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हांगकांग पर सही है अमेरिकी मुखालफत

साभार सोशल मीडिया

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

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अन्ततः अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन को सबक सिखाने के लिए हांगकांग के आर्थिक तरजीह का दर्जा समाप्त करने से सम्बन्धित कार्यकारी आदेश तथा एक दूसरे कानून पर हस्ताक्षर कर ही दिये, जिसकी चेतावनी उन्होंने चीन को हांगकांग में गत 1 जुलाई को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून’ लागू करने से पहले ही दे दी थी। अब ऐसा करके चीन ने हांगकांग का विशेष दर्जा ही खत्म कर दिया है, जबकि 1जुलाई, 1997 में ब्रिटिश शासन से इसके हस्तारण के समय उसने हांगकांग में ‘एक देश दो व्यवस्था’ का वादा करते हुए आगामी 50 साल तक उसे स्वायत्तता और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का वचन दिया था। इसमें अलग न्यायालय तथा नागरिकों के स्वतंत्रता के अधिकार सम्मिलित थे, जो 2047 तक के लिए हैं। लेकिन अपना वादा तोड़ते हुए चीन हांगकांग में एक-एक कर चीनी व्यवस्था लागू की जा रही है। इसका हांगकांग के लोग शुरु से ही उग्र प्रदर्शन कर विरोध करते आ रहे है, पर चीन उनकी भावनाओं की लगातार अनदेखी करते हुए उनके आन्दोलन को अपने दमन से कुचलने में लगा। चीन के इस नए कानून के बाद हांगकांग में पहले से जैसी उन्मुक्तता नहीं रह जाएगी, जिसके चलते दुनियाभर के व्यापारी हांगकांग से व्यापार करते थे। अब यहाँ चीनी सुरक्षा एजेन्सियों की सख्त नजरें सिर्फ हांगकांग वासियों पर ही नहीं, दूसरे देशों के पर्यटकों तथा व्यापारियों पर भी रहंेगी। इस कारण अब पहले की तरह बाहर के व्यापारी हांगकांग से व्यापार करने को प्राथमिकता नहीं देंगे। ऐसे में हांगकांग के व्यापार के साथ-साथ पर्यटन उद्योग पर भी विपरीत प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा। ऐसे में हांगकांग के लोगों की आय में कमी आएगी।

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चीन अमेरिका द्वारा हांगकांग के आर्थिक तरजीह के दर्जे और हांगकांग से जुड़े अधिकारियों पर प्रतिबन्ध को लेकर बेहद बौखलाया हुआ है। इससे पहले वह शिनझियांग में उइगरों मुसलमानों से नस्ल भेदभाव ,मजहबी प्रताड़ना, उन्हें यातना शिविरों पर रखने और तिब्बत के तिब्बतियों पर कई तरह के प्रतिबन्ध और उत्पीड़न को लेकर कानून और उनसे सम्बन्धित अधिकारियों के अमेरिका आने पर प्रतिबन्ध लगा चुका है। अमेरिका के इन कदमों से चीन के छवि को बहुत आघात लगा है, उसका अत्याचार चेहरा दुनिया के सामने आ गया है। इसका असर उसके विदेशी व्यापरिक और राजनीतिक सम्बन्धों के साथ-साथ उसकी ‘वन बेल्ट,वन रोड’ जैसी तमाम परियोजनाओं पर भी पड़े बिना नहीं रहेगा, जो दुनिया के अलग-अलग देशों मंे इस समय चल रही हैं। वैसे भी दुनियाभर में कोरोना विषाणु जनित महामारी फैलाने के आरोपों से घिरा चीन अब अपना मुँह छिपता फिर रहा है। चीन में भी देश में कोरोना का संकट खत्म नहीं हुआ, पर उसका अपने देश के लोगों को सताने और उनके मूलभूत अधिकार छीनने सिलसिला जारी है। चीन की इसी नीति का नतीजा हांगकांग में उसके द्वारा ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून’लागू किया जाना है, ताकि यहाँ के लोग उसके गैर कानूनी कामों और कई तरह के उत्पीड़नों के खिलाफ अपनी आवाज न उठा सकें। इंग्लैण्ड हांगकांग को लेकर चीन की वादा खिलाफी बेहद गुस्से में है, उसने हांगकांग के लोगोें को ब्रिटेन की नागरिकता देने का प्रस्ताव दिया है। इसी तरह आस्टेªलिया भी अपने यहाँ कार्यरत हांगकांग के नागरिकों या फिर चीन सरकार की कार्रवाई से भयभीतों को अपने देश में बसने आमंत्रण दे चुका है।
अमेरिका द्वारा हांगकांग का आर्थिक तरजीह का दर्जा समाप्त किये जाने के बाद उसके साथ हर मामले में चीन जैसा व्यवहार किया जाएगा।

