श्रद्धांजली

नहीं रहीं, नृत्य साम्राज्ञी सरोज खान

साभार सोशल मीडिया

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

अपने अनवरत और अथक अभ्यास से फिल्भी गीतों के भावों में डूब कर उसे नृत्य और आँखों, मुँह और चेहर की भावभंगिमाओं के माध्यम से जीवन्त करने की कला में माहिर थीं इसी के चलते ही नृत्यनिर्देशन(कोरियोग्राफी)के क्षेत्र में सरोज खान भारतीय सिनेमा जगत् में अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने में सफल हुईं, जबकि उस समय इस क्षेत्र में पुरुष कोरियोग्राफरों का वर्चस्व था।। अब यकायक उनका इस दुनिया को छोड़कर चले जाना उनके पं्रशंसकों को गहरा आघात लगा है। उनकी कमी बहुत खलने वाली है। वह जन्मजात नृत्यांगना थीं। यह उनकी रंग-रंग में समाया हुआ था। यही कारण गरीबी और अभाव भी उनके नृत्य के जुनून में बाधक नहीं बन पाए। वह एक अद्वितीय ेैनृत्यांगना और नृत्य निर्देशक होने के साथ-साथ बेहतर इन्सान भी थीं। अपनी नृत्य कला और अपने शिष्य को उसे सिखाने में भी वह अत्यन्त निपुण और पारंगत थीं। इसीलिए वे उन अभिनेता-अभिनेत्रियों को भी नचांने मंें सफल रहीं, जिनसे नाच-नचाने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। इसी कारण ही उन्हें अभिनेत्रियाँ और अभिनेता ‘मास्टर जी’ और ‘मदर ऑफ डान्स’ कहा करते थे। सरोज खान को ‘मास्टर जी’ बनने के लिए एक लम्बा सफर तय करना पड़ा। इसमें उन्हें अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा, पर वह अविचलित होकर निरन्तर आगे बढ़ती गईं। ऐसा लगता है कि वह नृत्यकला पेट से ही सीख कर इस दुनिया में आयी थीं। यही कारण है कि महज तीन साल की अवस्था में ही सरोज अपनी परछाई देखकर नृत्य करने लगीं। उनके नृत्य के प्रति दिवानापन देखकर उनकी माँ कोई बीमारी समझ बैठीं और उन्हें डॉक्टर को दिखाने लगीं। डॉक्टर ने सरोज को कलाकार बताते हुए उसे फिल्मों में काम कराने का सुझाव दिया। सरोज का फिल्मी सफर प्रख्यात फिल्म निर्मात एल.वी.प्रसाद की फिल्म ‘शारदा’ में अभिनेत्री श्यामा के बचपन की भूमिका यानी बालकलाकार के रूप में हुई। इसी रूप में सरोज ने कई फिल्मों में काम किया। दस वर्ष की अवस्था में सरोज ने फिल्मी नृत्यों में पृष्ठभूमि में नृत्य करने वाली नृत्यांगना के रूप में काम करना आरम्भ कर दिया। उन्होंने पहला समूह नृत्य(ग्रुप डान्स) अपने समय की सबसे सुन्दर अभिनेत्री मानी जाने वाली ‘मधुबाला’ के साथ किया। लेकिन इस बीच सरोज के पिता निधन हो गया। तब उनके परिवार में माँ, चार बहनें और एक भाई था, पर कमाने वाला सरोज के अलावा कोई नहीं था। उस समय सरोज का परिवार जिस चॉल में रहता था। उसके पास एक भजिया वाला रहता था, वह उनकी परिस्थिति को जानता था। इसलिए वह शाम को बची हुई भाजिया और पाव सरोज की माँ को दे जाता था, जिससे उनके बच्चों को भूखे पेट न सोना पड़े। दरअसल, देश के विभाजन के बाद उनके पिता कराची से मुम्बई आ गए थे। वहाँ उनका धनी परिवार था, पर मार्ग में उनका जेवरात और रुपयों का थैला बदल जाने से सबकुछ लुट गया। मुम्बई में उन्हें चॉल में रहकर आर्थिक अभाव में जीने को मजबूर होना पड़ा। सरोज का जन्म 22नवम्बर, 1948 को मुम्बई में हुआ । उनका वास्तविक नाम ‘निर्मला नागपाल’ था, किन्तु उस समय फिल्मों में काम करना अच्छा नहीं समझा जाता था। इसलिए उनके पिता ने उनका फिल्मी नाम‘ सरोज’ रख दिया, ताकि उनके परिवारीजन यह न जान सकें कि उनकी बेटी फिल्मों में कार्य करती है। एक बार सरोज ने अभिनेता शशि कपूर के साथ समूह नृत्य किया था। इस कारण सरोज ने उनसे परिचित थीं। सरोज ने उनसे कहा कि कल दीपावली है,गाने का भुगतान सात दिन बाद होगा। इसके बाद शशि कपूर ने कहा,‘‘ मेरे पास इस समय दो सौ रुपए हैं, आप ले लीजिए।’’
