डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच दुष्प्रचार मुहिम और उग्र बयानबाजी के बाद जैसे भारी टकराव के हालात पैदा हो गए हैं, उन्हें देखते हुए इन दोनों के बीच कभी भी युद्ध छिड़ने के आशंका और आसार नजर आने लगे थे। ऐसी नौबत आने की वजह उत्तर कोरिया का दक्षिण कोरिया पर यह आरोप लगाना रहा है कि वह उत्तर कोरिया से लगी अपनी सीमा से उसकी सीमा के अन्दर गुब्बारों में भर कर ऐसे पर्चे/पत्रक भेज रहा है, जो राष्ट्रपति किम जोंग की आलोचना करने वाले सन्देशों से भरे होते हैं। गत 22जून को उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया को धमकी दी है कि उसने भी उसके खिलाफ 1.2 करोड़ पत्रक तैयार कराये हैं,जिन्हें वह तीन हजार गुब्बारों और दूसरे उपकरणों के जरिए से दक्षिण कोरिया भेजेगा। वह दोनों देशों के मध्य तनाव कम करने के लिए 2018 में हुए समझौता को खत्म करने के लिए भी कदम उठाएगा। इस पर दक्षिण कोरिया के एकीकरण मंत्रालय के प्रवक्ता यीह सांगकी ने कहा कि उत्तर कोरिया को दक्षिण कोरिया विरोधी दुष्प्रचार अभियान की अपनी योजना को स्थगित कर देना चाहिए। ऐसा करने से दोनों देशों के सम्बन्ध सुधारने में किसी तरह की मदद नहीं मिलेगी। इसकेे प्रत्युत्तर में उत्तर कोरिया का कहना है कि, दक्षिण कोरिया विरोधी दुष्प्रचार सम्बन्धी पत्रक भेजन की हमारी योजना उत्तर कोरिया के लोगो में गुस्से का नतीजा है।

इससे पहले उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन की बहन किम योंग उन ने दक्षिण कोरिया के साथ सम्पर्क करने को बनाये रखने वाले कार्यालय को बन्द करने तथा पड़ोसी दक्षिण कोरिया के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने की धमकी दे दी। इसे देखते हुए दक्षिण कोरिया के नेशनल सिक्योरिटी डायरेक्टर चुंग ई-योंग ने 14 जून को सैन्य जनरलों की आपातकालीन सुरक्षा बैठक आहूत की, जिसमें उत्तर कोरिया से दोनों देशों के बीच हुए समझौत पर कायम रहने का आग्रह किया गया। इसके बाद 16 जून को दक्षिण कोरिया के एकीकरण मंत्रालय ने बताया कि उत्तर कोरिया के के सीमावर्ती शहर कसोंग में स्थित ंइण्टर कोरियन लाइजन कार्यालय को आज दिन के दो बजकर 49 मिनट पर विस्फोट कर उड़ा दिया, जो वर्तमान में खाली पड़ा था। इससे एक 15 मंजिली रिहायशी इमारत को भी क्षति पहुँची है। फिर उत्तर कोरिया ने कहा कि दक्षिण कोरिया के साथ चल रहे सहयोग केन्द्रों को बन्द करेगा और उससे लगती सीमा पर सैनिक तैनात करेगा। इतना ही नहीं, सीमा पर निगरानी चौकियों को बहाल करेगा और अग्रिम मोर्चों पर सैन्य अभ्यास भी करेगा। दरअसल, दो साल पहले दक्षिण कोरिया के साथ सम्बन्धों में सुधारों के बाद उत्तर कोरिया ने सीमा पर सैनिकों की तैनाती काफी कम कर दी थी। अब फिर उत्तर कोरिया पहले की स्थिति पर लौटने की धमकी दे रहा है। स्पष्ट है कि वह स्वयं को दक्षिण कोरिया से अधिक शक्तिशाली समझता है।