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अब हांगकांग को न तो किसी प्रकार विशेषाधिकार होगा और ना ही संवेदनशील तकनीकों के निर्यात की इजाजत होगी। एक दूसरे विधेयक के माध्यम से अमेरिका हांगकांग में राजनीतिक असन्तोष पर अंकुश लगाने वाले चीन के अधिकारियों पर प्रतिबन्ध लगाया जाएगा। चीन की शीर्ष विधायी निकाय नेशनल स्टैडिंग कमेटी ने 30 जून को सर्व सम्मति से हांगकांग के विवादास्पद ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून’ को स्वीकृति प्रदान कर दी। इस कानून के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने, विदेशी शक्तियों के साथ अलगाव, तोड़फोड़ और आतंकवाद के दोषी व्यक्ति को अधिकतम उम्र कैद की सजा की सुनायी जा सकती है। इस नए कानून से चीन की सुरक्ष एजेन्सियों का पहली बार हांगकांग में अपना कार्यालय खोलन का अधिकार मिल जाएगा। अमेरिका, ब्रिटेन सहित कई देशों ने कानून को हांगकांग के कानूनी और राजनीतिक संस्थानों को कमजोर करने वाला बताकर इसकी आलोचना की थी। इस कानून के पारित होने से एक दिन पहले 29 जून को ट्रम्प प्रशासन ने चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि यह कानून पारित होता है, तो वह हांगकांग को होने वाले रक्षा निर्यात रोक देगा और जल्द ही हांगकांग को वस्तुओं की बिक्री के लिए लाइसेन्स लेने की आवश्यकता पडे़गी। उस समय हांगकांग की सी.ई.ओ.कैरी लाम ने कहा था कि कानून के लागू करने के सम्बन्ध में वह और मउनके अधिकारी सभी के सवालों के जवाब देने की पूरी कोशिश करेंगे। हमें प्रतिबन्धों की धमकी डरा नहीं सकती।
हांगकांग के उत्तर में गुआंग्डोंग और पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में दक्षिण चीन सागर है।यहाँ के लोग कैण्टोनी, अँग्रेजी बोलतें हैं।इस देश की मुद्रा ‘हांगकांग डॉलर’ है। हांगकांग एक वैश्विक महानगर है। अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय केन्द्र होने के साथ-एक एक उच्च विकसित पूँजीवादी अर्थव्यवस्था है। ‘एक देश दो अर्थव्यवस्था’ के अन्तर्गत और बुनियादी कानून के अनुसार इसे सभी क्षेत्रों में उच्च स्तर की स्वायत्तता प्राप्त है। केवल विदेशी मामलों और रक्षा को छोड़कर जो जनवादी गणराज्य चीन सरकार की जिम्मेदारी है। हांगकांग की अपनी मुद्रा, कानून प्रणाली, राजनीतिक व्यवस्था, अप्रवास पर नियंत्रण ,सड़क के नियम है।। मुख्य भूमि चीन से अलग यहाँ की रोजमर्रा के जीवन से जुड़ विभिन्न पहलू हैं। एक व्यापारिक बन्दरगाह के रूप में आबाद होने के बाद हांगकांग सन् 1842 में युनाइटेड किंगडम का विशेष उपनिवेश बन गया। सन् 1983 में इसे ब्रिटिश निर्भर क्षेत्र के रूप में पुनर्वर्गीत किया गया। 1 जुलाई, 1997 में जनवादी गणराज्य चीन को सम्प्रभुता हस्तान्तरित कर दी गई। अपने विशाल क्षतिज और गहरे प्राकृतिक बन्दरगाह के लिए प्रसिद्ध इसकी पहचान एक ऐसे महानगरीय केन्द्र के रूप में बनी,जहाँ के भोजन, सिनेमा, संगीत और परम्पराओं में जहाँ पूर्व और पश्चिम का 407वर्गमील जमीन के साथ हांगकांग दुनिया के सबसे मिलाप होता है। शहरी आबादी 95 प्रतिशत ‘हान’ जाति की और 5 प्रतिशत अन्य हैं। 70लाख लोगों की आबादी और 3054 वर्गकिलोमीटर (407वर्ग मील) जमीन के साथ हांगकांग दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है।
