डॉ.बचन सिंह सिकरवार

वर्तमान में देश अपना चौहत्तरवाँ स्वतंत्रता दिवस मना रहा है लेकिन एक ओर जहाँ देश की सीमाओं पर पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन घुसपैठ कर जमीन कब्जा ने को घात लगाए खड़े हुए हैं,वहीं दूसरी ओर अपने देश के ही कुछ बाशिन्दे अलगाववादी, आतंकवादी, नक्सलवादी,जाति और मजहबी कट्टरपन्थी,फर्जी सेक्युलर देश के कोने-कोन में कहीं छुप कर तो कहीं खुलकर अपने ही मुल्क की स्वतंत्रता,सम्प्रभुता, एकता,अखण्डता के खिलाफ तरह-तरह के काम करते हुए भारत तेरे टुकड़े होंगे, पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाने से भी नहीं चूक रहे हैं, फिर भी ये देशद्रोही खुले आम आजादी से घूम रहे हैं,तो कुछ शासन-प्रशासन चलाने वाले तो कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों ने इस देश के लोगों को स्वतंत्रता के आनन्द की अनुभूति से वंचित किया हुआ है। ये अपने देश के लोगों पर तरह- तरह से अत्याचार,अन्याचार, अनाचार, शोषण,उत्पीड़न कर रहे हैं। फिर भी कोई ऐसी व्यवस्था नहीं बन पायी है,जो देश के इन आन्तरिक और बाह्य शत्रुओं का दमन कर देश के लोगों का असली स्वतंत्रता का भान करा सके। कुछ लोगों की चुनावों में जीत हासिल सत्ता सुख भोगने की लालसा इस कदर बढ़ गई कि वे देश की गुलामी के कारणों को भुलाकर लोगों को जाति-मजहब, भाषा, क्षेत्रवाद, अगड़ा-पिछड़ा, दलित-गैरदलित, वनवासी-गैरवनवासी,अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के बहाने उनके बीच नफरत फैलाकर सामाजिक समरसत, एकता को तोड़ने में लगे हैं, तो कुछ इस देश को इस्लामिक तो कुछ दूसरे मजहब का मुल्क बनाने के एजेण्डे को पूरा करने में लगे हैं। यहाँ तक कि इन्हें लोग समुदाय विशेष के एकमुश्त वोटो के लिए उन्हें देश के गद्दारों, उसे तोड़ने वालों की पैरोकारी करने में तनिक भी संकोच नहीं है, तो कुछ अपनी वामपंथी विचारों के आड़ चीन जैसे भूमाफिया और दमनकारी के खुलेआम समर्थक बनने से बाज नहीं आ रहे हैं।
वैसे हमने अपने देश की स्वतंत्रता का चौहत्तरवाँ स्वतंत्रता दिवस मनाकर भले ही ब्रिटिश शासकों के इस विचार को अवश्य मिथ्या सिद्ध कर दिया कि दक्षिण एशिया देश भारत अपनी भौगोलिक सीमाओं, भाषाई,सांस्कृतिक विविधताओं आदि के कारण भारतीयों का इसे एकजुट बनाए रखना सम्भव नहीं होगा। भारतीयों में शासन करने की योग्यता नहीं है। इस कारण वे अपना देश का शासन नहीं चला पाएँगे। वह तो हमने देश को एकजुट रखकर और शासन कर दिखा दिया,पर यह शासन कैसा है? क्या स्वतंत्रता उन्हें मिली है,जिनके लिए स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया? देश को स्वतंत्र हुए भले ही कोई चौहत्तर साल हो गए ,पर लोगों को असली आजादी का अब भी इन्तजार है। कई देशों से आए हमलावरों में से अलग-अलग मुल्कों के मुस्लिम शासकों और व्यापारी बनकर ब्रिटेन से आए अँग्रेजों ने हमारे देश पर कोई साढ़े सात सौ साल तक हुकूमत की। इसी दौरान 1857 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन के खिलाफ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ, लेकिन विभिन्न कारण उसमें स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी संख्या में जान देने के बाद भी स्वतंत्रता सेनानियों को विफलता मिली। फिर थोड़ा ठहरने के बाद पुनः ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ आजादी के लिए लड़ाई लड़ी गई, तब कहीं जाकर 15अगस्त,सन् 1947 को अपना देश स्वतंत्र हुआ।