स्वास्थ्य

कई रोगों का जनक है मधुमेह

डॉ.सुरेन्द्र सिंह राना

 

डॉ.सुरेन्द्र सिंह राना वरिष्ठ होम्योपैथी चिकित्सक

कुछ दशक पहले तक मधुमेह(डायबिटीज) धनवान और शारीरिक श्रम न करने वाले लोगों का रोग समझा जाता था और कुछ लोगों तक ही सीमित था, लेकिन अब ये रोग न सिर्फ आम हो गया है, बल्कि उम्र और गरीबी-अमीरी की हदों को भी तोड़ चुका है। वर्तमान में इस रोग से पीड़ितों की संख्या ‘सुरसा राक्षसी की मुँह की तरह’ बड़ी तेजी से बढ़ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण हमारी जीवन शैली में आया बदलाव है। ज्यादातर महिलाएँ और पुरुष शारीरिक श्रम और पैदल चलने से बचते हैं, इसका प्रभाव शरीर की चय-पचय(मेटाबोलिज्म) पर पड़ता है। इसके साथ ही जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ती स्पर्द्धा तथा असुरक्षा की भावना भी है। इससे मनुष्य के मन-मस्तिष्क में बढ़ता तनाव, चिन्ता, भय है। परिणामतः मनुष्य का मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाना है। ऐसे में मन के साथ तन का अस्वस्थ हो जाना स्वाभाविक है। इसका प्रभाव हमारी अन्तःस्रावी ग्रन्थियों (एण्डोक्राइन ग्लैण्स) पर पड़ता है, जिनसे स्रावित हॉरमोन सीधे रक्त में मिलकर अपना कार्य करते हैं। हमारे शरीर में अग्नाशय(पैनक्रियास) ग्रन्थि एक अन्तःस्रावी ग्िरन्थ है। वस्तुतः अग्नाशय में स्थित लैंगरहैन्स की द्वीपिकाएँ इन्सुलिन नामक हॉरमोन का स्राव करती हैं, जो हमारे शरीर के रक्त में उपस्थित अतिरिक्त ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में परिवर्तित करके उसेे यकृत एवं माँसपेशियों में भण्डारित कर देता है। जब कभी शरीर को ग्लूकोज की आवश्यकता होती है, तो ग्लाइकोजन के रूप में संग्रहीत किया गया ग्लूकोज, ग्लूकागोन तथा एड्रिनेलिन (एपिनेफ्रिन) नामक हॉरमोन द्वारा पुनः ग्लूकोज में बदल दिया जाता है। मधुमेह या डायबिटीज होने का अर्थ है कि हमारे शरीर का अग्नाशय सही ढंग से अपना कार्य नहीं कर रहा है। उस दशा में रक्त में उपस्थिति अतिरिक्त शर्करा (ग्लूकोज) विभिन्न अंगों को क्षति पहुँचाने लगती हैं। आजकल मधुमेह रोग अपने देश में बहुत तेजी से बढ़ रहा है। पहले यह रोग प्रायः 40-50 वर्ष की अवस्था में या इसके बाद होता था, लेकिन आजकल छोटे बच्चों में भी यह बीमारी देखी जाती है। मधुमेह रोग में वंशानुगत प्रभाव का भी बहुत अधिक हाथ है।
शरीर में इन्सुलिन नामक तत्त्व पाचन क्रिया से सम्बन्धित है,जो अग्नाशय( पेनक्रियाज ं) ग्रन्थि से उत्पन्न होता है, इससे ग्लूकोज रक्त में प्रवेश करता है और वहाँ ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है। उक्त पैनक्रियाज ग्रन्थि जितनी शरीर को ग्लूकोज/शुगर की आवश्यकता होती है उतनी रख लेती है। शेष ग्लाइकोजन के रूप में यकृत में एकत्र कर लिया जाता है। यदि यह पेनक्रियाज ग्रन्थि इन्सुलिन उत्पन्न करना बन्द कर दे या कम कर दे या किसी कारण से इस रस बाधक हो तो डायबिटीज रोग पैदा हो जाता है। ऐसी अवस्था में शर्करा रक्त में चला जाती है।ऐसी स्थिति में वह ऊर्जा में परिवर्तित नहीं हो पाती है। यह शर्करा मूत्र द्वारा भी बाहर निकल जाती है।
यह रोग दो प्रकार का होता है-
1.डायबिटीज मेलिटम-
2.डायबिटीज इन्सिपिडस(बहुमूत्र) लक्षण- मधुमेह की उत्पत्ति का कारण अग्नाशय ( पेनक्रियाज) में उत्पन्न होने वाले हॉरमोन्स इन्सुलिन की कमी माना जाता है। मूत्र और रक्त की जाँच में दोनों में शर्करा आना इसकी सही पहचान है। अधिक प्यास , अधिक भूख लगना, बार-बार पेशाब जाना, बार-बार फोड़े-फुन्सी होना, घाव न भरना, पैरों में दर्द, नेत्र दृष्टि में गिरावट ,कब्ज रहना, टी.बी., शर्करा अधिक बढ़ने पर यह दुर्बलता ,घबराहट, रक्त संचार की वृद्धि , बेहोशी होती है। सिरदर्द, कब्ज, त्वचा का सूखा, खुरखरा, खुजली ,घावों का न भरना आदि मधुमेह के लक्षण हैं।