हांगकांग को ब्रिटेन से चीन ने सन् 1843 में में खरीद गया। चीन ने हांगकांग को ‘ब्लैक वार’ में जीतने के बाद लिया था। उसके बाद ‘न्यू केप लंच और लैण्डने उसे 99 वर्ष के पट्टे पर छोड़ा था। उसके बाद ‘द्वितीय विश्वयुद्ध’ के समय जापाने उसे ले लिया था। बाद में जापानी सैनिक मारे गए और जापान हार गया। हांगकांग में क्रान्ति हो गई। यह व्यस्त बन्दरगाह बन गया। सन् 1950 में विनिर्माण का केन्द्र बन गया। चीन में युद्ध के बाद काओमिटोंग और कम्युनिस्टों हांगकांग प्रशासन के खिलाफ लड़े थे। 19 दिसम्बर, सन् 1984 को चीन और ब्रिटेन के बीच हांगकांग के हस्तान्तरण चीन ब्रिटेन संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये गए। चीन का हिस्सा होने के बाद 50 वर्षों तक विदेशी और रक्षा मामलों को छोड़कर स्वायत्तता का आनन्द लगा। विवाद की जड़ सन् 1947 में जब हांगकांग को चीन को सौंपा गया था, तब ने एक देश, दो व्यवस्था की अवधारणा के तहत कम से कम सन् 2047 तक लोगों की स्वतंत्रता, कानून प्रणाली बनाये रखने की गारण्टी दी थी। सन् 2014 में हांगकांग 79 में दिनों तक अम्ब्रेला मूवमेण्ट के बाद लोकतंत्र का समर्थन करने वाला चीनी सरकार कार्रवाई करने लगी। विशेष प्रदर्शन करने वालों का जेल में डाल दिया गया। आजादी समर्थन करने वाली पार्टी प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
चीनी पहचान से नफरत करने वाले ज्यादा चीनी नस्ल के हैं। चीन का हिस्सा होने के बावजूद हांगकांग के अधिकांश लोग चीनी पहचान नहीं रखना चाहते है। विशेष रूप से युवा वर्ग का केवल 11 प्रतिशत स्वयं को ‘चीनी’ कहते हैं, जबकि 71 प्रतिशत लोग कहते हैं कि चीनी नागरिक होने पर गर्व का अनुभव नहीं करते। यही कारण है कि हांगकांग में हरगिज आजादी के नारे बुलन्द हो रहे हैं और प्रदर्शनकारियों ने चीन समर्थित प्रशासन नाक दम कर रखा है। चीन का हांगकांग अपना कानून और सीमाएँ हैं। साथ ही खुद विधान सभा भी है। लेकिन हांगकांग के नेता, मुख्य कार्यकारिणी अधिकारी को 1,200 सदस्यीय चुनाव समिति चुनती है। सीमित में ज्यादातर चीन सदस्य होते हैं क्षेत्र के विधायी निकाय के सभी 70 सदस्य, विधान परिषद सीधे हांगकांग के मतदाता द्वारा नहीं चुने जाते हैं बिना चुनाव चुनी सीटों पर चीन सरकार समर्थन संसद पर कब्जा है।
विश्वव्यापी कोरोना संकट के समय भी चीन अपने पड़ोसियों को डरा-धमका उनकी जमीन पर कब्जा करने के नीति से बाज नहीं आ रहा है। एक ओर वह भारत की सिक्किम से लद्दाख तक सीमा में अतिक्रमण कर रहा था,तो दूसरी दक्षिण चीन सागर में दूसरे देशों के जहाज के आवागमन में बाधा पैदा कर रहा है। इसकी वजह से अपने युद्धपोतों को दक्षिण चीन सागर में तैनात करने के साथ-साथ यूरोप से अपने सैनिक हटा कर यहाँ लाना पड़े हैं। अब अमेरिका के हांगकांग में चीन द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने के विरोध के बाद इंग्लैण्ड, आस्टेªलिया के साथ-साथ दुनिया के दूसरे देशों के भी इससे पहले जैसे व्यापारिक सम्बन्ध नहीं रहेंगे,पर चीन अपनी विस्तारवादी भूख के आगे किसी दूसरे विरोध की तब तक परवाह नहीं करता,जब तक कोई उससे जवाब देने को खड़ा न हो जाए। अब देखना यह है कि विश्व जनमत की भावनाओं का सम्मान करता है या फिर अपनी विस्तारवाद को तरजीह देता।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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