राजनीति

क्या जैसे को तैसा कहना गुनाह है?

साभार सोशल मीडिया

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

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हाल में बृहन्मुम्बई म्युनिसिपल कारपोरेशन (बीएमसी) ने बम्बई उच्च न्यायालय के 30 सितम्बर तक तोड़फोड न किये जाने आदेश की अनदेखी/अवमानना कर अनधिकृत निर्माण के आरोप लगाते हुए अभिनेत्री कंगना रनौत के कार्यालय को जिस तत्परता से बुरी तरह से ध्वस्त किया, उससे स्पष्ट है कि सत्ता के लोभ में शिवसेना ने ‘हिन्दू’ और ‘हिन्दुत्व’ के रक्षण के अपने मुख्य लक्ष्य को भले की त्याग दिया है, लेकिन अपनी अराजकता, असहिष्णुता, खून-खराबा, और आतंक फैलाने की फितरत नहीं छोड़ी है। वह पहले की तरह असहमति रखने वाले को बर्बाद ही नहीं, उसका खात्मा तक कर सकती है। वैसे शिवसेना ने कंगना रनौत के मुम्बई की पीओके(पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) से तुलना करने पर भले ही भारी ऐतराज जताया था, लेकिन प्रत्युत्तर में उसके मुखपत्र ‘सामना’ के सम्पादक एवं राज्यसभा के सांसद संजय राउत समेत दूसरे नेताओं, कार्यकर्ताओं ने उन्हें ‘हरामखोर जैसे अपशब्द ही नहीं बोले , बाकायदा गालीगलौज, उसकी महिला सदस्यों द्वारा कंगना के फोटो पर चप्पलें चलाने से लेकर मुम्बई आने पर अंजाम भुगतने की धमकी भी दी। इतना ही नहीं, महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने तो यहाँ कहा दिया कि कंगना को मुम्बई में रहने का कोई हक नहीं। इस पर कंगना ने जवाब दिया कि मुम्बई किसी के बाप की नहीं, जिसको उखाड़ना हो, सो उखाड़ ले। मैं मुम्बई जरूर आऊँगी। बदले में उन्होंने कंगना रनौत के कार्यालय को ढहा कर दिखा दिया। इससे तो उसने कंगना के आरोप को सही साबित कर दिया है। पी.ओ.के. में भी तो इस्लामिक दहशतगर्दाें के संगठनों यही सब तो करते रहते हैं, जो खुद की मुखालफत करने वालों का जीना हराम ही नहीं, बल्कि उसकी जान लेने से भी बाज नहीं आते। यहाँ प्रश्न यह है कि मुम्बई क्या सिर्फ शिवसेना की है। क्या महाराष्ट्र में राजशाही है? क्या लोकतांत्रिक सरकार का गृहमंत्री किसी व्यक्ति को मुम्बई में रहने पर रोक लगाने की धमकी दे सकता है ?

