देश-दुनिया लेख साहित्य

जम्मू-कश्मीर के हमदर्द तब कहाँ थे ?

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
भारत सरकार के गत 5अगस्त को  जम्मू-कश्मीर  से सम्बन्धित संविधान के अनुच्छेद 370 तथा अनुच्छेद 35ए हटाने के साथ ही इसे दो केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख बनाये जाने को लेकर जम्मू-कश्मीर विशेष रूप मे जम्मू तथा लद्दाख में जहाँ बड़ी संख्या में लोग खुशियाँ मना रहे हैं‘, वहीं कश्मीर घाटी में कुछ इस्लामिक कट्टरपन्थी अलगाववादियों, क्षेत्रीय सियासी पार्टियों के नेताओं के साथ पड़ोसी पाकिस्तान हायतौबा मचाते हुए भारी गम और  मातम मना रहा है, जैसा यह बदलाव कर भारत ने उसका और उनका सबकुछ लूट/छीन लिया हो। वैसे हकीकत भी यही है कि मजहबी नफरत की बुनियाद पर बने  पाकिस्तान का शुरुआती एकमात्र मकसद जम्मू-कश्मीर को किसी भी तरह हथियाना रहा है, क्योंकि उसकी ज्यादातर आबादी हममजहबी यानी मुसलमान हैं।  इसी तरह जम्मू-कश्मीर के कट्टरपन्थी तबके का इरादा भी भारत से अलग एक इस्लामिक मुल्क बनाना या फिर इसे पाकिस्तान में शामिल कराना रहा ।  इसके लिए इनके रहनुमा जम्मू और कश्मीर के हिन्दुओं तथा लद्दाख के बौद्धों के साथ हर तरह का भेदभाव ही नहीं, मौका आने पर कई तरह से उन्हें इस सूबे को छोड़ने या मजहब बदलने को मजबूर करते आए हैं। अब इस बदलाव से पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर में बैठे उसके हमदर्द बेमकसद/बेमुद्दा और बेकार हो गए हैं। अब भला वे किसके खिलाफ मजहबी तकरीर कर अपनी सियासत करेंगे और कैसे कश्मीर हासिल करने का ख्बाव दिखा पायेंगे ?
फिलहाल, जम्मू के हिन्दू, कश्मीर घाटी के विस्थापित कश्मीरी पण्डित,सिख, शिया,अहमदी, गुज्जर बक्करवाल, सूफी,उदार सुन्नी मुसलमान, लद्दाख बौद्ध भारत सरकार के  उक्त अनुच्छेद खत्म करने और दो केन्द्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले से खुश हैं। वतनपरस्त मुसलमान भी रहत महसूस कर रहे हैं,जो इस्लामिक कट्टरपन्थियों के खौफ में उनका साथ देने को मजबूर थे। इससे अब कश्मीर घाटी के सियासी नेताओं के अनुचित भेदभाव से उन्हें मुक्ति मिलने के साथ अलगाववादियोे के भारत से अलग होने के मंसूबों पर हमेशा के लिए पानी फिर गया है, जो अभी त भारतीय/हिन्दुस्तानी कहने/मानने से परहेज करते हुए खुद को कश्मीरी मुसलमान कहने फख्र महसूस करते आए हैं। लेकिन अनुच्छेद 370 और 35ए खत्म होने के महीना गुजरने के बाद भी जम्मू-कश्मीर या भारत में कहीं खूनखराब या फिर पाकिस्तान ने उनकी हिमायत में हिन्दुस्तान पर चढ़ाई क्यों नहीं की? इसे लेकर इन पाक समर्थकों बहुत हैरानी-परेशानी के साथ मायूसी भी है। पाकिस्तान भी बहुत हताश-निराश हैं, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में भारत सरकार  के किये बदलाव अमेरिका, चीन,  रूस,  फ्रान्स, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी तो क्या किसी मुस्लिम देश और इनके सगठन ‘आई.ओ.सी.’ने भी उसकी फरियाद पर गौर फरमाना तक मुनासिब नहीं समझा। इसके बाद  पाकिस्तान एक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में  मुँह की खाने के बाद एक बार फिर उसका दरवाजा खटखटाने के जुगत भिड़ा रहा है।