इससे पहले मजहब के नाम पर देश को विभाजन की त्रासदी झेलनी पड़ी,जिसमें उसे अपना 31प्रतिशत से अधिक भूभाग खोना पड़ा। उस भूभाग में ही पाकिस्तान है,जो जन्मजात भारत का दुश्मन बना हुआ है।जिस मजहबी कट्टर विचारधारा की वजह से पाकिस्तान बना,वही आज भी बरकरार है।
वैसे गुलामी से मुक्ति पाने के लिए देशभर में कहीं न कहीं, तरह-तरह से निरन्तर संघर्ष चलता रहा,क्योंकि लोगों के हृदय में स्वतंत्रता की ज्योति सदैव प्रज्ज्वलित रही। यही कारण है कि भारत के राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम की यज्ञ में अगणित लोगों ने हर तरह की आहुति दी। उस समय आजादी की जंग लड़ने वालों की चाहत थी कि वह दिन अवश्य आएगा,जब अपने देश को विदेशियों की गुलामी से आजाद मिलेगी। तब हमारा अपना विधान, अपना निशान और ‘स्व’ का ‘तंत्र’ ही नहीं होगा, हमारा सोच-विचार यानी विचारधारा भी हर तरह की मानसिक-भौतिक दासता से उन्मुक्त होगी। हम राष्ट्र और जनहित में स्वतंत्र होकर निर्णय लेंगे। इसके साथ हम ‘स्व‘ के ‘तंत्र’ के माध्यम से हम सैकड़ों साल की गुलामी की सभी निशानियों और ख्यालात को नेस्तनाबूद करेंगे। सदियों से विदेशी शासकों के अत्याचार, अन्याय, शोषण, शारीरिक-मानसिक दसता, गैर बराबरी आदि से छुटकारा ही नहीं मिलेगा, हमें अपने तरीके से रहने-सहने, सोचने-विचारने, करने न करने की भी आजादी होगी। हम एक संवेदनशील, न्यायप्रिय, जन और राष्ट्रहितकारी तंत्र बनाएँगे, ताकि यहाँ के लोग सही अर्थों में स्वयं को स्वतंत्र अनुभव कर सकेंगे। लेकिन अब विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या हकीकत हम ऐसा कुछ कर पाए हैं?
स्वतंत्रता का सच्चाई यह है कि हमारा देश राजनीतिक दृष्टि से स्वतंत्र अवश्य हुआ,लेकिन कई मानों में वह एक स्वतंत्र देश के रूप में अपने नागरिकों अब तक सही माने में स्वतंत्रता का अहसास दिलाने में सर्वथा विफल रहा है। इस देश की स्वतंत्रता सही माने में कुछ तक सिमट कर रह गई है। यही कारण है कि आम आदमी की बात छोड़िए,एक उच्च शिक्षित और आर्थिक रूप से सम्पन्न, कानून का जानकार भी सरकार के किसी भी विभाग से बगैर रिश्वत या सिफारिश के न्यायोचित अधिकार भी प्राप्त करने में असमर्थ है। गम्भीर से गम्भीर मामले के निर्णय आने में दशकों ही नहीं, पीढ़ियाँ गुजार जाती हैं। निचली अदालतों से उच्च और सर्वोच्च न्यायालयों में लाखों की संख्या में मुकदमे विचाराधीन है,पर उनके निस्तारण की शायद ही किसी को चिन्ता हो? बड़े नौकरशाहों आई.ए.एस.आई.पी.एस.या फिर पी.एसी.