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कुछ इसी तरह शिवसेना मराठी अस्मिता की आड़ में पहले दक्षिण भारतीयों, फिर अब हिन्दभाषियों का हर तरह से उत्पीड़न करती रहती है। शिव सेना ने कंगना रनौत पर महाराष्ट्र और मुम्बई के अपमान का भी आरोप लगाया है। क्या अपने गठन के बाद से शिवसेना के सैनिक जो कुछ भी अब तक करते आए हैं और अब भी कर रहे हैं,उसे क्या इस सूबे और मुम्बई का सम्मान बढ़ाने वाला माना जाना चाहिए। वैसे सच यह है कि उन्होंने जिन छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर अपने संगठन का नामकरण किया हुआ है, क्या उसके कार्यकलाप उन्हीं छत्रपति शिवाजी महाराज कें आदर्शों के अनुरूप हैं ? एक तरफ शिवा जी महाराज ने अपने इस्लामिक प्रतिद्वन्द्वी की बेगम गौहरबानू को न केवल बाइज्जत वापस भेजते है, बल्कि पाक कुरान को भी सम्मान देते हुए सौंपते थे, दूसरी तरफ वह एक अभिनेत्री के साथ मर्यादा की सारी हदें लांघ देते हैं। फिर शिवाजी महाराज का जिस ‘हिन्दू पादशाही’ की स्थापना करना चाहते थे, क्या वह सिर्फ वर्तमान महाराष्ट्र की सीमाओं तक सीमित थी ? ऐसे में शिवसेना का कंगना रनौत पर महाराष्ट्र और मुम्बई के अपमान का आरोप बेमानी है। इस मामले में उसे खुद अपने गिरबां में झांकना चाहिए, जवाब जरूर मिल जाएगा। हकीकत यह है कि कंगना रनौत ने मुम्बई की पी.ओ.के. से तुलना सिर्फ शिवसेना और महाराष्ट्र सरकार और उसकी पुलिस के अनुचित रवैये को लेकर की थी, जो उसके कार्यकलापों को देखते हुए गलत कहाँ हैं? कुछ शिवसेना के नेता यह कह कर कंगना रनौत की आलोचना कर रहे हैं, जिस मुम्बई ने उन्हें सब कुछ दिया है, उसका ही वह अपमान कर रही हैं, जो उन्हें बर्दाश्त नहीं है। अब सवाल यह है कि क्या उद्धव ठाकरे, संजय राउत और दूसरे शिवसैनिकों को मुम्बई ने जो कुछ दिया , क्या उन्होंने भी मुम्बई के लिए ऐसा कुछ किया है, जिससे उसका सचमुच में सम्मान बढ़ा है ? इस पर उन्हें विचार करना चाहिए। अगर ऐसा होता तो, क्या हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश , बिहार, कर्नाटक स्वयं मुम्बई में शिवसेना को विरोध और कंगना रनौत को समर्थन न मिल रहा होता? वैसे शिव सेना के इस ‘रक्तचरित्र’ और उसके काले कारनामों को जानते-बूझते हुए भी अभिनेत्री कंगना रनौत ने शिवसेना समेत महाराष्ट्र सरकार के मुखिया उद्धव ठाकरे को उनकी ही शैली में खरी-खरी सुनाते हुए विरोध जताने का जैसा हौसला दिखाया या उनसे पंगा लिया है, वैसा किसी दूसरे शख्स द्वारा किये जाने की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। कंगना रनौत की तू-तड़ाक की भाषा का हम या कोई और समर्थन भले न करें, पर उनके साथ भी जिस अशोभनीय भाषा तथा वैसा ही हर जगह सलूक किया गया, वह भी अस्वीकार्य है। महाराष्ट्र सरकार ने कंगना रनौत के साथ बदले की जैसी कार्रवाई की,वह अत्यन्त निन्दनीय और लोकतांत्रिक व्यवस्था के सर्वथा विपरीत है। उसका महाराष्ट्र समेत देश में अलग-अलग जगहों पर विरोध हो रहा है। उसे देखते हुए अब शिवसेना के मुखपत्र दैनिक ‘सामना’ के सम्पादक और मुख्य प्रवक्ता संजय राउत को कंगना रनौत के कार्यालय के तोड़फोड़ और उस पर कंगना के मुख्यमंत्री उद्वव ठाकरे पर जवाबी हमले पर कुछ बोलते हुए नहीं बन रहा है। कंगना रनौत के कार्यालय को तोड़े जाने को लेकर बीएमसी को बम्बई उच्च न्यायालय की फटकार पड़ चुकी है। फिर शिवसेना अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही। उसके लोगों द्वारा अब कंगना रनौत के खिलाफ मुख्यमंत्री के प्रति अशोभनीय भाषा प्रयोग करने पर डिंडोशी तथा विक्रोली थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी गईं हैं, लेकिन कंगना ने ये भाषा अपने कार्यालय को तोड़े जाने पर उत्पन्न आक्रोश में प्रयोग की, पर शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत का हरामखोर बोलना क्या मानहानि नहीं है? इतना ही नहीं, अपने खिलाफ रिपोर्टिंग से कुपित महाराष्ट्र पुलिस ने टी.वी.चैनल ‘ रिपब्लिक भारत’ के एक पत्रकार और कैमरामैन को भी गिरपतार किया जाना,क्या अभिव्यक्ति स्वतंत्रता पर आघात नही ंतो फिर क्या है?
