डॉ.बचन सिंह सिकरवार

हाल में पाकिस्तान के बागी और ‘मुत्ताहिदा कौमी मूवमेण्ट’(एम.क्यू.एम.) के संस्थापक अल्ताफ हुसैन ने पाकिस्तान को नागरिक एवं सैन्य मदद बन्द करने के बारे में अमेरिका को जो खत(पत्र) लिखा है, वह पूरी तरह दुरुस्त,सही और वक्त की जरूरत के मुताबिक भी है। इसमें उन्होंने अमेरिकी सहायता के दुरुपयोग का हवाला और खुलासा करने के साथ-साथ पाक हुकूमरानों के असली चेहरों को भी बेनकाब किया गया है। इस खत के जारिए उन्होंने अमेरिका को सर्तक-सावधान और चेताते हुए कहा कि वह जिन पाकिस्तानी हुकूमरानों की अब तक मदद करता आया है, वे दुनिया के सबसे बर्बर और नस्लवादी हैं। वह उनकी मदद से फौजी ताकत में इजाफा कर अपने ही मुल्क के बलूचिस्तान, सिन्ध, खैबर पख्तूनख्वा , गिलगिट, बाल्टिस्तन, केपीके के बाशिन्दों पर तरह-तरह के जुल्म ढहाता आया है। इतना ही नहीं, वह जिन पाकिस्तान हुकूमरानों को इमदाद देता रहा है, उन्होंने ही दहशतगर्द संगठन ‘अलकायदा’, ‘तालिबान’, ‘लश्कर-ए-तैयबा’, ‘जैश-ए-मुहम्मद’ और ऐसे सैकड़ों संगठन खड़े किये हुए है, जो अमेरिका समेत दुनियाभर में तबाही, खूनखराबा और दहशतगर्दी मचाए हुए हैं। पाकिस्तानी फौज के झण्डे तले ही इस्लामिक कट्टरपन्थियों (मजहबी उन्मादियों ) को दहशतगर्दी का तालीम/प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिसका शिकार खुद अमेरिका भी हो चुका है। जिस दहशतगर्द संगठन ‘अलकायदा’ ने 11सितम्बर, 2001 को अमेरिका के विमान हाईजैक कर न्यूयार्क के वर्ल्ड टेªड सेण्टर समेत चार जगहों पर हमले कर दहलाया था,उसे पाकिस्तान ने अमेरिकी मदद से ही तैयार किया था। उस हमले में अमेरिका के करीब 3000 लोग की जानें गई थीं।यहाँ कि उस हमले में रक्षामंत्रालय पेण्टागन भी बचा नहीं रहा था। इस हमले ने अमेरिका के दुनिया के महाबली होने की छवि को भी आघात पहुँचाया था। अमेरिका यह भी जानता है कि अफगानिस्तान में तालिबान के मुकाबले में उसकी नाकामी की असल वजह पाकिस्तान है, जो उसका मददगार बना हुआ है। इसकी वजह से न चाहते हुए भी उसे तालिबान से समझौता करने को मजबूर होना पड़ा है। ऐसे में अब अल्ताफ हुसैन ने अपने खत जिन बातों का जिक्र किया है,उनसे अमेरिका वाकिफ न हो ऐसा नहीं है। वह पाकिस्तान और उसके हुकूमरानों के इरादों तथा उनकी कारतूतों को अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन दक्षिण एशिया में एक पिठ्ठू की जरूरत के चलते अमेरिका पाकिस्तान की सभी गलतियों की अनदेखी करते हुए उसे माफी देता आया है।
पाकिस्तान बलूचिस्तान, सिन्ध ,खैबर पख्तूनख्वा, के. पी.के ,गिलगिल-बाल्टिस्तान के लोगों के साथ शुरुआत से ही गैरी बराबर का बर्ताव करता आया है। इसका इन सूबों के लोग अपने साथ होने वाली गैर इन्साफी के खिलाफ अपनी आवाज उठाते आए हैं, पर पाकिस्तानी फौज के जुल्म और दमन के जरिए उन्हें चुप कर दिया जाता रहा है। कई दशक पहले से सिन्ध में ‘जिये सिन्ध’ के नारे के साथ पाकिस्तान से अलग होने की माँग उठी थी, जो अब भी जारी है। यही स्थिति बलूचिस्तान की है, जो पाकिस्तान का चालीस फीसद से ज्यादा कुल जमीन का हिस्सा है, जो प्राकृतिक संसाधनों से मालामाल है। इसके बावजूद पाकिस्तानी हुकूमरानों की इस इलाके लोगों के साथ बेइन्साफी के चलते बेहद गरीब बने हुए है। अपने साथ हो रहे जुल्मों खिलाफ युवाओं ने बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी बनायी हुई है, जो पाक से अलग होने की मुहिम चला रही है। कुछ ऐसे ही हालात खैबर पख्तूनख्वा है। पाकिस्तान दुनियाभर में जम्मू-कश्मीर में भारत की ज्यादातियों का राग अलापता आ रहा है,पर इसी सूबे के अपने कब्जे के हिस्से ,गिलगिट,बाल्टिस्तान, कथित गुलाम कश्मीर के लोगों के साथ शुरुआत से गैरबराबरी करता आया है,जिसके चलते वे भी उससे छुटकारा चाहते हैं।
