राजनीति

राज्य सरकारी की नाकामी है अजय पण्डित की हत्या

साभार सोशल मीडिया

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

जब जम्मू-कश्मीर में सेना, सुरक्षा बल और पुलिस लगातार आतंकवादियों के सफाये में लगी है, तब दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के लार्कीपोरा गाँव लुकभावन के सरपंच अजय पण्डित भारती की गत 8 जून को उनके घर के पास शाम 6 बजे हत्या ‘द रेजिस्टेंस फ्रण्ट ऑफ जम्मू-कश्मीर’(टी.आर.एफ.जे.के.) के आतंकवादियों द्वारा किये के जाने के खास माने हैं, क्योंकि वह न खुद अपने गाँव आकर रहने लगे थे, बल्कि गाँव के मुसलमानों के वोटों से चुनाव जीत कर सरपंच बने गए थे। इतना ही नहीं, दूसरे कश्मीरी पण्डितों को घाटी में अपने घर लौटा आने की मुहिम भी छेड़े हुए थे। कोई दो साल पहले अपने गाँव लौटे पूरी कश्मीर घाटी में एकमात्र हिन्दू सरपंच चुने अजय पण्डित भारती एक तरह से इस्लामिक कट्टरपन्थियों के लिए चुनौती बने हुए थे। इस वजह से इस्लामिक कट्टरपन्थियों और दहशतगर्दों की नजरों में वे सरपंच चुने जाने के बाद से बेहद चुभ रहे थे, जो किसी भी सूरत में घाटी में फिर से हिन्दुओं (कश्मीरी पण्डितों)की वापसी के सख्त खिलाफ हैं। उनका तो ख्वाब ही पूरे जम्मू-कश्मीर में ‘निजाम-ए-मुस्तफा’ लाना है, पर अजय पण्डित भारती और उनके गाँव के मुसलमान इसमें आड़े आ रहे थे, जिन्होंने हिन्दू सरपंच चुनकर सही माने में कश्मीरियत की मिसाल पेश की थी, जिसकी डॉ.फारूक अब्दुला से लेकर महबूबा मुफ्ती तक दुहाई तो देती आयी हैं, लेकिन उनका भी असल मकसद हमेशा इस सूबे में ‘दारुल इस्लाम’ कायम करना रहा है।

