डॉ.बचन सिंह सिकरवार

लेह की गलवान घाटी के कोई डेढ़ महीने पहले भारतीय क्षेत्र में घुस आए चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर भारत को भयभीत करने के जिस इरादे से हिंसक झड़प (हमला) को अंजाम दिया है, उसे भारतीय सैनिकों ने बगैर हथियारों के ही बड़ी बहादुरी से मुकाबला कर मुँहतोड़ जवाब देकर न केवल उसे नाकाम कर दिया है, बल्कि उसके इस भ्रम को भी तोड़ दिया है कि वह अपनी गीदड़ भभकी से भारत को डराकर मनमानी करने में आसानी से कामयाब हो जाएगा। गत 15-16 जून की आधी रात को चीनी अधिकारियों से उनको भारतीय ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’(एल.ए.सी.) क्षेत्र से वापस लौटने के वादे की याद दिलाने गए थे, जिसकी 6 जून को सीनियर कमाण्डर स्तर की वार्ता में बनी सहमति बनी थी, भारतीय सेना के कमाण्डिग अधिकारी समेत सैनिकों पर लोहे की रॉड, कंटीले तार लगे डण्डों से हमला किया। फिर भी भारतीय सैनिकों ने कोई 43 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारने में कामयाब रहे। हालाँकि उसमें 20 भारतीय सैनिकों की भी शहादत हुई है। इसके बाद चीन की हिमाकत यह है, वह उल्टे पर भारतीय सैनिकों पर उसके क्षेत्र में घुसकर हमला करने को झूठा इल्जाम लगाते हुए खुद को पीड़ित बता रहा है, जिस पर दुनिया का शायद ही कोई देश यकीन करेगा। लेकिन अब भारतीय विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने स्पष्ट शब्दों में उससे कहा है कि चीन ने यह हमला सोची-समझी साजिश के तहत किया है, ताकि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को बदला जा सके। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी चीन को चेतावनी देते हुए कहा भारत किसी को उकसाता नहीं, मगर हम अपने देश की सम्प्रभुता और अखण्डता से कोई समझौता भी नहीं करेंगे। इन जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। कुछ ऐसा ही थलसेनाध्यक्ष मनोज मुकन्द नरवणे ने कहा है। साथ ही सेना को सीमा पर अपने स्तर से सभी निर्णय लेने की पूरी छूट दे दी है।
गलवान की घाटी की वारदात से पूरे देश में लोगों में भारी गुस्सा है। अब उनके द्वारा चीन के विरोध में जुलूूस निकाले जाने के साथ उसके बने माल के बहिष्कार करने के साथ उसे जलाया भी जा रहा है। इस बीच एक ओर चीन के विदेशमंत्री वांग यी सीमा पर शान्ति बनाए रखने और तनाव खत्म करने की बात कर रहे हैं, तो दूसरी ओर चीन का सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ भारत को यह कहते हुए धमकाने में लगा है कि चीन से टकराने पर उसे तीन मोर्चों पर यानी चीन, पाकिस्तान, नेपाल से लड़ना होगा। ऐसे में अब भारत को चीन से निपटने के लिए कूटनीतिक, सैन्य और आर्थिक मोर्चों पर एक साथ उसे परास्त करने पर विचार करना चाहिए। अगर इसमे वहं सफल होता है, उसी दशा में सदा के लिए भारत को इस चीनी विषाणु से छुटकारा मिल पाएगा,जो विषाणु की तरह रह-रह कर उसकी सीमाओं का अतिक्रमण कर या फिर वैश्विक मुद्दों पर दुश्मन मुल्क पाकिस्तान का साथ देकर संक्रमित कर उसे हैरान-परेशान कराता आया है। इसलिए अब भारत को कूटनीतिक प्रयासों से चीन को दुनिया के दूसरे दशों से अलग-थलग करने के साथ सैन्य कार्रवाई और उसके उत्पादों का बहिष्कार तथा चीनी कम्पनियों को बाहर का रास्ता दिखाकर आर्थिक रूप से मात देने की ठोस नीति अपनानी होगी।
