देश-दुनिया

अब स्वीडन क्या कहेंगा?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों स्वीडन में कुछ दक्षिणपन्थी कार्यकर्त्ताओं द्वारा कथित तौर रूप से मजहबी पुस्तक जलाये जाने के कुछ ही घण्टों के बाद यहाँ के दक्षिणी शहर माल्मो में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बड़ी संख्या में सड़कों पर आकर जिस तरह मजहबी नारे लगाते हुए उत्पात, पत्थरबाजी, आगजनी, तोड़फोड़, हिंसा, टायर जलाकर जाम लगाने की वारदातों को अंजाम दिया गया, उससे निश्चय ही अब इस मुल्क के सरकार की आँखें खुल गई होगीं, जो अब तक ऐसे ही मामलों में दुनिया के दूसरे मुल्कों को कटघरे में खड़े करते आए हैं। अब इन्हें अपने गिरबां झकने की आवश्यकता है, क्यों कि यह स्वयं को शान्ति का मसीहा मानते हुए किसी भी देश की वस्तुस्थिति को जाने बगैर वहाँ हुए उपद्रवों को नियंत्रित करने में भी सुरक्षा बलों की सख्ती की निन्दा करता आया है। अपनी इसी अनुचित नीति और रवैये के तहत स्वीडन कई बार भारत की कश्मीर में पाकिस्तान समर्थक अलगाववादियों और विभिन्न इस्लामिक दहशतगर्दों के संगठनों के दहशतगर्दो के खिलाफ सुरक्षाबलों की कार्रवाई की आलोचना और निन्दा करता आया है। ऐसा करते हुए उसने कभी भी जम्मू-कश्मीर को इस्लामिक कट्टरपन्थियों के दारुल इस्लाम बनाने के इरादों और उससे यहाँ पैदा हुई जमीनी हालात को जानने की कभी कोशिश नहीं की। उसे वहाँ सुरक्षा बलों की कार्रवाई में मानवाधिकारों का उल्लंघन नजर आता रहा है। कमोबेश स्वीडन का ऐसा की रुख-रवैया श्रीलंका के तमिल पृथकतावादियों और इस्लामिक दहशतगर्दों के विरुद्ध पुलिस और सैन्य कार्रवाई की राक्षसी कार्रवाई दिखायी दी।
पिछले 29 अगस्त, शुक्रवार को दोपहर प्रवासी बहुल इलाके के निकट दक्षिणपन्थी कार्यकर्ताओं ने हंगामा किया। इन पर कथित मजहबी पुस्तक जलाये जाने का आरोप है। उसके बाद शाम होते-होते अचानक 300से अधिक मुस्लिम समुदाय के लोग इकट्ठे हो गए। फिर टायर जलाने के साथ उग्र तेवरों के साथ मजहबी नारों के साथ पत्थरबाजी और सामान फेंकने लगे। इससे कुछ लोग घायल हो गए। इन उपद्रवियों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को बहुत मशक्कत करनी पड़ी। बाद में मजहबी नफरत फैलाने के आरोप तीन लोगों को गिपतार किया गया। यह सब करते हुए अब स्वीडन को पता लग गया होगा कि मजहबी कट्टरपन्थियों के कारण कैसे अशान्ति और अराजकता फैल जाती है।फिर उससे स्थिति से निपटने के लिए पुलिस को मजबूरी सख्त कदम उठाना जरूरी होता है।
अब आप थोड़ा स्वीडन के इतिहास-भूगोल भी जान लें। स्वीडन नार्डिक देशों में से सबसे बड़ा और क्षेत्रफल की दृष्टि से यूरोप का चौथा बड़ा देश है। पश्चिम में स्केण्डेनेविया पर्वतमाला स्वीडन को नार्वे से अलग करती है। उत्तर-पूर्व की अपेक्षाकृत छोटी पर्वतामाला इसे फिनलैण्ड से अलग करती है। इसके अलावा स्वीडन बाल्टिक सागर और उत्तरी सागर से घिरा है। इसका क्षेत्रफल- 4,49,793वर्ग किलोमीटर और राजधानी-स्टाकहोम है। यहाँ की जनसंख्या- 94,18, 732से अधिक है, जो ईसाई धर्म को मानते है तथा स्वीडिश भाषा बोलते हैं। इस देश की मुद्रा -क्रोना है। यह देश 6जून,सन् 1523 स्वतंत्र हुआ। स्वीडन में सन् 1434ईस्वी से संवैधानिक राजतंत्र स्थापित है। स्वीडन शंकुधारी वन, जल विद्युत, लोहा अयस्क, यूरेनियम तथा अन्य खनिजों की प्राकृतिक सम्पदा से भरा हुआ है। तेल और कोयले के भण्डारों की कमी है। यह देश उद्योगों की दृष्टिसे अत्यन्त विकसित है। वर्तमान में देश के औद्योगिक उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत निर्यात कर दिया जाता है। मशीनी औजारों के निर्माण में स्वीडन का इस्पात विशेष रूप से विख्यात है। स्वीडन लकड़ी लुगदी, कागज और इमारती लकड़ी के सबसे बड़े उत्पादकों में गिना जाता है।
बहरहाल, स्वीडन की यह घटना उस और उस जैसे देशों के लिए यह सबक है जो बगैर किसी मुल्क की हकीकत को जाने, उनके घरेलू मामलों में दखल देने से बाज नहीं आते। कायदे से उन्हें किसी मुल्क के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से पहले वहाँ की समस्या को अच्छी तरह जान लेना जरूरी है। उसके बाद ही अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें। अब कोई स्वीडन से उसके हाल की घटना पर सवाल करें, तो उसे कैसा लगेगा? इस प्रश्न पर अब स्वीडन को विचार करना चाहिए।
वसम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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