चिकित्सा- डायबिटीज के रोगी को मीठे खाद्य पदार्थ जैसे- चीनी, गुड़, मिश्री, मीठे फल, चावल, मैदा से बने व्यंजनों का सेवन नहीं करना चाहिए। शारीरिक व्यायाम भ्रमण (सुबह 5 किलोमीटर, शाम को 3 किलोमीटर) घूमना, अल्प भोजन करना लाभदायक है। अगर डायबिटीज नियंत्रित हो, तो केवल गेहूँ की ही रोटी नहीं खानी चाहिए, इसके स्थान पर जौ, चना, गेहूँ (3 किलो ग्राम जौ 1 किलो ग्राम गेहूँ, आधा किलो ग्राम चना मिलाकर आटा पिसवा लेना चाहिए) मिश्रत आटे की रोटी खानी चाहिए।हरी सब्जी ,दाल ,दही का सेवन करना चाहिए। करेले की सब्जी या कच्चा करेला और जामुन खानी चाहिए। हरड़, बहेड़ा-आँवला (त्रिफला) को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर सेवना करना चाहिए । ये कब्ज भी दूर करेगा। उचित भोजन और शारीरिक परिश्रम तथा तनावमुक्त रहते हुए मधुमेह को ठीक किया जा सकता है। औषधियों से भी बिना भोजन द्वारा चिकित्सा का सहारा लिए यह ठीक नहीं हो सकता।निम्न भोज्य पदार्थों और 2-3 होम्योपैथिक औषधि से इस रोग को दूर कर सकते हैं।मधुमेह में शरीर में कमजोरी महसूस होने लगती है।कमजोरी दूर करने हेतु हरा कच्चा नरियाल खायें। काजू, मँूगफली, अखरोट भिगोकर इनका सेवन करें । दही, छाछ, सोयाबीन खायंे। खीरा-करेला, टमाटर का रस- एक खीरा, एक टमाटर, एक करेला का रस निकाल कर सुबह पीने से मधुमेह नियंत्रित होती है।
नींबू-अधिक प्यास होने पर पानी में नींबू निचोड़ कर पिलाने से मधुमेह में लाभ होता है।
जामुन-मधुमेह रोगी को नित्य जामुन का सेवन करना चाहिए।
टमाटर-मधुमेह रोगी के लिए टमाटर बहुत लाभदायक है।
गाजर- गाजर और पालक का रस मिलाकर पीने से आराम मिलता है।
करेला- करेला का रस पानी में मिलाकर पीयें और करेला की सब्जी भी खायंे।
शलगम- मधुमेह रोगी को शलगम का सेवन करना चाहिए।
मूली-मूली खाने या इसका रस पीने से लाभ होता है।
मेथी- मेथी दाना खाने से मधुमेह ठीक हो जाता है। मेथी के बीजों से खून में चीनी की मात्रा कम होती है। इससे मूत्र के साथ निकलने वाली चीनी की मात्रा 65 प्रतिशत तक कम हो सकती है। यह अपना असर सेवन करने के दस दिन बाद दिखा देता है। इसकी मात्रा का 125 ग्राम से 100 ग्राम प्रति खुराक है। इसे किसी भी तरह सब्जी बनाकर ,फँकी, पीस कर आटे में मिलाकर रोटी बनाकर ,दाल, चावल, सब्जियाँ, चटनी या इसके चूर्ण को दूध या पानी के साथ सेवन कर सकते हैं। यदि भोजन 1200-1400 कैलोरीज तक प्रति दिन किया जाए, तो इसका लाभ शीघ्र होगा। जब तक पेशाब में शुगर रहे, इसका सेवन बराबर करते रहंे। इसके सेवन करने से चीनी के साथ-साथ कोलस्ट्रोल भी कम हो जाता है।
होम्यापैथिक दवा-
1.सोडियम जैम्बूलिन मदरटिंचर की 20-20 बूँदे पानी मंे मिलाकर 2 बार सेवन करें।
2.हाथ-पैरों में जलन पित्त की अधिकता के साथ– सिफेलैण्ड्रा इण्डिका की 20-20 बूँदे लें।
3.मोमरडिका कैरटिंमा की 20-20 बूँदे पानी में मिलाकर लें।
4.बायोकेमिक नम्बर- 7 की 5-5 गोली तीन बार या नेट्रम सल्फ 30 गुणा व 30 गुणा 5-5 गोली खाने से पहले -पहले 2 बार लें।
सम्पर्क- डॉ.सुरेन्द्र सिंह राना वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक, 7 सोना नगर, खेरिया मोड़,आगरा, मो.नम्बर- 94122 71489

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