साभार सोशल मीडिया

अब अजय पण्डित भारती की हत्या कर दहशतगर्द यहाँ कश्मीरी पण्डितों के दिलों में दहशत पैदा करने में कामयाब हो गए हैं,जिसमें राज्य शासन की अदूरदर्शित का हाथ भी रहा है। यहाँ सवाल यह है कि क्या जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल और स्थानीय प्रशासन को इतना ज्ञान नहीं है कि दहशतगर्दों के लिए वह हर शख्स गुनाहगार है, जो सरकार का साथ दे रहा है। इस वजह से ये दहशतगर्द पहले भी कई सरपंचों, ग्राम प्रधानों, एसपीओं की जान ले चुके हैं। फिर अजय पण्डित भारती तो सरपंच होने के साथ -साथ हिन्दू (कश्मीर पण्डित) भी थे। इसके बाद भी उनके सुरक्षा माँगने पर भी सुरक्षा न देकर उसने अक्षम्य अपराध किया है, ऐसा करके राज्य प्रशासन ने कश्मीर घाटी में कश्मीरी पण्डित की वापसी पर सवालिया निशान लगा दिया है, जबकि हिन्दू अल्पसंख्यकों के इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था के इन्तजाम रहा करते थे।
वैसे अब किस मुँह से केन्द्र की कथित राष्ट्रवादी सरकार कश्मीर पण्डितों को सुरक्षा देने का भरोसा दिला पाएगी? उसके अनुच्छेद 370और 35ए हटाने के बाद भी कश्मीरी पण्डितों को अब तक क्या फायदा हुआ है ,जब वह अपने प्रशासन का नजरिया तक नहीं बदल सकी। अजय पण्डित भारती महज एक सरपंच ही नहीं थे,बल्कि एक कट्टर राष्ट्रवादी और मातृभूमि के सपूत थे।इसलिए वे अपने नाम के पीछे ‘भारती’भी लगाते थे।उन्हें इस्लामिक कट्टरपन्थियों से अपनी जान का खतरा था। लेकिन उनका विचार था कि जब देश के अलग-अलग सूबे के जवान कश्मीर की रक्षा के लिए अपनी जान देते है,तो मैं अपनी जन्मभूमि के लिए प्राणों की चिन्ता क्यों करूँ?अपने इन्हीं विचारों के कारण अजय पण्डित भारती ने घाटी में घर वापसी की थी। इस्लामिक कट्टरपन्थियों की धमकियों और दहशतगर्दी की परवाह न करते हुए अजय पण्डित न सिर्फ अपने गाँव लौट आए थे, बल्कि कट्टरपन्थियों द्वारा बर्बाद और उजाड़ दिये गए अपने सेब आदि बागों को फिर से आबाद कर नया घर बनाया। फिर सियासत करने के साथ-साथ दूसरे कश्मीरी पण्डितों वापसी की मुहिम छेड़ने की हिमाकत भी की। यही उनका सबसे बड़ा गुनाह हो गया।
वैसे अजय पण्डित भारती दहशतगर्दों को भले ही नापसन्द रहे हों, लेकिन उनके मुस्लिम पड़ोसी उन्हें उसूल पसन्द शख्स और साफ नजरिए वाला इन्सान मानते हैं। अब उनके न रहने पर ‘ऑल पार्टी माइग्रेण्ट कॉरपोरेशन कमेटी’(एपीएमसीसी) के अध्यक्ष विनोद पण्डित ने केन्द्र सरकार से सुरक्षा की माँग करते हुए लिखा है कि अल्पसंख्यक कश्मीरी पण्डितों पर साजिश के तहत हमला किया जा रहा है,ताकि जिस तरह से 1990 में उन्होंने दहशत फैलाया था उसी तरह दोबारा दहशत का माहौल तैयार किया जा रहा है।जिससे कश्मीर पण्डित घाटी में न लौटें। अब जहाँ अजय पण्डित की बर्बर हत्या की काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी, पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, मेहबूबा मुफ्ती ,केन्द्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह, फिल्म अभिनेता अनुपम खेर, फिल्म निर्माता अशोक पण्डित, अभिनेत्री कंगना रनौत ने शोक व्यक्त करते हुए दहशतगर्दो की निन्दा की है। राहुल गाँधी ने इस हत्या की घटना की न्यायिक जाँच की माँग की है, वहीं अजय पण्डित के पिता द्वारका नाथ पण्डित ने अपने बेटे के हत्यारों की खोज शीघ्र फाँसी पर लटकाने की सरकार से माँग की है।
