देश-दुनिया

बेनकाब हुआ चीन का नस्लवादी चेहरा

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन के शिनजियांग क्षेत्र में उइगर मुस्लिमों पर अत्याचारों की निन्दा करते हुए जिस ‘उइगर ह्यूमन राइट्स पॉलिसी एक्ट-2020’ पर हस्ताक्षर किये हैं, वह चीन के नस्लवादी और बर्बर चेहरे को विश्व के समक्ष लाने के साथ-साथ उसके लिए जिम्मेदार लोगों को दण्डित करने वाला भी है। अमेरिका का यह कदम सर्वथा उचित और अत्यन्त सामयिक भी है। इसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने दुनिया का नया दादा बनने की कोशिश कर रहे चीन को ‘आईना’ दिखाया है। निश्चय ही यह अमेरिका का एक साहसिक कदम है, जिसके लिए उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। अब अपने कलुषित निर्मम चेहरे के उजागर होने पर पर चीन का विचलित होकर बिफरना स्वाभाविक है, क्योंकि इस कानून में चीन अपने पश्चिमी अशान्त शिनजियांग प्रान्त में उइगर मुस्लिमों और दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों के बड़े पैमाने पर निगरानी और उन्हें हिरासत में रखने वाले वरिष्ठ चीनी

साभार सोशल मीडिया

अधिकारियों पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रावधान है। इसलिए इस विधेयक पारित होने के तुरन्त बाद चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का बयान आ गया। इसमें चीन ने अमेरिका से यह आग्रह किया है कि वह तत्काल अपनी गलती को सुधारें। वह चीनी हितों को क्षति पहुँचाने के लिए इस विधेयक का उपयोग बन्द कर दे, जो अब किसी भी सूरत में सम्भव नहीं है। इस कारण इस विधेयक को अमेरिकी संसद में भारी समर्थन से पारित किया जाना है। फिर अमेरिका ने इस मुद्दे पर यह कानून अचानक ही नहीं बनाया है, बल्कि वह वर्षों से चीन में उइगर मुसलमानों पर होने वाले जुल्मों के खिलाफ अपनी आवाज उठाता आया है, पर इस पर कानून अब आकर बनाया गया है। वैसे चीन का नस्लवादी चेहरा दुनियाभर में किसी से छुपा नहीं है। वह तिब्बत में बौद्धों, शिनजियांग समेत दूसरे इलाकों में अल्पसंख्यकों के साथ हर तरह के भेदभाव करते हुए उन पर भारी अत्याचार और अन्याय करता आया है। निश्चय ही अब अमेरिका द्वारा ‘उइगर ह्यूमन राइट्स पॉलिसी एक्ट-2020 बनाये जाने पर उइगर मुसलमानों को न सिर्फ खुशी हुई होगी, बल्कि उन्हें चीन के जुल्मों के खिलाफ चलाए जा रहे उनके आन्दोलन को वैधानिकता तथा बल मिलने की उम्मीद भी जगी होगी। भले ही कुछ मुस्लिम मुल्क और उनके रहनुमा अमेरिका को अपनी कौम का दुश्मन मानते हों, पर अमेरिका ने चीन के सताए उइगर मुस्लिमों के हित में यह कानून बनाकर पाकिस्तान समेत तमाम मुस्लिम मुल्कों और उनके