विडम्बना यह है कि जो पाकिस्तान अब भारत के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए खत्म करने पर  दुनियाभर में जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ तथाकथित नाइन्साफी का सबसे ज्यादा शोर मचाते हुए उसकी मुखालफत करता घूम रहा है और मदद की गुहार लगा रहा है,वह खुद इसी जम्मू-कश्मीर के अपने कब्जे वाले  कोई 40फीसद हिस्से को सन् 1949में दो भागों में बाँट चुका है। इनमें एक को उसने ‘आजाद कश्मीर’ तथा दूसरे को ‘फेडरली एडमिनिस्टर्ड नाॅर्दन एरियाज’ या ‘गिलगित -बाल्टिस्तान’ नाम दिया। जिस चीन के सहारे उसने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में इस मसले का उठवाया, वह भी  सन् 1962 के युद्ध से इसके लद्दाख इलाके एक कई हजार किलो मीटर क्षेत्र आक्साई चिन(अक्षयचिन)पर अवैध कब्जा किये हुए है और बेशर्मी से इसे अपना बताता आ रहा है। यही नहीं, अब भी लद्दाख में घुसपैठ करता रहता है। लेकिन किसी कश्मीरी नेता ने आजतक चीन से आक्साई चिन इलाके को लौटाने की माँग नहीं की। इतना ही नहीं, पाकिस्तान  अपने कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के ही हिस्से गिलगित-बाल्टिस्तान  एक बड़े हिस्से का चीन को सौंप चुका है, जहाँ सन् 1978 में चीन और पाकिस्तान के मध्य ‘काराकोरम हाइवे’ निर्माण  किया गया है, जो 1280किलो मीटर लम्बा तथा सामरिक एवं विश्व व्यापार की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। हैरानी की बात यह है कि उस समय और न सन् 1947 में कबाइलों की आड़ में पाकिस्तानी सेना के हमला किये जाने  पर जम्मू-कश्मीर के किसी भी नेता ने मजम्मत और  मुखाफलत नहीं की। यहाँ तक कि उसके बाद भी जम्मू-कश्मीर के इन हमदर्दो ने पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गुलाम कश्मीर(पी.ओ.के.) के बाशिन्दों के साथ हर तरह की नाइन्साफी,  गैरबराबरी,  भेदभाव, शोषण ,जुल्म-सितम ढहाये जाने पर कभी भी,  कहीं भी उसके खिलाफ आवाज उठायी, आखिर क्यों? इसी तरह कश्मीर के हमदर्द जो उसके विशेष दर्जे को खत्म किये जाने पर अब हा,हाकार मचारे रहे हैं, उन्हें पाकिस्तान गुलाम कश्मीर या गिलगित-बाल्टिस्तान में बहुत पहले हटा ही नहीं चुका है। इन शिया मुसलमान बहुल इलाकों में उसने बड़ी संख्या में गैर कश्मीरियों सुन्नियों को बसा कर आबादी का स्वरूप भी बदल चुका है। इसके बाद भी किसी भी कश्मीरी नेता ने अपनी जुबान नहीं खोली,क्यों? इस सवाल का जवाब है,क्योंकि  वे मुसलमान हैं।  अक्टूबर,सन् 1947 को गुलाम कश्मीर में सरकार का गठन हुआ। यह सरकार युद्ध समिति की भाँति कार्य कर रही थी। राष्ट्रपति के पास विधि और कार्यकारिणी सम्बन्धी अधिकार थे। मुस्लिम काॅन्फ्रेंस की वार्किंग कमेटी का विश्वास हासिल करने वाले शख्स को राष्ट्रपति मनोनीत किया जाता था। सेण्ट्रल पाकिस्तान में एक सर्वोच्च प्रशासकीय कार्यालय खोला गया था जो कि गुलाम कश्मीर के राष्ट्रपति द्वारा लिए गए निर्णयों को अन्तिम  स्वीकृति प्रदान करता था। गुलाम कश्मीर के नेताओं ने उत्तरी क्षेत्र  पाकिस्तान को अप्रैल, सन् 1949 में समझौते के अन्तर्गत सौंप दिया। इस इलाके में पाकिस्तान की कठपुतली सरकारें बनती आयी हैं,जिनके पास सही माने कोई हक नहीं रहा है,वे पाकिस्तानी आकाओं का बस हुकूम बजाती आयी हैं।
बेरोनस एम्मा निकोलसन ने अपनी रिपोर्ट ‘कश्मीर प्रेजेण्ट सिचुएशन एण्ड यूचर प्रोस्पेक्ट्स’ में इस क्षेत्र की सामाजिक तथा आर्थिक दशाओं का चित्र प्रस्तुत किया है। उसके अनुसार गुलाम कश्मीर में स्थानीय प्रशासन निष्क्रिय है और पाकिस्तानी सरकार और उसकी सेना का नियंत्रण है। कथित आजाद कश्मीर सम्प्रभु नहीं है। इस्लामाबाद में कश्मीर मामलों के मंत्रालय द्वारा आजाद कश्मीर का शासन किया जाता है। यहाँ के बाशिन्दों को शिक्षा,स्थास्थ्य और दूसरी मामूली जरूरतें पूरी करने को भारी संघर्ष करना पड़ता है। ये संगीनों के साये में जीने को मजबूर हैं। इनकी आवाज को कुचला जा रहा है । फिर भी यहाँ के लोग तमाम तरह के आन्दोलन  कर रहे हैं। ये अपने इलाके में चीन द्वारा चलायी जा रही परियोजनाओं का विरोध कर रहे है,क्योंकि वे उनके क्षेत्र के संसाधनों का दोहन करने में लगी है।इनसे स्थानीय बाशिन्दों को कोई फायदा नहीं हैं। गुलाम कश्मीर में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं। यहाँ महँगे रत्न के बड़े भण्डार हैं। इसके विश्व की सबसे उच्च कोटि की रूबी तथा संगमरमर पाया जाता है। बड़ी मात्रा में जल के स्रोत है,जिनसे बड़े पैमाने पर पनबिजली तैयार हो सकती है।
