डॉ.बचन सिंह सिकरवार

‘‘जम्मू-कश्मीर में यथास्थिति बहाली के लिए एकजुट हुए दलों के प्रस्ताव का मैं स्वागत करता हूँ। जम्मू-कश्मीर को पुनः पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए। अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए की वापसी हो। यह सभी राज्यों को और शक्तियाँ देने का आधार बने। मैं राज्य की जनता के साथ खड़ा हूँ।’’ उक्त कथन किसी कश्मीर घाटी के नेता या पाकिस्तान समर्थक इस्लामिक कट्टरपन्थी का नहीं है, बल्कि पूर्व भाजपा नेता और केन्द्रीय वित्त मंत्री यशवन्त सिन्हा का है। निश्चय ही यह जानकार आपको हैरानी और परेशानी जरूर हुई होगी। आखिर उन्हें अब ऐसा क्या हो गया, जो उस पार्टी के मुख्य उद्देश्य/लक्ष्य के विरुद्ध उनके विचार एकदम विपरीत हो गए। क्या भाजपा में सालों साल विभिन्न पदों और मंत्री रहते हुए वे जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित अनुच्छेद-370 और अनुच्छेद 35 ए हटाये जाने खिलाफ थे? अगर थे, तो तब उन्होंने अपनी जुबान क्यों नहीं खोली? यशवन्त सिन्हा के उक्त बयान से क्या यह नहीं लगता है कि वह भी अपने देश के उन तमाम नेताओं जैसे ही हैं जिनका सत्ता जाते ही विचार समेत पूरा कायाकल्प हो जाता है। यहाँ तक कि उन्हें अपने देश के विरोध में बयानबाजी से भी गुरेज नहीं होता। अब यशवन्त सिन्हा ने भाजपा छोड़ने के बाद गिरगिट की तरह अपना रंग बदला है, उसमें डॉ.फारूक अब्दुल्ला,उनका बेटा उमर अब्दुल्ला और उनके अपने पिता शेख अब्दुल्ला बहुत माहिर खिलाड़ी रहे हैं,जो दिल्ली में आकर या केन्द्रीय मंत्री

बनते ही हैं पक्के देशभक्त और जम्मू-कश्मीर में आकर क्षेत्रीय नेता तथा विशेष दर्जे के कट्टर हिमायती। फिर सत्ता जाते ही ये अलगाववादियों और मुजाहिदों सरीखा बर्ताव करते आए हैं। वैसे अब यशवन्त सिन्हा ने जम्मू-कश्मीर को लेकर उक्त विचार जम्मू-कश्मीर की छह सियासी पार्टियों के उस संयुक्त प्रस्ताव के पक्ष में व्यक्त किये हैं, जिसमें उन्होंने केन्द्र से इस सूबे में 5 अगस्त, सन् 2019 से पहले की स्थिति को बहाल करने की माँग की है। इसमें डॉ.फारुक अब्दुला की ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस’(नेकॉ) पार्टी , महबूबा मुपती की ‘पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी’(पी.डी.पी.), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) समेत तीन अन्य स्थानीय पार्टियाँ ही नहीं, ‘अखिल भारतीय काँग्रेस’ की स्थानीय इकाई भी भागीदार है। फिर भी काँग्रेस ने अपनी पार्टी की जम्मू-कश्मीर इकाई के विचारों/बयान का खण्डन नहीं किया है। इससे यह लगना स्वाभाविक है कि उसे कश्मीर घाटी आधारित सियासी पार्टियों के उक्त प्रस्ताव पर कोई आपत्ति नहीं है और वह भी उनके प्रस्ताव से सहमत है। इसी दौरान पूर्व भाजपा नेता यशवन्त सिन्हा की भाँति ही काँग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केन्द्रीय वित्तमंत्री पी.