संगठन‘ ‘ओ.आइ.सी. के मुँह पर करारा तमाचा मारा है, जो खुद को हममजहबियों के हिमायती और हमदर्द बनने का ढोंग करते आए हैं। फिर भी वे उइगरों के मामले में चीन के डर और उससे मिलने वाले फायदों की वजह से खामोश रहते आए हैं।
अमेरिका ने चीनी उइगरों को लेकर अब जो कानून बनाया है, वह महज चीन से अपनी खुन्नस निकालने के लिए नहीं है। उसकी खास वजह है। दरअसल, चीन में कोई 10लाख से अधिक उइगर मुसलमानों को यातना शिविरों (डिटेंशन कैम्पों)में रखा हुआ है,जहाँ उन पर तरह-तरह के जुल्म ढहाये जाते हैं। उनकी न सिर्फ मजहबी आजादी छीन ली गई है, बल्कि उनकी मजहबी पहचान भी मिटायी जा रही है। उन्हें न नमाज और कुरान पढने की इजाजत है और न ही दाढ़ी बढ़ाने, रोजा रखने और बच्चों के अरबी/मुसलमानी नाम रखने की । उनकी बड़ी तादाद में मस्जिदों और कब्रिस्तानों को जमींदोज कर दिया गया है, उनकी सैटेलाइट तस्वीरों को पूरी दुनिया देख चुकी है। उनकी जबरन नसबन्दी की भी जाती है, ताकि उनकी जनसंख्या को कम किया जा सके। वस्तुतः चीन उइगरों की अलग पहचान और इतिहास ही खत्म करने पर तुला है। अब जो उइगर मुसलमान यातना शिविरों के बाहर रह रहे हैं उनके भी फोन, लोकशन, फोन डेटा, आईकार्ड और गाड़ियों की ट्रेकिंग की जाती है। इन यातना शिविरों पर अपनी सफाई में चीन यह कहता आया है कि इन केन्द्रों का मुख्य उद्देश्य देश में उग्रवाद का समाप्त करना है।
चीन में उइगर मुसलमानों पर अत्याचारों को लेकर अमेरिका के अलावा आस्टेªलिया और यूरोपीय देश बोलते रहे है, किन्तु मुस्लिम मुल्कों ने खामोश रहना ही ठीक समझते आए हैं। कई साल पहले अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा था कि चीन सरकार ने शिनजियांग में उइगर, कजाख और किर्ग अल्पसंख्यक मुसलमानों पर कड़े नियंत्रण की कोशिशें की हैं। एक बार अमेरिका की एक्टिंग असिस्टेण्ट सेक्रेटरी( साउथ एण्ड सेण्ट्रल एशिया) ऐलिस वेल्स ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को नसीहत देते हुए कहा था कि वह जिस तरह से कश्मीरी मुसलमानों की चिन्ता करते हैं,उसी तरह से पश्चिमी चीन के उन उइगर मुसलमानों की फिक्र क्यों नहीं करते, जिनका सालांे से नजरबन्द रखते हुए उनके मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है। इस पर प्रधानमंत्री इमरान खान का कहना था कि उन्हें उनकी हालत के बारे में जानकारी नहीं है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान ने तो यहाँ तक कहा है कि पश्चिमी मीडिया चीन में उइगर मुसलमानों के मामले को सनसनीखेज बना कर पेश कर रहा है। सऊदी अरब के क्राउन प्रिन्स ने तो चीन का बचाव कर इस खामोशी को और भी मान्यता दे दी। आस्टेªलियन यूनिवर्सिटी में चाइन पॉलिसी के एक्सपर्ट माइकल क्लार्क मुस्लिम मुल्कों की खामोशी की वजह चीन की आर्थिक शक्ति और पलटवार का डर मुख्य कारण है। क्लार्क एबीसी से कहा,‘‘म्यांमार के खिलाफ रोहिंग्या मुसलमानों को मुस्लिम मुल्क इसलिए बोल रहे हैं, क्योंकि वह एक कमजोर देश है। उस पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाना आसान है। म्यांमार जैसे देशों की तुलना में चीन की अर्थव्यवस्था 180 गुना अधिक बड़ी है।ऐसे में आलोचना करना भूल जाना अपने हक में अधिक होता है।
चीन के पश्चिमोत्तर में स्थित शिनजियांग है,जिसे पहले ‘पूर्वी तुर्कीस्तान’(ईस्ट तुर्किस्तान)कहा जाता था। इसकी सीमाएँ रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान ,ताजिकिस्तान ,पाक अधिकृत कश्मीर, अफगानिस्तान से जुड़ी है। यह तेल और प्राकृतिक गैस के भण्डारों से समृद्ध है। यहाँ ये मध्य और पूर्वी एशिया के मूल रूप से ‘तुर्क’ हैं,जो तुर्की बोलते हैं। चीन के सबसे बड़े तथा पश्चिमी प्रान्त ‘शिनजियांग या शिनगिद्यम’ में करीब 1करोड़ 10लाख उइगर मुसलमान हैं। ये चीन में यह धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय है। शिनजियांग प्रान्त में उइगरों की संख्या 44 प्रतिशत है। इनमें से लगभग 41प्रतिशत उइगर ‘इस्लाम’मानते हैं। शिनजियांग की सीमा मंगोलिया और रूस सहित आठ देशों के साथ मिलती है।