पाकिस्तान और उसके हिन्दुस्तान में रह रहे हमदर्द  दुनिया-जहान को यह बताने-जताने में लगे हैं कि देखो! इस सूबे के लोगों का सब तबाह/बर्बाद हो गया और वहाँ अब जिन्दगी बसर करना मुहाल हो जाएगा। वहाँ पर टेलीफोन, मोबाइल, इण्टरनेट सेवाएँ बन्द किये जाने तथा अलगावादियों/आतंकवादियों के समर्थकों के पत्थर फेंकने वाले गिरोहों के सरगनाओं/मस्जिदों में भारत/ हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगलने/जेहादी तकरीर करने वाले मुल्ला-मौलवियों, जम्हूरियत, कश्मीरियत, इन्सानियत के पर्दे के पीछे ‘निजाम-ए-मुस्तफा‘ कायम करने का रास्ता साफ करने मंे लगी सियासी पार्टियों के रहनुमाओं की नजरबन्द कर दिया गया है,ताकि ये लोगों भड़का खूनखराबा न करायें। लेकिन इसे ये लोग मानवाधिकार का उल्लंघन  बताते हुए रुदन मचाए हुए हैं, लेकिन इनमें से किसी को भी आज तक हर जुम्मे का अलग-अलग मस्जिदों से नमाज के बाद  पाकिस्तान और दुनिया के सबसे खूंखार इस्लामिक दहशतगर्द संगठन ‘आइ.एस’.के झण्डे लहराते हुए पाकिस्तान जिन्दाबाद, हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए  सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाने या फिर कश्मीर पुलिस के अधिकारी, सिपाही या कश्मीरी  सैन्य अधिकारियों, सैनिकों या उनके परिजनों की हत्या करने पर मानवाधिकार का हनन नजर नहीं आया। सुरक्षा बलों के आतंकवादियों को पकड़ने को घेरा डालने /घरों की तलाशी के लेने के दौरान उन्हें सुरक्षा बलों से बचाने/ भगाने को पत्थरबाजी के समय पर होने वाली असुविधा की कभी परवाह नहीं की। इनमें से किसी ने भी इण्टरनेट सेवा का दुरुपयोग कर कश्मीरियों के उत्पीड़न के फर्जी वीडियो डालकर लोगों को भड़कने या फिर इसके माध्यम से आतंकवादियों के बचाने या उनके जनाजे के लिए भीड़ जुटाने में इस्तेमाल करने पर कभी ऐतराज किया,किन्तु सुरक्षा, शान्ति-व्यवस्था बनाए रखने को इण्टरनेट सेवा बन्द करने पर भारी आपत्ति है। इनमें किसी ने भी कश्मीरियों को यह बताने की कोशिश नहीं की, कि कथित आजाद कश्मीर बाशिन्दें किन हालात में जिन्दा हैं,या भारत से पाकिस्तान जाकर बसे मुसलमानों के साथ  वहाँ कैसा बर्ताव होता है। जिस कश्मीरी संस्कृति को ये लोग बचाने की बात करते आए हैं,क्या देश की अन्य संस्कृतियों से जुदा,जिसे दूसरे लोग खत्म कर देंगे?नहीं यह तो सिर्फ आड़ है,उन्हें तो इस दारुल इस्लाम बनाना है,वह यह कैसे बना पायेंगे?इस हकीकत को सभी जानते हैं। इसके बाद भी पता नहीं क्यों? या फिर  जाने-अनजाने में इनका साथ भारतीय जनसंचार माध्यमों का एक वर्ग के साथ-साथ एक समुदाय विशेष के एकमुश्त वोट की तलबगार  काँग्रेस, सपा, जनतादल यू, राजद, वामपन्थी सियासी पार्टियाँ और चन्द मुस्लिम नेता भी दे रहे हैं। ये मीडिया के लोग और सियासी पार्टियाँ जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए के फायदे-नुकसान को अच्छी तरह से जानते हैं। फिर भी इनके हटाये जाने पर निजी नफा-नुकसान देखकर आँखें मूँद कर समर्थन करने में लगे है,पर देश की जनता न केवल इन अनुच्छेदों की असलियत, कश्मीरी नेताओं और पाकिस्तान की नीति तथा नीयत से अच्छी तरह वाकिफ है। वक्त आने पर वह इन्हें माकूल जवाब देगी,यह अब तय है।

Live News

Advertisments

Advertisements

Advertisments

Our Visitors

0104537
This Month : 10051
This Year : 41830

Follow Me