एस. पुलिस अधिकारी,तहसीलदार,लेखपाल,सिपाहीं तक लोगों से सीधे मुँह बात नहीं करते। एक अदना -सा सिपाही अपनी पर आ जाए,तो वह किसी भी निर्दोष व्यक्ति को चोर, बदमाश, अफीम,गांजे,शराब आदि का तस्कर, जुआरी आदि किसी भी गम्भीर अपराध में न केवल जी भर का मारपीट कर सकता,बल्कि जेल भी पहुँचा सकता है। किसी नौकरशाह या पुलिस अधिकारी के जुल्म,बर्ताव का प्रतिवाद करने पर पूरे परिवार को जेल में डाले जाने से लेकर जमीन-जायदाद तक खुदबुर्द करने की क्षमता रखते हैं,उनके अनुचित, अन्यायपूर्ण कार्यों की सुनवायी असम्भव-सी है। न्यायालय में न्याय के नाम पर क्या होता है, वह किसी से छिपा नहीं है। पर न्यायालय की अवमानना के भय से अधिकांश लोग शान्त रहना और आँखें बन्द रखना अपने लिए बेहतर समझते हैं। किसी भी सरकारी कार्यालय में बगैर दाम और दाबव के कैसा भी फैसला करा पाना सम्भव नहीं है। देश के शासन-प्रशासन से जुड़े लोग लोगों की सेवा के नाम पर उनका उत्पीड़न और शोषण करने में लगे हैं। ये लोग सिर्फ अपने और आर्थिक रूप से सम्पन्नों के हित सम्वर्द्धन में लगे रहते हैं। इस कारण देश में आर्थिक,शैक्षणिक,सामाजिक गैरबराबरी लगातार बढ़ रही है।
देश के स्वतंत्र होने के बाद आम आदमी को आजादी के नाम पर चुनाव में बस वोट देने का अधिकार मिला है,जिसे ये नेता कभी जाति-बिरादरी तो कभी धर्म/मजहब का वास्ता देकर या फिर भविष्य के सुनहरे सपने दिखाकर या विकास का वादा कर या फिर शराब और नोट थमा कर। तो कुछ इसका भी मौका नहीं देते, वह लाठी/बन्दूक के बल पर वोट छीन लेते हैं। एक-आध अपवाद को छोड किसी भी पार्टी का नेता वोट लेने के बाद मुड़कर मतदाता को धन्यवाद देने तक नहीं आता। भले ही वह खुद राष्ट्रवादी, समाजवादी, वामपन्थी, काँग्रेसी, बसपाई या कुछ और बताता हो। उसके लिए विकास के माने सार्वजनिक धन, सार्वजनिक प्राकृतिक सम्पदा की लूट कर स्वयं, नाते-रिश्तेदारों,चम्मचों की तिजोरियाँ भरना रह गया। तमाम पंच वर्षीय योजनाओं के बाद भी अभी तक हर साल प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़,सूखा से तबाही आने का सिलसिला बना हुआ है। देश के अधिकांश लोगों को शुद्ध पेय जल तक उपलब्ध नहीं है। ऐसे में लोग गड्ढों, तालाब, नदियों के प्रदूषित जल या फिर खारे या अर्सेनिकयुक्त जल पीने को मजबूर हैं। अपने मुल्क पर हुकूमत करने वाले सालों से वातानुकूलित कक्षों में बैठकर भले ही शासन चला रहे है,पर बड़ी संख्या में गाँवों में ही नहीं,छोटे शहर, कस्बों में कुछ घण्टों को बिजली आती है। सरकार की कोई भी योजना हो,उसमें बिचौलियों को भेंट चढ़ाए बगैर उसका लाभ नहीं मिलता। भले ही व्यक्ति उसके लिए कितना भी पात्र हों। हर किसी को शिक्षा और चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है। उच्च या तकनीकी शिक्षा पाने के लिए अब लाखों रुपए चाहिए,जो आम जन की सामर्थ्य की बात नहीं है।
ऐसे में हमें उस असली स्वतंत्रता को पाने का संकल्प लेना होगा,जिसका सपना आजादी की जंग अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था,जिसमें देश के लोगों को जीवन के सभी क्षेत्रों हर तरह की स्वतंत्रता, बराबरी के साथ-साथ अन्याय,अत्याचार,उत्पीड़न,शोषण, सदैव के लिए मुक्ति मिल सके।उसमें अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक,अगड़ा-पिछड़ावाद,दलित-गैरदलित जैसे भेदभावों के लिए कोई जगह न हो। हर किसी को अपनी योग्यता,क्षमता,सामर्थ्य प्रदर्शित करने का समान अवसर उपलब्ध हो। उसमें देश की स्वतंत्रता,सम्प्रभुता,एकता,अखण्डता के विरुद्ध बोलने और कार्य करने वालों का कोई हिमायती न हो।
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