‘ तुर्क’ मूल के उइगर इस क्षेत्र में बहुसंख्यक थे, लेकिन जब से इस क्षेत्र में चीनी समुदाय ‘हान’की संख्या बड़ी है और सेना की तैनाती हुई है, तब से यह स्थिति बदल गई है। शिनजियांग प्रान्त में रहने वाले उइगर मुसलमान ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेण्ट’ चला रहे हैं। दरअसल, सन् 1949 में पूर्वी तुिर्कस्तान को एक अलग राष्ट्र के रूप में कुछ समय के लिए पहचान मिली थी, लेकिन उसी साल इस पर चीन ने बलात कब्जा कर लिया, जो अब ‘शिनजियांग’ कहा जाता है। सन् 1990में सोवियत संघ के विघटन के बाद इस क्षेत्र के लोगों ने अपनीन स्वतंत्रता के लिए बहुत संघर्ष किया। उस समय इन्हें मध्य एशिया के कई मुस्लिम मुल्कों का समर्थन मिला था, किन्तु चीन सरकार के कड़े रुख के आगे किसी की एक न चली। बीते कुछ समय के दौरान इस इलाकेेेेेेेेे में हान चीनियों की संख्या में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी हुई है। उइगरों का कहना है कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार हान चीनियों के शिनजियांग में इसलिए भेज रही है ताकि उइगरों के आन्दोलन ‘ ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेण्ट’ को दबाया जा सके। चीन की भेदभाव पूर्ण नीतियाँ भी कुछ ऐसा ही दर्शाती है। शिनजियांग में रहने वाले हान चीनियों को मजबूत करने के लिए चीन सरकार हर सम्भव सहायता दे रही है। यहाँ तक कि इस क्षेत्र की नौकरियों में उन्हें ऊँचे पदों पर बैठाने का हानों को मजबत करना है। सामरिक दृष्टि से शिनजियांग प्रान्त चीन के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है और ऐसे में चीन सरकार ऊँचे पदों पर विद्रोही रुख वाले उइगरों को बिठाकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहती।
चीन की कम्युनिस्ट सरकार के इस रुख की वजह से इस क्षेत्र के हान चीनियों और उइगरों के बीच टकराव की खबरें आती रहती हैं। सन् 2008 में शिनजियांग की राजधानी ऊरमची में हुई हिंसा में 200लोग मारे गए ,जिनमें अधिकांश हान चीनी थे। इसके 2009में ऊरमची में हुए दंगों में 156उइगर मारे गए। उस समय तुर्की ने इसकी कड़ी निन्दा करते हुए इसे एक बड़े नरसंहार की संज्ञा दी थी। इसके बाद 2010 में भी हिंसक झड़पों की खबरें आयीं। सन् 2012में छह लोगों को हाटन से ऊरमची जा रहे ‘एयर क्रापट’ का अपहरण(हाइजैक)करने की कोशिश के चलते गिरपतार किया गया। पुलिस ने इसमें उइगरों का हाथ बताया। 2013में प्रदर्शन कर रहे 27 उइगरों की पुलिस गोलीबारी में मौत हो गई थी। सरकारी मीडिया का कहना था कि प्रदर्शनकारियों के पास हथियार थे जिस वजह से पुलिस को गोलियाँ चलानी पड़ीं। इसी साल 7अक्टूबर को बीजिंग में एक कार बम धमाके में 5लोग मार गए, जिसका आरोप उइगरों पर लगा। ये भी मामले हैं जो विदेशी मीडिया की सक्रियता की वजह से सामने आ गए, वरना माना जाता है कि ऐसे सैकड़ें मामले चीन सरकार ने दबा दिये। 2014 में शिनजियांग में की सरकार ने रमजान में रोजा रखने और दाढ़ी बढ़ाने पर पाबन्दी लगा दी। इसी साल राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सख्त आदेशों के बाद यहाँ की कई मस्जिदों और मदरसों का ढहा दिया गया। चीनी सरकारी मीडिया का आरोप है कि इन सभी के लिए उइगरों का संगठन ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेण्ट’ दोषी है। चीन सरकार का कहना है कि इस हिंसा के लिए विदेशों में बैठे उइगर नेता जिम्मेदार हैं। उसने 2014 में इन घटनाओं के लिए लिखित तौर वरिष्ठ उइगर नेता लहम यहेवी को जिम्मेदार ठहराया है। इसके अलावा इन घटनाओं में डोल्कन इसा का हाथ बताते हुए उन्हें मोस्ट वाटेण्ड की सूची में रखा गया है। इन मामलों का लेकर चीन मे कई उइगर नेताओं को गिरपतार किया गया है।
वहीं उइगर नेता और यह संगठन इन सभी आरोपों को झूठा और मनगढन्त बताते हैं। जहाँ तक कि बाकी दुनिया कीी बात है तो अमेरिका ने ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेण्ट’ को उइगरों का एक अलगाववादी समूह तो बताया है,लेकिन उसका यह भी कहना है कि इस समूह की ‘आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने की क्षमता नहीं है।
फिलहाल, अमेरिका द्वारा ‘उइगर ह्यूमन राइट्स पॉलिसी एक्ट-2020पारित कर चीन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं,जो पहले ही कोरोना विषाणु महामारी फैलाने के आरोपों से घिरने के बाद खुद बेकसूर बताते हुए अपना असली चेहरा छुपाने में लगा है। अब देखना यह है कि उइगर मुसलमानों के मुद्दे पर दुनिया के इस्लामिक मुल्क और उनका संगठन ‘ओ.आइ.सी. उनकी मदद करने को क्या करते हैं,जो उनकी समस्या से अनजान बनने का दिखावे करते आए हैं।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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