अब भारत और चीनी सैनिकों के बीच गोली भले ही नहीं चली है, पर पूरे 44 साल यानी सन् 1975 के बाद सरहद पर खून बहा है। अपनी इस धोखेबाजी से चीन एक बार फिर भारत के सबसे ईर्ष्यालु दुष्ट और धूर्त शत्रु के रूप में सामने आया है, जिसकी नजर हर समय भारतीय भूभाग को हड़पने पर लगी रहती है। वैसे भी ऐसा माना जाता है कि दुष्ट चीन तिब्बत को तो सन् 1951में हड़प ही चुका है। अब उसे हथेली मानते हुए

उसकी पाँच अंगुलियाँ के रूप में लद्दाख, भूटान, सिक्किम, भूटान और नेपाल पर भी कब्जा करना चाहता है। इसी इरादे से चीन ने 1962 में तत्कालीन नेफा( वर्तमान अरुणाचल) पर हमला किया था,जिसे वह दक्षिणी तिब्बत बताता है।अब भी वह इसके ‘तवांग’पर दावा करता है। फिर उसने 1967 में उत्तरी सिक्किम के नाथु ला सेक्टर पर हमला किया,पर भारतीय सेना ने उसे अपनी तोपों से कड़ा जवाब दिया। उस जंग में चीन के कोई 400सैनिक मारे गए और भारत के भी 80 से सैनिक शहीद हुए।चीन अपनी इस पराजय का कहीं उल्लेख नहीं करता। सन् 1962 में भारत पर धोखे से हमला कर चीन तत्कालीन जम्मू-कश्मीर के अक्षय चिन के 37,000वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, जो वर्तमान में केन्द्र प्रशासित लद्दाख का हिस्सा है। अक्षयचिन के छोर और पूर्वी लद्दाख में स्थित गलवान घाटी में उस समय भी युद्ध हुआ था, पर उस समय वह इस पर कब्जा नहीं कर पाया। लेकिन सामरिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण गलवान घाटी पर वह बार-बार कब्जा करने की कोशिश करता आया है।अब इसी 17जून को चीन के विदेश मंत्री वांग यी गलवान घाटी को अपना क्षेत्र बता रहे हैं,जबकि यह क्या उसका तो तिब्बत भी नहीं था। उसने भारत के अक्षयचिन पर अवैध रूप से कब्जा जमाया हुआ है। जहाँ तक गलवान घाटी का प्रश्न है, तो चीन का उस पर दावा पूरी तरह झूठा है। उस पर चीन का कभी भी वैध-अवैध कब्जा नहीं रहा है। इस इलाके और नदी के नाम जिस ‘गुलाम रसूल गलवान’ के नाम पर पड़ा है, वह कश्मीरी मुसलमान थे। उन्होंने ही सन् 1899 में इसकी खोज की थी। इस पर तत्कालीन अँग्रेज शासकों ने उन्हीं गलवान के नाम पर इस इलाके और नदी का नामकरण ‘गलवान घाटी’ और ‘गलवान नदी’ किया था। इसका प्रमाण गलवान के बारे में लिखी पुस्तक सर्वेन्ट ऑफ साहिब के लेखक गुलाम रसूल एवं फॉर सेकिंग पैराडाइजः द स्टोरीज फ्राम लद्दाख ’ है और गलवान के वंशज भी वर्तमान में लद्दाख के बाशिन्दे हैं। वैसे गलवान नदी का उद्गम काराकोरम के पूर्वी हिस्से में है। यहाँ से वह निकलकर यह अक्साईचिन और पूर्वी लद्दाख के पहाड़ी इलाके से होते हुए आगे बढ़ती है और श्योक नदी (रिवर ऑफ डेथ) में मिल जाती है। यह सिन्ध नदी की सहायक नदी है। गलवान नदी की लम्बाई लगभग 80किलोमीटर है।