चिदम्बरम् ने भी ट्वीट के माध्यम से जम्मू-कश्मीर की सियासी पार्टियों के इस सूबे में पूर्व स्थिति बहाल करने के साझा प्रस्ताव पर न केवल अपनी खुशी का इजहार किया है , बल्कि उनके इस जज्बे को भी सलाम भी किया है, जैसे उन्होंने देश हित में कोई बहुत बड़ा काम कर दिया हो। सत्ता से दूर इन नेताओं के बयानों से स्पष्ट है कि ये लोग सत्ता से दूर क्या हुए? इनकी देश के लोगों की नब्ज को समझने क्षमता ही जाती रही। क्या ये लोग बतायेंगे कि आखिर देश के वे कौन से लोग हैं, जो जम्मू-कश्मीर में पुनः 5 अगस्त, 2019 से पहले की स्थिति की बहाली चाहते हैं ? क्या उन्होंने कश्मीर घाटी के सियासी पार्टियों के नेताओं के बयान पर सहमति जताने से पहले जम्मू और लद्दाख के लोगों के विचारों का पता लगाया ? क्या इन्हें पता नहीं कि जब 5 अगस्त, सन् 2019 को केन्द्र सरकार ने भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए हटाने के साथ-साथ जब इसे विभाजित कर दो केन्द्र प्रशासित राज्य जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख बनाये थे, तब लद्दाख में कारगिल के कुछ इस्लामिक कट्टरपन्थियों के सिवाय पूरे लद्दाख के लोगों ने कैसा जश्न मनाया था ? कमोबेश ऐसी ही खुशी जम्मू में हिन्दुओं को हुई थी। यहाँ तक कि कश्मीर घाटी के शिया ,गूजर बकरवाल मुसलमान आदि भी बेहद खुश हुए थे, जो खुद सुन्नी मुसलमान नेताओं के सताए हुए हैं।
अब जहाँ तक कश्मीर घाटी के डॉ.फारुक अब्दुल्ला, महबूबा मुपती और दूसरे छोटे-बड़े नेताओं की मानसिकता, उनके मकसद, मंसूबे, इरादों और सियासी कामकाज का सवाल है, तो वह जगजाहिर हैं। कश्मीर घाटी की सभी सियासी पार्टियाँ और उनके नेता आजादी के बाद से ही इस सूबे को अपने-अपने तरीकों से इस्लामिक स्टेट में तब्दील करने में जुटे रहे हैं जो कभी हिन्दू ऋषियों,सन्तों की तपोस्थली और संस्कृत विद्वानों की कर्मस्थली रहा है। ये लोग अल्हदा-अल्हदा पार्टियों में जरूर नजर आते हैं, पर इन सभी का एक ही मकसद रहा है कि इस सूबे को किसी तरह हिन्दू, बौद्ध, सिख आदि से विहीन कर ‘दारुल इस्लाम’में बदला जाए। इसके लिए इन सभी ने सत्ता में रहते हुए जम्मू और लद्दाख के लोगों के साथ हर तरह के भेदभाव किये। उनके हिस्से का सार्वजनिक धन और सुविधाओं उन्हें कभी मुहैया नहीं होने दीं। हिन्दुओं, बौद्धों, सिखों आदि के खिलाफ हिंसक वारदातों , उत्पीड़न, अत्याचार, अन्याय, शोषण कर उन्हें धर्मान्तरण और पलायन के लिए मजबूर किया। इसमें पाकिस्तान इनका बराबर मददगार बना रहा। उसके भेजे पैसे और हथियारों से पनपे आतंकवादियों की वजह से यह सूबा दशकों से अशान्त बना रहा है। इस्लामिक कट्टरपन्थियों के इस मंसूबे को कामयाब करने में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए आड़ और औजार बने हुए थे, जिनके जरिए यहाँ की सत्ता हमेशा घाटी के मुसलमानों के हाथों में ही रहनी थी। इसके लिए घाटी में कम जनसंख्या के बावजूद अधिक विधानसभा सीटों का प्रावधान किया हुआ था। सूबे की सरकार की शह पर एक ओर हिन्दू बहुल जम्मू में सरकारी जमीनों पर मुसलमानों को बसा कर जनसंख्या में बदलाव किया जा रहा था, तो लद्दाख के कारगिल में बौद्ध युवतियों के मुसलमानों से जबरिया या लव जिहाद के जरिए निकाह कर मुसलमानों की संख्या बढ़ाई जा रही थी।