश कर रहे हैं। फिर भी कश्मीर और देश के पंथनिरपेक्ष नेता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकारवादी उनके खिलाफ कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं। वैसे भी जम्मू-कश्मीर के मौजूदा हालात को लेकर ये लोग जैसा शोर मचा रहे हैं, उसके लिए सरकार, सेना, सुरक्षा बल, जम्मू-कश्मीर की पुलिस जिम्मेदार नहीं है। हकीकत में उसके लिए कोई और नहीं, पाकिस्तान परस्त अलगाववादी, जिहादी, कठमुल्ले-मौलवी, दहशतगर्द कसूरवार हैं, जो अपने मकसद को पूरा करने के लिए इस सूबे को जन्नत से जहन्नुम बनाये रखना चाहते हैं। इसके विपरीत इस सूबे में राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने 28अगस्त को 50,000नई भर्तियों की घोषणा की। फिर 3सितम्बर को केन्द्रीयगृह मंत्री अमित शाह ने घाटी से प्रतिनिधि मण्डल को भरोसा दिया कि राज्य में पंचों और सरपंचों को पुलिस सुरक्षा के साथ-साथ दो-दो लाख रुपए का बीमा का कवरेज मिलेगा। यहाँ बड़े पैमाने पर विकास कार्य शुरू किये जाएँगे।
केन्द्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित संविधान के अनुच्छेद 370 तथा 35ए हटाये जाने और उसे दो केन्द्र शासित प्रदेशों-जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख में विभाजित करने से पाकिस्तान और इस सूबे के इस्लामिक कट्टरपन्थी अलगाववादी, आतंकवादी, मुल्ला-मौलवी बौखला गए,क्यों कि ऐसा होने पर भविष्य में उनके मजहबियों का मुख्यमंत्री बनना सुनिश्चित नहीं रहेगा और न ही राज्य की पुलिस व्यवस्था ही उनके अधिकार क्षेत्र में होगी। तब पाकपरस्त कैसे सुरक्षा बलों पर हमला करके सुरक्षित बच पाएँगे? तब उनके खिलाफ दर्ज मुकद्दमें कैसे वापस होंगे? अब जो पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित अनुच्छेद हटाने और इसके बाँटने पर हायतौबा मचा रहा है,उसने अवैध रूप से गुलाम कश्मीर को न कई हिस्सों में बाँट दिया है, बल्कि उसके एक बड़े हिस्से को चीन को सौंप दिया है।
इसी 16अक्टूबर को दक्षिण कश्मीर के ही त्रेंज शापियां में में आतंकवादियों ने पंजाब के दो व्यापारियों को गोली मारी तथा एक श्रमिक की गोली मार हत्या कर दी। उससे पहले 14अक्टूबर को शोपियां में राजस्थान के श्रीमाल केेे चालक शरीफ खान की हत्या कर उसका ट्रक भी जला दिया। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने शोपियां में ट्रक चालक और सेब व्यापारी की हत्या में संलिप्त हिजबुल मुजाहिदीन के जिला कमाण्डर नवीद बाबू और राहिल मागरे के पोस्टर जारी किये हैं। पुलिस ने इनका सुराग देने वालों को इनाम देने का ऐलान किया है। इसके बाद 17अक्टूबर को दहशतगर्दों ने सोपोर फल मण्डी में किसानों द्वारा नेफेड को बेचने और देश के दूसरे शहरों को भेजने को रखी सेब की पेटियों का आग लगाने के साथ ट्रक चालकों को पीटा और कश्मीर छोड़ कर जाने का कहा है।इससे पहले सितम्बर की शुरुआत में दहशतगर्द तीन सेब व्यापारियों के अलावा एक ढाई साल की बालिका को गोली मार कर गम्भीर रूप से जख्मी कर चुके हैं।
अब दहशतगर्दी के कारण सेब व्यापारी और दूसरे राज्यों से आए श्रमिक, ट्रक चालक वापस लौटने लगे हैं। सितम्बर माह की शुरुआत तक सेब का निर्यात लगभग थम-सा गया था। अक्टूबर के पहले सप्ताह तक 25प्रतिशत निर्यात हो चुका था। गर्मी के दिनों में राज्य में कश्मीर में अन्य राज्यों से चार से पाँच लाख श्रमिक आते हैं जो सर्दियों में पारा गिरने पर लौट जाते हैं।
वर्तमान में सरकार यथासम्भव प्रतिबन्ध हटा रही है, किन्तु पाकिस्तान परस्त अलगाववादी, जेहादियों को इस सूबे में अमन-चैन की वापसी अपने माफिक नजर नहीं आ रही है, इसलिए किसी न किसी तरह यहाँ अशान्ति बनाये रखने चाहते हैं। ऐसी स्थिति में दहशतगर्द और उनके मददगारों, हमदर्दों का दमन और सफाया किया जाना जरूरी है। सरकार को देश और दुनिया में इनके हमदर्दों के चीखने -चिल्लाने तथा शोर मचाने की परवाह किये बगैर इनके कुचलने और सफाये लगे रहना चाहिए। जहाँ तक पाकिस्तान का प्रश्न है तो उसे भी बलूचिस्तान, सिन्ध, पख्तूनख्वा में चले रहे जनान्दोलन का समर्थन और सहायता कर उसकी चाल से मात देने में अब संकोच तथा देरी नहीं करनी चाहिए।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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