चीन भारत से लगी सरहद ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ के आसपास सड़कें, सुरक्षा चौकियाँ, हवाई पट्टियाँ बहुत पहले बना चुका है, पर जब भारत अपने इलाके में यही सब बना रहा है, तो उसे बुरा लग रहा है। इस कारण उनके निर्माण का विरोध और उनके निर्माण में बाधा पैदा कर रहा है। सन् 2013में चीनी सेना ने एलएसी के पास उत्तरी लद्दाख में देपसांग घाटी में भारत के निगरानी चौकी के निर्माण पर आपत्ति की,तब 21 दिन के बाद यह मामला समाप्त हुआ। इसके बाद 2014 में चीन सेना ने दक्षिणी लद्दाख के चुमार में पानी की नहर निर्माण को रोकने की कोशिश की,उस समय भी यह विवाद 16दिन तक चला। फिर 2017 में डोकलाम में भूटान की सीमा के पास सड़क बनाने का प्रयास किया,जिस पर भारतीय सेना ने रोक लगायी ।तब दोनों देशों के सैनिकों की बीच हाथापाई हुई और यह विवाद 73दिन तक चला। इसी 9मई को उत्तरी सिक्किम में नाथु ला सेक्टर पर चीनी और भारतीय सैनिकों के मध्य मारपीट हुई,जिसमें दोनों ओर के सैनिक घायल हुए। तत्पश्चात् 2019 में चीन सैनिकों ने पैगोंग झील पर भारतीय सैनिकों के साथ झगड़ा किया।
अब उसकी नजरों में डी.एस.डी.बी.ओ. रोड का निर्माण बेहद खटक रहा है,जिसे वह अक्षयचिन और सामरिक मार्ग की सुरक्षा के लिए खतरा मान रहा है। इस सड़क के जरिए भारत अक्षय चिन पर कभी भी हमला कर कब्जा कर सकता है। चीन शिनजियांग -तिब्बत मार्ग से भारत का यथासम्भव दूर रखना चाहता है। यह प्रमुख पहाड़ी दर्रों और ऊँचाई वाले प्रमुख स्थानों पर कब्जा करना चाहता है। चीन का मानना है कि यदि वह नदी घाटी के पूरे हिस्से को नियंत्रित नहीं करता है, तो भारत अक्साईचिन पठार को कब्जाने के लिए नदी घाटी का उपयोग कर सकता है और खतरे में डाल सकता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा श्योक नदी के साथ आगे बढ़ती है। हाल ही में निर्मित दारबुक-श्योक गाँव -दौलतबेग ओल्डी रोड(डी.एस.डी.बी.ओ. )रोड भी नदी के साथ बढ़ती है। संचार की यह महत्त्वपूर्ण रेखा भी एल.ए.सी. के बहुत अधिक पास है।
वर्तमान में ‘सीमा सड़क संगठन’(बी.आर.ओ.) 255किलोमीटर लम्बी ‘दुरबुक-श्योक-दौलतबेग ओल्डी’(डीएसडीबीओ) सड़क को पूरा करने में जुटी है। इस सड़क और उस पर बन रहे आठ पुलों का वर्ष के अन्त तक पूर करने का लक्ष्य है। इसके बनने से सेना के साजो-साज सामान को छह घण्टों में वास्तविक नियंत्रण रेरखा तक पहुँचाना सम्भव होगा। इसलिए चीन ने पिछले 5मई से इस इलाके में घुसपैठ की हुई। उसके बाद भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच तीखी झड़प हुई थी। तब से लेकर बार-बार दोनों देशों की सेना के अधिकारियों की कई बैठकें हो चुकी हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन से स्पष्ट शब्दों में कह चुके हैं कि भारत अपनी सीमा में निर्माण कर रहा है,जिन्हें कोई भी बन्द नहीं करा सकता।फिर चीन उनकी चेतावनी को अनसुनी कर रहा है।इसका खामियाजा उसे उठाना ही पड़ेगा।