ऐसा करने वालों को सरकार की ओर से विशेष इनाम और दूसरी सुविधाएँ दी जाती थीं। जहाँ अनुच्छेद 370 के जरिए इन कथित नेताओं ने जम्मू-कश्मीर को न केवल बाकी मुल्क से अलग -थलग रखा, बल्कि देश की संसद में पारित कई लोक कल्याणकारी और महत्त्वपूर्ण कानून लागू न होने देने में कामयाब रहे, वहीं अनुच्छेद 35 ए के हथियार से इस सूबे में रह रहे गरीब-कमजोर तबकों , महिलाओं के भेदभाव और पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को सालों साल सूबे में रहने पर भी नागरिकता न देने और आधारभूत अधिकारों से वंचित रखने में सफल रहे। ऐसा कर इन सभी ने गैर मुसलमानों के लिए इस सूबे को ‘जन्नत से जहन्नुम’ में तब्दील कर दिया। इनकी दहशतगर्दी के कारण नब्बे के दशक में कोई चार लाख कश्मीर पण्डितों को शरणार्थी बनने को मजबूर होना पडा,जो अब तक जम्मू और दूसरे देश के विभिन्न नगरों में खानाबदोशों सरीखी जिन्दगी बसर करने को मजबूर हैं। इनके घरों ,खेतों, बागों पर कब्जा कर लिया और मन्दिरों को ध्वंस्त कर दिया। एक तरह से उन्होंने कश्मीर घाटी से तो करीब-करीब हिन्दुओं ही सफाया कर दिया। इनके इशारे और शह पर ही इस्लामिक कट्टरपन्थियों की अगुवाई में हर जुमे की नमाज के बाद मस्जिदों से निकलते वक्त लोग पाकिस्तान और खूंखार इस्लामिक दहशतगर्द संगठन ‘आइ.एस.के झण्डे लहराते हुए ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद’, ‘हिन्दुस्तान मुर्दाबाद’ तथा दूसरे इस्लामिक नारे लगाते हुए सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाते थे। जब कभी सुरक्षा बलों ने अपने बचाव में जवाबी कार्रवाई की, तो मानवाधिकारों के हनन के बहाने ये लोग हिंसक मुखालफत पर उतर आए और दुनियभर में भारतीय सेना को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फिर भी यहाँ के नेता बेशर्मी से इन्सानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत की दुहाई देते रहे। दुर्भाग्य की बात यह है कि फिर भी खुद को सेक्युलर बताने-जताने वाली काँग्रेस, वामपंथी पार्टियों के नेता, बुद्धिजीवी, लेखक, पत्रकार, कलाकार खामोश रहे। इन्होंने कभी खुलकर इनकी मजम्मत तक नहीं की। इससे अलगावादियों, आतंकवादियों के हौसले बढ़ना स्वाभाविक ही है। इस सूबे के लिए नासूर बन चुके इस रोग का इलाज सिर्फ अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को खत्म किया जाना था ,जिनके रहते इस्लामिक कट्टरपन्थी और उनके हिमायती खुद को हिन्दुस्तानी मनाने से अब तक से परहेज करते आए थे। फिर संविधान में दर्ज ये अनुच्छेद अस्थायी थे, जो न तो संविधान सभा के सदस्यों द्वारा बनाये हुए थे और न ही इन्हें संसद से पारित कराया गया था। इन्हें बनाये रखने में सिर्फ मुल्क के दुुश्मनों को फायदा था, जो इनकी आड़ में जम्मू-कश्मीर को इस्लामिक स्टेट बनाकर पाकिस्तान के हवाले करना चाहते थे।
अब जब से नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष तथा पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.फारुक अब्दुल्ला और उनके बेटे तथा पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला रिहा हुए है, तब से इन्होंने अपने पुराने रंग दिखाना शुरू कर दिया है, जिनकी वजह से इन्हें और इन जैसों को कैद में रखना पड़ा था। अब सबसे पहले डॉ.