महोदय,
कोराना महामारी से उत्पन्न आर्थिक संकट काल के चलते सरकार ने निर्धन एवं प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड के जरिए निःशुल्क खाद्यान्न वितरण कराने की व्यवस्था की,ताकि रोजगार के अभाव में उन्हे भूखे पेट न रहना पड़े, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर उचित निगरानी के अभाव में सरकार की इस कल्याणकारी योजन का वांछित लाभ निर्धन एवं प्रवासी श्रमिकों को नहीं मिल पा रहा है। इस व्यवस्था के तहत राशन कार्ड धारकों को प्रति यूनिट पाँच किलो चावल और एक किलो चने की दाल का वितरण किया जा रहा है। क्या शासन-प्रशासन में बैठे अधिकारियों को इस बात की जानकारी नहीं है कि आगरा जनपद उदाहरण के लिए अछनेरा, खन्दौली आदि क्षेत्रों में लोग गेहूँ की रोटियाँ खाते हैं और चावल को बहुत कम इस्तेमाल करते है। फिर कुछ लोग मधुमेय(डायबिटीज)और दूसरे रोगों की वजह से चावल खाने से परहेज भी करते हैं। इसके बाद भी उन्हें राशन कार्ड पर चावल दिया जा रहा है। परिणामतः ये लोग राशन के चावल को दुकानदारों को 15 रुपए किलो की दर से बेचकर अधिक मूल्य पर गेहूँ खरीदने को विवश हैं।
इसके अलावा कुछ राशन विक्रेता खाद्यान्न वितरण में घटतौली करने के साथ-साथ राशन कार्ड में अंकित सभी यूनिटों का राशन नहीं देते। कुछ राशन विक्रेता नियत समय पर दुकान ही नहीं खोलते या फिर भी थोड़ी देर के लिए खोलते हैं। इससे लोगों को खाद्यान्न के लिए कई घण्टे इन्तजार के बाद भी खाली हाथ घर लौटने पर मजबूर होना पड़ता है।गत दिनों अछनेरा में पुलिस ने राशन में वितरण के लिए आया 25कट्टे चावल बरामद किया है,जो राशन कार्ड धारकों में वितरण किया जाना था।
इस तरह प्रशासनिक अधिकारी और राशन विक्रेता सरकार की इस कल्याणकारी योजना के उद्देश्य को विफल कर रहे हैं। इससे सार्वजनिक धन का भारी दुरुयोग हो रहा है। राशन विक्रेताओं की अनियमितताओं के समाचार स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं फिर भी जिलापूर्ति अधिकारी द्वारा ऐसे राशन विक्रेताओं के खिलाफ अपेक्षित कार्रवाई नहीं की जा रही है। इस मुद्दे पर जनप्रतिनिधियों की खामोशी भी हैरान करने वाली है।
ललित मोहन अग्रवाल ,अछनेरा आगरा
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