डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी(राकाँपा)के अध्यक्ष शरद पवार ने एक बार फिर काँग्रेस को आईना दिखाते हुए यह कहना जरूरी समझा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बन्धित मुद्दे अत्यन्त संवेदनशील होते हैं उन पर राजनीति नहीं करनी चाहिए। यहाँ प्रश्न यह है कि क्या काँग्रेस के नेता उनके इस कथन से कोई सबक लेकर अपने रुख-रवैये में बदलाव करेंगे? फिलहाल, ऐसा नहीं लगता। इसकी वजह यह है कि इससे पहले भी शरद पवार सर्वदलीय बैठक में भी यही सब कह चुके थे, जब सोनिया गाँधी चीन सीमा विवाद के मसले पर भारतीय सैनिकों के निहत्थे भेजने और 20सैनिकों की शहदत को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर सवालों की बौछार कर रही थीं, तभी उन्होंने कहा था कि सैनिक बगैर हथियारों के नहीं रहते, किन्तु उन्हें दोनों देशों के बीच हुई सन्धियों को दृष्टिगत रखते व्यवहार करना पड़ता है। उसके बाद भी उनके रवैये में भी कोई बदलाव नहीं आया। आज की हकीकत यह है कि भारत के खिलाफ जो काम चीन नहीं कर पा रहा है, उसे काँग्रेस के नेता कर रहे हैं। यह सब देखकर लगता है कि ये भारत से सबसे बडे दुश्मन चीन के हिमायती और पैरोकार हैं, जिन्हें जनभावनाओं की कतई परवाह नहीं है। इस तरह अपनी पार्टी को खुदकशी की राह पर बढ़ते देख देशों के लोग ही नहीं, स्वयं काँग्रेसी परेशान और शर्मिन्दगी महसूस कर रहे हैं। अब केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी राहुल गाँधी को चुनौती दी है कि वह संसद में सन् 1962से अबतक स्थिति पर उनके हर सवाल के जवाब देने को करने को तैयार हैं। वैसे सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष को भरोसा दिला दिया था कि चीन ने लद्दाख में भारत की न कोई जमीन दबायी और न ही किसी निगरानी चौकी को।

दरअसल, चीन से सीमा विवाद के मसले पर काँग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गाँधी, उनके पुत्र और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी और उनके कुछ नेतागण जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार पर तरह-तरह के आरोप लगाकर हमलावार बने हुए हैं, उसे देखते हुए यह सोच कर बहुत दुःख होता है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को ऐसे हालात में किसने पहुँचा दिया है? इसका नेतृत्व वर्तमान ऐसे लोग कर रहे हैं, जिन्हंे स्वयं के हित पूर्ति और निजी खुन्नस निकालने के लिए न पार्टी हित की चिन्ता और न देश के सम्मान और हितों की। अगर ऐसा नहीं है, तो जब देश के ज्यादातर छोटे-बड़े राजनीतिक दल केन्द्र सरकार के साथ हैं, वहीं काँग्रेस और दूसरे मुल्कों की चाकरी करने वाले वामदल उस पर कई तरह के सवाल उठा रहे हैं। इनमें माकपा नेता ‘पंचशील समझौते’ का राग अलाप रहे थे,जो उनके आका चीन ने ही सन् 1962में भारत पर हमला कर तोड़ा दिया। उधर भाकपा नेता चीन की घुसपैठ पर चिन्ता जताने के बजाय भारत के अमेरिका से बढ़ते रिश्तों से परेशानी महसूस कर रहे थे। ऐसा करके ये लोग न केवल देश हित के खिलाफ बोल रहे हैं, बल्कि भारतीय सेना की शक्ति- सामर्थ्य और उसकी विश्वसनीयता भी पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। यह सब

कर ये लोग चीन के पक्ष को ही मजबूत करने में लगे हैं। इस मसले पर सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी के बयानों को चीन और पाकिस्तान के टी.वी. चैनल और अखबार सुर्खियाँ बनाकर दिखा तथा छाप रहे हैं। फिर भला वे ऐसा क्यों न करें? जब देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी के नेतागण स्वयं चीन के लद्दाख की भूमि पर कब्जा होने और प्रधानमंत्री को चीनी घुसपैठियों के आगे आत्मसमर्पण (सरेण्डर) करने और डर कर छिपे होने का आरोप लगा रहे हैं। यहाँ तक कि राहुल गाँधी ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री का नाम ‘सरेण्डर मोदी’ लिखकर उपहास उड़ाया। उनकी इन ओछी हरकतों को उनके अन्धभक्तों या देशद्रोहियों के अलावा शायद ही किसी ने पसन्द किया होगा? इसका प्रमाण काँग्रेस की कार्यकारिणी समिति (सीडब्ल्यूसी) में भी दिखायी दिया, जब काँग्रेस के ही कुछ नेताओं ने ंसोनिया गाँधी और राहुल गाँधी के सरकार के विरोध के तरीके को गलत बताया, उस समय जब राहुल गाँधी अलग-थलग पड़ गए ,तब प्रियंका वाड्रा को उनकी हिमायत में आगे आना पड़ा। इससे लगता है कि काँग्रेस के नेता भी यह मानने लगे हैं कि उनके शीर्षस्थ नेता अपनी सत्ता छीन जाने से उत्पन्न अपनी खुन्नस निकालने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नीचा दिखाने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते। ऐसा करते हुए वे जनभावनाओं की अनदेखी के साथ-साथ राष्ट्रीय हितों पर भी कुठाराघात करने से बाज नहीं आ रहे हैं। विडम्बना यह है कि जब राहुल गाँधी प्रधानमंत्री मोदी पर सरेण्डर करने का आरोप लगा रहे थे ,तब चीन का सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ भारतीय सेना पर घुसपैठ करने का।

सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी द्वारा प्रधानमंत्री मोदी से यह सवाल पूछे जाने पर कि लद्दाख की कितनी जमीन पर चीन ने कब्जा कर लिया है,इस पर शरद पवार ने एक बार फिर उन्हें यह याद दिलाना जरूरी समझा है कि सन् 1962 के युद्ध में चीन ने भारत की 46,000वर्ग किलोमीटर भूमि हड़प ली थी। इतना ही नहीं, उन्होंने काँग्रेस नेताओं के इस आरोप का भी खण्डन किया कि गलघन घाटी की घटना के लिए सीधे-सीधे वर्तमान रक्षामंत्री दोषी हैं, क्यांेकि गश्त के दौरान भारतीय सैनिक सजग थे। गलवान घाटी में चीन ने उकसाने का काम किया। इसके पीछे चीन के इरादे वह जानते हैं कि चीन अपनी इस हरकत से एक ओर जहाँ, कोरोना विषाणु जनित महामारी फैलाने के आरोप से वह दुनिया का ध्यान अपनी ओर से भटकाना चाहता है, वहीं भारत द्वारा सीमान्त क्षेत्रों में सड़क, पुल आदि के निर्माण से वह परेशान है,क्योंकि इससे उसे अक्साईचिन और काराकोरम क्षेत्र में भारत की कब्जाई जमीन को लेकर भारत से खतरा नजर आ रहा है। इसलिए वह भारत को इन निर्माण कार्यों को होने देना नहीं चाहता। उसकी इन सम्भावित हरकतों के डर से काँग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार 2005 से 2014 तक निर्माण कराने की हिम्मत नहीं दिखायी पायी थी।
स्पष्ट है कि शरद पवार से राहुल गाँधी को क्या बताना चाहते थे? उस समय राहुल के पूर्वज और काँग्रेस के नेता पण्डित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। काँग्रेस को बार-बार नसीहत देने वाले शरद पवार न केवल वरिष्ठ काँग्रेसी नेता रहे हैं, बल्कि पी.वी.नरसिंम्हा राव के नेतृत्व वाली काँग्रेस सरकार में रक्षामंत्री भी रह चुके हैं। वैसे भी चीन ने सितम्बर, सन् 1962 में धोखे से हमला भारत पर जम्मू-कश्मीर के

अक्साईचिन इलाके की 37,000वर्गकिलोमीटर से अधिक जमीन हड़प ली थी। उसके बाद 1963 मंे पाकिस्तान ने एक समझौते के तहत गुलाम कश्मीर का 5,180वर्गकिलोमीटर इलाका चीन को सौंप दिया। इसके पश्चात् चीन ने अक्टूबर, सन् 1967 में उत्तरी सिक्किम के नाथु- ला दर्र पर कब्जा करने की कोशिश की, जिसमें उसे भारतीय सैनिकों से बुरी तरह पराजित कर दिया। उसके बाद चीन ने 1987 में अरुणाचल पर हमला किया, पर उसे मुँह की खानी पड़ी। इसके उपरान्त चीन सैनिक कभी उत्तराखण्ड ,तो कभी हिमाचल प्रदेश या फिर लद्दाख के पैगोंग त्से झील या गलवान , देपसांग, दौलतबेग ओल्डी , चुमार, चिशूल आदि इलाकों में घुसपैठ करते आए है। सन् 2013 में एलएसी के पास उत्तरी लद्दाख इलाके में स्थित देपसांग घाटी में भारतीय निगरानी चौकी के निर्माण का विरोध किया। तब 21दिन तक यह मामला गरमाता रहा। सितम्बर, 2014 में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत की यात्रा पर आए हुए थे, तब 1000 चीन सैनिकों ने दक्षिण लद्दाख में चुमार में सिंचाई की नहर के निर्माण पर आपत्ति की। यह विवाद भी 16दिन बाद समाप्त हुआ। फिर 18जून, 2017 में चीन द्वारा भारत-भूटान सीमा पर स्थित डोकलाम पर अतिक्रमण कर सड़क निर्माण को लेकर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हाथापाई हुई। यह तनाव 73दिन बाद खत्म हुआ। अब 5मई को दक्षिण लद्दाख के पेगोंग झील और 9मई, 2020 उत्तरी सिक्किम के नाथु-ला दर्रे पर चीनी सैनिकों और भारतीय सैनिकों के साथ झड़प के साथ ताजा विवाद की शुरुआत हुई। 15-16जून की रात को गलवान इलाके में चीन सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर धोखे से हमला किया,जिसमें एक कर्नल समेत 20भारतीय सैनिक शहीद हुए। इसमें चीन के भी एक अधिकारी समेत 43से अधिक सैनिक मारे गए हैं, जिससे चीन को भारतीय सेना की शक्ति का अच्छी तरह पता लग गया। इसके बाद चीन अपने मृत सैनिकों की संख्या तक बताने से बराबर बचता आया है। चीनी घुसपैठ से पहले भी कोरोना महामारी से लोगों को बचाने के लिए रणनीति बनाने के बजाय काँग्रेस सरकार को घेरने में ही लगी रही। इससे उसकी देश विरोधी मानसिकता ही स्पष्ट होती है।
अब भले ही सत्ता के लिए आकुल-व्याकुल और बदले की आग में जल रहे सोनिया और राहुल गाँधी भले ही अपनी हरकतों से मोदी को नीचा दिखाने की सोच रहे हैं, लेकिन उनके बारे में देश के लोग क्या सोच रहे हैं? इसका पता उन्हें आगामी चुनावों में ही लगेगा।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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