अल्ताफ हुसैन ने अपने खत में यह सवाल किया है कि अमेरिका के 50 से अधिक शहरों में हिंसा और अराजकता का माहौल है। वह अमेरिका और दुनिया का हर अमन पसन्द और जम्हूरियत में यकीन करने वाले लोगों के लिए एक सबक है, लेकिन दुर्भाग्य से पहले और अब के अमेरिकी प्रशासक और निर्णय लेने वाले पाकिस्तानियों की तकलीफों को क्यों नहीं समझते? वे किसी न किसी वजह से यह समझने में नाकाम रहे हैंकि पाकिस्तानी कैसी तकलीफें बर्दाश्त कर रहे हैं। इसलिए अमेरिका के वर्तमान नेतृत्व को इसपर गम्भीरता से विशेष ध्यान की आवश्यकता है।
जहाँ तक अल्ताफ हुसैन का सवाल है, तो वह खुद और उनसे हमदर्दी रखने वाले पाकिस्तान सरकार के सताए हुए हैं। सन् 1947 में मजहब की बुनियाद पर देश के बँटवारे के दौरान जो मुसलमान पाकिस्तान को पाक और जन्नात समझ कर भारत में अपना सब कुछ छोड़ कर पाकिस्तान चले गए थे। वहाँ हममजहबियों ने उन्हें गले लगाने के बजाय हिकारत की नजर से देखते हुए न सिर्फ ‘मुहाजिर’(शरर्णियों) कहा, बल्कि उनके साथ दोयम दर्जे के शहरी सरीखा सलूक भी किया। इससे आहत होकर अल्ताफ हुसैन ने पाकिस्तान के सिन्ध सूबे में ‘मुहाजिर कौमी मूवमेण्ट’ नामक सियासी पार्टी की नींव डाली, लेकिन इससे मुहाजिरों के हालात पर कोई फर्क नहीं पड़ा। पाकिस्तान सरकार के मुहाजिरों के साथ गैर बराबरी और जुल्मों में कमी नहीं आयी। इसके विपरीत उन पर पहले से कहीं अधिक अत्याचार बढ़ गए। उन्हें जब कहीं से इन्साफ मिलता नजर नहीं आया, तो उनके तेवर भी बढ़ गए। आखिर में उन्हें पाकिस्तान छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। पिछले कई सालों से निर्वासित होने के बाद से वह इंग्लैण्ड की राजधानी लन्दन में रहकर पाकिस्तान सरकार से ‘मुत्ताहिदा कौमी मूवमेण्ट’ के झण्डे तले मुहाजिरों के इंसाफ की मुहिम चलाए हुए हैं।
अल्ताफ हुसैन ने अमेरिका से यह सही सवाल किया है कि पाकिस्तान की इस हकीकत को जानते हुए भी अमेरिकी प्रशासन के साथ -साथ विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’(आई.एम.एफ.) जैसे अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने में आगे रहते हैं? यहाँ यह भी सच्चाई है कि अमेरिका और दूसरे अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान पाकिस्तान की काली कारतूतों से वाकिफ है, पर अपने सैन्य,कूटनीतिक, व्यावसायिक हितों को देखते हुए ये सभी उसके मददगार बने हुए है,जो न सिर्फ इन्सानियत और जम्हूरियत का गुनाहगार है, बल्कि दुनिया में दहशतगर्दों को पैदा करने, पालने-पोसने और पनाह देने वाला भी है,जिसकी वजह से पूरी दुनिया के लोग दहशत में जीने का मजबूर बने हुए हैं। अमेरिका, इस्लामिक मुल्कों के साथ चीन की भारी इमदाद के बाद भी आज पाकिस्तान अपने नेताओं, सैन्य अधिकारियों के भारी भ्रष्टाचार की वजह से दिवालिया होने के कगार पर है। फिर भी उसकी फौज हर रोज भारतीय सीमा पर गोलीबारी करते हुए दहशतगर्दों को जम्मू-कश्मीर की सरहद में घुसपैठ कराने से बाज नहीं आ रही है,जबकि पाकिस्तान में कोरोना महामारी फैलाने के साथ भूखमारी के हालात भी बने हुए है, पर इससे बेफिक्र पाकिस्तानी हुकूमरान हिन्दुस्तान को जंग छेड़ने की धमकी देने से बाज नहीं आ रहे हैं। अमेरिका की मदद के बूते ही पाकिस्तान न सिर्फ पड़ोसी मुल्कों के लिए परेशानियाँ पैदा करता आया है, बल्कि उसके बाशिन्दें पर भारी जुल्मों से ढहाता आया है। इससे वजह से वे उससे छुटकारा चाह रहे हैं। इसलिए अमेरिका को अल्ताफ हुसैन के खत पर गौर फरमाने की बेहद और सख्त जरूरत है।वह जितनी जल्दी पाकिस्तान को हर तरह की इमदाद बन्द करेगा, उतनी ही जल्दी हर किसी उससे राहत मिलेगी।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार-63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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