अफसोस की बात यह है कि कंगना रनौत के साथ हुए इस जुल्म पर असहिष्णता विरोधी, अभिव्यक्ति की आजादी समर्थक, अवॉर्ड वापसी गिरोह, वामपंथी, काँग्रेसी, शिवसेना, भाजपा विरोधी आइएम आइएम के नेता असुद्दीन ओवैसी आदि सभी सियासी पार्टियाँ खामोश हैं। यहाँ तक कि अब तक फिल्मी दुनिया के चन्द अभिनेता, अभिनेत्रिया, निदेशक, निर्माता को छोड़कर ज्यादातर मूकदर्शक बने हुए हैं। अब आमिर खान, शाहरुख खान, नसीररुद्दीन शाह, स्वरा भास्कर, अनुराग कश्यप, जावेद अख्तर, शबाना आजमी, फरहान अख्तर, जावेद जाफरी, उर्मिला मंतोडकर, दीपिका पदुकोण आदि की संवेदना कहाँ मर गईं, जिन्होंने इन्हें ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग सरीखे देशद्रोहियों और इस्लामिक कट्टरपन्थियों का पक्ष लेने में कभी शर्म और संकोच नहीं दिखाया। वैसे अब कंगना के पक्ष में अनुपम खेर, रेणुका शहाणे, अंकिता लोखडे, विवके अग्निहोत्री, सोनल चौहान, दिया मिर्जा, स्वाति आनन्द आदि अभिनेता-अभिनेत्रियों के साथ-साथ इण्डिया मोशन पिक्चर प्रोडयूसर एसोसियेशन भी आ गई हैं। इधर हैरानी बात यह है कि अब तक कंगना रनौत के मामले में ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ ने कोई आवश्यक कार्रवाई नहीं की। उधर कुछ लोग कंगना रनौत की भाषा को लेकर सवाल तो उठा रहे हैं, पर शिवसेना के नेताओं की भाषा और उनकी धमकी की अनदेखी कर रहे हैं,क्या अभिव्यक्ति की आजादी सिर्फ राजनेताओं और देश के गद्दारों को है?
वैसे इस मामले में अभिनेत्री कंगना रनौत का कसूर सिर्फ इतना है कि उन्होंने अभिनेता सुशान्त सिंह राजपूत की अस्वाभाविक संदिग्ध परिस्थिति में हुए मृत्यु पर प्रश्न उठाते हुए उसके पीछे फिल्म दुनिया व्याप्त भाई-भतीजावाद, फिर नशाखोरी आदि की जाँच सी.बी.आई से कराने की माँग की है। उन्होंने सुशान्त सिंह राजपूत और पालघर में भीड़ की हिंसा में साधुओं की हत्या के मामलों में महाराष्ट्र पुलिस की लचर कार्यशैली पर सवाल उठाया था, उसने फिल्मी दुनिया में हिन्दू, हिन्दुत्व विरोध और इस्लामिक माफियों के इशारे पर उसके चलने का आरोप भी लगाया था। उसके बाद शिवसेना और महाराष्ट्र सरकार उनके खिलाफ खुलकर आ गई। फिर बिहार में सुशान्त सिंह राजपूत को लेकर प्राथमिक दर्ज होने और उसकी जाँच को आए बिहार पुलिस अधिकारियों के मुम्बई आने से तो महाराष्ट्र सरकार बौखला ही गई। उसके बाद सी.बी.आई की जाँच घोषण और उसके बाद जाँच शुरू करने और फिल्मी दुनिया में मादक पदार्थों के बड़े पैमाने पर चलन के खुलासे का सच भी सामने आ रहा है। यही शिवसेना और महाराष्ट्र सरकार बौखलाहट की असल वजह है। वैसे सुशान्त सिंह राजपूत और कंगना रनौत प्रकरण के चलते मुम्बई की फिल्मी और वहाँ की सियासी दुनिया के छल,कपट, फरेब, दुहरे चरित्र, उनकी गन्दगियाँ, इस सबका तरह-तरह अपराधियों के साथ गठजोड़ खुलकर सामने आ गया, जो न जाने कितने मुखौटे लगाकर आम आदमी को लूटता आया और लूट रहा है। इस पर जब भी कोई अंगुली उठाता है,वे सब एकजुट होकर उस पर टूट पड़ते हैं। अब देखना यह है कि देश के जागरूक लोग और देश का न्यायिक व्यवस्था इस नापाक गठजोड़ को तोड़ने में कहाँ तक कामयाब हो पाती है?
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर, आगरा- 282003 मो.नम्बर-9411684054

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