डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश थाईलैण्ड ने पनडुब्बी सौदा लटकाने के बाद अब ‘क्रा कैनाल प्रोजेक्ट’ रद्द कर उसने चीन को जो दूसरा तगड़ा झटका दिया है, उससे भारत समेत पूरी दुनिया को दादागिरी दिखा रहे चीन को भले ही बहुत आर्थिक हानि न हुई हो, लेकिन उसे दुनिया के दूसरे मुल्कों में अपनी घटती साख और विश्वास का अहसास जरूर हुआ होगा। इसके साथ ही भारत के बाद थाईलैण्ड दुनिया का दूसरा ऐसा मुल्क बन गया है, जिसने उसकी दादागिरी की तनिक भी परवाह नहीं की। इस प्रोजेक्ट के जरिए उसके दक्षिण चीन सागर और हिन्द महासागर में आसान पहुँच बनाने के उसका अरमान अब खटाई में पड़ गया, जिसके पूरे होने की वह एक लम्बे अर्से से उम्मीद लगाए बैठा हुआ था। वैसे भी दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश चीन के पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा जताने के कारण उससे बेहद परेशान और नाराज हैं, लेकिन उस की सैन्य शक्ति के कारण खामोश बने हुए हैं,इनमें फिलीपीन्स, इण्डोनेशिया, मलेशिया, ब्रेनई, थाईलैण्ड, वियतनाम प्रमुख हैं। अब थाईलैण्ड का मुखर विरोध चीन को बहुत महँगा पड़ता दिखायी दे रहा है। इस घटनाक्रम से भारत को भी बहुत लाभ मिला है, क्योंकि चीन हिन्द महासागर में स्थित श्रीलंका में पहले अपना सैन्य अड्डा बना चुका है। उसने मालद्वीप में कुछ ऐसा किया हुआ। इसके बाद पाकिस्तान के कराची शहर का ग्वादर बन्दरगाह भी चीन कब्जे में है। उसने अफ्रीकी देश जिबूती में सैन्य अड्डा कायम किया हुआ है। चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर (सीपैक) के जरिए वह भारत को घेर चुका है। अब थाईलैण्ड के ‘क्रा-नहर प्रोजेक्ट के माध्यम से दक्षिण चीन सागर और हिन्द महासागर में पहुँच बढ़ाकर भारत को खतरा बढ़ा रहा था।
वस्तुतः चीन लगभग 120 किलो मीटर लम्बे ‘क्रा -नहर प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद दक्षिण चीन सागर तथा हिन्द महासागर में अपने नवनिर्मित ठिकानों तक आसानी से पहँुच सकता था। इसके माध्यम से खतरे के समय चीन के युद्धपोत कुछ दिनों के बजाय कुछ घण्टों में ही हिन्द महासागर आ जाते। अभी इसके लिए चीन को 1,100 किलो मीटर की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है। चीन इस प्रोजेक्ट के माध्यम से मलक्का खाड़ी/जलडमरुमध्य को बाईपास करते हुए दक्षिण चीन सागर में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है, ताकि हिन्द -प्रशान्त क्षेत्र में कोई उसे चुनौती न दे सके।

दक्षिण- पूर्व एशिया का थाईलैण्ड एक महत्त्वपूर्ण देश है, जिसका पुराना नाम ‘श्याम’ था। इसका क्षेत्रफल- 5,13,115 वर्ग किलोमीटर है, जिसकी राजधानी बैंकाक है। इस देश की जनसंख्या-6,70,70,000 से अधिक है, जो बौद्ध तथा इस्लाम मजहब को मानती है और थाई, चीनी, अँग्रेजी और मलय बोलते हैं। यह देश 1238 स्वतंत्र हुआ। थाईलैण्ड एक संवैधानिक राजतंत्र है। प्राचीन काल से यहाँ निरंकुश शासन था, लेकिन सन् 1932 में यह संवैधानिक राजतंत्र बन गया। सन् 1948 में देश ने अपना वर्तमान नाम थाईलैण्ड ग्रहण किया। जून, 1997 में किंग भूमिबोल ने अपने शासन के पचास वर्ष पूरे कर विश्व के सबसे लम्बे समय के तानाशाह होने का कीर्तिमान बनाया। देश का मुख्य व्यवसाय कृषि है जिनमें जनसंख्या का 60 प्रतिशत लगा है। यहाँ की मुख्य फसल चावल है, जिसका बड़ा भाग निर्यात किया जाता है। दूसरे कृषिजन्य निर्यात नारियल, तम्बाकू, कपास, टीक, है। पिछली शताब्दी से थाईलैण्ड ने अपने देश में निर्मित और संसाधित वस्तुओं के निर्यात वृद्धि की है। खनिजों में टिन, मैंग्नीज, टंग्स्टन, एण्टीमनी ,लिग्नाइट और सीसा सम्मिलित है। इस देश में पर्यटन का बहुत अधिक विकास हुआ है।
निश्चय है कि थाईलैण्ड की इस कदम से दूसरे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का हौसला बढ़ेगा। ऐसे में अब जरूरत इस बात की है कि अब उसके पड़ोसी मुल्क भी चीन के खिलाफ एकजुट हों, ताकि वह पूरे दक्षिण चीन सागर पर दावा करने से बाज आए।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर, आगरा- 282003 मो.नम्बर-9411684054
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