इसी दौरान सरोज उस समय के प्रसिद्ध नृत्य निर्देशक(कोरियोग्राफर) सोहनलाल से नृत्य सीखते-सीखते उनसे प्यार करने लगीं। उस वक्त वह 43 साल के और सरोज महज 13साल की थीं। सरोज को यह पता नहीं था कि सोहनलाल पहले से विवाहित हैं। सरोज सिर्फ चौदह साल की उम्र में माँ बन गईं, लेकिन सोहनलाल ने उनके बेटे को पिता का नाम देने को तैयार नहीं हुए। फिर भी उनके बीच रिश्ते बिगड़ते-बनते रहे। इस बीच सरोज ने एक बेटी को और जन्म दिया। अन्त में सन् 1969 में सोहनलाल सरोज और उनके बेटे-बेटी को छोड़कर मुम्बई से चैन्नई जाकर बस गए। इधर सरोज परिवार टूटने से विचलित थीं ,उधर फिल्मों में काम नहीं मिल रहा था। ऐसे में सरोज एक अस्पताल में नर्स बन गईं। सरोज को नृत्य निर्देशक यानी कोरियाग्रोफर के रूप में सबसे पहले अवसर अभिनेत्री साधना ने अपनी फिल्म ‘गीता मेरा नाम’ में दिया। इस तरह सरोज के कोरियोग्राफी के करियार की शुरुआत हुई। उस बीच सरोज की भेंट व्यवसायी रोशन खान से हुई। उसके पश्चात् इन दोनों ने विवाह कर लिया। राजश्री प्रोडक्शन ने सरोज को अपने फिल्म ‘जज्बात’ में मौका दिय। उसके बाद धर्मेन्द्र और हेमामालिनी अभिनीत ‘प्रतिज्ञा’ की कोरियोग्राफर बनने का अवसर मिला। लेकिन फिल्म ‘तेजाब’ ने सरोज को बहुत अधिक प्रसिद्धि दी। सरोज खान ने अपने समय की प्रख्यात अभिनेत्री श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, काजोल, ऐश्वर्या राय, अमिताभ बच्चन, करीना कपूर, शिल्पा शेट्टी के साथ अपने समय लोकप्रिय गानों की कोरियोग्राफी की थी। जब अभिनेता अनिल कपूर नृत्य नहीं कर पा रहे थे,तब सरोज ने कहा कि मैं एक स्टेप सीखा देती हूँ, उसी से तुम्हारा काम चला जाएगा। उसके बाद अनिल कपूर पर ‘माईनेम इज लखन गीत उन पर फिल्माया गया। इसी तरह ‘जब वी मेट’ के एक गीत करीना कपूर से भी उन्होंने कहा,अगर पाँव नहीं चला पा रही हो, तो चेहरे को तो चलाओ। फिल्म ‘परदेस’ की शूटिंग के समय तो उन्होंने माहिमा चौधरी को संटी लेकर नृत्य कराया था।
सन् 1989 में सरोज खान को पहला फिल्म फेयर अवार्ड ‘तेजाब’ फिल्म के गाने ‘एक दो-तीन…….. के लिए मिला। फिर 2002 में उन्हें फिल्म ‘देवदास’ के गीत ‘डोला रे डोला…………..के लिए ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। उसके पश्चात् उन्हें 2006 में तमिल पीरियड फिल्म ‘श्रृगारम’ और 2008 में‘ जब वी मेट’ के लिए ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। फिल्म ‘परदेस’ में उन्होंने अभिनेत्री माहिमा चौधरी को ‘जहाँ पिया, वहाँ मैं……, माई लव माय इण्डिया……, सरोज खान ने फिल्म ‘लगान’ में ग्रेसी सिंह को ‘राधा कैसे न जले………., सन् 2019 में सरोज खान द्वारा कोरियाग्रोफी की फिल्म ‘कलंक थी,जिसमें उन्होंने तबाह हो गए गीत में माधुरी दीक्षित को कोरियोग्राफ किया था।
अब मशहूर फिल्म निर्माता सुभाष घई ने सरोज खान को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि सरोज खान मेरी सिनेमा यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रही हैं। भारतीय सिनेमा में शास्त्रीय नृत्य(क्लासिंक डान्स) का कायम रखने वाली वह आखिरी कड़ी थी। फिल्म अभिनेत्री माधुरी दीक्षित ने टिवट्र पर लिखा है- अपनी दोस्त और गुरु के जाने से मैं बिखर गई हूँ। डान्स में अपनी पूरी क्षमता तक पहुँचने में उन्होेंने मेरी मदद की थी। इसके लिए मै। हमेशा उनकी आभारी रहूँगी। दुनिया ने आज एक अद्भुत प्रतिभाशाली इन्सान को खो दिया। सरोज खाना को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए अभिनेत्री काजोल ने कहा है कि उन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। वह जो कहना चाहती थीं, वह उनके चेहरे पर, उनके हावभाव में दिखता था। उनकी बढ़ती उम्र के बावजूद उनमें काम के प्रति उनका प्यार नजर आता था। अभिनेता शाहरुख खान का कहना है कि फिल्म इण्डस्ट्रीज में मेरी पहली गुरु। अब तक मिले सबसे अधिक ख्याल रखने वाली ,प्यार करने वाली और प्रेरणादायक व्यक्तित्व करने लोगों में से एक । 3जुलाई, शुक्रवार को रात 1.52मिनट का हृदयाघात से निधन हो गया। उनके न रहने से भारतीय फिल्म जगत् के लिए अपूरणीय क्षति हुई है। ऐसा लगता है कि नृत्य साम्राज्ञी सरोज को भगवान ने देवलोक की अप्सरा को नृत्य की शिक्षा देने के लिए बुला लिया है,अब वह उन्हें नृत्यकला में पारंगत करने में जुटी होंगी।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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