फारुक अब्दुल्ला ने बयान दिया कि जब तक जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त, 2019 से पहले की स्थिति बहाल नहीं होती, तब तक वे चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे। फिर उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने फरमाया कि जब तक जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिल जाता, तब तक वे इन्तखाब से दूर रहेंगे। अब फिर डॉ.फारुक अब्दुल्ला कह रहे है कि जब तक जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए की वापसी नहीं होती,वे चैन से नहीं बैठेंगे। दरअसल, ये प्रस्ताव पूरी तरह सियासी शरारत है। इन सभी को अच्छी तरह मालूम है कि अब इस सूबे की पहले जैसी स्थिति किसी भी सूरत में बहाल होने वाली नहीं है। लेकिन अपने इस्लामिक एजेण्डों को जारी रखने और अपने पाले- पोसे इस्लामिक कट्टरपन्थियों को दिखाने के लिए कुछ तो करना था, सो इन्होंने कर दिया। लेकिन उनके सियासी हथकण्डे को सही बताते हुए यशवन्त सिन्हा और पी.चिदम्बर् का उनकी हिमायत में बेशर्मी से उतर आना जरूर खल रहा है क्या ये दोनों नेता बतायेंगे कि इन दोनों अनुच्छेद से देश को क्या फायदा हो रहा था? जहाँ अनुच्छेद 370 इस सूबे को विशेष दर्जा देते हुए देश की संसद में पारित कानून लागू करने से रोकता था,जिसके कारण लोकहित के कई कानून लागू नहीं हो पाए, वहीं अनुच्छेद 35ए इस सूबे की नागरिकता का निर्धारण करता था, जिसकी वजह से आजादी के बाद पाकिस्तान से शरणार्थियों का अब तक नागरिकता नहीं मिली हैं। इनमें ज्यादातर दलित हैं। नागरिकता के अभाव वे सरकारी सुविधाएँ पाने वंचित रहे। इसी अनुच्छेद की सबसे ज्यादा पीड़ित कश्मीरी महिलाएँ रही हैं, जिन्हंे किसी अन्य राज्य के युवक से विवाह करने पर अपनी नागरिकता खोने के साथ पैतृक सम्पत्ति से भी वंचित होना पड़ता। इसके विपरीत कश्मीर युवक पाकिस्तान समेत कहीं से भी शादी करें, तो उसकी पत्नी को तत्काल नागरिकता हासिल हो जाती थी। सही बात यह है कि 5 अगस्त,सन् 2019 को जम्मू-कश्मीर से उक्त अनुच्छेदों को समाप्त कर दिये जाने के फैसले से जम्हूरियत, इन्सानियत,कश्मीरियत का फर्जी चोला ओढ़े इन पाकिस्तन समर्थक इस्लामिक कट्टरपन्थियों को बहुत बड़ा झटका लगा है,क्योंकि डॉ.फारुक अब्दुल्ला और महबूब मुपती अक्सर इन अनुच्छेदों को हटाने जाने पर कभी इस सूबे में खून नदियाँ बहाने या सूबे में आग लगा देने की धमकियाँ दिया करते थे।पर इन अनुच्छेदों के खत्म होने पर इनका इस सूबे को इस्लामिक स्टेट /दारुल इस्लाम में तब्दील करने का ख्वाब बस ख्वाब बन कर रहा गया है। अब इनका यह मंसूबा किसी भी हालत में पूरा होना नामुमकिन है। अपने मुल्क शायद ही कोई ऐसा बन्दा होगा,जो कश्मीर की इस हकीकत से अनजान हो। पाक समर्थक अलगाववादियों और आतंकवादियों का जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को खत्म होने पर अपना माथा कूटना और छाती पीटते हुए रोना समझ आता है, पर यशवन्त सिन्हा, पी.चिदम्बरम् सरीखे वरिष्ठ राजनेताओं की उनकी हिमायत में आना महज सियासी खुन्नस और सियासती फायदे के लिए उनका किसी भी हद तक गिरने की मंशा को ही दिखाता है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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