दरअसल, चीनी अजदहा(चाइनीज डैªगन) एक तरफ तो वार्ता की मेज पर चीनी सेना पीछे हटने पर रजामन्दी दिखा रही थी, पर गुपचुप तरीके से उसने गलवान और श्योक नदी के संगम पर निकट पोइण्ट 14 चोटी का हथियाने की साजिश रच रहा है। चीनी सेना ने षड्यंत्र के तहत निहत्थे भारतीय सैनिकों ने ही विफल कर दिया। आमने-सामने की झड़प में चोटी से फिसल कर भारतीय तथा चीनी सैनिक बर्फीली गलवान नदी में जा गिरे और रात की शून्य तापमान के कारण मारे गए।
अब भारत को चीन को स्पष्ट बता देना चाहिए कि उस पर उसकी दादागीरी नहीं चलेगी। भारत को तिब्बत, ताइवान, हांगकांग, दक्षिण चीन सागर, उइगर मुसलमानों के मामलों को लेकर अपनी पुरानी नीतियों का परित्याग कर उनमें आवश्यकता के अनुसार बदलाव करना चाहिए। उसे दो साल पहले तिब्बत की निर्वासित सरकार और दलाईलामा के कम किये दर्जे को फिर से बहाल करना चाहिए। इसके साथ ही आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत चीनी उत्पादों का आयात न केवल सीमित किया जाए, बल्कि उन्हें पूरी तरह बन्द करने के प्रयास शुरू कर देने चाहिए। भारत सरकार ने ‘भारत संचार निगम लिमिटेड’(बी.एस.एन.एल.)को 4जी तकनीकी की स्थापना में चीनी टेलीकॉम क्षेत्र की कम्पनियों दूर रखने के निर्देश दिये हैं। भारत को अमेरिका, आस्टेªलिया ,जापान के साथ अपने रणनीतिक गठजोड़ को और मजबूत करना चाहिए, ताकि हिन्द महासागर में चीन की विस्तारवादी मंसूबों को विफल किया जा सके। हिन्दू महासागर में उसकी आवाजाही पर भी सख्ती रखनी चाहिए। वर्तमान में विश्वभर में कोरोना कहर के कारण चीन के खिलाफ जो माहौल बना है उसमें भी भारत को अपनी बढ़चढ़ कर भाग लेना चाहिए। अब भारत को चीन के पड़ोसी होने का लिहाज छोड़कर ‘जैसे को तैसा’ की नीति अपनाते हुए चीन की अपने खिलाफ की गई हर कार्रवाई को जवाब देने को हमेशा तैयार रहना चाहिए। उसे चीन की उन कम्पनियों को भी अपने देश में काम नहीं करने देना चाहिए, जिन्हें दूसरे देश अपने यहाँ से बाहर निकाल रहे हैं। वैसे भी चीन की कम्पनियाँ केवल व्यापारिक संस्थान नहीं है, बल्कि वे उसके लिए गुप्तचर एजेन्सियों का भी काम करती हैं। भारत को चीन को दूसरे देशों से अलग-थलग करने की नीति अपनाते हुए पहले ‘शंघाई सहयोग परिषद्’ जैसे मंचों समेत उन सभी से बाहर आना चाहिए,जिनके जरिए चीन दुनिया को अपना दबदबा दिखाने की कोशिश करता आया है। भारत को यह भी संगठनों याद रखना चाहिए कि चीनी अजदहा अपनी फूँफ कर ही लोगों को डराता है,उसकी काटने की औकात नहीं है। अगर एक बार उसके सामने सीना ताने खड़े हो गए,तो फिर वह कभी मुड़कर नहीं देखेगा। इस तरह भारत को धोखेबाज चीन को सबक सिखाने के लिए कूटनीतिक, सैन्य और आर्थिक सभी कदम उठाने चाहिए, ताकि यह दुष्ट फिर भारत की ओर निगाह उठाने की हिमाकत करने से पहले हजार बार सोचे।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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