इधर कोरिया प्रायद्वीप से सम्बन्धित विशेषज्ञों का विचार है कि उत्तर कोरिया दोनों के बीच चल रही संयुक्त परियोजनाओं के पुनर्जीवित नहीं होने और अमेरिका के साथ परमाणु कूटनीति में प्रगति नहीं होने से बुरी तरह बौखलाया हुआ है। इसी कारण वह दक्षिण कोरिया को निशाना बना रहा है। वह परमाणु हथियारों पर बातचीत से पहले उत्तर कोरिया रणनीति के तहत दक्षिण कोरिया और अमेरिका पर दबाव बढ़ा रहा है। लेकिन उत्तर कोरिया जिस चीन की ताकत पर गरजता आया है, स्वयं आज हर तरफ से घिरा हुआ है। अगर उत्तर कोरिया दक्षिण कोरिया पर हमला करने की गलती करता है, तो उसके लिए विनाशकारी सिद्ध होगा। इसका कारण यह है कि दक्षिण कोरिया अकेला नहीं,अमेरिका पूरी तरह उसके साथ है। वैसे यह विडम्बना नहीं है, तो क्या है ? एक देश कोरिया को दो शक्तियों न केवल विभाजित कर दिया, वरन् अपने-अपने तरह-तरह के हितों को पूरा करने के लिए गत सात दशक से उन्हें आपस में लड़ाते भी आए है। दुर्भाग्य की बात है कि इनके शासक भी अपनी अहम और सनक के चलते एकीकरण की दिशा में एक कदम बढ़ने के बाद किसी न किसी बहाने दो कदम पीछे लौट जाते हैं। ऐसा ही एक बार फिर हो रहा है।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कोरिया प्रायद्वीप में स्थित कोरिया भी कथित पूँजीवादी और साम्यवादी विचारधारा की आड़ में अमेरिका और रूस के बीच बँट कर रह गया। तब पोट्सडम सम्मेलन में अमेरिका और रूस द्वारा कोरिया के अधिकृत इलाकों के बीच 38 अक्षांश समानान्तर को विभाजन रेखा मान लिया गया। इसके बाद उत्तर कोरिया साम्यवादी खेमे, तो दक्षिण कोरिया अमेरिकी खेमे में हो गया। उसके पश्चात् उत्तर कोरिया की राजधानी ‘प्योंगयांग’ तथा दक्षिण कोरिया की राजधानी ‘सियोल’ बनी। उत्तर कोरिया में साम्यवादी विचारधारा के चलते देश की कृषि भूमि कृषकों में विभाजित कर दी गई और उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। लोगों को न केवल बौद्ध और कन्पयूशियस धर्म त्याग कर नास्तिक बनने को मजबूर किया गया, बल्कि उन पर साम्यवाद के नाम पर तानाशाही पूर्ण एकाधिकारी शासन में लागू कर दिया, जिसमें उन्हें किसी भी तरह की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है। इसके विपरीत दक्षिण कोरिया में पूँजीवाद के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम की गई। यहाँ चुनाव के माध्यम से अपनी सरकार चुनने का अधिकार मिला है। इसके साथ यहाँ के लोगों को बौद्ध, कन्फ्यूशियस, ईसाई धर्म मानने को स्वतंत्र हैं। इन दोनों देशों के लोग एक भाषा बोलते हैं और आपस मिलना चाहते है,क्योंकि इनमें से बड़ी संख्या में एक परिवार के सदस्य भी देश विभाजन के चलते विभाजित हो गए है, जो अपने-अपने परिवार के सदस्यों से मिलना चाहते है, पर शासकों के अहम के कारण मिल नहीं पा रहे हैं। प्योंगयांग सम्मेलन में 1.0 लाख परिवारों के सदस्यों को अपने बिछड़ों से मिलने का सौभाग्य मिला था। लेकिन बाद में ऐसे प्रयासों का सफलता नहीं मिली।
सन् 1980 से ही उत्तरी कोरिया और दक्षिण कोरिया के एकीकरण के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रयास और वार्ताएँ आयोजित की गईं, लेकिन वे असफल रहीं। इन दोनों के नए टकराव को देखते हुए एकीकरण की कोशिशों को एक बार फिर धक्का लगा है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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