अब हैरानी इस बात पर हो रही है कि अजय पण्डित की निर्मम हत्या पर असहिष्णुता, मानवाधिकार की दहाई देने वालों के साथ-साथ फिल्मी कलाकार, अरुन्धति रॉय सरीखे साहित्यकार, वामपन्थी नेता भी एक तरह से खामोश ह,ैक्या घाटी में हिन्दू की हत्या के कोई माने नहीं होते,क्या उसकी जान दहशतगर्दों से भी गई गुजरी है, जिनके मुठभेड़ में मारे जाने पर ये सभी मानवाधिकारों के नाम पर अक्सर आँसू बहाते हुए सुरक्षा बलों को कोसते आए हैं। जहाँ तक कश्मीरी के सियासतदाओं की बात है तो ये लोग जिस कश्मीरी अवाम की भलाई की दुहाई देकर इन्तखाब जीतते आए है, पर सत्ता हासिल करने के बाद अपना, अपने रिश्तेदारदारों और चहेतों का घर भरने के साथ शानो-शौकत की जिन्दगी बसर करते आए है। ये लोग अक्सर कश्मीरियत, इन्सानियत, जम्हूरियत का राग अलापते रहे है, पर असल जिन्दगी में इनका इनसे दूर-दूर तक वास्ता नहीं रहा है। वे जिस जम्हूरियत की बात करते है,वह इनकी पार्टी तक में नहीं रही है। ज्यादातर सभी खास पदों पर इनके खानदान के लोग या फिर रिश्तेदार काबिज रहते आए हैं। इसी तरह कश्मीरियत के नाम पर बराबर फरेब करते रहे हैं। इनकी सरकारों ने जम्मू और लद्दाख के लोगों के साथ हमेशा दोयम दर्जे सलूक किया है, जो कुछ विकास हुआ, वह घाटी में हुआ, जिसका फायदा मुसलमानों तक सीमित रहा है। जहाँ तक कश्मीरियत का सवाल है,उसे भी इस्लामिक कट्टरपन्थियों से जड़ से खत्म कर दिया। मुल्क के आजाद होने के बाद से शेख अब्दुला के वजीरे-सदर बनने के बाद से हिन्दुओं के साथ हर मामले में दूसरे दर्जे का सलूक होने लगा था। सूबे तरह-तरह के कानून बनाकर उनकी जमीन-जायदाद छीन कर अपने हममजहबियों में बाँट दी गईं। इसी तरह ज्यादातर सरकार नौकरियों और खास पदों पर हममजहबी बैठाये गए। संविधान के अनुच्छेद 35ए के तहत जहाँ बँटवारे के समय रहे हैं,हिन्दुओं को नागरिकता नही दी गई, वहीं हममजबी पाकिस्तानियों को दी गईं। यहाँ तक कि कश्मीरी पण्डित युवती द्वारा भारत के दूसरे सूबे के युवक से शादी करने पर उसे सूबे की नागरिकता और उसके उत्तराधिकार से वंचित कर दिया गया। इसके विपरीत कश्मीरी मुसलमान युवक पाकिस्तानी युवती से निकाह कर ले,तो उसे नागरिकता हासिल हो जाती थी। इस सूबे को दारुल इस्लाम बनाने को हजारों की तादाद में हर गाँव मस्जिदें तामीर करायी गयीं, ताकि वहाँ रहकर जेहादी, अलगाववादी, दहशतगर्द महफूज रहें। इन्हीं मस्जिदों से मजहबी कट्टरता फैलाकर इस सूबे में कश्मीरियत और सूफीयत को पलीता लगाया गया। इसका नतीजा 4जुलाई,सन् 1990में इस्लामिक दहशतगर्द संगठन ‘जैश-ए-मुहम्मद’ने इश्तरों के जरिए घाटी के कश्मीरी पण्डितों को अपना घर और युवतियाँ छोड कर चले जाने का ऐलान कर दिया। इसके बाद 19जुलाई को उनका कत्ल-ए-आम ,घरों में आग लगाकर, महिलाओं के साथ बलात्कार कर दहशत फैलायी गई। इसमें सरकारी आँकड़ों के मुताबिक 300 से अधिक और गैर सरकारी सूत्रों से 3000सेज्यादा कश्मीरी पण्डितों की बर्बरता हत्याएँ की गई।बाकी कश्मीरी पण्डितों की जान तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने बसों में बैठकर सुरक्षा बलों की कड़ी निगरानी में जम्मू भिजवा कर बचाया। इस तरह तब कोई चार लाख से ज्यादा कश्मीरी पण्डितों को बेघर होकर शिविरों में खानाबदोश की जिन्दगी बसर करने को मजबूर होना पडा है।उस इस सूबे में गुलाम नबी आजाद की नेतृत्व वाली काँग्रेस तथा नेशनल कान्फ्रेंस की साझा सरकार और केन्द्र में जनता दल की प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की। उसमें केन्द्रीयगृहमंत्री मुफ्ती सईद थे। लेकिन इनमें किसी ने कश्मीरी पण्डितों की फिक्र करना जरूरी नहीं समझा।
अब अजय पण्डित भारती की हत्या से सबक लेते हुए केन्द्र सरकार और जम्मू-कश्मीर के स्थानीय प्रशासन को अल्पसंख्यक कश्मीरी पण्डितों की विशेष सुरक्षा समेत हर उस शख्स की हिफाजत को तवज्जो देनी चाहिए,जो उसका हिमायती रहा है। अगर ऐसा नहीं किया जाता,तो कौन उस पर यकीन कर अजय पण्डित की तरह घाटी मे लौटने का दुस्साहस करेगा।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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